धर्मके बिना नीति विधवा है और नीतिके बिना धर्म विधुर है। अतः धर्म और राजनीति- दोनों साथ-साथ होने चाहिये, तभी शासन बढ़िया होता है।
||श्रीहरि:||
धर्मके बिना नीति विधवा है और नीतिके बिना धर्म विधुर है। अतः धर्म और राजनीति- दोनों साथ-साथ होने चाहिये, तभी शासन बढ़िया होता है।- साधन-सुधा-सिन्धु ९९५
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साधन-सुधा-सिन्धु ९९५··
शासक सेवक नहीं हो सकता और सेवक शासक नहीं हो सकता। समाजकी उन्नति सेवकके द्वारा होती है, शासकके द्वारा नहीं।
||श्रीहरि:||
शासक सेवक नहीं हो सकता और सेवक शासक नहीं हो सकता। समाजकी उन्नति सेवकके द्वारा होती है, शासकके द्वारा नहीं।- मानवमात्रके कल्याणके लिये ४२
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मानवमात्रके कल्याणके लिये ४२··
देशका असली नेता वही होता है, जो देशके दुःखसे दुःखी होता है।
||श्रीहरि:||
देशका असली नेता वही होता है, जो देशके दुःखसे दुःखी होता है।- सत्संगके फूल १७४
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सत्संगके फूल १७४··
नेता, गुरु और शासक - तीनों अलग-अलग होते हैं। नेता शासक नहीं बन सकता।
||श्रीहरि:||
नेता, गुरु और शासक - तीनों अलग-अलग होते हैं। नेता शासक नहीं बन सकता।- सागरके मोती ९७
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सागरके मोती ९७··
राजनीति नरकोंमें जानेके लिये है- तपेश्वरी, फिर राजेश्वरी, फिर नरकेश्वरी।
||श्रीहरि:||
राजनीति नरकोंमें जानेके लिये है- तपेश्वरी, फिर राजेश्वरी, फिर नरकेश्वरी।- सत्संगके फूल १४१
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सत्संगके फूल १४१··
सामाजिक व्यवस्थापर समाजका अधिकार है, राजा ( शासक या सरकार ) का अधिकार नहीं । अतः समाजके नियम बनाना राजाका कर्तव्य नहीं है। विवाह, व्यापार, जीविका, सन्तानोत्पत्ति, वर्णाश्रमधर्मका पालन आदि प्रजाके धर्म हैं। प्रजाके धर्मोंमें हस्तक्षेप करना राजाका कर्तव्य नहीं है। अगर राजा उनमें हस्तक्षेप करता है तो यह अन्याय है । राजाका मुख्य कर्तव्य है - प्रजाकी रक्षा करना और उससे बलपूर्वक धर्मका पालन करवाना।
||श्रीहरि:||
सामाजिक व्यवस्थापर समाजका अधिकार है, राजा ( शासक या सरकार ) का अधिकार नहीं । अतः समाजके नियम बनाना राजाका कर्तव्य नहीं है। विवाह, व्यापार, जीविका, सन्तानोत्पत्ति, वर्णाश्रमधर्मका पालन आदि प्रजाके धर्म हैं। प्रजाके धर्मोंमें हस्तक्षेप करना राजाका कर्तव्य नहीं है। अगर राजा उनमें हस्तक्षेप करता है तो यह अन्याय है । राजाका मुख्य कर्तव्य है - प्रजाकी रक्षा करना और उससे बलपूर्वक धर्मका पालन करवाना।- साधन-सुधा-सिन्धु १८२
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कोई धर्मका उल्लंघन न करे, इसलिये धर्मका पालन करवाना राजाका अधिकार है । परन्तु धर्मशास्त्रके विरुद्ध कानून बनाना राजाका घोर अन्याय है।
||श्रीहरि:||
कोई धर्मका उल्लंघन न करे, इसलिये धर्मका पालन करवाना राजाका अधिकार है । परन्तु धर्मशास्त्रके विरुद्ध कानून बनाना राजाका घोर अन्याय है।- साधन-सुधा-सिन्धु १८२
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साधन-सुधा-सिन्धु १८२··
जो प्रजा सुखके लिये अपने प्यारे-से-प्यारे अंगका भी त्याग कर दे, वही राजा हो सकता है। जो स्त्रियोंमें, पुत्रोंमें आसक्त हो, वह क्या राजा हो सकता है ? नहीं हो सकता।
||श्रीहरि:||
जो प्रजा सुखके लिये अपने प्यारे-से-प्यारे अंगका भी त्याग कर दे, वही राजा हो सकता है। जो स्त्रियोंमें, पुत्रोंमें आसक्त हो, वह क्या राजा हो सकता है ? नहीं हो सकता।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७७
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७७··
राजा वही हो सकता है, जो प्रजाके हितके लिये अपना अंग भी काट डाले। सीताजीका त्याग करनेसे रामजीको सुख नहीं हुआ। सीताजीका त्याग करनेके बाद रामजी चटाईपर सोते थे, बढ़िया भोजन नहीं करते थे । पति और पत्नी एक-दूसरेका अंग होते हैं। रामजीने भी कष्ट सहा और सीताजीने भी कष्ट सहा, पर प्रजाके हितके लिये। जो प्रजाके हितके लिये अपनी प्यारी-से- प्यारी चीजका भी त्याग कर सकता है, वही राजा होता है। रुपयोंका, अपने सुख-आरामका लोभी आदमी राजा होनेलायक नहीं है।
