Seeker of Truth

सम्बन्ध

हमारा सम्बन्ध शरीर - संसारके साथ है ही नहीं यह बात मान लें तो इससे बड़ा कोई काम है ही नहीं। हजारों-लाखों आदमियोंको भोजन करायें तो वह भी इसके बराबर नहीं हो सकता।

सत्यकी खोज ६४··

सुख लेनेके लिये शरीर भी अपना नहीं है और सेवा करनेके लिये पूरा संसार अपना है।

सत्संगके फूल १७८··

एक मार्मिक बात है कि जबतक परमात्माकी प्राप्ति नहीं हो जाती, तबतक किसीसे भी सम्बन्ध जोड़ना खतरनाक है। जब पहलेका सम्बन्ध भी आपसे नहीं टूटा तो फिर नया सम्बन्ध क्यों जोड़ते हो ? पुराना सम्बन्ध भी आपके लिये टूटना मुश्किल हो गया, फिर नया सम्बन्ध जोड़ोगे तो क्या दशा होगी ? बड़ी भारी आफत हो जायगी । किसीसे भी सम्बन्ध जोड़ना पतनका कारण है। जड़भरतने मृगसे सम्बन्ध जोड़ा तो उनको मृगयोनिमें जाना पड़ा। 'सम्बन्ध' शब्दका अर्थ ही है – सम्यक् प्रकारसे अर्थात् बढ़िया रीतिसे बन्धन । नया सम्बन्ध जोड़ना नया खतरा है।

साधक संजीवनी ११२··

जैसे लड़कीका विवाह हो जाता है तो वह कुआँरी नहीं रहती, ऐसे ही जिसका भगवान्से सम्बन्ध हो जाता है, वह साधारण आदमी नहीं रहता।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १३२··

मनुष्य अनेक शास्त्र आदिके ज्ञानके कारण पूजनीय नहीं होता, प्रत्युत भगवान्‌ के साथ सम्बन्ध होनेसे पूजनीय होता है। भगवान्‌ के सम्बन्धका जो माहात्म्य है, वह माहात्म्य सद्गुण, ज्ञान आदिमें नहीं है।

अनन्तकी ओर १३० - १३१··

हमें सत्संगमें जाना है - इतनेमात्रसे आपका भगवान् के साथ सम्बन्ध जुड़ गया। मैं भगवान्‌का हूँ- इतनी बात स्वीकार करते ही आप संसारके नहीं रहे।

स्वातिकी बूँदें ९४··

जैसे रोगीका वैद्यके साथ सम्बन्ध हो जाता है, ऐसे ही अपनी निर्बलताका और भगवान्‌की सर्वसमर्थताका विश्वास होनेसे मनुष्यका भगवान् के साथ सम्बन्ध हो जाता है।

साधक संजीवनी ९ । ३१ परि०··

यह बड़े आश्चर्यकी बात है कि सम्बन्धी तो नहीं रहता, पर सम्बन्ध रह जाता है। इसका कारण यह है कि स्वयं (अविनाशी चेतन ) जिस सम्बन्धको अपनेमें मान लेता है, वह मिटता नहीं । इस माने हुए सम्बन्धको मिटानेका उपाय है— अपनेमें सम्बन्धको न माने। कारण कि प्राणी-पदार्थोंसे सम्बन्ध वास्तवमें है नहीं, केवल माना हुआ है।

साधक संजीवनी ५। २१··

प्राकृत पदार्थ तो छूटते ही रहते हैं, पर यह जीव उन पदार्थोंके साथ अपने सम्बन्धको बनाये रखता है, जिससे इसको बार-बार शरीर धारण करने पड़ते हैं, बार-बार जन्मना मरना पड़ता है। जबतक यह उस माने हुए सम्बन्धको नहीं छोड़ेगा, तबतक यह जन्म-मरणकी परम्परा चलती ही रहेगी, कभी मिटेगी नहीं।

