Seeker of Truth

सत्संग और कुसंग

असली सत्संग है - भगवत्प्राप्त महापुरुषोंका संग अथवा एक भगवान्‌में प्रियता । सत्संगसे तत्काल लाभ होता है। सत्संगकी महिमा मैं कह नहीं सकता। जैसे बालक कब बड़ा हो गया - इसका पता नहीं लगता, ऐसे ही सत्संगमें बैठे-बैठे कितना लाभ होता है- इसका पता नहीं लगता।

सागरके मोती ७··

जिनपर भगवान्‌की कृपा होती है, उनको सच्चा सत्संग मिलता है। जब सच्चा सत्संग मिल जाता है और मनुष्य उसको स्वीकार कर लेता है, तब जीवन बदल जाता है, पहलेवाला जीवन नहीं रहता । जैसे कन्याका विवाह हो जाता है तो वह उस घरकी नहीं रहती, ससुरालकी हो जाती है, ऐसे ही सत्संग मिल जाय तो मनुष्य इस घर (संसार) का नहीं रहता, स्वतः - स्वाभाविक भगवान्का हो जाता है।

मामेकं शरणं व्रज ९९··

अपनी विवेकशक्तिका आदर करना सत्संग है।

अनन्तकी ओर १९१··

सबमें परिपूर्ण एक परमात्मतत्त्वको देखना सत्संग (सत्का संग ) है।

अमृत-बिन्दु ६८०··

हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं। शरीर संसारका है, संसार शरीरका है। हमारी और परमात्माकी एकता है । शरीर और संसारकी एकता है। इसको सन्तोंने 'सत्संग' कहा है। सत्का संग करना, सत्को स्वीकार करना 'सत्संग' है। सत्संग करें तो कोई बन्धन है ही नहीं।

सत्यकी खोज ६४··

सत्संगकी प्राप्ति किसी पुण्यकर्मसे नहीं होती, प्रत्युत पूर्वजन्ममें किये हुए भजन - ध्यान, सत्संग आदिसे होती है । जैसे, पूर्वजन्ममें सत्संग मिला, उससे सत्संगमें रुचि हो गयी तो इस जन्ममें सत्संग मिल जायगा।

रहस्यमयी वार्ता २४०··

सन्तोंका संग प्रारब्धसे नहीं होता। प्रारब्धसे तो भोग मिलता है। सत्संग भगवान् और सन्तोंकी कृपासे ही मिलता है।

सत्संगके फूल १०८··

कभी-न-कभी ऐसी बात मनमें आयी है कि संसारमें दुःख है, भगवान्‌के भजनमें लगना अच्छा है, तभी सत्संग मिला है। हमें याद हो या न हो, पर ऐसी वृत्ति कभी आयी है।

स्वातिकी बूँदें ७४··

केवल सुननेसे सत्संग नहीं होता। सत्संग होता है - सत्के साथ सम्बन्ध जोड़नेसे, सत्को महत्त्व देनेसे।

अमृत-बिन्दु ६७९··

सच्ची बातको मान लें - यह सत्संग है। सच्ची बातको केवल सुन लिया, पकड़ा नहीं - यह सच्चर्चा है। शरीर मैं नहीं हूँ — यह मान लो तो सत्संग हो गया।

स्वातिकी बूँदें १२··

सत्संग अर्थात् सत्का संग तब होगा, जब अनुभव करेंगे। सीखी हुई बातें किस कामकी ? ...... सीखनेके लिये सत्संग नहीं है।

सत्संगके फूल २८··

असत्से असंग होनेपर सत्संग होता है। यदि असत्से असंग नहीं हुए तो कोरी बातें सीखी हैं।

ज्ञानके दीप जले १२४··

व्यापारमें तो लाभ और नुकसान दोनों होते हैं, पर सत्संगमें लाभ ही लाभ होता है, नुकसान होता ही नहीं।

मानवमात्रके कल्याणके लिये १३८··

जैसे माँकी गोदीमें पड़ा हुआ बालक अपने-आप बड़ा होता है, बड़ा होनेके लिये उसको उद्योग नहीं करना पड़ता। ऐसे ही सत्संगमें पड़े रहनेसे मनुष्यका अपने-आप विकास होता है।

मानवमात्रके कल्याणके लिये १३८··

साधन करना खुद कमाकर धनी बनना है और सत्संग करना धनीकी गोद जाना है । गोद जानेसे कमाया हुआ धन मिलता है।

प्रश्नोत्तरमणिमाला ११३··

अपना कल्याण चाहनेवाले, साधन करनेवाले सत्संगमें नहीं आते तो इस बातपर मेरेको बड़ा आश्चर्य आता है।

