हे मेरे नाथ।' – ऐसे हृदयकी पुकार भगवान्को द्रवित कर देती है।
||श्रीहरि:||
हे मेरे नाथ।' – ऐसे हृदयकी पुकार भगवान्को द्रवित कर देती है।- सागरके मोती १०६
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सागरके मोती १०६··
भले ही आप कुछ नहीं जानते, पर 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो तो यह आवाज भगवान्तक पहुँचती है। कारण कि आप खुद परमात्माके अंश हो।
||श्रीहरि:||
भले ही आप कुछ नहीं जानते, पर 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो तो यह आवाज भगवान्तक पहुँचती है। कारण कि आप खुद परमात्माके अंश हो।- बन गये आप अकेले सब कुछ ४७
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बन गये आप अकेले सब कुछ ४७··
चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम 'हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारते रहो तो भगवान् सब तरहसे रक्षा करेंगे।
||श्रीहरि:||
चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम 'हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारते रहो तो भगवान् सब तरहसे रक्षा करेंगे।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५१
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५१··
वास्तवमें भगवान् हमारे भीतर हैं। उनको बार-बार 'हे मेरे नाथ। हे मेरे प्रभो।' पुकारो और समझो कि भगवान् मेरे भीतर हैं; उनसे मैं कह रहा हूँ और वे सुन रहे हैं, मुझे देख रहे हैं। एक जन्मकी माँ भी पुकारनेसे आ जाती है, फिर भगवान् तो सदाकी माँ हैं। वे जरूर आयेंगे।
||श्रीहरि:||
वास्तवमें भगवान् हमारे भीतर हैं। उनको बार-बार 'हे मेरे नाथ। हे मेरे प्रभो।' पुकारो और समझो कि भगवान् मेरे भीतर हैं; उनसे मैं कह रहा हूँ और वे सुन रहे हैं, मुझे देख रहे हैं। एक जन्मकी माँ भी पुकारनेसे आ जाती है, फिर भगवान् तो सदाकी माँ हैं। वे जरूर आयेंगे।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ७२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ७२··
भगवान्को याद करो। भगवान्को याद करना सम्पूर्ण दोषोंके नाशका उपाय है। राग-द्वेष हो जायँ तो आर्त होकर ‘हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारो। जैसे डाकू लूटते हों तो आदमी पुकारता है, ऐसे आर्त होकर भगवान्को पुकारो। ऐसा करनेसे जरूर फर्क पड़ेगा। भगवान् से कहनेपर हरेक दोष दूर होता है।
||श्रीहरि:||
भगवान्को याद करो। भगवान्को याद करना सम्पूर्ण दोषोंके नाशका उपाय है। राग-द्वेष हो जायँ तो आर्त होकर ‘हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारो। जैसे डाकू लूटते हों तो आदमी पुकारता है, ऐसे आर्त होकर भगवान्को पुकारो। ऐसा करनेसे जरूर फर्क पड़ेगा। भगवान् से कहनेपर हरेक दोष दूर होता है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५१
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५१··
थोड़ा भी राग उत्पन्न हो तो 'हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारो। अवगुणोंका नाश करनेके लिये और सद्गुणोंको लानेके लिये दोनोंके लिये भगवान्को पुकारो। उनकी कृपासे ही अवगुणोंका नाश और सद्गुणोंकी रक्षा होती है। चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम 'हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारते रहो तो भगवान् सब तरहसे रक्षा करेंगे। जब अपने उद्योगसे राग-द्वेष दूर न हों, तब दुःखी होकर भगवान्को पुकारो। भगवान्की कृपासे बड़ी सरलतासे सब काम हो जायगा।
||श्रीहरि:||
थोड़ा भी राग उत्पन्न हो तो 'हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारो। अवगुणोंका नाश करनेके लिये और सद्गुणोंको लानेके लिये दोनोंके लिये भगवान्को पुकारो। उनकी कृपासे ही अवगुणोंका नाश और सद्गुणोंकी रक्षा होती है। चलते-फिरते, उठते-बैठते हरदम 'हे नाथ। 'हे मेरे नाथ।' पुकारते रहो तो भगवान् सब तरहसे रक्षा करेंगे। जब अपने उद्योगसे राग-द्वेष दूर न हों, तब दुःखी होकर भगवान्को पुकारो। भगवान्की कृपासे बड़ी सरलतासे सब काम हो जायगा।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५१-५२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५१-५२··
