जैसे कोई मनुष्य सत्संग आदिमें जाता है और समय पूरा होनेपर वहाँसे चल देता है। परन्तु चलते समय उसकी कोई वस्तु ( चद्दर आदि) भूलसे वहाँ रह जाय तो उसको लेनेके लिये उसे फिर लौटकर वहाँ आना पड़ता है। ऐसे ही इस जीवने घर, परिवार, जमीन, धन आदि जिन चीजोंमें ममता कर ली है, अपनापन कर लिया है, उस ममता (अपनापन ) - के कारण इस जीवको मरनेके बाद फिर लौटकर आना पड़ता है।
||श्रीहरि:||
जैसे कोई मनुष्य सत्संग आदिमें जाता है और समय पूरा होनेपर वहाँसे चल देता है। परन्तु चलते समय उसकी कोई वस्तु ( चद्दर आदि) भूलसे वहाँ रह जाय तो उसको लेनेके लिये उसे फिर लौटकर वहाँ आना पड़ता है। ऐसे ही इस जीवने घर, परिवार, जमीन, धन आदि जिन चीजोंमें ममता कर ली है, अपनापन कर लिया है, उस ममता (अपनापन ) - के कारण इस जीवको मरनेके बाद फिर लौटकर आना पड़ता है।- साधक संजीवनी ८ । १६ वि०
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साधक संजीवनी ८ । १६ वि०··
मनुष्यमें एक इच्छाशक्ति है, एक प्राणशक्ति है। इच्छाशक्तिके रहते हुए प्राणशक्ति नष्ट हो जाती है, तब नया जन्म होता है। अगर इच्छाशक्ति न रहे तो प्राणशक्ति नष्ट होनेपर भी पुनः जन्म नहीं होता।
||श्रीहरि:||
मनुष्यमें एक इच्छाशक्ति है, एक प्राणशक्ति है। इच्छाशक्तिके रहते हुए प्राणशक्ति नष्ट हो जाती है, तब नया जन्म होता है। अगर इच्छाशक्ति न रहे तो प्राणशक्ति नष्ट होनेपर भी पुनः जन्म नहीं होता।- साधक संजीवनी २।२२ परि०
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साधक संजीवनी २।२२ परि०··
जड़का संग करनेसे कुछ करने और पानेकी इच्छा बनी रहती है । प्राणशक्तिके रहते हुए इच्छाशक्ति अर्थात् कुछ करने और पानेकी इच्छा मिट जाय तो मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है। प्राणशक्ति नष्ट हो जाय और इच्छाएँ बनी रहें तो दूसरा जन्म लेना ही पड़ता है। नया शरीर मिलनेपर इच्छाशक्ति तो वही (पूर्वजन्मकी) रहती है, प्राणशक्ति नयी मिल जाती है।
||श्रीहरि:||
जड़का संग करनेसे कुछ करने और पानेकी इच्छा बनी रहती है । प्राणशक्तिके रहते हुए इच्छाशक्ति अर्थात् कुछ करने और पानेकी इच्छा मिट जाय तो मनुष्य जीवन्मुक्त हो जाता है। प्राणशक्ति नष्ट हो जाय और इच्छाएँ बनी रहें तो दूसरा जन्म लेना ही पड़ता है। नया शरीर मिलनेपर इच्छाशक्ति तो वही (पूर्वजन्मकी) रहती है, प्राणशक्ति नयी मिल जाती है।- साधक संजीवनी १५ । ८
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साधक संजीवनी १५ । ८··
मनमें कामना होनेसे ही पुनर्जन्म होता है। जिसके मनमें कोई कामना है ही नहीं, वह कहाँ जन्मेगा? और क्यों जन्मेगा ?
