सुखदायी परिस्थिति सेवा करनेके लिये और दुःखदायी परिस्थिति सुखकी इच्छाका त्याग करनेके लिये है।
||श्रीहरि:||
सुखदायी परिस्थिति सेवा करनेके लिये और दुःखदायी परिस्थिति सुखकी इच्छाका त्याग करनेके लिये है।- ज्ञानके दीप जले २३९
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ज्ञानके दीप जले २३९··
संसारमें ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं है, जिसमें मनुष्यका कल्याण न हो सकता हो । कारण कि परमात्मतत्त्व प्रत्येक परिस्थितिमें समानरूपसे विद्यमान है। अतः साधकके सामने कोई भी और कैसी भी परिस्थिति आये, उसका केवल सदुपयोग करना है। सदुपयोग करनेका अर्थ है- दुःखदायी परिस्थिति आनेपर सुखकी इच्छाका त्याग करना; और सुखदायी परिस्थिति आनेपर सुखभोगका तथा 'वह बनी रहे ऐसी इच्छाका त्याग करना और उसको दूसरोंकी सेवामें लगाना । इस प्रकार सदुपयोग करनेसे मनुष्य दुःखदायी और सुखदायी - दोनों परिस्थितियोंसे ऊँचा उठ जाता है अर्थात् उसका कल्याण हो जाता है।
||श्रीहरि:||
संसारमें ऐसी कोई भी परिस्थिति नहीं है, जिसमें मनुष्यका कल्याण न हो सकता हो । कारण कि परमात्मतत्त्व प्रत्येक परिस्थितिमें समानरूपसे विद्यमान है। अतः साधकके सामने कोई भी और कैसी भी परिस्थिति आये, उसका केवल सदुपयोग करना है। सदुपयोग करनेका अर्थ है- दुःखदायी परिस्थिति आनेपर सुखकी इच्छाका त्याग करना; और सुखदायी परिस्थिति आनेपर सुखभोगका तथा 'वह बनी रहे ऐसी इच्छाका त्याग करना और उसको दूसरोंकी सेवामें लगाना । इस प्रकार सदुपयोग करनेसे मनुष्य दुःखदायी और सुखदायी - दोनों परिस्थितियोंसे ऊँचा उठ जाता है अर्थात् उसका कल्याण हो जाता है।- साधक संजीवनी प्रा०
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साधक संजीवनी प्रा०··
मनुष्यके सामने जन्मना - मरना, लाभ-हानि आदिके रूपमें जो कुछ परिस्थिति आती है, वह प्रारब्धका अर्थात् अपने किये हुए कर्मोंका ही फल है। उस अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितिको लेकर शोक करना, सुखी-दुःखी होना केवल मूर्खता ही है।
||श्रीहरि:||
मनुष्यके सामने जन्मना - मरना, लाभ-हानि आदिके रूपमें जो कुछ परिस्थिति आती है, वह प्रारब्धका अर्थात् अपने किये हुए कर्मोंका ही फल है। उस अनुकूल प्रतिकूल परिस्थितिको लेकर शोक करना, सुखी-दुःखी होना केवल मूर्खता ही है।- साधक संजीवनी २।११
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साधक संजीवनी २।११··
परमात्माकी अनन्त शक्ति प्राणिमात्रको निरन्तर अपनी ओर खींचती रहती है। इसलिये कोई भी परिस्थिति निरन्तर नहीं रहती।
||श्रीहरि:||
परमात्माकी अनन्त शक्ति प्राणिमात्रको निरन्तर अपनी ओर खींचती रहती है। इसलिये कोई भी परिस्थिति निरन्तर नहीं रहती।- सन्त समागम ४६-४७
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सन्त समागम ४६-४७··
प्रतिकूल परिस्थिति एक नंबरकी साधन सामग्री है; क्योंकि इसमें पापोंका नाश होता है और सावधानी आती है।
||श्रीहरि:||
प्रतिकूल परिस्थिति एक नंबरकी साधन सामग्री है; क्योंकि इसमें पापोंका नाश होता है और सावधानी आती है।- सत्संगके फूल ३८
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सत्संगके फूल ३८··
भगवान् के प्रत्येक विधानमें प्रसन्न रहनेवालेके भगवान् वशमें हो जाते हैं।
||श्रीहरि:||
भगवान् के प्रत्येक विधानमें प्रसन्न रहनेवालेके भगवान् वशमें हो जाते हैं।- सत्संगके फूल १२३
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सत्संगके फूल १२३··
प्रतिकूलतासे बाधा अपने सुखमें आती है, भजनमें नहीं।
||श्रीहरि:||
प्रतिकूलतासे बाधा अपने सुखमें आती है, भजनमें नहीं।- सागरके मोती १४
