पैड संख्या २८
विषय सूची —
- मरणासन्न व्यक्ति को भगवन्नाम सुनाने का माहात्म्य
- स्वयं अमानी रहकर दूसरों को उचित सम्मान दें
- गीताप्रेस में काम करने वालों को इससे आध्यात्मिक विषय का लाभ भी उठाना चाहिए
- भगवान् और महात्माओं की स्मृति से लाभ
- गीताप्रेस को चलाने वाले भगवान् तो सदा कायम हैं
- भगवान् याद आने पर उनके गुण अपने में आने चाहिएँ
- जो माता-पिता की भक्ति करता है, उसके पीछे-पीछे भगवान् फिरते हैं
- यदि हम ईश्वर की आज्ञा का आदर करें तो हमारे उद्धार में ज्यादा देर नहीं होगी
- मेरी पुस्तकों में भूल नहीं रहने देना घाव पर मरहम-पट्टी करना है
- हमारे पिताजी एवं दादाजी के नियम पालन की बातें
- गीताप्रेस के कार्यकर्ताओं को उद्बोधन
- भगवान् तो अपात्र, कुपात्र को भी दर्शन दे सकते हैं
- सब घटनाओं में भगवान् का पुरस्कार मानें, सब में आनन्द मानें
- हर समय स्वार्थ-त्याग का व्यवहार करना चाहिए, फिर व्यवहार चमक उठता है
- ईश्वर ने हम लोगों पर बड़ी दया की, जिससे हमारा सम्बन्ध गीताप्रेस से किया
- पुस्तकों की छपाई शुद्ध एवं सुन्दर होनी चाहिए
- रुपयों के त्याग से मान, बड़ाई, प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है और इन दोनों के त्याग से परमात्मा की प्राप्ति होती है
- गीताप्रेस का काम जितना करते हैं, अपनी शक्ति के अनुसार उससे ज्यादा करें
- जिसका राग-द्वेष और हर्ष-शोक जितना कम है, वह उतना भगवान् के नजदीक है
- गीताप्रेस की संस्था से संसार में परमार्थ विषय का कितना लाभ हो रहा है !
- यदि कोई निष्कामभाव से भगवदर्थ कर्म करे तो उसके अन्न में तुलाधार वैश्य की अपेक्षा ज्यादा शक्ति आ जावे
- किसी का मन बदल दें, वह ही विशेष हित करना है
- गीताप्रेस का काम भगवान् का काम है
- परम सेवा करने में मान, बड़ाई मिले तो गाली के समान लगनी चाहिए; उसमें लज्जा, संकोच होना चाहिए
- सबके साथ उच्च कोटि का व्यवहार करना चाहिए
- थोड़े आलस्य को भी ज्यादा मान लेवे तो उन्नति जल्दी होवे
- भगवान् का काम प्रसन्नता से करे तो उत्साह रहता है
- हम यदि भगवान् की कठपुतली बन जावें तो भगवान् अपने कहे अनुसार नाचें
- अन्त समय में मनुष्य को जो स्थिति प्राप्त होनी चाहिए, वह इसे ( घनश्यामदास जालान को ) प्राप्त है
- काम करते समय श्रीरामचन्द्रजी को याद कर लेना चाहिए
- हम गीताप्रेस के कार्यकर्ताओं को जिस रूप में देखना चाहते हैं, वैसा रूप दिखता नहीं है
- गीताप्रेस का काम भगवान् का काम है!
- भगवान् की प्रसन्नता में ही जिसकी प्रसन्नता है, वह भगवान् को प्राणों से भी प्यारा है
- किसी आदमी की मेरे से मिलने की उत्कट इच्छा होती है, तो उससे मिलना हो जाता है (श्रीशुकदेवजी की बीमारी अवस्था में उनसे बातचीत)
- लोगों में पुण्यों के पालन की इच्छा, चेष्टा नहीं रहती है, किन्तु फल चाहते हैं
- भगवान् की स्मृति श्रद्धा, प्रेम से होती है, इसके लिए भगवान् से याचना करने में भी अड़चन नहीं है (श्रीशुकदेवजी के पास)
- हम जब तक कोई काम नहीं छोड़ते हैं, तो आप क्यों छोड़ो
- नाम का जप, स्वरूप का ध्यान और भगवान् राम को हृदय में याद करके उस माफिक व्यवहार करना चाहिए
- कोई मरता होवे तो सत्संग छोड़कर भी वहाँ भगवन्नाम सुनाने के लिये जाना चाहिए
- मेरे द्वारा धारण किए हुए जीवनचर्या के नियम
- हर वक्त निष्कामभाव से भगवान् को याद रखने की विशेष चेष्टा करनी चाहिए
- आप लोग हमारे अनुभव से लाभ उठाओ
- हर एक प्रकार से पुस्तकों की बिक्री बढ़ानी चाहिए