Seeker of Truth
॥ श्रीहरिः ॥

गीताप्रेस का काम जितना करते हैं, अपनी शक्ति के अनुसार उससे ज्यादा करें

प्रवचन सं. १८
दि. १२-८-१९६२, रविवार दिन में २.३० बजे

आप में, हमारे में कौन पहले मरे, कौन पीछे; क्या मालूम। हमारे पीछे जो रहे, उसमें गीताप्रेस की सेवा के विषय में ज्यादा जोश आना चाहिए।

यह भाव घनश्याम (दास जालान) के था। यह भाव रखना चाहिए कि गीताप्रेस का काम जितना करते हैं, उससे ज्यादा, अपनी शक्ति के अनुसार, करें। जो कोई भी इस काम को हृदय से चाहे, इस काम में मदद करे, सेवा करे, उसका बहुत ज्यादा आदर करना चाहिए; ऐसा व्यक्ति जो अपनी दूकान में फायदा पहुँचावे, उससे भी ज्यादा प्यारा लगना चाहिए। अपने काम का हर्जा (नुकसान) हो, तो उसकी परवाह न करके गीताप्रेस का हर्जा नहीं करना चाहिए। गीताप्रेस में काम करने वाले को ऐसा समझे कि उसने हमारा व्यक्तिगत बड़ा उपकार किया है- इस प्रकार से उसका आदर करे। गीताप्रेस का नुकसान बर्दास्त करना लज्जा की बात है; अपना नुकसान बर्दास्त करना गौरव की बात है। गीता के प्रचार के लिए अपना तन, मन, धन लगा दे।

अपने यहाँ धार्मिक पुस्तकों का प्रचार, खास करके गीता, रामायण का प्रचार, जैसा हो रहा है, वैसा न तो पहले देखने में आया और न वर्तमान में ही ।

निष्कामभाव का भी नाम तो आजकल सुनने में आता है. पहले तो कोई जानते ही नहीं थे। अब कम-से-कम निष्कामभाव की बात तो समझ में आती है। निष्कामभाव का महत्त्व समझने से कभी काम में भी आने लगेगा।

सत्य व्यवहार अच्छी चीज है। रुपये को महत्त्व नहीं देवें तो सत्य व्यवहार में कठिनाई नहीं लगती है। सबसे ज्यादा महत्त्व की चीज भगवान् हैं। हम यदि शरीर या रुपयों को महत्त्व देंगे तो इस मार्ग से विचलित हो जायेंगे, किन्तु उच्च कोटि का भक्त विचलित नहीं होता है।

सत्संग के अमूल्य वचन-

साध्य (यानी भगवान्) न मिले, पर साधन नहीं छूटना चाहिये। साधन को ही साध्य बना ले। साधन में न तो उकताना चाहिये, न ही ऊबना चाहिये। साधन में कभी सन्तोष नहीं करना चाहिये। 'अव्यावृतभजनात्' (नारद भक्ति सूत्र 36 ) (अर्थात्- अखण्ड भजनसे भक्तिका साधन सम्पन्न होता है)। साधन तेज, तैलधारावत्, निरन्तर और आजीवन होते रहना चाहिये।

भगवान् के ध्यान में अधिक-से-अधिक समय लगाना चाहिये। हर एक क्रिया करते हुए भी मन भगवान् में ही लगाये रखना चाहिये। भोजन, परोपकार और सेवा के समय भी चित्त को भगवान् में ही लगाये रखना चाहिये; इसमें कमी नहीं आने देनी चाहिये। अपनी सारी की सारी शक्ति एक भगवान् की प्राप्ति के प्रयत्न में लगानी चाहिए।