ज्ञानके दीप जले १०८··

श्रवण, मनन आदि 'पिपीलिका मार्ग' है और सत्संग 'विहंगम मार्ग' है। सत्संगसे तत्काल सिद्धि होती है। जो एकान्तमें बैठकर भजन करनेकी बात कहते हैं, वे न सत्संगके तत्त्वको जानते हैं, न भजनके तत्त्वको । वे ऐसा कहकर दूसरेका बड़ा भारी अहित करते हैं।

सत्संगके फूल १४५ - १४६··

ये चार लक्षण जिसमें हों, उसपर सत्संगका असर नहीं पड़ता - ( १ ) अभिमान, (२) दूसरेकी बात न सह सकना, (३) अज्ञता, और (४) कुतर्क।

प्रश्नोत्तरमणिमाला ११३··

जो भोग और आराममें लगे हैं, वे सत्संगी नहीं हैं।

ज्ञानके दीप जले २६··

सत्संग भी करते हो और राग-द्वेष भी करते हो तो वास्तवमें सत्संग किया ही नहीं, सत्संग सुना ही नहीं, सत्संग समझा ही नहीं, सत्संगकी हवा ही नहीं लगी। सत्संगमें राग-द्वेष, काम- क्रोध कम नहीं होंगे तो फिर कैसे कम होंगे? यदि आपके भावोंमें, आचरणोंमें फर्क नहीं पड़ा तो सत्संग क्या किया । कोरा समय खराब किया। सत्संग करे और फर्क नहीं पड़े- यह हो ही नहीं सकता। सत्संग करेगा तो फर्क जरूर पड़ेगा। फर्क नहीं पड़ा तो असली सत्संग मिला नहीं है। असली सत्संग मिले तो फर्क पड़े बिना रह सकता ही नहीं।

मानवमात्रके कल्याणके लिये ६८··

सत्संग सुननेसे अपने जीवनमें परिवर्तन होना चाहिये। अगर सत्संग सुनकर भी भोग और संग्रहमें ही लगे रहें तो सत्संग सुनने और न सुननेमें फर्क क्या हुआ ? अगर आपके जीवनमें, आपके विचारोंमें परिवर्तन नहीं हुआ तो आपने सत्संगसे क्या लाभ उठाया ?

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५५··

सत्संग करनेवालेको कम-से-कम, कम-से-कम जड़-चेतनका विवेक तो होना ही चाहिये कि शरीर अलग चीज है, मैं अलग हूँ। अगर इतना भी विवेक नहीं है तो सत्संग क्या किया।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२२··

सत्संग भूल मिटानेके लिये है, नयी बात सिखानेके लिये नहीं।

ज्ञानके दीप जले १३९··

सत्संग में तात्त्विक बातोंको समझनेसे जो लाभ होगा, वह क्रियासे नहीं होगा, बदरीनाथ आदि तीर्थोंमें जानेसे नहीं होगा।

सत्संगके फूल ३०··

भजन, सत्संग करनेकी कोई अवस्था नहीं होती।

सत्संगके फूल १५५··

सत्संग करनेसे उन निषिद्ध बातोंसे भी अरुचि हो जाती है, जिनका निषेध सत्संगमें नहीं किया गया। सभी व्यसनोंसे स्वतः अरुचि हो जाती है।

सागरके मोती ११६··

हमारेसे कोई पूछे तो सत्संगसे विशेष लाभ होता है, पर असली सत्संग मिलता नहीं है। सत्संगके नामपर व्यापार तो सब जगह होता है, पर मार्मिक बातोंका विवेचन प्रायः मिलता नहीं । वक्ता कथामें लोगोंको राजी करना ही उचित समझते हैं। तात्त्विक बातोंको ठीक तरहसे नहीं समझते।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०८··

कभी दुःखी न होना, चिन्ता न करना, हरदम मौजमें रहना - यह सत्संगका प्रभाव है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६··

सत्संग, कथाका प्रभाव पशु, पक्षी तथा वृक्ष आदि जड़ वस्तुओंपर भी पड़ जाता है, पर दुष्ट हृदयवाले मनुष्यपर उसका असर नहीं पड़ता; क्योंकि उसके भीतर अभिमान, कपट आदि दोष रहते हैं। जैसे, चन्दनके संगसे अन्य वृक्ष भी चन्दन हो जाते हैं, पर बाँसका वृक्ष चन्दन नहीं होता।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६१··

यदि सत्संग करते हुए मनकी शंकाएँ न मिटें, भगवान्‌में प्रेम न हो, भजन न बढ़े तो वह सत्संग भी भोग है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२४··

संसारमें सुख है' - यह वहम सत्संग करनेवालेका नहीं मिटेगा तो फिर किसका मिटेगा ?