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सागरके मोती १४··
संसारमें परिवर्तन होना, परिस्थिति बदलना आवश्यक है। अगर परिस्थिति नहीं बदलेगी तो संसार कैसे चलेगा? मनुष्य बालकसे जवान कैसे बनेगा ? मूर्खसे विद्वान् कैसे बनेगा ? रोगीसे नीरोग कैसे बनेगा? बीजका वृक्ष कैसे बनेगा ? परिवर्तनके बिना संसार स्थिर चित्रकी तरह बन जायगा।
||श्रीहरि:||
संसारमें परिवर्तन होना, परिस्थिति बदलना आवश्यक है। अगर परिस्थिति नहीं बदलेगी तो संसार कैसे चलेगा? मनुष्य बालकसे जवान कैसे बनेगा ? मूर्खसे विद्वान् कैसे बनेगा ? रोगीसे नीरोग कैसे बनेगा? बीजका वृक्ष कैसे बनेगा ? परिवर्तनके बिना संसार स्थिर चित्रकी तरह बन जायगा।- साधक संजीवनी २।२७ परि०
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साधक संजीवनी २।२७ परि०··
अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितिका आना तो कर्मोंका फल है, और उससे सुखी - दुःखी होना अपनी अज्ञता - मूर्खताका फल है। कर्मोंका फल मिटाना तो हाथकी बात नहीं है, पर मूर्खता मिटाना बिलकुल हाथकी बात है। जिसे मिटा सकते हैं, उस मूर्खताको तो मिटाते नहीं और जिसे बदल सकते नहीं, उस परिस्थितिको बदलनेका उद्योग करते हैं- यह महान् भूल है।
||श्रीहरि:||
अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितिका आना तो कर्मोंका फल है, और उससे सुखी - दुःखी होना अपनी अज्ञता - मूर्खताका फल है। कर्मोंका फल मिटाना तो हाथकी बात नहीं है, पर मूर्खता मिटाना बिलकुल हाथकी बात है। जिसे मिटा सकते हैं, उस मूर्खताको तो मिटाते नहीं और जिसे बदल सकते नहीं, उस परिस्थितिको बदलनेका उद्योग करते हैं- यह महान् भूल है।- साधक संजीवनी ४ | ३ वि०
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साधक संजीवनी ४ | ३ वि०··
अनुकूल परिस्थितिमें पुराने पुण्योंका नाश होता है और वर्तमानमें भोगोंमें फँसनेकी सम्भावना भी रहती है। परन्तु प्रतिकूल परिस्थितिमें पुराने पापोंका नाश होता है और वर्तमानमें अधिक सजगता, सावधानी रहती है। इस दृष्टिसे सन्तजन सांसारिक प्रतिकूल परिस्थितिका आदर करते आये हैं।
||श्रीहरि:||
अनुकूल परिस्थितिमें पुराने पुण्योंका नाश होता है और वर्तमानमें भोगोंमें फँसनेकी सम्भावना भी रहती है। परन्तु प्रतिकूल परिस्थितिमें पुराने पापोंका नाश होता है और वर्तमानमें अधिक सजगता, सावधानी रहती है। इस दृष्टिसे सन्तजन सांसारिक प्रतिकूल परिस्थितिका आदर करते आये हैं।- साधक संजीवनी ७ २८ वि०
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साधक संजीवनी ७ २८ वि०··
प्रतिकूल - से - प्रतिकूल परिस्थिति आनेपर भी घबराये नहीं, प्रत्युत प्रतिकूल परिस्थितिका आदर करते हुए उसका सदुपयोग करे अर्थात् अनुकूलताकी इच्छाका त्याग करे; क्योंकि प्रतिकूलता पहले किये पापों का नाश करने और आगे अनुकूलताकी इच्छाका त्याग करनेके लिये ही आती है। अनुकूलताकी इच्छा जितनी ज्यादा होगी, उतनी ही प्रतिकूल अवस्था भयंकर होगी।
||श्रीहरि:||
प्रतिकूल - से - प्रतिकूल परिस्थिति आनेपर भी घबराये नहीं, प्रत्युत प्रतिकूल परिस्थितिका आदर करते हुए उसका सदुपयोग करे अर्थात् अनुकूलताकी इच्छाका त्याग करे; क्योंकि प्रतिकूलता पहले किये पापों का नाश करने और आगे अनुकूलताकी इच्छाका त्याग करनेके लिये ही आती है। अनुकूलताकी इच्छा जितनी ज्यादा होगी, उतनी ही प्रतिकूल अवस्था भयंकर होगी।- साधक संजीवनी १८ । ७०
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साधक संजीवनी १८ । ७०··
प्रतिकूलतामें पापोंका नाश होता है, निर्बल सबल बनता है, धैर्य दृढ़ होता है और साधनकी वृद्धि होती है । परन्तु यह उस समय नहीं दीखता । प्रतिकूलता जानेके बाद खुदको मालूम होता है कि प्रतिकूलतामें हमें ज्यादा लाभ हुआ है।
