Seeker of Truth

वैराग्य

भीतरके त्यागको वैराग्य कहते हैं। बाहरसे त्याग करे या न करे, पर भीतरसे तो त्याग होना ही चाहिये । वैराग्य सबके कामकी चीज है। वैराग्यसे उदारता आयेगी, जिससे व्यवहार भी उत्तम होगा।

ज्ञानके दीप जले ७२··

भोग-सामग्रीके रहते हुए जो वैराग्य होता है, वह असली और तेजीका वैराग्य होता है। मारसे वैराग्य तो कुत्तेमें भी होता है। लाठी मारनेसे वह भाग जाता है। यह असली वैराग्य नहीं है।

ज्ञानके दीप जले ७८··

निषिद्ध रीतिसे भोग और संग्रह करनेवालेको वैराग्य कभी नहीं होगा।

सत्संगके फूल ११६··

वैराग्यवान् मनुष्यको सुख-सुविधामें आराम नहीं मिलता। उसको स्वाभाविक ही बढ़िया चीज अच्छी नहीं लगती।

ज्ञानके दीप जले २६··

लापरवाहीका नाम वैराग्य नहीं है, प्रत्युत रागका अभाव वैराग्य है। लापरवाही तामसी वृत्ति है, जबकि वैराग्य सात्त्विकी वृत्ति है। लापरवाही न हो, इसलिये भगवान्ने कहा है- 'सर्वभूतहिते रता: ' ( गीता ५ | २५, १२ ।४)।

स्वातिकी बूँदें १७८··

ममताकी चीजसे तो वैराग्य हो सकता है, पर अहंताकी चीजसे वैराग्य नहीं होता। अत: 'मैं ब्रह्म हूँ'–इसमें अहंता साथमें रहनेसे जल्दी वैराग्य नहीं होगा। अहंतासे कैसे वैराग्य हो ?

ज्ञानके दीप जले ९३··

जब मनुष्य स्वयं यह अनुभव कर लेता है कि 'मैं शरीर नहीं हूँ; शरीर मेरा नहीं है', तब कामना, ममता और तादात्म्य - तीनों मिट जाते हैं। यही वास्तविक वैराग्य है।

साधक संजीवनी १५ । ३ वि०··

संसारके किसी एक विषयमें 'राग' होनेसे दूसरे विषयमें द्वेष होता है, पर भगवान्‌में प्रेम होनेसे संसारसे वैराग्य होता है। वैराग्य होनेपर संसारसे सुख लेनेकी भावना समाप्त हो जाती है और संसारकी स्वतः सेवा होती है।

साधक संजीवनी ३ | ३४··

यह नियम है कि केवल अपने धर्मका ठीक-ठीक पालन करनेसे मनुष्यको वैराग्य हो जाता है- 'धर्म तें बिरति (मानस ३ । १६ । १)

साधक संजीवनी ३ । ३५··

साधु, गृहस्थ, राजा, निर्धन आदि सभीके लिये वैराग्य बड़े कामकी चीज है। राग मूर्खताकी पहचान है—‘रागो लिङ्गमबोधस्य।

ज्ञानके दीप जले १६··

वैराग्यके बिना मनुष्य ज्ञानकी बातें तो सीख सकता है, पर अनुभव नहीं कर सकता।

जीवन्मुक्तिके रहस्य ७८··

वैराग्यके बिना ज्ञान नहीं होता, यदि हो जाय तो वह पागल हो जायगा।

सागरके मोती ३३··

एक बार मैंने सत्संगमें पूछा कि क्या सुनाऊँ, तो किसीने कहा कि वैराग्यकी बात बताओ। मेरे मनमें आयी कि अभी यहाँसे उठकर चल दूँ, फिर पीछे कभी आऊँ ही नहीं। इसको वैराग्य कहते हैं। वैराग्यमें एक रस है, आनन्द है, शान्ति है। पर इसका पता सच्चा वैराग्य होनेसे ही लगता है। वैराग्यवान्‌के सुखको वैराग्यवान् ही जानता है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ २६-२७··