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२७··

सत्संगसे जो पारमार्थिक संस्कार पड़ते हैं, उनका नाश नहीं होता। वे जन्म-जन्मान्तरोंतक रहते हैं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४९··

जो चीज रुपयोंसे मिलती है, वह रुपयोंसे रद्दी होती है। रुपयोंसे जो सत्संग मिलेगा, वह रुपयोंसे रद्दी होगा। रुपयोंसे जो सन्त मिलेगा, वह रुपयोंसे रद्दी होगा। सत्संग भले ही मत हो, पर सत्संग लिये किसीसे रुपया मत माँगो, चन्दा मत माँगो । जो रुपयोंसे मिलता है, वह सत्संग नहीं होता।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश २०६··

धनके बलसे धनके गुलामको बुला सकते हैं, महात्माको नहीं । धनसे जो चीज मिलती है, वह धनसे कम कीमती होती है। यदि किसी मूल्यके बदले सत्संग खरीदा जा सके तो सत्संग उस मूल्यसे छोटा सिद्ध होगा।

सागरके मोती १०४··

प्रायः सत्संग करनेवाले ऊपरसे भाव भरते हैं। ऊपरसे भरे हुए भाव ठहरते नहीं । भीतरकी स्वीकृति ठहरती है। पुस्तकोंसे, सन्त महात्माओंसे मिली हुई चीज हमारे भीतरके ज्ञानको जाग्रत् करनेके कामकी है। बाहरसे मिलनेवाली बातें भीतरके भावोंको जगानेके लिये होती हैं। भीतरका भाव जाग्रत् होगा, तब असली लाभ होगा।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश २३२··

सत्संगमें आनेवाले भाई-बहनोंको तो जरूर विचार करना चाहिये कि हमें अपना कल्याण करना है। अगर सत्संग करते तीन वर्ष बीत गये तो विचार करें कि इन तीन वर्षोंमें हमारी कितनी उन्नति हुई ? परमात्माके नजदीक कितने पहुँचे ? अगर तीन वर्षोंमें इतना काम हुआ तो पूरा काम कितने वर्षोंमें होगा ?

अनन्तकी ओर १७७··

जैसे भीतरकी अग्नि (जठराग्नि) कमजोर हो तो भोजन पचता नहीं, ऐसे ही भीतर लगन न हो तो सत्संगकी बातें पचती नहीं । भीतर असली लालसा हो, जोरदार भूख हो, तब लाभ होता है।

स्वातिकी बूँदें २१-२२··

भोजन आप जैसा चाहो, वैसा बनाया जा सकता है, पर भूख तो खुदकी ही चाहिये। भूख न हो तो बढ़िया से बढ़िया भोजन भी किस कामका ? ऐसे ही सत्संगसे आपको बढ़िया-बढ़िया बातें मिल सकती हैं, पर भूख, रुचि, चाहना आपकी खुदकी चाहिये।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ११४··

भोगोंमें जितनी आसक्ति होती है, उतनी ही बुद्धिमें जड़ता आती है, जिससे सत्संगकी तात्त्विक बातें पढ़-सुनकर भी समझमें नहीं आतीं।

मानवमात्रके कल्याणके लिये १३९ - १४०··

सत्संगसे अमूल्य बातें मिलती हैं और नामजप तथा प्रार्थनासे उन बातोंको धारण करनेकी शक्ति आती है। अतः सत्संग और नाम-जप- दोनों करने चाहिये।

स्वातिकी बूँदें ६४··

सत्संगकी बातें धारण न करनेसे ही बहुत-सी बातें दीखती हैं। धारण कर लें तो थोड़ी, गिनी- चुनी बातें हैं।

स्वातिकी बूँदें ६८··

सत्संग भाग्य नहीं बदलता, प्रत्युत भीतरका दुःख मिटाता है। धन मिलनेपर भी तृष्णा नहीं मिटती, पर सत्संगके द्वारा धन न मिलनेपर भी तृष्णा मिट जाती है। करोड़पति - अरबपतिको भी अभाव रहता है, पर सत्संगसे अभाव मिट जाता है।

स्वातिकी बूँदें १९६··

जो जीवके कल्याणमें बाधा देता है, भगवान्‌की भक्तिमें बाधा देता है, उसे भगवान् क्षमा नहीं करते। जो भगवान्‌की तरफ जानेमें बाधा दे, वह भगवान्‌का वैरी होता है ..... जो दूसरेको भगवान्‌के नाम, कीर्तन, सत्संग आदिमें लगाता है, उससे भगवान् बहुत राजी होते हैं।