हरदम 'हे नाथ। हे नाथ।' कहकर भगवान्को पुकारो। संसारकी चाहनाको छोड़ना हो तो भगवान्को पुकारो। दुर्गुणोंको छोड़ना हो तो भगवान्को पुकारो। सद्गुणोंको लाना हो तो भगवान्को पुकारो। संसारका चिन्तन आ जाय तो भगवान्को पुकारो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। जो होगा, भगवान्की कृपासे होगा, अपने बलसे नहीं। बच्चेपर आफत आ जाय तो माँको पुकानेके सिवाय वह और क्या करे ? थोड़ा भी संसारका चिन्तन है, आकर्षण है तो रात दिन भगवान्को पुकारो। संसारके चिन्तनसे रहित होते ही भगवान् अपने आप मिल जायँगे।
||श्रीहरि:||
हरदम 'हे नाथ। हे नाथ।' कहकर भगवान्को पुकारो। संसारकी चाहनाको छोड़ना हो तो भगवान्को पुकारो। दुर्गुणोंको छोड़ना हो तो भगवान्को पुकारो। सद्गुणोंको लाना हो तो भगवान्को पुकारो। संसारका चिन्तन आ जाय तो भगवान्को पुकारो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। जो होगा, भगवान्की कृपासे होगा, अपने बलसे नहीं। बच्चेपर आफत आ जाय तो माँको पुकानेके सिवाय वह और क्या करे ? थोड़ा भी संसारका चिन्तन है, आकर्षण है तो रात दिन भगवान्को पुकारो। संसारके चिन्तनसे रहित होते ही भगवान् अपने आप मिल जायँगे।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९०
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९०··
कल्याणका सीधा-सरल उपाय है-रात और दिन 'हे नाथ। हे मेरे नाथ ।' पुकारो। कोई दुःख पानेकी जरूरत नहीं; नींद आये तो सो लिया, भूख लगे तो भोजन कर लिया, प्यास लगे तो जल पी लिया। रसोई बनाओ तो 'हे मेरे नाथ।', काम करो तो 'हे मेरे नाथ।', दूकानमें जाओ तो 'हे मेरे नाथ।' कहते रहो।
||श्रीहरि:||
कल्याणका सीधा-सरल उपाय है-रात और दिन 'हे नाथ। हे मेरे नाथ ।' पुकारो। कोई दुःख पानेकी जरूरत नहीं; नींद आये तो सो लिया, भूख लगे तो भोजन कर लिया, प्यास लगे तो जल पी लिया। रसोई बनाओ तो 'हे मेरे नाथ।', काम करो तो 'हे मेरे नाथ।', दूकानमें जाओ तो 'हे मेरे नाथ।' कहते रहो।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७५
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७५··
जो 'शरीर मैं मेरा नहीं' आदि कुछ नहीं जानते, पढ़े-लिखे बिलकुल नहीं हैं, काला अक्षर भैंस बराबर है, वे भी 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।' पुकारने लग जायँ तो सब ठीक हो जायगा।
||श्रीहरि:||
जो 'शरीर मैं मेरा नहीं' आदि कुछ नहीं जानते, पढ़े-लिखे बिलकुल नहीं हैं, काला अक्षर भैंस बराबर है, वे भी 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।' पुकारने लग जायँ तो सब ठीक हो जायगा।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०९-२१०
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०९-२१०··
भगवान्के बड़ी भारी पोल है, पता नहीं है आपको। अब याद कर लो। सच्चे हृदयसे पुकारो - 'हे नाथ। हे नाथ।' 'ना.......थ' 'थ' कहते ही आ जायँगे।
||श्रीहरि:||
भगवान्के बड़ी भारी पोल है, पता नहीं है आपको। अब याद कर लो। सच्चे हृदयसे पुकारो - 'हे नाथ। हे नाथ।' 'ना.......थ' 'थ' कहते ही आ जायँगे।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ९९
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ९९··
आप 'हे मेरे नाथ। हे मेरे प्रभो।' पुकारो, आपका कल्याण होगा...... होगा....होगा । नहीं हो तो मेरेको दण्ड देना।
||श्रीहरि:||
आप 'हे मेरे नाथ। हे मेरे प्रभो।' पुकारो, आपका कल्याण होगा...... होगा....होगा । नहीं हो तो मेरेको दण्ड देना।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०५
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०५··
इस भयंकर कलियुगसे बचना चाहते हो तो हरदम 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।।' पुकारते रहो।
||श्रीहरि:||
इस भयंकर कलियुगसे बचना चाहते हो तो हरदम 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।।' पुकारते रहो।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२७
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२७··
