मेरी पुस्तकों में भूल नहीं रहने देना घाव पर मरहम-पट्टी करना है
हमारी पुस्तकों का संशोधन करना, उनमें भूल नहीं रहने देना- यह काम घाव पर मरहम-पट्टी करना है। उसमें भूल रहने देना - छुरी लेकर घाव करना है। आप लोगों में जो मेरा प्रेमी है, उसको यह संशोधन का काम अपने जिम्मे लेना चाहिए. वह इस काम को अपने साधन में शामिल कर ले।
कड़ी बात कहूँ कि 'शास्त्र की तथा अन्य सब पुस्तकें रोक कर मेरी पुस्तक पहले छापनी चाहिए।' यह बात मेरे स्वयं के द्वारा कहने योग्य नहीं है, परन्तु आप लोगों ने कड़ी बात कहने के लिए कहा, तब कही है; नहीं तो यह बात आप लोगों के पैदा होनी (यानी मन में आनी चाहिए। (यहाँ श्रद्धेय श्रीसेठजी के कहने का यह भाव है कि साधारण व्यक्ति के लिये शास्त्रों में लिखी बातों को समझना और उनका निर्णय करना मुश्किल है और उनकी पुस्तकों में हर एक विषय को सरल करके समझाया गया है; इसलिये ये पुस्तकें जन-साधारण के लिए ज्यादा लाभदायक हैं।)
मेरी कोई भी पुस्तक छपे, वह जाँच कर छपवानी चाहिए। वासुदेव काबरा का शरीर कायम रहे (अर्थात् वे जीवित रहें) तो हमारी और (नई) पुस्तक भले ही मिल सकती है, नहीं तो करीब-करीब खत्म है। घनश्याम (जालान) का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, नहीं तो वह भी मेरी पुस्तक जाँच करता ही है। भाईजी (श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार) से भी कहा है कि- 'मेरी चिट्ठियों में भी, जो मेरे भाव की नहीं हों, वे नहीं छपवानी चाहिएँ; उन्हें छोड़कर शेष छपवानी चाहिएँ।' शुद्ध छपें और जल्दी छपें- ये दो ही भाव हैं।
सत्संग के अमूल्य वचन-
प्रभु का सारा विधान जीवों के वास्तविक कल्याण के लिये ही है।
नित्यकर्म, साधन, भजन- सभी में ऊँचा-से-ऊँचा भाव करना चाहिये।
वैराग्य, निष्कामभाव, सत्य भाषण और शास्त्र मर्यादानुसार आचरण- इन चार पर मेरा विशेष आग्रह है। परमार्थ का पथिक इनके पालन पर ध्यान देवे।
चार चीजों को बिल्कुल त्याग दे- पाप, भोग, प्रमाद और आलस्य ।
साधन में प्रबल घाटियाँ हैं- कंचन, कामिनी, शरीर का आराम, मान और यश (कीर्ति)। चार बातें बड़ी अच्छी हैं- भजन, ध्यान, सत्संग और स्वाध्याय ।
भजन, ध्यान, सेवा और संयम- यह साधन की चतु:सूत्री है। हमको तो अपने ६० वर्ष के जीवन में ये चार बातें सबके सार रूप में मिली।
गुणग्राही बने। दूसरों के गुण ही देखे, अवगुण नहीं।