सत्संगके फूल ७८··

सत्संग करनेपर भी कल्याण तभी होगा, जब आप उद्देश्य बनाओगे । उद्देश्य बनानेपर हरेक कथा- सत्संगमें आप उलझोगे नहीं। जहाँ विशेष पारमार्थिक बात मिलेगी, वहीं सत्संग करोगे, और जगह उलझोगे नहीं । उद्देश्य बननेपर आपकी बुद्धि स्वतः शुद्ध होगी। आपको मार्ग स्वतः मिलेगा।

अनन्तकी ओर ७९··

जो अपना नहीं है, उसे अपना स्वीकार न करना भी सत्संग है और जो अपना है, उसे अपना स्वीकार करना भी सत्संग है। जो अपना नहीं है, उसे अपना मानना भी कुसंग है और जो अपना है, उसे अपना न मानना भी कुसंग है।

ज्ञानके दीप जले २०९··

असत्में रुचि होना घोर कुसंग है। असत् में रुचि रहते सच्चिन्तन, सच्चर्चा और सत्कर्म हो सकते हैं, पर 'सत्संग' नहीं हो सकता। 'सत्कर्म' से स्वर्गादि पुण्यलोकोंकी प्राप्ति हो सकती है, पर जीवका कल्याण 'सत्संग' से ही हो सकता है।

स्वातिकी बूँदें २६··

सत्संग करते समय अपनेको सामने रखे, दूसरेको नहीं। अपने जीवनको, अपनी वृत्तियोंको, अपने आचरणोंको देखे। दूसरेको सामने रखना सत्संगमें कुसंग है। क्रोध तो लोमश ऋषिको भी आ गया- ऐसी बातें सत्संगमें कुसंग है।

स्वातिकी बूँदें ६२··

हम सत्संगी हैं, सत्संग करते हैं, अच्छे आदमी हैं - यह सत्संगका सहारा है। सत्संगसे लाभ लो, पर सत्संगका सहारा मत लो। तात्पर्य है कि सत्संगका अभिमान नहीं करना है कि हमने सत्संग किया है, हम समझदार हैं, हमने बहुत बातें सुनी हैं, तुम नहीं जानते, तुमने सत्संग नहीं किया है।

बन गये आप अकेले सब कुछ ४६··

दुर्गुण-दुराचारसे उतना नुकसान नहीं होता, जितना नुकसान दुर्गुणी - दुराचारीके कुसंगसे होता है।

सागरके मोती १५४··

सांसारिक भोग और संग्रहको श्रेष्ठ माननेवाले और उनमें आसक्त पुरुषोंका संग कुसंग है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश २०५··

अच्छी पुस्तकें पढ़ो; क्योंकि पुस्तकोंका भी कुसंग होता है। उपन्यास आदिका, अखबारोंका संग भी कुसंग है। खराब पुस्तकोंका संग भी कुसंग है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ५५··

भगवान्‌को अपना समझना सत्संग है, और उनके सिवाय किसीको भी अपना समझना कुसंग है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६०··

जहाँ स्वार्थ होता है, वहाँ सत्संग नहीं होता, प्रत्युत कुसंग होता है।

अमृत-बिन्दु ६८५··

पैसोंसे सत्संग नहीं होता, प्रत्युत कुसंग होता है।

सत्संगके फूल १५७··

खराब वातावरणमें मनुष्य तभी रहता है, जब वह कुछ-न-कुछ ठीक समझता है, उसमें रस लेता है। सर्वथा बेठीक समझे तो वहाँ वह टिक सकता ही नहीं।

स्वातिकी बूँदें ४७··

जैसे सत्संगसे बड़ा लाभ होता है, ऐसे ही कुसंगसे बड़ी हानि होती है । मदिरा आदि पीनेवाले, मांस, मछली, अण्डा आदि खानेवालेका संग भयंकर है। उनसे भी ज्यादा भयंकर है ईश्वरको नहीं माननेवाले नास्तिकका संग। नास्तिकका संग बहुत घातक पतन करनेवाला है।

अनन्तकी ओर १३७··

शरीर - संसारसे अपना सम्बन्ध मानना कुसंग है।

अमृत-बिन्दु ६९४··

हम जी रहे हैं- यह असत्का संग है।

सत्संगके फूल ९०··

कुसंगसे हानि नहीं होती, प्रत्युत कुसंगको स्वीकार करनेसे हानि होती है।

अमृत-बिन्दु ६९५··

ईश्वर, परलोक और धर्मको न माननेवाले नास्तिकका संग सबसे अधिक पतन करनेवाला है।

अमृत-बिन्दु ६९६··

अपने भीतर कमी (दोष) होती है, तभी बाहरी कुसंगका असर पड़ता है। कारण कि आकर्षण सजातीयतामें होता है, विजातीयतामें नहीं।

अमृत-बिन्दु ६९७··