भगवान् की स्मृति श्रद्धा, प्रेम से होती है, इसके लिए भगवान् से याचना करने में भी अड़चन नहीं है (श्रीशुकदेवजी के पास)
आपको कुछ भी करना बाकी नहीं है। अगले (अर्थात् भगवान्) को आवश्यकता हो तो करवा लो। भजन स्मरण तो होना ही चाहिए। बने नहीं, तो करना अच्छा। भगवान् की स्मृति श्रद्धा, प्रेम से होती है तो श्रद्धा, प्रेम अधिक-से-अधिक होना चाहिए। श्रद्धा, प्रेम की भगवान् से याचना करने में भी अड़चन नहीं है, किन्तु याचना नहीं करनी और भी अच्छी बात है। अगले पर ही छोड़ देवे।
शरीर की परवाह नहीं करे, चिन्ता नहीं करे। आराम होना, कब होना या नहीं होना- यह अपने हाथ की बात नहीं है। वास्तव में जो होनी (होनहार) है, वही होगी, इसलिए विचारने की आवश्यकता नहीं है। प्रेस का काम करते ही हो। शरीर ठीक हो जावे तो और ज्यादा करोगे; नहीं ठीक रहे तो अगला करावे. उस प्रकार से करना। अगला निमित्त बनावे तो निमित्त बन जाएँ। सिद्ध पुरुषों में तो यह बात स्वाभाविक ही होती है, साधकों के लिए साधन है। महात्मा लोग साधन करके मुक्त होते हैं। ईश्वर, महात्मा और साधक- ये तीन श्रेणियाँ हैं।
लगन की बात- (१) ऋषिकेश सत्संग सत्र में जाने का समय हो गया था। मैंने मामाजी से कहा, तब वे बोले- 'तलपट तैयार करके जावे तो ठीक रहे।' अढ़ाई (२) दिन में सभी दुकानों का तलपट तैयार किया। १७-१८ दुकानें थी, रात-दिन लग कर सब तलपट तैयार करके दे दिए।
(२) सम्वत् १९८५ में हरिकृष्ण को गीता की बात बतलाई। उसके लग गई, तब ४८ घंटे तक काम चला।
(३) सवा रुपये वाली अर्थ सहित गीता, जो कि वणिक् प्रेस से छपी थी, ५४ दिन में लिखी। १५ घंटा रोजाना काम होता था। (क) पण्डित श्रीज्येष्ठारामजी मूल श्लोक पर अर्थ लिखते । (ख) मैं उस पर मेरे भाव के अनुसार संशोधन करता। (ग) फिर हरिकृष्ण उसे शुद्ध हिन्दी में स्लेट पर उतार देता। (घ) फिर आत्मारामजी दूसरी स्लेट पर शुद्ध किए हुए भाव को उतार देते। (ङ) फिर घनश्याम स्लेट या कॉपी पर उतार देता। (च) तब फिर हरदत्तजी स्लेट को साफ करके पं. ज्येष्ठारामजी को दे देते।
(४) मैं सबके बही खाता सँभालता और तत्पर होकर काम करता। उस समय मामाजी आये, बोले- 'रायपुर की दुकान में नन्दकिशोर जमादार २५००/- रुपये उधार ले गया है।' यह बात उन्होंने दो बार कही, मुझे बिलकुल मालूम नहीं पड़ा। फिर तीसरी बार कहा, तब ध्यान दिया। तत्पर होकर काम करने से ऐसे भी हो जाता है।
रामेश्वर मूँदड़ा के ४ काम अच्छे हैं-
(१) स्वार्थ का त्याग है।
(२) मेरे में श्रद्धा, प्रेम भी अच्छा है।
(३) हमारी सेवा भी अच्छी तरह से करता है।
(४) हरेक काम सुचारु रूप से करता है। काम की लगन भी है। हमारे प्रत्येक काम को लगन से करता है।
