Seeker of Truth

प्रार्थना और पुकार

अपने भीतरकी लालसा ही प्रार्थना है।

प्रश्नोत्तरमणिमाला २२६··

ऐसा कोई भी असम्भव काम नहीं है, जो भगवान्की प्रार्थनासे सम्भव न हो जाय। कारण कि भगवान्का बल अपार है, असीम है, अनन्त है।

साधन-सुधा-सिन्धु ४३०··

प्रार्थना बहुत बड़ा भजन है। नाममें जितनी शक्ति है, उससे ज्यादा शक्ति प्रार्थनामें पुकारने में है। कोई आदमी चोर - डाकुओंमें फँस जाय तो वह पुकार करता है। आर्तभावसे पुकारे तो भगवान्की कृपासे सब अपने-आप हो जायगा, अचानक हो जायगा। आश्चर्य होगा कि क्या हो गया। ऐसा लगेगा कि मानो दूसरी दुनियामें आ गये। यह उद्योगसाध्य नहीं है, कृपासाध्य है।

मामेकं शरणं व्रज ७९··

प्रार्थना भी शरीरसे होती है, पर यह उपासना है। प्रार्थनाका सम्बन्ध साक्षात् परमात्माके साथ है । 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - यह बहुत बढ़िया प्रार्थना है। यह करण-निरपेक्ष है; क्योंकि यह स्वयंकी पुकार है। इसमें मनकी मुख्यता नहीं है, प्रत्युत स्वयंकी मुख्यता है।

अनन्तकी ओर ३३··

आपको दीखता है कि भगवान् सुनते नहीं, पर भगवान् आपकी एक-एक बात सुनते हैं।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ७९··

भक्त जहाँ-कहीं जोरसे बोलकर प्रार्थना करे, धीरेसे बोलकर प्रार्थना करे अथवा मनसे प्रार्थना करे, वहाँ ही भगवान् अपने कानोंसे सुन लेते हैं।

साधक संजीवनी १३ । १३··

पहले मनमें भाव उठता है, पीछे मनुष्य उसे अपनी भाषामें व्यक्त करता है । भगवान् तो मनमें उठनेवाले भावको ही जान लेते हैं, भाषा तो पीछे रही। जहाँ भाव उठता है, वहीं भगवान् मौजूद हैं।

सत्संगके फूल १७४··

प्रार्थना की नहीं जाती, प्रत्युत भीतरसे निकलती है अर्थात् स्वतः होती है। अगर भीतरसे असली प्रार्थना हो तो तत्काल काम होता है।

साधन-सुधा-सिन्धु ४३०··

प्रार्थनाका सम्बन्ध हृदयके साथ है, उठने-बैठनेके साथ नहीं।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १५६··

भगवान्से प्रार्थना करना और उनके शरण होना- ये दो बातें तत्काल सिद्धि देनेवाली हैं। कोई आफत जाय, दुःख आ जाय, सन्ताप हो जाय, उलझन हो जाय तो आर्तभावसे 'हे नाथ। हे प्रभो।' कहकर भगवान्‌को पुकारे, उनसे प्रार्थना करे तो तत्काल लाभ होता है।

साधन-सुधा-सिन्धु ४२९··

जब अपने बलका, योग्यताका, पदका, विद्याका, बुद्धिका, वर्णका, आश्रमका, सम्प्रदायका कोई- न-कोई सहारा रहता है, तब न तो असली प्रार्थना होती है और न असली शरणागति ही होती है। कारण कि अपने बल, योग्यता आदिका सहारा रहनेसे अहम् बना रहता है। जबतक अहम् है, तबतक असली प्रार्थना और असली शरणागति नहीं होती। असली प्रार्थना और असली शरणागतिके बिना काम नहीं होता।

साधन-सुधा-सिन्धु ४३०··

अपने में सर्वथा निर्बलताका अनुभव हो जाय तब असली प्रार्थना और असली शरणागति होती है- 'सुने री मैंने निरबल के बल राम ।' निर्बलताका अर्थ यह नहीं है कि हमारा शरीर निर्बल हो जाय, शरीरमें शक्ति न रहे, हम बीमार हो जायँ । निर्बलताका अर्थ है- अपने बलसे निराश हो जाना, अपने बलका किंचिन्मात्र भी सहारा, भरोसा या अभिमान न होना। बुद्धिबल, मनोबल, धनबल, तनबल, बाहुबल, विद्याबल आदि सबसे निराशा हो जाय और भगवत्प्राप्तिकी तीव्र आशा हो जाय तब प्रार्थना तत्काल काम करती है। अपने बलकी आशा रहे और भगवत्प्राप्तिसे निराश हो जायँ, तब प्रार्थना काम नहीं करती।

साधन-सुधा-सिन्धु ४३०··

अपने बलका अभिमान होगा तो सच्ची प्रार्थना कर सकोगे नहीं, देरी लगेगी। अपनेमें बल, बुद्धि, विद्या, साधन, वर्ण, आश्रम आदिका अभिमान होगा तो यह उपाय काम नहीं देगा। भगवान्‌को पुकारनेमें हार स्वीकार मत करो, भले ही वर्ष लग जायें । अन्तमें आपकी विजय जरूर होगी, इसमें सन्देह नहीं है। अपना समझकर भगवान्‌को पुकारो। नकली प्रार्थनाको भी भगवान् असली मानकर स्वीकार कर लेते हैं। अपने बलसे निराश और भगवान्‌के बलपर विश्वास- ये दो बातें होंगी तो जरूर सफलता मिलेगी।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५२··

