Seeker of Truth

साधन - क्रिया और भाव

क्रियाकी मुख्यता होनेपर वर्षोंतक साधन करनेपर भी लाभ नहीं होता। अतः क्रियाका महत्त्व न होकर भगवान्में प्रियता होनी चाहिये। प्रियता ही भजन है, क्रिया नहीं।

साधक संजीवनी १८ । १६ परि०··

ऊँचे लोकोंमें अथवा नरकोंमें जानेमें पदार्थ और क्रिया मुख्य कारण नहीं हैं, प्रत्युत भाव मुख्य कारण है। भावका विशेष मूल्य है। जैसा भाव होता है, वैसी क्रिया अपने-आप होती है।

साधक संजीवनी १६ । १६ परि०··

भाव शब्दसे भी अधिक व्यापक है। भाव त्रिलोकी तक पहुँचता है। इसलिये सबके हितका भाव रखें - यह बड़ा भारी पुण्य है। भावोंको शुद्ध बनाये रखना बड़ी तपस्या है- 'भावसंशुद्धिरित्येतत्तपो मानसमुच्यते' (गीता १७ । १६ ) |

स्वातिकी बूँदें ३५··

अपने हृदयमें प्राणिमात्रके हितका भाव रखो कि सबका कल्याण हो जाय, सब नीरोग हो जायँ, सब भगवान्‌के भक्त बन जायँ, सबका दुःख मिट जाय। आपका भाव शुद्ध होगा तो वायुमण्डल भी शुद्ध बनेगा, वर्षा भी होगी। सब काम ठीक होगा।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२७··

भगवान्‌की तरफ वृत्ति होनेसे भाव स्वतः शुद्ध होगा । भाव शुद्ध होगा तो सब लोग सुखी होंगे। भाव अशुद्ध होगा तो रक्षा होनी मुश्किल हो जायगी । भाव अशुद्ध होनेसे दुनियामें आफत आ रही है, अकाल पड़ रहा है, वर्षा नहीं हो रही है। अपना भाव शुद्ध बनाओ तो इससे दुनियामात्रको फायदा होगा।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२८··

जैसे सांसारिक उन्नतिमें पदार्थ और क्रियाका आश्रय काम आता है, ऐसे पारमार्थिक उन्नतिमें पदार्थ और क्रियाका आश्रय काम नहीं आता। पारमार्थिक उन्नतिमें पदार्थ और क्रिया परम्परासे सहायक हो सकते हैं, पर मुख्यरूपसे भगवान्‌का आश्रय और क्रियाका त्याग ही काम आता है । क्रियाओंसे आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ १२··

आपका भजन - स्मरण कैसा है, आपकी साधना कैसी है, यह भगवान् नहीं देखते। वे आपका भाव देखते हैं। भाव बदलते ही दुनिया दूसरी हो जाती है। दुनियाका सब हिसाब बदल जाता है।

अनन्तकी ओर ३९··

तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त महात्मा बहुत हुए हैं, पर उनमें क्रिया और पदार्थका सर्वथा त्याग करनेवाले महात्मा बहुत कम मिलेंगे। प्रायः क्रिया और पदार्थमें लगे हुए ही मिलेंगे। स्थूल, सूक्ष्म और कारणशरीर केवल दूसरोंकी सेवाके लिये ही है, हमारे लिये नहीं है - यह बात व्याख्यानोंमें भी बहुत कम आती है, विवेचनमें भी बहुत कम आती है, आध्यात्मिक ग्रन्थोंमें भी बहुत कम आती है, सुननेमें भी बहुत कम आती है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ २९ - ३०··

साधन करनेमें क्रियाकी मुख्यता नहीं है, प्रत्युत विवेक और भावकी मुख्यता है । इसलिये शरीरकी सहायता के बिना हम कामनारहित हो सकते हैं, ममतारहित हो सकते हैं, अहंकाररहित हो सकते हैं, भगवान्‌को अपना मान सकते हैं और श्रद्धा विश्वासपूर्वक उनके शरणागत हो सकते हैं। ऐसा होनेके लिये शरीरकी जरूरत नहीं है।

प्रश्नोत्तरमणिमाला २४५··

भावकी प्रधानतासे बहुत जल्दी लाभ होता है । क्रियासे भी तभी लाभ होता है, जब साथमें भाव हो । क्रिया तो मशीनसे भी हो सकती है, पर भाव मशीनसे नहीं होता । भावरहित क्रिया मशीनकी तरह होती है।........कितना ही भजन करनेपर भी परिवर्तन नहीं हुआ, भोगासक्ति नहीं मिटी- इसका कारण यह है कि आपने क्रिया तो की है, पर भाव नहीं बदला है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७०··