साधक संजीवनी ८ । १९··

गुणोंका संग जीव स्वयं करता है। अपरा प्रकृति किसीके साथ कोई सम्बन्ध नहीं करती। सम्बन्ध न प्रकृति करती है, न गुण करते हैं, न इन्द्रियाँ करती हैं, न मन करता है, न बुद्धि करती है । जीव स्वयं ही सम्बन्ध करता है, इसीलिये सुखी-दुःखी हो रहा है, जन्म-मरणमें जा रहा है।

साधक संजीवनी ७ । ४-५ परि०··

संसारके सब सम्बन्ध मुक्त करनेवाले भी हैं और बाँधनेवाले भी केवल परमार्थ (सेवा) करनेके लिये माना हुआ सम्बन्ध मुक्त करनेवाला और स्वार्थके लिये माना हुआ सम्बन्ध बाँधनेवाला होता है।

अमृत-बिन्दु ३२३··

मनुष्य पुत्रके सम्बन्धसे 'पिता', पिताके सम्बन्धसे 'पुत्र' पत्नीके सम्बन्धसे 'पति' बहनके सम्बन्धसे 'भाई' आदि बन जाता है। ये सम्बन्ध अपने कर्तव्यका पालन करनेके लिये ही हैं, ममता करनेके लिये नहीं । वास्तविक स्वरूप तो 'पर' अर्थात् सर्वथा सम्बन्धरहित ही है।

साधक संजीवनी १३ । २२ परि०··

मनुष्य सांसारिक वस्तु व्यक्ति आदिसे जितना अपना सम्बन्ध मानता है, उतना ही वह पराधीन हो जाता है। अगर वह केवल भगवान् से अपना सम्बन्ध माने तो सदाके लिये स्वाधीन हो जाय।

अमृत-बिन्दु ४७५··

अभी जैसे संसारका सम्बन्ध माना है कि वह प्राप्त है, नजदीक है, वैसे ही परमात्माका सम्बन्ध मान लें और जैसे परमात्माका सम्बन्ध माना है कि वह अप्राप्त है, दूर है, वैसे ही संसारका सम्बन्ध मान लें।

अमृत-बिन्दु ४८८··

विनाशीसे अपना सम्बन्ध माननेसे अन्तःकरण, कर्म और पदार्थ - तीनों ही मलिन हो जाते हैं और विनाशीसे माना हुआ सम्बन्ध छूट जानेसे ये तीनों ही स्वतः पवित्र जाते हैं।

अमृत-बिन्दु ६३१··

जड़ताका सम्बन्ध अभ्याससे नहीं छूटता, प्रत्युत विवेक विचारसे छूटता है।

मानवमात्रके कल्याणके लिये २६··

चिन्मयताकी प्राप्तिमें शरीर बाधक नहीं है, प्रत्युत उसका सम्बन्ध बाधक है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२०··

आप भगवान्‌के अंश हो । आपका सम्बन्ध भगवान्‌ के साथ है। अतः भगवान्‌के सिवाय किसीके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो। किसीके साथ भी सम्बन्ध जोड़ना अनर्थका कारण है । सन्त- महात्माओंसे भी उपदेश लो, पर उनसे सम्बन्ध मत जोड़ो।

ईसवर अंस जीव अबिनासी १६६··

सम्बन्ध तोड़नेसे कल्याण होगा, जोड़नेसे नहीं होगा। सबसे सम्बन्ध तोड़ोगे, तब कल्याण होगा । किसीसे भी सम्बन्ध जोड़नेमें खतरा है। कितना ही पवित्र सम्बन्ध हो, वह अटकानेवाला है।

पायो परम बिश्रामु १३··

जिनका भगवान्‌के साथ सम्बन्ध हो, वे सब वस्तुएँ बड़ी मूल्यवान् हैं। परन्तु जिसका भगवान्के साथ सम्बन्ध न हो, वह वस्तु कोई कामकी नहीं है।

पायो परम बिश्रामु ६७··