Seeker of Truth

व्यसन

कोई भी व्यसन नहीं होना चाहिये । व्यसनी कभी सुखी नहीं रह सकता।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ८७··

सौंफ- सुपारी निषिद्ध वस्तु नहीं हैं, पर उनका व्यसन भी नहीं होना चाहिये । व्यसनोंसे लाभ कुछ नहीं होता, पर नुकसान जरूर होता है । व्यसन करोगे तो तरह तरहकी बीमारियाँ होंगी और आपकी उम्र भी घटेगी।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९९··

व्यसनोंका सेवन करनेसे, भोगोंमें लगनेसे पराधीनता होती है, परिश्रम होता है, स्वास्थ्य खराब होता है, उम्र कम होती है और आगे चलकर नरक होते हैं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०१ - १०२··

जो दुर्गुण - दुराचार करते हैं, दुर्व्यसन करते हैं, उनके द्वारा दुनियाका बड़ा भारी नुकसान होता है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६··

अन्न और जलके बिना प्राण नहीं रहते, पर क्या नशा किये बिना प्राण नहीं रहते ? अन्न और जल लिये बिना तो आप मर जाओगे, पर क्या चाय, बीड़ी, सिगरेट, शराब आदि पिये बिना भी आप मर जाओगे ? क्या मांस, अण्डा, मछली आदि खाये बिना आप मर जाओगे ? अन्न- जल तो आवश्यक हैं, पर बीड़ी-सिगरेट, मांस-मदिरा आदि बिल्कुल निरर्थक हैं। इसलिये आप शुद्ध अन्न और जलके बिना कोई चीज सेवन मत करो। व्यसन करनेसे आप पराधीन हो जाओगे - ‘पराधीन सपनेहुँ सुखु नाहीं ' ( मानस, बाल० १०२ । ३) ।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८ - १९९··

मांस-मदिराका सेवन सनातन धर्ममात्रमें बिलकुल नहीं होना चाहिये।

अनन्तकी ओर ३७··

मदिरापान गौहत्यासे भी बढ़कर महान् भयंकर पाप है। कारण कि यह धार्मिक परमाणुओंका नाश करता है। मांस खानेसे पाप लगता है, पर मदिरापान भीतरके धार्मिक बीजोंको भूँज देता है । मदिराका पारमार्थिक बातोंके साथ विरोध है । मदिरा पीनेवालेकी बुद्धि ठीक नहीं रहती.....नहीं रहती...... नहीं रहती। मदिराको सूँघना भी मदिरा पीनेके समान माना गया है।

अनन्तकी ओर ३७··

मदिरापानका पाप ब्रह्महत्यासे भी तेज है। मदिरापानमें हत्या नहीं दीखती, पर वह धर्म, आस्तिक भावके अंकुरोंको जला देता है।

सत्संगके फूल ११०··

मदिरापानको शास्त्रोंमें महापाप बताया गया है। एक सन्तने कहा था कि अगर एक तरफ अपने- आप मरी हुई गायका मांस हो और एक तरफ मदिरा हो तो मांस खा लो, पर मदिरा मत पियो।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९९··

गंगाजी सबको शुद्ध करनेवाली हैं। परन्तु यदि गंगाजीमें मदिराका पात्र डाल दिया जाय तो वह शुद्ध नहीं होता। जब मदिराका पात्र भी ( जिसमें मदिरा डाली जाती है) इतना अशुद्ध हो जाता है, तब मदिरा पीनेवाला कितना अशुद्ध हो जाता होगा - इसका कोई ठिकाना नहीं है।

साधक संजीवनी १७। १० टि०··

मदिराके निर्माणमें असंख्य जीवोंकी हत्या होती है। मदिरापानसे होनेवाली सबसे भयंकर हानि यह है कि इससे अन्तःकरणमें रहनेवाले धर्मके अंकुर नष्ट हो जाते हैं। तात्पर्य है कि मनुष्यके भीतर जो धार्मिक भावनाएँ रहती हैं, धर्मकी रुचि, संस्कार रहते हैं, उनको मदिरापान नष्ट कर देता है। इससे मनुष्य महान् पतनकी तरफ चला जाता है।

साधक संजीवनी १७ । १० टि०··

विधि होनेपर भी त्याग सबसे बढ़िया है। शास्त्रमें सौंफ खानेको निषिद्ध नहीं लिखा है; परन्तु रोजाना सौंफ खानेका व्यसन भी अच्छा नहीं है। फिर मदिरा तो महान् मलिन चीज है।

अनन्तकी ओर ३७··