विधि-निषेध
विधिकी अपेक्षा भी निषेधका ज्यादा आदर करना चाहिये। विधिकी कमी तो माफ हो जायगी, पर निषेध माफ नहीं होगा।
||श्रीहरि:||
विधिकी अपेक्षा भी निषेधका ज्यादा आदर करना चाहिये। विधिकी कमी तो माफ हो जायगी, पर निषेध माफ नहीं होगा।- सत्संगके फूल ७५
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सत्संगके फूल ७५··
क्रिया करनेमें तो विधि करना है, निषिद्ध नहीं करना है। परन्तु भीतरमें विधि और निषेध दोनोंसे उदासीन रहो ; क्योंकि विधि और निषेध दोनों दीखते हैं किसी प्रकाशमें उस प्रकाशका सम्बन्ध न विधिके साथ है और न निषेधके साथ है।
||श्रीहरि:||
क्रिया करनेमें तो विधि करना है, निषिद्ध नहीं करना है। परन्तु भीतरमें विधि और निषेध दोनोंसे उदासीन रहो ; क्योंकि विधि और निषेध दोनों दीखते हैं किसी प्रकाशमें उस प्रकाशका सम्बन्ध न विधिके साथ है और न निषेधके साथ है।- साधन-सुधा-सिन्धु २९
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साधन-सुधा-सिन्धु २९··
निषिद्धका त्याग करनेसे विहित स्वतः होगा। पर विहित करनेसे निषिद्धका त्याग स्वतः नहीं होगा। थोड़ा त्याग होगा, विशेष नहीं। इसलिये निषिद्धके त्यागका लक्ष्य रहना चाहिये।
||श्रीहरि:||
निषिद्धका त्याग करनेसे विहित स्वतः होगा। पर विहित करनेसे निषिद्धका त्याग स्वतः नहीं होगा। थोड़ा त्याग होगा, विशेष नहीं। इसलिये निषिद्धके त्यागका लक्ष्य रहना चाहिये।- स्वातिकी बूँदें १७७
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स्वातिकी बूँदें १७७··