Seeker of Truth

स्वार्थ और अभिमान

जिसका स्वार्थका सम्बन्ध है, जो हमारेसे कुछ भी चाहता है, वह हमारा हित नहीं कर सकता ।

ज्ञानके दीप जले ८०··

आप अपना स्वार्थ और अभिमान छोड़कर दूसरेके हितका भाव रखेंगे तो आपके चित्तमें अपने- आप शान्ति, निर्मलता आयेगी और परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी – 'ते प्राप्नुवन्ति मामेव सर्वभूतहिते रताः' (गीता १२। ४) । इसलिये जितने अच्छे भक्त, सन्त महात्मा हुए हैं, सबने सम्पूर्ण प्राणियों के हितकी बात सोची है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ १७८··

स्वार्थके कारण खुद खानेमें आनन्द आता है। स्वार्थ न रहे तो दूसरोंको खिलानेमें आनन्द आता है।

स्वातिकी बूँदें ५२··

अपने स्वार्थ और अभिमानका त्याग करके दूसरेका हित देखो, फिर आपका सम्पूर्ण बर्ताव शुद्ध हो जायगा । अपना स्वार्थ रखोगे तो राक्षस बन जाओगे।

स्वातिकी बूँदें ९२··

अपने स्वार्थका त्याग करके दूसरेका हित करनेवालेको किसी प्रकारकी कमी नहीं रहती।

स्वातिकी बूँदें ९३··

स्वार्थ और अभिमानका त्याग नहीं करोगे तो भगवान्‌का अंश होते हुए भी दुःख पाओगे, पाओगे, पाओगे। इसमें सन्देह नहीं है। किसीकी ताकत नहीं है कि आपको दुःखसे छुड़ा ले ।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १७३··

स्वार्थ और अभिमान बहुत पतन करनेवाली चीज हैं। इनका त्याग कर दें तो अभी आपको महान् आनन्दकी प्राप्ति हो जायगी।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १७२··

जिन सम्प्रदाय, मत, सिद्धान्त, ग्रन्थ, व्यक्ति आदिमें अपने स्वार्थ और अभिमानके त्यागकी मुख्यता रहती है, वे महान् श्रेष्ठ होते हैं। परन्तु जिनमें अपने स्वार्थ और अभिमानकी मुख्यता रहती है, वे महान् निकृष्ट होते हैं।

अमृत-बिन्दु ७··

जहाँ स्वार्थ और अभिमान होगा, भोग और संग्रहकी इच्छा होगी, वहाँ आसुरी सम्पत्ति आयेगी ही । जहाँ आसुरी सम्पत्ति आयेगी वहाँ शान्ति नहीं रहेगी, प्रत्युत अशान्ति होगी, संघर्ष होगा, पतन होगा।

आदर्श कहानयाँ ५९··