मरणासन्न व्यक्ति को भगवन्नाम सुनाने का माहात्म्य
(१) गीताप्रेस में कोई आदमी दर्शन के लिये आवे तो जिस श्रद्धा से वह आवे, उसकी श्रद्धा और बढ़ानी चाहिए। यह नहीं कि जैसे तीर्थों की महिमा सुनकर कोई जावे तो पण्डा, पुजारियों का व्यवहार देखकर यात्री लोगों की श्रद्धा कम हो जावे।
(२) मरने वाले की खबर सुनकर उसे तत्काल कीर्तन आदि सुनाने की व्यवस्था करनी चाहिए।
प्रत्येक मनुष्य को एक क्षण मुक्ति के लिए है। यदि वैसा क्षण चाहिए तो मरणासन्न के निमित्त होने वाले कीर्तन में शामिल हो जाओ। जितने लोग वहाँ शामिल हुए, सब मुक्ति के अधिकारी हो गए। जैसे फाँसी होने योग्य अपराध के लिए उस अपराध में शामिल होने पर सबको फाँसी होती है, तब मरणासन्न के निमित्त होने वाले कीर्तन में शामिल होने वाले सबकी मुक्ति क्यों नहीं होगी ? वहाँ जाकर कीर्तन सुनाने के लिए धरना लगा देना चाहिए। इस काम के लिए समय देना सबसे ज्यादा दामी (मूल्यवान्) है। जरूरत पड़ने पर ऐसे काम के लिए अपना भजन, ध्यान, सत्संग छोड़ दे; आपका जरूरी-से-जरूरी काम छोड़ दे। यह (मरने वाले को भगवन्नाम-कीर्तन एवं श्रीगीताजी सुनाना) बहुत ज्यादा महत्त्व की बात है। गीताप्रेस का भाई होवे तो जरूरत पड़ने पर इस काम के लिए भले ही प्रेस के ताला लगाकर वहाँ कीर्तन सुनाने चले जाओ। प्रेस के नुकसान को बर्दाश्त कर लो। जैसे कहीं आग लगने पर बुझाना तो लौकिक लाभ है, परन्तु मरणासन्न की मुक्ति की व्यवस्था करना आध्यात्मिक लाभ है। इस काम के लिए अगर पाँच जगह चेष्टा (प्रयास) करते हैं और यदि एक जगह सफलता मिल जाती है तो भी हम लाभ में ही हैं। १०० बारात में (यानी ज्यादा वैवाहिक कार्य में) जाने वाले व्यक्ति की नरक में जाने की ज्यादा सम्भावना है। दूसरी तरफ १०० मरने वालों के दाग में जाने वाले की मुक्ति हो जावे। मरनेवाला चाहे वैरी, शत्रु होवे तो वहाँ भी जावे।
मरणासन्न व्यक्ति को भगवन्नाम-कीर्तन सुनाने का तुलनात्मक लाभ- (१) मरणासन्न भी सुनना चाहे और घर वाले भी चाहें- यह सुनाना एक नम्बर का है।
(२) मरणासन्न को ज्ञान (होश-हवास) नहीं है और घर
वाले चाहें- यह सुनाना दो नम्बर का है। (३) मरणासन्न चाहे, किन्तु घर वाले नहीं चाहें, तो भी
सुनावे- यह सुनाना तीन नम्बर का है।
(४) मरणासन्न नहीं चाहे, किन्तु घर वाले चाहें- यह सुनाना चार नम्बर का है।
यहाँ तक तो कर लें, किन्तु मरने वाला और घर वाले-
दोनों में से कोई भी नहीं चाहे, तब कोई उपाय नहीं है। मरणासन्न व्यक्ति को भगवन्नाम कीर्तन सुनाने का उनके यहाँ से बुलावा आ जावे तो समझे कि भगवान् का बुलावा आया है।