अपनेमें निर्बलताका अनुभव करके भगवान्‌को पुकारो कि 'हे नाथ, मैं छोड़ना चाहता हूँ, पर मेरेसे यह छूटती नहीं', तो भगवान्‌की कृपासे छूट जायगी । वास्तवमें हमारेमें निर्बलता है, पर इसका अनुभव नहीं हो रहा है। निर्बलताके अनुभवके बिना भीतरकी असली पुकार होती नहीं । भगवान् असली पुकार ही सुनते हैं। असली पुकार हो तो भगवान् जरूर सुनते हैं।

अनन्तकी ओर १३६··

भगवान्‌की कृपासे जो काम होगा, वह आपके उद्योगसे नहीं होगा। इसलिये भगवान्‌को पुकारो। पुकारसे जो काम होता है, वह विवेकसे नहीं होता। पुकारसे बहुत जल्दी सिद्धि होती है।

सत्संगके फूल ४४··

भगवान्का होकर भगवान्‌को पुकारो तो भगवान्पर असर पड़ेगा । संसारका होकर पुकारोगे तो असर नहीं पड़ेगा।

ज्ञानके दीप जले ५५··

बच्चेपर आफत आ जाय तो माँको पुकानेके सिवाय वह और क्या करे ? थोड़ा भी संसारका चिन्तन है, आकर्षण है तो रात दिन भगवान्‌को पुकारो। संसारके चिन्तनसे रहित होते ही भगवान् अपने-आप मिल जायँगे।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९९··

कोई भगवान्‌को पुकारता है तो उसके अवगुणोंकी तरफ भगवान्‌की दृष्टि जाती ही नहीं, वे तो केवल उसकी पुकारको देखते हैं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२२··

यद्यपि भीतरमें राग-द्वेष, काम-क्रोध, मोह आदि वृत्तियाँ रहनेके कारण सच्ची प्रार्थना होती नहीं, फिर भी बार-बार प्रार्थना करते रहो। जैसे मोटरको स्टार्ट करते समय बार-बार चाबी घुमाते - घुमाते कभी एक ही चाबीसे मोटर स्टार्ट हो जाती है, ऐसे ही प्रार्थना करते-करते कभी हृदयसे सच्ची प्रार्थना निकलेगी तो एक ही पुकारसे काम हो जायगा।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०··

संसार बातोंसे नहीं छूटता। अगर लगन लग जाय तो छूट जायगा। खुदकी लगन लग जाय तो सब काम ठीक हो जाता है। इसलिये आप भीतरकी लगन बढ़ाओ। इसके लिये प्रार्थना करना अच्छा है। रोकर प्रार्थना करो तो बहुत बढ़िया है, नहीं तो नकली प्रार्थना भी करते-करते असली हो जायगी, भगवान्‌की कृपासे। अपने मनमें जैसा भाव हो, वैसे पुकारो। पुकारते -पुकारते भगवत्कृपासे भाव बदल जायगा। इसके सिवाय दूसरा उपाय नहीं है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ २४··

हमारे मनमें यह बात आती है कि सब भाई-बहन, चाहे वे किसी भी वर्ण, आश्रम आदिके हों, 'हे नाथ। हे प्राणनाथ। हे परमेश्वर। हे मेरे स्वामी।' पुकारो। पुकार सबसे बड़ा, उत्तम साधन है। इसमें इतना बल है कि भगवान्‌को भी खींच ले।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६१··

आपको विश्वास हो न हो, यह हमारे हाथकी बात नहीं है; परन्तु ऐसी सच्ची बात है कि बीसों-पचासों वर्षोंतक मेहनत करनेसे जो काम नहीं हुआ, वह प्रार्थनासे एक दिनमें हो गया। सच्चे हृदयसे प्रार्थना करनेपर ऐसा हुआ है, और होता है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११०··

आवश्यकता आपके हृदयकी पुकारकी है। हृदयसे बार-बार भगवान् से कहो कि 'हे नाथ। हे मेरे नाथ। मेरा चित्त आपके चरणोंमें लग जाय'। इससे चित्त जरूर लगेगा, इसमें सन्देह नहीं है । सन्तोंने यह अनुभव करके देखा है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११०··

आपमें कोई गुण नहीं है, कोई योग्यता नहीं है, पर भगवान्‌को हृदयसे पुकारो तो यह सब योग्यताओंकी मूल योग्यता है।

अनन्तकी ओर १३७··

कोई आफत आ जाय तो दस-पन्द्रह मिनट बैठकर नामजप करो और प्रार्थना करो तो रक्षा हो जायगी। सच्चे हृदयसे की गयी प्रार्थनासे तत्काल लाभ होता है। जो भी चाहिये, भगवान्‌को पुकारो।

सत्संगके फूल ८९-९०··

व्याकुल होकर, दु:खी होकर भगवान्से कहो कि हे नाथ। शरीर - संसारसे मेरापन छूटता नहीं, क्या करूँ। तो भगवान्‌की कृपासे छूट जायगा।

सत्यकी खोज ५६··