विवेकसे उतनी उन्नति नहीं होती जितनी विश्वाससे होती है।
||श्रीहरि:||
विवेकसे उतनी उन्नति नहीं होती जितनी विश्वाससे होती है।- सत्संगके फूल १०५
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सत्संगके फूल १०५··
विश्वासमें विवेककी जरूरत नहीं है। यदि विवेक लगायेंगे तो शालग्राम पत्थर दीखेगा। विश्वासमें विवेककी सहायता नहीं है, प्रत्युत विवेकका विरोध नहीं है।
||श्रीहरि:||
विश्वासमें विवेककी जरूरत नहीं है। यदि विवेक लगायेंगे तो शालग्राम पत्थर दीखेगा। विश्वासमें विवेककी सहायता नहीं है, प्रत्युत विवेकका विरोध नहीं है।- सत्संगके फूल १०६
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सत्संगके फूल १०६··
विश्वास विवेकसमर्थित भले ही न हो, पर विवेकविरोधी नहीं होना चाहिये।
||श्रीहरि:||
विश्वास विवेकसमर्थित भले ही न हो, पर विवेकविरोधी नहीं होना चाहिये।- सागरके मोती ५३
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सागरके मोती ५३··
मनुष्यको ईश्वरमें केवल विश्वास ही करना चाहिये। अगर वह संसारमें विश्वास और ईश्वरमें विवेक लगायेगा तो नास्तिक हो जायगा।
||श्रीहरि:||
मनुष्यको ईश्वरमें केवल विश्वास ही करना चाहिये। अगर वह संसारमें विश्वास और ईश्वरमें विवेक लगायेगा तो नास्तिक हो जायगा।- अमृत-बिन्दु ३९६
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अमृत-बिन्दु ३९६··
ज्ञानसे तो अज्ञान मिटता है, पर मिलता कुछ नहीं; परन्तु विश्वास भगवान् से मिलाता है। अतः विश्वास ज्ञानसे बड़ा है।
||श्रीहरि:||
ज्ञानसे तो अज्ञान मिटता है, पर मिलता कुछ नहीं; परन्तु विश्वास भगवान् से मिलाता है। अतः विश्वास ज्ञानसे बड़ा है।- सागरके मोती ५३
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सागरके मोती ५३··
केवल भगवान्पर विश्वासमात्रसे कल्याण होता है। कारण कि भगवान्पर विश्वास करनेवाला भगवान्का भजन ही करेगा, दुर्गुण-दुराचार करेगा नहीं, पाप करेगा नहीं, अन्याय करेगा नहीं, तो कल्याण नहीं होगा तो क्या होगा ? जरूर कल्याण होगा, इसमें सन्देह नहीं । कल्याण तो खास हमारी चीज है । उसपर हमारा पूरा हक है। भगवान्पर पूरा विश्वास होगा तो भजन- ध्यान अपने-आप होगा। उससे शास्त्र - निषिद्ध काम, पाप, अन्याय होगा ही नहीं।
||श्रीहरि:||
केवल भगवान्पर विश्वासमात्रसे कल्याण होता है। कारण कि भगवान्पर विश्वास करनेवाला भगवान्का भजन ही करेगा, दुर्गुण-दुराचार करेगा नहीं, पाप करेगा नहीं, अन्याय करेगा नहीं, तो कल्याण नहीं होगा तो क्या होगा ? जरूर कल्याण होगा, इसमें सन्देह नहीं । कल्याण तो खास हमारी चीज है । उसपर हमारा पूरा हक है। भगवान्पर पूरा विश्वास होगा तो भजन- ध्यान अपने-आप होगा। उससे शास्त्र - निषिद्ध काम, पाप, अन्याय होगा ही नहीं।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६८
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६८··
भगवान्पर विश्वास करनेवालेके द्वारा कई आदमियोंका कल्याण होता है। कोई भी काम करनेवाला अकेला नहीं रहता। चोर कइयोंको चोर बना देता है । साधु कइयोंको साधु बना देता है। यह बिना परिश्रम किये, स्वतः - स्वाभाविक होता है।
