Seeker of Truth
॥ श्रीहरिः ॥

अन्त समय में मनुष्य को जो स्थिति प्राप्त होनी चाहिए, वह इसे ( घनश्यामदास जालान को ) प्राप्त है

प्रवचन सं. २९
दि. २२-५-१९५८स्वर्गाश्रम, ऋषिकेश

(श्रीघनश्यामदासजी (जालान) का शरीर छूटने वाला था, इसलिये उन्हें गंगा किनारे घाट पर लाये, वहाँ यह चर्चा हुई। ) श्रीचिरंजीलालजी गोयन्दका ने कहा- 'गीताप्रेस में काम करने वालों की भी मुक्ति हो जानी चाहिए। ये (श्रीघनश्यामदासजी) तो आपके बाएँ हाथ हैं। इनके लिए तो कोई उपाय होना ही चाहिए।'

आप ( श्रद्धेय श्रीसेठजी ) - इस ( घनश्यामदास) के लिए पश्चात्ताप की क्या आवश्यकता है ? अन्त समय में मनुष्य को जो स्थिति प्राप्त होनी चाहिए, वह इसे प्राप्त है। यह तो कल्याणरूप है।

हमारे तो न तो किसी बात का हर्ष है, न शोक; न सुख तथा न दुःख; क्योंकि हमने भगवान् की इच्छा में अपनी इच्छा मिला दी है। जो कोई भगवान् की इच्छा में अपनी इच्छा मिला देता है, उसकी भी ऐसी ही स्थिति हो जाती है। आप लोग भगवान् की इच्छा में अपनी इच्छा मिला दो तो आप लोगों की भी ऐसी स्थिति बन जावे। यदि नहीं मिलाओ तो थोड़ा दुःख हो सकता है। और लोगों को ज्यादा दुःख होवे, आपके थोड़ा दुःख होने का कारण यह है कि आप लोगों ने भगवान् की इच्छा में इच्छा मिलाने वालों का आश्रय ले रखा है, जैसे- भाईजी का।