हर समय स्वार्थ-त्याग का व्यवहार करना चाहिए, फिर व्यवहार चमक उठता है
प्रवचन सं. १४
दि. ३-११-१९५७, प्रातः ५.१५ बजे
देहरादून वाले भाइयों (श्रीबलदेवदासजी) के अलग होने की बात- उनके शामिल में २५ गाँव थे। दोनों भाइयों ने बँटवारे में १२-१२ गाँव ले लिए। तब एक गाँव बचा। उसमें बड़ा भाई तो कहता है कि- 'यह बचा हुआ गाँव छोटा भाई लेवे' और छोटा भाई बोला कि 'यह गाँव बड़ा भाई लेवे।' बाद में पंचों के कहने से बड़े भाई ने १३ गाँव और छोटे भाई ने १२ गाँव ले लिए। इसके बाद बड़े भाई ने अपने हिस्से के २ गाँव छोटे भाई के लड़के को दे दिए। यह दोनों भाइयों का कितना आदर्श व्यवहार है ! यह बात आदर्श की बतलाई।
ग्रहण करने की बातें- शास्त्र कहते हैं कि भाइयों का बँटवारा, कन्यादान और सत्पुरुष का कहना ये सब एक बार ही होते हैं।
हर समय स्वार्थ त्याग का व्यवहार करना चाहिए; फिर व्यवहार चमक उठता है।
सत्संग के अमूल्य वचन-
'भगवान् के भजन को और दान को कल के भरोसे नहीं छोड़ना चाहिये।