हमारे प्रत्येक काम में उसकी गुण-बुद्धि ही होती है। यदि कदाचित् मैं कभी किसी को नाराजगी से भी बोल दूँ, तो भी उसकी यही दृष्टि रहती है कि इसमें भी सामने वाले का हित ही है।
काम की लगन का उदाहरण- ऋषिकेश में करीब ४०० खाते हो जाते हैं। कोई तुरन्त जाने वाला होता है, इसलिए इतने खाते हमेशा तैयार रखने पड़ते हैं और हमारी सेवा का काम छोड़ना नहीं ।
(टिप्पणी- पूर्व में जब स्वर्गाश्रम में बैंक / एटीएम आदि नहीं थे, तब गीता भवन में ऐसी व्यवस्था की हुई थी कि अपना अतिरिक्त पैसा गीता भवन में जमा करवा दो (ताकि खोने का डर न रहे) और जैसे-जैसे जरूरत पड़े, लेते रहो। इस काम को श्रीरामेश्वरजी मूँदड़ा ही सँभालते थे एवं श्रद्धेय श्रीसेठजी की निजी सेवा में भी रहते थे। यहाँ श्रीसेठजी इसी बात का उल्लेख कर रहे हैं। श्रीरामेश्वरजी मूँदड़ा ने सम्वत् २०७८ की चैत्र कृष्ण सप्तमी (दिनांक ३-४-२०२१) को गंगाजी के किनारे परमधाम को प्राप्त किया।)
मेरे मन में बात आई कि मुझे तो यही कोशिश रखनी चाहिए कि हम ऐसी बात ही कहें कि आप लोग उस बात का उल्लंघन नहीं कर सकें। आप लोगों को यह समझना चाहिए कि आप यही कोशिश रखें कि मेरी किसी भी बात का उल्लंघन नहीं करना पड़े।
आप लोगों को जो लाभ होना चाहिए, वह नहीं होवे तो मैं यह बात मानता हूँ कि मुझ को सावधान रहना चाहिए।
मेरे द्वारा कहा जावे, उसी प्रकार जो करे तो उसका काम बहुत जल्दी सिद्ध हो जावे।
सत्संग के अमूल्य वचन-
मनुष्य का शरीर आत्मा के कल्याण के लिये मिला है, भोग भोगने के लिये नहीं मिला है। यदि मनुष्य का शरीर पाकर भी भोग भोगने में ही लगा रहा, तो वह घाटे में है।
हमें तो रात-दिन एक ही लालसा, एक ही लगन रखनी चाहिये कि भगवान् की प्राप्ति हो जावे, भगवान् के दर्शन हो जावें, भगवान् की निरन्तर स्मृति बनी रहे। इसके सिवाय रुपया, पैसा, धन, स्त्री, पुत्र आदि किसी की भी लालसा नहीं रखनी चाहिये।
हर समय भगवान् के नाम की रटन लगानी चाहिये। चाहे वाणी से रटन हो, चाहे मन से रटन हो, चाहे भगवान् के नाम का जप हो, चाहे स्वरूप का ध्यान हो- अब से लेकर मरण- पर्यन्त ये बातें कायम रखनी चाहिएँ।
अन्याय का पैसा नहीं लेना चाहिये, न्याय का ही लेना चाहिये। अन्याय का पैसा लेने से तो भीख माँगना भी अच्छा है।
झूठ, कपट एकदम बन्द करना चाहिये। झूठ, कपट न तो करना चाहिये, न अपनी स्त्री, बच्चों, गुमाश्तों (मुनीम, नौकर) आदि से ही कराना चाहिये। सच्चाई का व्यवहार करना चाहिये। बिल्कुल कन्ट्रोल करने पर भी थोड़ी-बहुत गड़बड़ होना सम्भव है, इसलिये बड़ी कड़ाई के साथ सच्चाई का व्यवहार करना चाहिये।
रात-दिन भगवान् के भजन-ध्यान में मस्त रहना चाहिये।