||श्रीहरि:||
मनमें कामना होनेसे ही पुनर्जन्म होता है। जिसके मनमें कोई कामना है ही नहीं, वह कहाँ जन्मेगा? और क्यों जन्मेगा ?- अनन्तकी ओर १४५
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अनन्तकी ओर १४५··
हम सत्संग करते हैं, गीता-रामायण पढ़ते हैं, गंगा स्नान करते हैं, फिर हम नरकोंमें कैसे जा सकते हैं? हम दुबारा जन्म कैसे ले सकते हैं ? – यह बात हृदयसे पकड़ लेनी चाहिये।
||श्रीहरि:||
हम सत्संग करते हैं, गीता-रामायण पढ़ते हैं, गंगा स्नान करते हैं, फिर हम नरकोंमें कैसे जा सकते हैं? हम दुबारा जन्म कैसे ले सकते हैं ? – यह बात हृदयसे पकड़ लेनी चाहिये।- स्वातिकी बूँदें ३७
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स्वातिकी बूँदें ३७··
जब 'सब परमात्मा ही हैं' - ऐसी बात सुन ली, तो फिर पुनर्जन्म क्यों होगा ? कहाँ होगा?
||श्रीहरि:||
जब 'सब परमात्मा ही हैं' - ऐसी बात सुन ली, तो फिर पुनर्जन्म क्यों होगा ? कहाँ होगा?- स्वातिकी बूँदें ४२
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स्वातिकी बूँदें ४२··
मरनेवाले अपने - अपने कर्मोंके अनुसार ही ऊँच-नीच गतियोंमें जाते हैं, वे चाहे दिनमें मरें, चाहे रातमें; चाहे शुक्लपक्षमें मरें, चाहे कृष्णपक्षमें; चाहे उत्तरायणमें मरें, चाहे दक्षिणायनमें - इसका कोई नियम नहीं है।
||श्रीहरि:||
मरनेवाले अपने - अपने कर्मोंके अनुसार ही ऊँच-नीच गतियोंमें जाते हैं, वे चाहे दिनमें मरें, चाहे रातमें; चाहे शुक्लपक्षमें मरें, चाहे कृष्णपक्षमें; चाहे उत्तरायणमें मरें, चाहे दक्षिणायनमें - इसका कोई नियम नहीं है।- साधक संजीवनी ८।२५ वि०
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साधक संजीवनी ८।२५ वि०··
कामना छूटनेके बाद मनुष्य दिनमें मरे चाहे रातमें मरे, शुक्लपक्षमें मरे चाहे कृष्णपक्षमें मरे, उत्तरायणमें मरे चाहे दक्षिणायनमें मरे, कभी मरे, वह शुक्लमार्गमें ही जाता है। शुक्लमार्गमें जानेवाला मनुष्य फिर लौटकर संसारमें नहीं आता।
||श्रीहरि:||
कामना छूटनेके बाद मनुष्य दिनमें मरे चाहे रातमें मरे, शुक्लपक्षमें मरे चाहे कृष्णपक्षमें मरे, उत्तरायणमें मरे चाहे दक्षिणायनमें मरे, कभी मरे, वह शुक्लमार्गमें ही जाता है। शुक्लमार्गमें जानेवाला मनुष्य फिर लौटकर संसारमें नहीं आता।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १५०
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १५०··
जो भगवद्भक्त हैं, जो केवल भगवान्के ही परायण हैं, जिनके मनमें भगवद्दर्शनकी ही लालसा है, ऐसे भक्त दिनमें या रातमें, शुक्लपक्षमें या कृष्णपक्षमें, उत्तरायणमें या दक्षिणायनमें, जब कभी शरीर छोड़ते हैं, तो उनको लेनेके लिये भगवान्के पार्षद आते हैं। पार्षदोंके साथ वे सीधे भगवद्धाम पहुँच जाते हैं।
||श्रीहरि:||
जो भगवद्भक्त हैं, जो केवल भगवान्के ही परायण हैं, जिनके मनमें भगवद्दर्शनकी ही लालसा है, ऐसे भक्त दिनमें या रातमें, शुक्लपक्षमें या कृष्णपक्षमें, उत्तरायणमें या दक्षिणायनमें, जब कभी शरीर छोड़ते हैं, तो उनको लेनेके लिये भगवान्के पार्षद आते हैं। पार्षदोंके साथ वे सीधे भगवद्धाम पहुँच जाते हैं।- साधक संजीवनी ८ । २५
