कीर्तनमात्रसे कल्याण होता है। सत्संगकी बातें काममें आयें या न आयें, पर कीर्तनसे जबर्दस्ती लाभ हो ही जायगा, इतनी पूँजी आपके पास हो ही जायगी इसी विचारसे मैंने कीर्तनका आरम्भ किया है।
||श्रीहरि:||
कीर्तनमात्रसे कल्याण होता है। सत्संगकी बातें काममें आयें या न आयें, पर कीर्तनसे जबर्दस्ती लाभ हो ही जायगा, इतनी पूँजी आपके पास हो ही जायगी इसी विचारसे मैंने कीर्तनका आरम्भ किया है।- स्वातिकी बूँदें १३०
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स्वातिकी बूँदें १३०··
नामजप, कीर्तन आदि करें तो 'अपने प्यारे प्रभुका नाम लेते हैं - इस प्रकार नाम प्रिय लगना चाहिये, न कि ताल - स्वर प्रिय लगें खिंचाव भगवान्में हो, न कि संसारमें कीर्तनमें क्रिया मुख्य न लगे, प्रत्युत भगवान्का सम्बन्ध मुख्य लगे। हरेक क्रियामें भगवान्की तरफ खिंचाव हो । फिर सिद्धिमें देरी नहीं लगेगी।
||श्रीहरि:||
नामजप, कीर्तन आदि करें तो 'अपने प्यारे प्रभुका नाम लेते हैं - इस प्रकार नाम प्रिय लगना चाहिये, न कि ताल - स्वर प्रिय लगें खिंचाव भगवान्में हो, न कि संसारमें कीर्तनमें क्रिया मुख्य न लगे, प्रत्युत भगवान्का सम्बन्ध मुख्य लगे। हरेक क्रियामें भगवान्की तरफ खिंचाव हो । फिर सिद्धिमें देरी नहीं लगेगी।- रहस्यमयी वार्ता १८३
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रहस्यमयी वार्ता १८३··
एक जगह बैठकर मनुष्य भगवान्के नामका कीर्तन करता है तो घर के घर, मोहल्ले के मोहल्ले शुद्ध हो जाते हैं, और उसकी आवाज चौदह भुवनोंसे होती हुई ब्रह्मलोकतक पहुँचती है। ऊँचे स्वरसे कीर्तन किया जाय तो उसका लोगोंपर विलक्षण प्रभाव पड़ता है। नामजपसे संकल्प - विकल्प उतने बन्द नहीं होते, जितने कीर्तनसे बन्द होते हैं। कीर्तनसे बहुत ज्यादा शुद्धि होती है और खराब परमाणु नष्ट हो जाते हैं।
||श्रीहरि:||
एक जगह बैठकर मनुष्य भगवान्के नामका कीर्तन करता है तो घर के घर, मोहल्ले के मोहल्ले शुद्ध हो जाते हैं, और उसकी आवाज चौदह भुवनोंसे होती हुई ब्रह्मलोकतक पहुँचती है। ऊँचे स्वरसे कीर्तन किया जाय तो उसका लोगोंपर विलक्षण प्रभाव पड़ता है। नामजपसे संकल्प - विकल्प उतने बन्द नहीं होते, जितने कीर्तनसे बन्द होते हैं। कीर्तनसे बहुत ज्यादा शुद्धि होती है और खराब परमाणु नष्ट हो जाते हैं।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६··
भगवान्के नाममें, रूपमें, लीलामें, गुणोंमें, चरित्रोंमें रसबुद्धि, प्रियता पैदा हो जाय तो संसारका रस छूट जायगा । जैसे, सौ रुपयोंमें रस दीखे तो पाँच रुपयोंका रस छूट जायगा। पहले खिलौनोंमें मन लगता था, अब उनको छोड़कर रुपयोंमें मन लगता है। इसलिये आप कीर्तन करो तो भगवान्में मन लगाकर कीर्तन करो। मन लगाकर कीर्तन करनेसे एक रस, आनन्द पैदा होता है। उस आनन्दमें यह शक्ति है कि संसारके भोग और रुपये वैसे मीठे नहीं लगेंगे।
||श्रीहरि:||
भगवान्के नाममें, रूपमें, लीलामें, गुणोंमें, चरित्रोंमें रसबुद्धि, प्रियता पैदा हो जाय तो संसारका रस छूट जायगा । जैसे, सौ रुपयोंमें रस दीखे तो पाँच रुपयोंका रस छूट जायगा। पहले खिलौनोंमें मन लगता था, अब उनको छोड़कर रुपयोंमें मन लगता है। इसलिये आप कीर्तन करो तो भगवान्में मन लगाकर कीर्तन करो। मन लगाकर कीर्तन करनेसे एक रस, आनन्द पैदा होता है। उस आनन्दमें यह शक्ति है कि संसारके भोग और रुपये वैसे मीठे नहीं लगेंगे।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २१२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २१२··