नामजप करनेकी अपेक्षा 'हे नाथ। हे नाथ।।' यह पुकार ऊँचे दर्जेकी चीज है।
||श्रीहरि:||
नामजप करनेकी अपेक्षा 'हे नाथ। हे नाथ।।' यह पुकार ऊँचे दर्जेकी चीज है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०··
हे नाथ। हे मेरे नाथ।' कहते रहो तो कभी पट काम हो जायगा। जो काम वर्षोंमें नहीं होता, वह एकाएक हो जाता है, पर आप लगे रहो।
||श्रीहरि:||
हे नाथ। हे मेरे नाथ।' कहते रहो तो कभी पट काम हो जायगा। जो काम वर्षोंमें नहीं होता, वह एकाएक हो जाता है, पर आप लगे रहो।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १५६
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १५६··
कोई गुरुकी जरूरत नहीं, कोई शास्त्रकी जरूरत नहीं, कहीं जानेकी जरूरत नहीं, केवल 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो। गुरुकी जरूरत नहीं है, केवल लगनकी जरूरत है। आप सच्चे हृदयसे 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो तो आपकी योग्यताके अनुसार आपको गुरु मिल जायगा, सन्त-महात्मा मिल जायँगे, उपदेश मिल जायगा।
||श्रीहरि:||
कोई गुरुकी जरूरत नहीं, कोई शास्त्रकी जरूरत नहीं, कहीं जानेकी जरूरत नहीं, केवल 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो। गुरुकी जरूरत नहीं है, केवल लगनकी जरूरत है। आप सच्चे हृदयसे 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो तो आपकी योग्यताके अनुसार आपको गुरु मिल जायगा, सन्त-महात्मा मिल जायँगे, उपदेश मिल जायगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश २००
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश २००··
जो काम हमारेसे नहीं होता तो भगवान्को कहो। कोई आफत आये तो भगवान्को पुकारो। जैसे बच्चेको कुत्ते, बिल्ली आदिसे डर लगता है तो वह 'माँ। माँ।' पुकारता है, ऐसे ही काम, क्रोध, लोभ आदि आ जाय तो 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो।
||श्रीहरि:||
जो काम हमारेसे नहीं होता तो भगवान्को कहो। कोई आफत आये तो भगवान्को पुकारो। जैसे बच्चेको कुत्ते, बिल्ली आदिसे डर लगता है तो वह 'माँ। माँ।' पुकारता है, ऐसे ही काम, क्रोध, लोभ आदि आ जाय तो 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश २३१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश २३१··
जो करना चाहते हैं, वह नहीं होता और जो नहीं करना चाहते हैं, वह हो जाता है- इन दोनों बातोंके लिये भगवान्से प्रार्थना करो 'हे नाथ। हे नाथ।' । प्रार्थना ऐसी करो कि रात-दिन भगवान्के पीछे ही पड़ जाओ। जैसे बालक लड्डू लेनेके लिये माँका पल्ला पकड़ लेता है और पीछे पड़ जाता है तो माँको तंग होकर देना ही पड़ता है कि 'ले ले, मर।' बालक राजी हो जाता है। इसी तरहसे भगवान् के पीछे पड़ जाओ। यह बहुत बढ़िया उपाय है। साधनमें तरह तरहकी बातें हैं, पर भगवान्का आश्रय लेकर पीछे पड़ जाना बहुत बढ़िया साधन है। यह मामूली नहीं है।
||श्रीहरि:||
जो करना चाहते हैं, वह नहीं होता और जो नहीं करना चाहते हैं, वह हो जाता है- इन दोनों बातोंके लिये भगवान्से प्रार्थना करो 'हे नाथ। हे नाथ।' । प्रार्थना ऐसी करो कि रात-दिन भगवान्के पीछे ही पड़ जाओ। जैसे बालक लड्डू लेनेके लिये माँका पल्ला पकड़ लेता है और पीछे पड़ जाता है तो माँको तंग होकर देना ही पड़ता है कि 'ले ले, मर।' बालक राजी हो जाता है। इसी तरहसे भगवान् के पीछे पड़ जाओ। यह बहुत बढ़िया उपाय है। साधनमें तरह तरहकी बातें हैं, पर भगवान्का आश्रय लेकर पीछे पड़ जाना बहुत बढ़िया साधन है। यह मामूली नहीं है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ३५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ ३५··
आप जहाँ हो, वहाँ ही और जैसे हो, वैसे ही भगवान्को 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।' पुकारो। भगवान् उद्धार करनेके लिये तैयार हैं। वे हरदम कृपा करनेके लिये तैयार रहते हैं। सूर्य बाहर प्रकाश करता है, भगवान्की कृपा भीतर प्रकाश करती है। आजतक भगवान् के विषयमें जितना आपने जाना है, जितनी आपकी समझ है, उसी रूपको याद करो और 'हे नाथ। हे प्रभो । ' पुकारो। इतना सरल कोई रास्ता है नहीं।
||श्रीहरि:||