||श्रीहरि:||
भगवान्पर विश्वास करनेवालेके द्वारा कई आदमियोंका कल्याण होता है। कोई भी काम करनेवाला अकेला नहीं रहता। चोर कइयोंको चोर बना देता है । साधु कइयोंको साधु बना देता है। यह बिना परिश्रम किये, स्वतः - स्वाभाविक होता है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६८
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६८··
अगर आप भगवान्पर विश्वास चाहते हैं तो नाशवान् चीजोंपर विश्वास कम करो । नाशवान् चीजोंसे प्रेम करोगे, उनको महत्त्व दोगे तो अविनाशीसे प्रेम कैसे होगा ? नाशवान्की सेवा करो, पर विश्वास मत करो।
||श्रीहरि:||
अगर आप भगवान्पर विश्वास चाहते हैं तो नाशवान् चीजोंपर विश्वास कम करो । नाशवान् चीजोंसे प्रेम करोगे, उनको महत्त्व दोगे तो अविनाशीसे प्रेम कैसे होगा ? नाशवान्की सेवा करो, पर विश्वास मत करो।- अनन्तकी ओर १५३
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अनन्तकी ओर १५३··
भगवान्का विश्वास भगवान् से भी बड़ा है; क्योंकि जो भगवान् सदा सब जगह रहते हुए भी नहीं मिलते, वे विश्वाससे मिल जाते हैं।
||श्रीहरि:||
भगवान्का विश्वास भगवान् से भी बड़ा है; क्योंकि जो भगवान् सदा सब जगह रहते हुए भी नहीं मिलते, वे विश्वाससे मिल जाते हैं।- अमृत-बिन्दु ४६४
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अमृत-बिन्दु ४६४··
भोग तथा संग्रहके त्यागमें 'विवेक' प्रधान है और परमात्माकी प्राप्तिमें 'विश्वास' प्रधान है। आप अपने माँ-बापको विश्वाससे मानते हैं, विवेकसे नहीं। माँ-बापको माननेमें विवेक काम नहीं करता।
||श्रीहरि:||
भोग तथा संग्रहके त्यागमें 'विवेक' प्रधान है और परमात्माकी प्राप्तिमें 'विश्वास' प्रधान है। आप अपने माँ-बापको विश्वाससे मानते हैं, विवेकसे नहीं। माँ-बापको माननेमें विवेक काम नहीं करता।- परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ४१
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परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ४१··
विश्वास भगवान्पर ही करना चाहिये । उत्पत्ति विनाशशील वस्तुओंपर विश्वास करनेसे धोखा ही होगा, दुःख ही पाना पड़ेगा।
||श्रीहरि:||
विश्वास भगवान्पर ही करना चाहिये । उत्पत्ति विनाशशील वस्तुओंपर विश्वास करनेसे धोखा ही होगा, दुःख ही पाना पड़ेगा।- अमृत-बिन्दु ६४२
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अमृत-बिन्दु ६४२··
जैसा दीखता है, वैसा न मानकर और तरहसे मानना 'अन्धविश्वास' कहलाता है; जैसे- संसार प्रत्यक्ष बदलते हुए और नष्ट होते हुए दीखता है, फिर भी उसपर विश्वास करना 'अन्धविश्वास' है | विवेक - विरुद्ध विश्वास ही अन्धविश्वास होता है।
||श्रीहरि:||
जैसा दीखता है, वैसा न मानकर और तरहसे मानना 'अन्धविश्वास' कहलाता है; जैसे- संसार प्रत्यक्ष बदलते हुए और नष्ट होते हुए दीखता है, फिर भी उसपर विश्वास करना 'अन्धविश्वास' है | विवेक - विरुद्ध विश्वास ही अन्धविश्वास होता है।- सत्संग-मुक्ताहार ४६