||श्रीहरि:||
राजा वही हो सकता है, जो प्रजाके हितके लिये अपना अंग भी काट डाले। सीताजीका त्याग करनेसे रामजीको सुख नहीं हुआ। सीताजीका त्याग करनेके बाद रामजी चटाईपर सोते थे, बढ़िया भोजन नहीं करते थे । पति और पत्नी एक-दूसरेका अंग होते हैं। रामजीने भी कष्ट सहा और सीताजीने भी कष्ट सहा, पर प्रजाके हितके लिये। जो प्रजाके हितके लिये अपनी प्यारी-से- प्यारी चीजका भी त्याग कर सकता है, वही राजा होता है। रुपयोंका, अपने सुख-आरामका लोभी आदमी राजा होनेलायक नहीं है।- अनन्तकी ओर १७१
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अनन्तकी ओर १७१··
यदि शासकलोग अपने पदका दुरुपयोग करते हों तो सन्तोंको राजनीतिमें आना ही चाहिये। अगर स्वार्थभाव न हो और केवल परहितका भाव हो तो राजनीति बाधक नहीं है।
||श्रीहरि:||
यदि शासकलोग अपने पदका दुरुपयोग करते हों तो सन्तोंको राजनीतिमें आना ही चाहिये। अगर स्वार्थभाव न हो और केवल परहितका भाव हो तो राजनीति बाधक नहीं है।- प्रश्नोत्तरमणिमाला ३१२
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प्रश्नोत्तरमणिमाला ३१२··
वर्तमान राजनीति संघर्ष पैदा करनेवाली है। हमें वोट दो, दूसरी पार्टीको वोट मत दो, वह ठीक नहीं है – इससे संघर्ष पैदा होता है।
||श्रीहरि:||
वर्तमान राजनीति संघर्ष पैदा करनेवाली है। हमें वोट दो, दूसरी पार्टीको वोट मत दो, वह ठीक नहीं है – इससे संघर्ष पैदा होता है।- साधन-सुधा-सिन्धु ९९६
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साधन-सुधा-सिन्धु ९९६··
जो वोटोंके लिये आपसमें लड़ते हैं, कपट करते हैं, हिंसा करते हैं, लोगोंको रुपये दे-देकर, फुसला-फुसलाकर वोट लेते हैं, उनसे क्या आशा रखी जाय कि वे न्याययुक्त राज्य करेंगे ?
||श्रीहरि:||
जो वोटोंके लिये आपसमें लड़ते हैं, कपट करते हैं, हिंसा करते हैं, लोगोंको रुपये दे-देकर, फुसला-फुसलाकर वोट लेते हैं, उनसे क्या आशा रखी जाय कि वे न्याययुक्त राज्य करेंगे ?- साधन-सुधा-सिन्धु ९९५
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साधन-सुधा-सिन्धु ९९५··
वोट- प्रणालीमें मूर्खताकी प्रधानता है। जिस समाजमें मूर्खोकी प्रधानता होती है, वहीं वोट- प्रणाली लागू की जाती है । महात्मा गाँधीका भी एक वोट और भेड़ चरानेवालेका भी एक वोट । सज्जन पुरुषका भी एक वोट और दुष्ट पुरुषका भी एक वोट । यह समानता मूर्खोंमें ही होती है। 'अँधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।'
||श्रीहरि:||
वोट- प्रणालीमें मूर्खताकी प्रधानता है। जिस समाजमें मूर्खोकी प्रधानता होती है, वहीं वोट- प्रणाली लागू की जाती है । महात्मा गाँधीका भी एक वोट और भेड़ चरानेवालेका भी एक वोट । सज्जन पुरुषका भी एक वोट और दुष्ट पुरुषका भी एक वोट । यह समानता मूर्खोंमें ही होती है। 'अँधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।'- साधन-सुधा-सिन्धु ९९६
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साधन-सुधा-सिन्धु ९९६··
माँ कोई कार्य करती है तो बालककी सलाह नहीं लेती; क्योंकि बालक मूर्ख (बेसमझ ) होता है। परन्तु वोट देनेकी वर्तमान प्रणालीके अनुसार यदि बुद्धिमानोंकी संख्या निन्यानबे है और मूर्खोकी संख्या सौ है तो एक वोट अधिक होनेसे मूर्ख जीत जायँगे, बुद्धिमान हार जायँगे, जब कि वास्तवमें सौ मूर्ख मिलकर भी एक बुद्धिमान्की बराबरी नहीं कर सकते।
||श्रीहरि:||
माँ कोई कार्य करती है तो बालककी सलाह नहीं लेती; क्योंकि बालक मूर्ख (बेसमझ ) होता है। परन्तु वोट देनेकी वर्तमान प्रणालीके अनुसार यदि बुद्धिमानोंकी संख्या निन्यानबे है और मूर्खोकी संख्या सौ है तो एक वोट अधिक होनेसे मूर्ख जीत जायँगे, बुद्धिमान हार जायँगे, जब कि वास्तवमें सौ मूर्ख मिलकर भी एक बुद्धिमान्की बराबरी नहीं कर सकते।- साधन-सुधा-सिन्धु ९९६
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साधन-सुधा-सिन्धु ९९६··
वास्तवमें वोट देनेका, सरकार चुननेका अधिकार केवल उन्हीं पुरुषोंको है, जो सच्चे समाज-सेवक, त्यागी, धर्मात्मा, सदाचारी, परोपकारी हैं।
||श्रीहरि:||
वास्तवमें वोट देनेका, सरकार चुननेका अधिकार केवल उन्हीं पुरुषोंको है, जो सच्चे समाज-सेवक, त्यागी, धर्मात्मा, सदाचारी, परोपकारी हैं।- साधन-सुधा-सिन्धु ९९६