आप जहाँ हो, वहाँ ही और जैसे हो, वैसे ही भगवान्को 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।' पुकारो। भगवान् उद्धार करनेके लिये तैयार हैं। वे हरदम कृपा करनेके लिये तैयार रहते हैं। सूर्य बाहर प्रकाश करता है, भगवान्की कृपा भीतर प्रकाश करती है। आजतक भगवान् के विषयमें जितना आपने जाना है, जितनी आपकी समझ है, उसी रूपको याद करो और 'हे नाथ। हे प्रभो । ' पुकारो। इतना सरल कोई रास्ता है नहीं।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६२ - १६३
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १६२ - १६३··
चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय भगवान्को पुकारना शुरू कर दो कि 'हे नाथ। हे प्रभो । हे स्वामिन्। इस आफतसे छुड़ाओ । हमारेसे छूटता नहीं' । पहले नकली पुकार होती है, फिर वह नकलीसे असली हो जाती है। कभी हृदयसे पुकार निकलेगी तो माया छूट जायगी।
||श्रीहरि:||
चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय भगवान्को पुकारना शुरू कर दो कि 'हे नाथ। हे प्रभो । हे स्वामिन्। इस आफतसे छुड़ाओ । हमारेसे छूटता नहीं' । पहले नकली पुकार होती है, फिर वह नकलीसे असली हो जाती है। कभी हृदयसे पुकार निकलेगी तो माया छूट जायगी।- अनन्तकी ओर ६५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अनन्तकी ओर ६५··
रुपयोंका संग्रह करना और इन्द्रियोंसे भोग भोगना - ये दोनों सभी भाई - बहनोंके लिये बहुत बाधक हैं। हृदयसे, रोकर 'हे नाथ। हे नाथ।' प्रार्थना करो तो ये छूट जायँगे। जितना सुख लिया है, उससे सवाया - डेढ़ा दुःख हो जाय तो ये छूट जायँगे । परन्तु उनसे सुख ज्यादा होता हो और मनमें दुःख कम हो तो प्रार्थना भी असली नहीं होती। असली प्रार्थनाके बिना ये छूटते नहीं।
||श्रीहरि:||
रुपयोंका संग्रह करना और इन्द्रियोंसे भोग भोगना - ये दोनों सभी भाई - बहनोंके लिये बहुत बाधक हैं। हृदयसे, रोकर 'हे नाथ। हे नाथ।' प्रार्थना करो तो ये छूट जायँगे। जितना सुख लिया है, उससे सवाया - डेढ़ा दुःख हो जाय तो ये छूट जायँगे । परन्तु उनसे सुख ज्यादा होता हो और मनमें दुःख कम हो तो प्रार्थना भी असली नहीं होती। असली प्रार्थनाके बिना ये छूटते नहीं।- अनन्तकी ओर १३५
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अनन्तकी ओर १३५··
नकली करते-करते वह असली हो जाता है । इसलिये आप जैसी हो, वैसी ही प्रार्थना करना शुरू कर दो। रात-दिन 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारना शुरू कर दो तो कभी हृदयसे प्रार्थना निकलेगी और खट प्रकाश हो जायगा । आपको महान् आनन्द मिल जायगा । जैसे बुखार उतरनेपर शरीर हल्का हो जाता है, ऐसे आप हल्के हो जाओगे।
||श्रीहरि:||
नकली करते-करते वह असली हो जाता है । इसलिये आप जैसी हो, वैसी ही प्रार्थना करना शुरू कर दो। रात-दिन 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारना शुरू कर दो तो कभी हृदयसे प्रार्थना निकलेगी और खट प्रकाश हो जायगा । आपको महान् आनन्द मिल जायगा । जैसे बुखार उतरनेपर शरीर हल्का हो जाता है, ऐसे आप हल्के हो जाओगे।- अनन्तकी ओर १३६
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अनन्तकी ओर १३६··
आप भगवान्का आश्रय लेकर 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो तो आपकी बुद्धि शुद्ध हो जायगी, मन पवित्र हो जायगा, आपका शोक मिट जायगा, दुःख मिट जायगा, हृदयकी जलन मिट जायगी । यह सच्ची बात है।
||श्रीहरि:||
आप भगवान्का आश्रय लेकर 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो तो आपकी बुद्धि शुद्ध हो जायगी, मन पवित्र हो जायगा, आपका शोक मिट जायगा, दुःख मिट जायगा, हृदयकी जलन मिट जायगी । यह सच्ची बात है।- अनन्तकी ओर १३८
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अनन्तकी ओर १३८··
सबसे बढ़िया बात भगवान्को 'हे मेरे नाथ। हे मेरे नाथ ।' पुकारना है। अन्तमें 'नाथ' ही रह जायगा, 'मैं' नहीं रहेगा।
||श्रीहरि:||
सबसे बढ़िया बात भगवान्को 'हे मेरे नाथ। हे मेरे नाथ ।' पुकारना है। अन्तमें 'नाथ' ही रह जायगा, 'मैं' नहीं रहेगा।- परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ११६