Seeker of Truth

सृष्टि रचना

भगवान्ने सृष्टिकी रचना जीवोंके लिये की है; क्योंकि जीव भोग चाहते हैं, जैसे पिता बालकके लिये खिलौना खरीदकर देता है। सृष्टिकी रचना मनुष्योंके लिये और मनुष्योंकी रचना अपने लिये की है।

स्वातिकी बूँदें ४२··

स्थावर-जंगम जितने भी प्राणी उत्पन्न होते हैं, वे सब क्षेत्र (प्रकृति) और क्षेत्रज्ञ - (पुरुष - ) के संयोगसे ही होते हैं (गीता १३ । २६ ) । क्षेत्र-क्षेत्रज्ञका विशेष संयोग अर्थात् स्थूलशरीर धारण करानेके लिये भगवान्का संकल्प - रूप विशेष सम्बन्ध ही स्थावर-जंगम प्राणियोंके स्थूलशरीर पैदा करनेका कारण है। उस संकल्पके होनेमें भगवान्‌का कोई अभिमान नहीं है, प्रत्युत जीवोंके जन्म- जन्मान्तरोंके जो कर्म - संस्कार हैं, वे महाप्रलयके समय परिपक्व होकर जब फल देनेके लिये उन्मुख होते हैं, तब भगवान्‌का संकल्प होता है। इस प्रकार जीवोंके कर्मोंकी प्रेरणासे भगवान्में 'मैं एक ही बहुत रूपोंसे हो जाऊँ' - यह संकल्प होता है।

साधक संजीवनी ८ । ३··

सृष्टि रचनाकी इच्छा प्रकृति- अंशमें ही होती है, शुद्ध तत्त्वमें नहीं।

सत्संगके फूल ३०··

भगवान्ने मनुष्यकी रचना न तो अपने सुखभोगके लिये की है, न उसको भोगोंमें लगानेके लिये की है और न उसपर शासन करनेके लिये की है, प्रत्युत इसलिये की है कि वह मेरेसे प्रेम करे, मैं उससे प्रेम करूँ, वह मेरेको अपना कहे, मैं उसको अपना कहूँ, वह मेरेको देखे, मैं उसको देखूँ । तात्पर्य है कि भगवान् मनुष्यको अपना दास ( पराधीन) नहीं बनाते, प्रत्युत अपने समान बनाते हैं, अपने समान आदर देते हैं।

साधन-सुधा-सिन्धु ४१२··

सृष्टि ब्रह्मसे पैदा नहीं होती, प्रत्युत सगुण ईश्वरसे पैदा होती है – ' जन्माद्यस्य यतः' (ब्रह्मसूत्र १ । १ । २) ।

स्वातिकी बूँदें १६०··

एक सृष्टि भगवान्‌की की हुई है और एक सृष्टि जीवकी की हुई है। जीवको बाँधनेवाली जीवकृत सृष्टि है। भगवत्कृत सृष्टि बाँधनेवाली नहीं है।......जीवकृत सृष्टि ही जीवको दुःख देती है।

परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ५८··

ईश्वरकृत सृष्टि' बाधक नहीं है, किसीको बाँधती नहीं है । ईश्वरकृत सृष्टिमें मैं - मेरापनका सम्बन्ध करना 'जीवकृत सृष्टि' है, जिससे जीव बँधता है।

मैं नहीं, मेरा नहीं ७८··

सम्पूर्ण सृष्टि स्वाभाविक एक-दूसरेके लिये है । इसे केवल अपने लिये मान लेना खास गलती है। सभीका जीवन दूसरेके लिये है, अपने लिये नहीं।

सागरके मोती ८८··

कोई पुण्यात्मा हो या पापी, सज्जन हो या दुष्ट, भगवान्‌की बनायी हुई सृष्टि सबके लिये समान है। पृथ्वी सबको जगह देती है। अन्न-जल सबकी भूख-प्यास मिटाते हैं। वायु सबको श्वास लेने देती है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६२··