कीर्तन करनेसे भगवान्में प्रेम होता है। कीर्तनमें आनन्द रूपसे भगवान् प्रकट होते हैं।
||श्रीहरि:||
कीर्तन करनेसे भगवान्में प्रेम होता है। कीर्तनमें आनन्द रूपसे भगवान् प्रकट होते हैं।- ज्ञानके दीप जले ६९
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ज्ञानके दीप जले ६९··
कीर्तन, पाठ आदिसे हृदयमें शान्ति मिलती है, आनन्द होता है- यह भगवान्का अवतार है। कीर्तन करते हैं तो प्रसन्नता होती है और मन करता है कि कीर्तन करते ही जायँ - यह भी भगवान् के प्रतिक्षण वर्धमान प्रेमका अवतार है।
||श्रीहरि:||
कीर्तन, पाठ आदिसे हृदयमें शान्ति मिलती है, आनन्द होता है- यह भगवान्का अवतार है। कीर्तन करते हैं तो प्रसन्नता होती है और मन करता है कि कीर्तन करते ही जायँ - यह भी भगवान् के प्रतिक्षण वर्धमान प्रेमका अवतार है।- ज्ञानके दीप जले १६४
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ज्ञानके दीप जले १६४··
कथा चारों वर्णोंका मानो भोजन है और इसके बाद जो कीर्तन होता है, वह मानो दक्षिणा है। अतः सत्संगके बाद कीर्तन सुननेसे पहले नहीं उठना चाहिये। जो सत्संगके बीचमें उठ जाते हैं, वे 'सभा - बिगाड़' आदमी होते हैं।
||श्रीहरि:||
कथा चारों वर्णोंका मानो भोजन है और इसके बाद जो कीर्तन होता है, वह मानो दक्षिणा है। अतः सत्संगके बाद कीर्तन सुननेसे पहले नहीं उठना चाहिये। जो सत्संगके बीचमें उठ जाते हैं, वे 'सभा - बिगाड़' आदमी होते हैं।- ज्ञानके दीप जले १६२ - १६३
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ज्ञानके दीप जले १६२ - १६३··
सत्संगके अन्तमें जब कीर्तन होता है, तब कुछ भाई-बहन उठ जाते हैं। इसपर मेरेको बड़ा आश्चर्य आता है। कीर्तनमें उठनेसे भगवन्नामका तिरस्कार, अपमान होता है। कीर्तनसे उठकर आप घर जाकर करोगे क्या ? इसपर विचार करना चाहिये। घर जाकर इससे बढ़कर क्या काम करोगे ? मेरी समझमें आपका ऐसा कोई काम है ही नहीं, जो कीर्तनसे बढ़कर हो । कीर्तनमें उठनेसे बड़ा भारी अपराध होता है।
||श्रीहरि:||
सत्संगके अन्तमें जब कीर्तन होता है, तब कुछ भाई-बहन उठ जाते हैं। इसपर मेरेको बड़ा आश्चर्य आता है। कीर्तनमें उठनेसे भगवन्नामका तिरस्कार, अपमान होता है। कीर्तनसे उठकर आप घर जाकर करोगे क्या ? इसपर विचार करना चाहिये। घर जाकर इससे बढ़कर क्या काम करोगे ? मेरी समझमें आपका ऐसा कोई काम है ही नहीं, जो कीर्तनसे बढ़कर हो । कीर्तनमें उठनेसे बड़ा भारी अपराध होता है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ६३
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ६३··
छोटे बालकोंको गोदीमें लेकर घण्टा - डेढ़ घण्टा रोजाना अपने-अपने घरोंमें कीर्तन करो। सद्बुद्धि जरूर होगी, इसमें सन्देह नहीं । कलियुगमें कीर्तनका बड़ा भारी माहात्म्य है। कलियुग भगवन्नामकी ऋतु है। भगवन्नाम-कीर्तनसे सद्भाव पैदा होते हैं।
||श्रीहरि:||
छोटे बालकोंको गोदीमें लेकर घण्टा - डेढ़ घण्टा रोजाना अपने-अपने घरोंमें कीर्तन करो। सद्बुद्धि जरूर होगी, इसमें सन्देह नहीं । कलियुगमें कीर्तनका बड़ा भारी माहात्म्य है। कलियुग भगवन्नामकी ऋतु है। भगवन्नाम-कीर्तनसे सद्भाव पैदा होते हैं।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १५४ - १५५