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साधक संजीवनी ८ । २५··
वस्तु और व्यक्ति तो नहीं रहते, पर उनसे माना हुआ सम्बन्ध बना रहता है। यह माना हुआ सम्बन्ध ही जन्म-मरणका कारण होता है।
||श्रीहरि:||
वस्तु और व्यक्ति तो नहीं रहते, पर उनसे माना हुआ सम्बन्ध बना रहता है। यह माना हुआ सम्बन्ध ही जन्म-मरणका कारण होता है।- अमृत-बिन्दु ६५०
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अमृत-बिन्दु ६५०··
भोगोंकी इच्छा है तो भोगयोनि मिलेगी, मनुष्यशरीर नहीं मिलेगा।
||श्रीहरि:||
भोगोंकी इच्छा है तो भोगयोनि मिलेगी, मनुष्यशरीर नहीं मिलेगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६१
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६१··
मृत्यु और जन्मके समय बहुत ज्यादा कष्ट होता है। उस कष्टके कारण बुद्धिमें पूर्वजन्मकी स्मृति नहीं रहती। जैसे लकवा मार जानेपर, अधिक वृद्धावस्था होनेपर बुद्धिमें पहले जैसा ज्ञान नहीं रहता, ऐसे ही मृत्युकालमें तथा जन्मकालमें बहुत बड़ा धक्का लगनेपर पूर्वजन्मका ज्ञान नहीं रहता । परन्तु जिसकी मृत्युमें ऐसा कष्ट नही होता अर्थात् शरीरकी अवस्थान्तरकी प्राप्तिकी तरह अनायास ही देहान्तरकी प्राप्ति हो जाती है, उसकी बुद्धिमें पूर्वजन्मकी स्मृति रह सकती है।
||श्रीहरि:||
मृत्यु और जन्मके समय बहुत ज्यादा कष्ट होता है। उस कष्टके कारण बुद्धिमें पूर्वजन्मकी स्मृति नहीं रहती। जैसे लकवा मार जानेपर, अधिक वृद्धावस्था होनेपर बुद्धिमें पहले जैसा ज्ञान नहीं रहता, ऐसे ही मृत्युकालमें तथा जन्मकालमें बहुत बड़ा धक्का लगनेपर पूर्वजन्मका ज्ञान नहीं रहता । परन्तु जिसकी मृत्युमें ऐसा कष्ट नही होता अर्थात् शरीरकी अवस्थान्तरकी प्राप्तिकी तरह अनायास ही देहान्तरकी प्राप्ति हो जाती है, उसकी बुद्धिमें पूर्वजन्मकी स्मृति रह सकती है।- साधक संजीवनी २।१३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधक संजीवनी २।१३··
ध्यानयोगीका पुनर्जन्म होता है— मनके विचलित होनेसे अर्थात् अपने साधनसे भ्रष्ट होनेसे, पर कर्मयोगी अथवा ज्ञानयोगीका पुनर्जन्म होता है - सांसारिक आसक्ति रहनेसे । भक्तियोगमें भगवान्का आश्रय रहनेसे भगवान् अपने भक्तकी विशेष रक्षा करते हैं- योगक्षेमं वहाम्यहम् ' ( गीता ९ । २२), 'मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि ' (गीता १८ । ५८)।
||श्रीहरि:||
ध्यानयोगीका पुनर्जन्म होता है— मनके विचलित होनेसे अर्थात् अपने साधनसे भ्रष्ट होनेसे, पर कर्मयोगी अथवा ज्ञानयोगीका पुनर्जन्म होता है - सांसारिक आसक्ति रहनेसे । भक्तियोगमें भगवान्का आश्रय रहनेसे भगवान् अपने भक्तकी विशेष रक्षा करते हैं- योगक्षेमं वहाम्यहम् ' ( गीता ९ । २२), 'मच्चित्तः सर्वदुर्गाणि मत्प्रसादात्तरिष्यसि ' (गीता १८ । ५८)।- साधक संजीवनी ६ । ३७ परि०