Seeker of Truth

उत्थान और पतन

मनुष्यका उत्थान और पतन भावसे होता है, वस्तु, परिस्थिति आदिसे नहीं ।

अमृत-बिन्दु ४८··

संसारमें लगनेसे पतन भी बाकी रहता है, उत्थान भी बाकी रहता है । परन्तु भगवान्‌में लगनेसे पतन तो होता नहीं, उत्थान बाकी रहता नहीं।

अमृत-बिन्दु २८२··

पारमार्थिक उन्नति तो आपकी उन्नति है, पर सांसारिक उन्नति आपकी उन्नति नहीं है । सांसारिक पदार्थ, रुपये, मान- सत्कार आदि जितने ज्यादा होंगे, उतना ही पतन होगा।

परम प्रभु अपने ही महुँ पायो १४६··

मनुष्यकी उन्नतिमें खास बात है—' करनेमें सावधान रहे और होनेमें प्रसन्न रहे ।'

साधक संजीवनी १८ । १२ वि०··

जिसका समय खाली नहीं जाता, उसकी उन्नति जरूर होती है- यह नियम है।

ईसवर अंस जीव अबिनासी ४०··

स्वार्थ और अभिमानका त्याग किये बिना मनुष्य ऊँचा नहीं बन सकता।

सत्संगके फूल ८९··

पारमार्थिक उन्नति स्वयंकी और सांसारिक उन्नति 'पर' की है। सांसारिक पूँजी साथ नहीं रहती, पर साधन पूँजी योगभ्रष्ट होनेपर भी नष्ट नहीं होती। पारमार्थिक सम्पत्तिको कोई छीन नहीं सकता। ब्रह्माजी हंसको तो हटा सकते हैं, पर उसके नीर-क्षीर विवेकको नहीं छीन सकते। सत्संग और साधनसे होनेवाली उन्नति मरनेपर भी मिटती नहीं, प्रत्युत ढकती है और समयपर प्रकट हो जाती है।

सत्संगके फूल १८५··

पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति स्वतः होती है।

अमृत-बिन्दु ४१··

मैं संसारका हूँ — इसमें महान् पतन है। मैं भगवान्‌का हूँ- इसमें महान् उत्थान है ।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२५··

त्याग करनेसे अपनी उन्नति होती है तथा वस्तु शुद्ध हो जाती है और भोग करनेसे अपना पतन होता है तथा वस्तुका नाश हो जाता है।

अमृत-बिन्दु २०४··

सांसारिक विषयमें असन्तोष करनेसे पतन होता है और पारमार्थिक विषयमें असन्तोष करनेसे उत्थान होता है।

अमृत-बिन्दु २८०··

संसारमें तो 'करने' से उन्नति होती है पर पारमार्थिक मार्गमें 'न करने' से उन्नति होती है।

अमृत-बिन्दु २८१··

सत्संगमें बिना कुछ किये उन्नति होती है और कुसंगमें बिना कुछ किये पतन होता है।

अमृत-बिन्दु ६७७··

मनुष्य मिली हुई वस्तुओंका भोग भी कर सकता है और उनसे दूसरोंकी सेवा भी कर सकता है। भोग करनेसे पतन होता है और सेवा करनेसे उत्थान होता है।

अमृत-बिन्दु ७८३··

जिसकी बुद्धिमें जड़ता ( सांसारिक भोग और संग्रह ) - का ही महत्त्व है, ऐसा मनुष्य कितना ही विद्वान् क्यों न हो, उसका पतन अवश्यम्भावी है। परन्तु जिसकी बुद्धिमें जड़ताका महत्त्व नहीं है और भगवत्प्राप्ति ही जिसका उद्देश्य है, ऐसा मनुष्य विद्वान् न भी हो तो भी उसका उत्थान अवश्यम्भावी है।

अमृत-बिन्दु ७९०··

अपने स्वभावको शुद्ध बनानेके समान कोई उन्नति नहीं है।

अमृत-बिन्दु ११३··

बालक माँकी अपेक्षा पिताके पास, पिताकी अपेक्षा गुरुके पास और गुरुकी अपेक्षा सन्तके पास रहकर ज्यादा सुधरता है, श्रेष्ठ बनता है। कारण कि माँका बालकमें अधिक मोह होता है। माँकी अपेक्षा पितामें और पिताकी अपेक्षा गुरुमें मोह कम होता है। सन्तमें मोह होता ही नहीं। जितना- जितना मोह कम होता है, उतनी उतनी बालककी उन्नति होती है।

सागरके मोती १५३··

संसारका मोह छोड़ना पड़ेगा...पड़ेगा.....पड़ेगा, अन्यथा पारमार्थिक उन्नति नहीं होगी..... नहीं होगी..... नहीं होगी।

परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ६५··

शरीरादि जितनी सामग्री हमें मिली है, यह अपनी नहीं है और अपने लिये भी नहीं है- यह बात मामूली नहीं है, बड़ी श्रेष्ठ बात है। आपका शरीर, आपकी वस्तुएँ, आपकी योग्यता, आपका बल आपके काम नहीं आयेगा। यह बात जबतक नहीं समझोगे, तबतक आपकी आध्यात्मिक उन्नति नहीं होगी।

अनन्तकी ओर १३२··

जिस संशयात्मा मनुष्यमें न तो ज्ञान (विवेक) है और न श्रद्धा ही है अर्थात् जो न तो खुद जानता है और न दूसरेकी बात मानता है, उसका पतन हो जाता है।

साधक संजीवनी ४।४० परि०··

संसारके भोग पदार्थोंका संग्रह, मान, बड़ाई, आराम आदि जो अच्छे दीखते हैं, उनमें जो महत्त्वबुद्धि या आकर्षण है, बस, यही मनुष्यको नरकोंकी तरफ ले जानेवाला है।

साधक संजीवनी १६ । २१··

मनुष्यको आरामकी चीजें जितनी ज्यादा मिलती हैं, उतना ही उसका पतन होता है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ११३··

ब्रह्मलोकतक सब पतनका मार्ग है। भगवत्प्राप्तिके सिवाय सब कुछ पतन है। मुक्तिको प्राप्त होना भी भगवत्प्रेमसे पतन है।

स्वातिकी बूँदें २७··

खर्चसे अधिक धन मिलना और कामसे अधिक समय मिलना- ये दोनों ही पतन करनेवाले हैं।

स्वातिकी बूँदें ८२··

सांसारिक पदार्थ, मान, बड़ाई, प्रशंसा, आराम, सत्कार आदिका प्रिय लगना पतनका कारण है।

अमृत-बिन्दु ६६३··

नाशवान् शरीरके साथ तादात्म्य करना ही अपनी हत्या करना है, अपना पतन करना है, अपने- आपको जन्म-मरणमें ले जाना है।

साधक संजीवनी १३ । २८··