Seeker of Truth

सन्तोष

अपनी किसी भी स्थितिमें सन्तोष न हो, तभी विचारका उदय होगा । सन्तोष करनेसे बद्धज्ञानी हो जायगा। संसारमें सन्तोष करना चाहिये । परमात्मामें कभी सन्तोष नहीं करना चाहिये। संसारमें सन्तोष करनेसे संसारसे ऊँचा उठ जाओगे । परमात्मामें सन्तोष करनेसे अटक जाओगे।

स्वातिकी बूँदें १४··

जो मिला है, उसमें सन्तोष नहीं होता तो क्या जो नया मिलेगा, उसमें सन्तोष हो जायगा ? जो मिला है, उसमें सन्तोष करो। यह सुखका मार्ग है। जो कुटुम्बी, स्त्री-पुत्र, भाई-बहन, माता- पिता आदि मिले हैं, वे भगवान्‌के दिये हुए हैं। अतः उनमें सन्तोष करो।

स्वातिकी बूँदें १८९··

किसी भी मनुष्यको अपनी स्थितिमें सन्तोष नहीं होता। किसी भी स्थितिमें जीव सन्तुष्ट नहीं हो सकता। इससे सिद्ध होता है कि भगवान् सबको अपनी तरफ खींच रहे हैं। भगवान् तो आपको अपनी तरफ खींच रहे हैं, पर संसार निरन्तर आपका त्याग कर रहा है। संसार यह क्रियात्मक उपदेश दे रहा है कि मेरा भरोसा मत रखो, मेरेपर विश्वास मत करो। भगवान् कहते हैं कि मेरी तरफ आ जाओ, संसार कहता है कि मेरी तरफ मत आओ।

स्वातिकी बूँदें ९··

सन्तोषसे काम, क्रोध और लोभ तीनों नष्ट हो जाते हैं।

अमृत-बिन्दु २१२··