Seeker of Truth
॥ श्रीहरिः ॥

यदि कोई निष्कामभाव से भगवदर्थ कर्म करे तो उसके अन्न में तुलाधार वैश्य की अपेक्षा ज्यादा शक्ति आ जावे

प्रवचन सं. २१
दि. २२-११-१९५८, प्रातः ७.४५ बजे

ऋण से मुक्ति या तो हम चुकावें, तब हो; या भगवान् मुक्त कर देवें; या आप लोग पालन करने लग जाओ कि- 'ये जो कहते हैं, वह सभी शास्त्रों का इत्थंभूत (यथार्थ) है।'

(टिप्पणी- श्रद्धेय श्रीसेठजी मानते थे कि जो उनके सत्संग में आ गया, उसे जब तक भगवत्प्राप्ति या मुक्ति नहीं हो जाए, तब तक उसका मेरे ऊपर ऋण है। यहाँ श्रद्धेय श्रीसेठजी उसी ऋण से मुक्ति की बात कर रहे हैं।)

हम तो बीच के दलाल हैं। आपको तो कहते हैं कि-'आप लग जाओ खूब जोर से।' और भगवान् से कहते हैं कि- 'कलियुग का मौका है; इन जीवों को मुक्त करने में थोड़ी ढील होनी चाहिए।'

आप लोग मेरे लिए जैसी मान्यता कर लो, आपके लिए मैं वैसा ही हूँ।

कोई माने या न माने, हमारा तो यह विश्वास है कि भगवदर्थ कर्म निष्कामभाव से करे तो उसके अन्न में तुलाधार वैश्य की अपेक्षा ज्यादा शक्ति आ जावे। काशी में शंकरजी मुक्ति का सदाव्रत बाँटते हैं, उससे भी ज्यादा बात हो सकती है; तुलाधार और राजा अश्वपति से बढ़कर हो सकता है। उद्दालक ५ ऋषियों को लेकर राजा के पास गए। उनको राजा ने रत्नों की थाली भेंट दी। उन्होंने इन्कार कर दिया। राजा ने कहा- 'मेरा धन पवित्र है। आप क्यों इन्कार करते हो ?' राजा का कहने का भाव यह था कि आपके विद्यार्थी इन रत्नों को बेचकर अन्न लाकर खायेंगे तो पवित्र हो जायेंगे। राजा ने कहा- 'मेरे देश में वैश्या, कसाई, मद (शराब) की भट्टी और चोर नहीं हैं।' (नन्दभद्र की कथा सुनाई।)

हमने उपदेश लिया- श्रीकृष्ण भगवान् का, जो उन्होंने श्रीमद्भगवद्गीता में दिया है। ऐसा उपदेश कहीं भी नहीं मिलता है।

अनुकरण करने के लिए आदर्श- भगवान् श्रीराम का।

ध्यान- भगवान् विष्णु का; क्योंकि उनकी देवाकृति है और वे दैव धातु से बने होते हैं।

ये तीनों एक के ही तीन स्वरूप हैं।

रामजी का भी बहुत अच्छा उपदेश आता है, विष्णु भगवान् का भी हैं, किन्तु आदर्श उपदेश श्रीकृष्ण भगवान् का है।

आचरण विष्णु भगवान् भी अच्छे हैं, श्रीकृष्णजी के भी अच्छे हैं, किन्तु श्रीरामजी के आचरण जैसे नहीं हैं।

व्यवहार में स्वार्थ, अहंकार का त्याग होना चाहिए और विनय एवं प्रेम का बर्ताव करना चाहिए। मैं यदि अच्छा आदमी हूँ तो मेरे भीतर में अहंकार नहीं होना चाहिए।

सत्संग के अमूल्य वचन-

सब का सार यही है कि भगवान् की निरन्तर स्मृति रखनी चाहिये, चाहे किसी प्रकार से भी हो।