सब घटनाओं में भगवान् का पुरस्कार मानें, सब में आनन्द मानें
ऋणी आदमी दान करता है तो वह पाप करता है। स्नान, नित्य कर्म और सूर्योदय हुए बिना मुँह में कुछ भी नहीं लेवें। चिन्ता-फिक्र नहीं करें। सब घटनाओं में भगवान् का पुरस्कार मानें, सब में आनन्द मानें। नुकसान हो, चाहे नफा हो- दोनों में ही आनन्द मानें।
सत्संग के अमूल्य वचन-
सब साधनों में तीन साधन प्रधान हैं- भजन, ध्यान और सत्संग। इनमें स्वाध्याय, सेवा एवं संयम को और जोड़ दें तो इन ६ में सब आ गये।
साधक को अपने देह की सुख-सुविधा के लिये अथवा अपने किन्हीं मिलने वालों के लिये किसी विशेष स्थान पर नहीं जाना चाहिए अथवा वहाँ नहीं रहना चाहिए, अपितु किसी विशेष स्थान पर जाने या रहने का मुख्य उद्देश्य महात्मा पुरुषों का संग (सत्संग) होना चाहिए, अथवा जहाँ पर रहने से भजन-ध्यान अधिक बनता हो, इन्द्रियों में विकार नहीं होता हो।
जो कोई भी सामने आ जायँ, उन सब में पहले भगवान् की भावना करके उन्हें बार-बार प्रणाम करे, फिर बात करते हुए भी यह स्मरण रखे कि हम भगवान् से बात कर रहे हैं।