||श्रीहरि:||
प्रतिकूलतामें पापोंका नाश होता है, निर्बल सबल बनता है, धैर्य दृढ़ होता है और साधनकी वृद्धि होती है । परन्तु यह उस समय नहीं दीखता । प्रतिकूलता जानेके बाद खुदको मालूम होता है कि प्रतिकूलतामें हमें ज्यादा लाभ हुआ है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२०
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२०··
परिस्थितिका सदुपयोग होता है 'त्याग' से और दुरुपयोग होता है 'राग' से।
||श्रीहरि:||
परिस्थितिका सदुपयोग होता है 'त्याग' से और दुरुपयोग होता है 'राग' से।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ९५
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ९५··
प्रतिकूलता आये बिना आदमीकी परीक्षा नहीं होती, उसके भावोंका पता नहीं लगता।
||श्रीहरि:||
प्रतिकूलता आये बिना आदमीकी परीक्षा नहीं होती, उसके भावोंका पता नहीं लगता।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १८५
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १८५··
अगर बाहरकी परिस्थितिका असर पड़ता है तो यह जड़ताका सम्बन्ध है।
||श्रीहरि:||
अगर बाहरकी परिस्थितिका असर पड़ता है तो यह जड़ताका सम्बन्ध है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३०
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३०··
दुःखदायी परिस्थिति भगवान् के विधानसे हमारे कल्याणके लिये आती है। अतः उसे मिटानेकी चेष्टा न करके शान्तिपूर्वक सह लें।
||श्रीहरि:||
दुःखदायी परिस्थिति भगवान् के विधानसे हमारे कल्याणके लिये आती है। अतः उसे मिटानेकी चेष्टा न करके शान्तिपूर्वक सह लें।- स्वातिकी बूँदें ११७
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स्वातिकी बूँदें ११७··
भगवान्के मार्गमें नुकसान होता ही नहीं। जो परिस्थिति आती है, वह आपकी उन्नतिके लिये, आपको मजबूत बनानेके लिये, आपकी सहायता करनेके लिये, आपको परमात्माके नजदीक पहुँचानेके लिये आती है। इसलिये जो साधक होते हैं, सन्त होते हैं, वे प्रतिकूलता आनेपर घबराते नहीं।
||श्रीहरि:||
भगवान्के मार्गमें नुकसान होता ही नहीं। जो परिस्थिति आती है, वह आपकी उन्नतिके लिये, आपको मजबूत बनानेके लिये, आपकी सहायता करनेके लिये, आपको परमात्माके नजदीक पहुँचानेके लिये आती है। इसलिये जो साधक होते हैं, सन्त होते हैं, वे प्रतिकूलता आनेपर घबराते नहीं।- पायो परम बिश्रामु ७-८
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पायो परम बिश्रामु ७-८··
अगर हमारा उद्देश्य सिद्ध होता हो तो प्रतिकूलता सहनेमें क्या हर्ज है ? रातभर गाड़ी में भीड़के बीच खड़े रहें तो भी एक प्रसन्नता होती है कि घर तो पहुँच जायँगे।
||श्रीहरि:||
अगर हमारा उद्देश्य सिद्ध होता हो तो प्रतिकूलता सहनेमें क्या हर्ज है ? रातभर गाड़ी में भीड़के बीच खड़े रहें तो भी एक प्रसन्नता होती है कि घर तो पहुँच जायँगे।- स्वातिकी बूँदें १२६
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स्वातिकी बूँदें १२६··
प्रतिकूलतामें होनेवाली प्रसन्नता समताकी माता ( जननी) है। अगर यह प्रसन्नता मिल जाय तो समझना चाहिये कि समताकी तो माँ मिल गयी और परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिकी दादी मिल गयी। दादी कह दो या नानी कह दो।
||श्रीहरि:||
प्रतिकूलतामें होनेवाली प्रसन्नता समताकी माता ( जननी) है। अगर यह प्रसन्नता मिल जाय तो समझना चाहिये कि समताकी तो माँ मिल गयी और परमात्मतत्त्वकी प्राप्तिकी दादी मिल गयी। दादी कह दो या नानी कह दो।- अमरताकी ओर ९४