हमारे पिताजी एवं दादाजी के नियम पालन की बातें
हमारे पिताजी बड़े नीति-निपुण, सच्चे आदमी थे। हमारे में तो पवित्रता कुछ नहीं है, किन्तु उनमें बहुत ज्यादा थी।
हमारे दादाजी श्रीसालिगरामजी 'हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे'- इस महामन्त्र की १०८ माला और पंचरत्न (गीता, विष्णु सहस्रनाम, भीष्म स्तवराज, अनुस्मृति एवं गजेन्द्रमोक्ष स्तोत्र) का पाठ किया करते थे; कुएँ में से अपने हाथों से पानी निकालकर स्नान करते थे। और दूसरा कोई आ जाता तो पहले उसके हाथ धुलाते थे। कोई व्यक्ति कुछ काम ओढ़ा देता (यानी करने को कह देता) तो उसका काम कर देते और माला के लिए रात में ज्यादा जागते। और माला पूरी करते; तो लोग उनको कोई काम ओढ़ाने से (कहने से) डरते थे कि इनको काम करने का कह देंगे तो इनको रात में देरी तक जागना पड़ेगा।
सत्संग के अमूल्य वचन-
प्रभु को अपने सामने आकाश में खड़े हुए देखे और यह अनुभव करे कि वे ज्ञान, प्रेम, शान्ति, समता एवं आनन्द की वर्षा कर रहे हैं तथा ये सब मुझ में प्रवेश कर रहे हैं।