नामजप सभी प्रकारके योगियोंके लिये आवश्यक है।- सत्संगके फूल ८०
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सत्संगके फूल ८०··
कोई अपना उद्धार करना चाहता है, पर उसको कर्मयोग, ज्ञानयोग अथवा भक्तियोगका बोध नहीं है, उसके लिये भगवन्नामका जप श्रेष्ठ है। भगवन्नामके जपसे तीनों योग सिद्ध हो जाते हैं।
||श्रीहरि:||
कोई अपना उद्धार करना चाहता है, पर उसको कर्मयोग, ज्ञानयोग अथवा भक्तियोगका बोध नहीं है, उसके लिये भगवन्नामका जप श्रेष्ठ है। भगवन्नामके जपसे तीनों योग सिद्ध हो जाते हैं।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०८
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०८··
कलियुगमें नामकी महिमा अधिक है। कारण कि जब किसी तरहकी कोई योग्यता नहीं होती, तब पुकार होती है। नामजप एक पुकार है । सब तरहसे अयोग्य बालक पुकारता है।
||श्रीहरि:||
कलियुगमें नामकी महिमा अधिक है। कारण कि जब किसी तरहकी कोई योग्यता नहीं होती, तब पुकार होती है। नामजप एक पुकार है । सब तरहसे अयोग्य बालक पुकारता है।- सत्संगके फूल १०९
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सत्संगके फूल १०९··
यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत आदि तो क्रियाएँ हैं, पर भगवन्नामका जप क्रिया नहीं है, प्रत्युत पुकार है।
||श्रीहरि:||
यज्ञ, दान, तप, तीर्थ, व्रत आदि तो क्रियाएँ हैं, पर भगवन्नामका जप क्रिया नहीं है, प्रत्युत पुकार है।- सत्यकी खोज ७२
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सत्यकी खोज ७२··
मन लगे चाहे न लगे, नामजपको मत छोड़ो । नाममें इतनी शक्ति है कि मन भी लगा देगा।
||श्रीहरि:||
मन लगे चाहे न लगे, नामजपको मत छोड़ो । नाममें इतनी शक्ति है कि मन भी लगा देगा।- सत्संगके फूल १५०
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सत्संगके फूल १५०··
कोई पूछे तो कह दो, आपको पूछना हो तो कह दो और बिना पूछे कुछ कहनेकी मनमें आये तो कह दो - इन तीनोंके सिवाय कुछ मत बोलो और नामजप करते रहो।
||श्रीहरि:||
कोई पूछे तो कह दो, आपको पूछना हो तो कह दो और बिना पूछे कुछ कहनेकी मनमें आये तो कह दो - इन तीनोंके सिवाय कुछ मत बोलो और नामजप करते रहो।- सत्संगके फूल १५०
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सत्संगके फूल १५०··
प्रेम कम हो तो साढ़े तीन करोड़ जप करनेसे भी दर्शन नहीं होते और प्रेम अधिक हो तो इससे कम जप करनेसे भी दर्शन जाते हैं। संख्या इसलिये बतायी जाती है कि आलस्य- प्रमाद न हो।
||श्रीहरि:||
प्रेम कम हो तो साढ़े तीन करोड़ जप करनेसे भी दर्शन नहीं होते और प्रेम अधिक हो तो इससे कम जप करनेसे भी दर्शन जाते हैं। संख्या इसलिये बतायी जाती है कि आलस्य- प्रमाद न हो।- प्रश्नोत्तरमणिमाला १२२
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प्रश्नोत्तरमणिमाला १२२··
यदि उद्देश्य तेज हो और अपने बलका सहारा न हो तो एक नामसे ही भगवत्प्राप्ति हो सकती है— 'निरबल है बलराम पुकारयो आये आधे नाम।
||श्रीहरि:||
यदि उद्देश्य तेज हो और अपने बलका सहारा न हो तो एक नामसे ही भगवत्प्राप्ति हो सकती है— 'निरबल है बलराम पुकारयो आये आधे नाम।- प्रश्नोत्तरमणिमाला १२२
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प्रश्नोत्तरमणिमाला १२२··
संख्या (क्रिया) की तरफ वृत्ति रहनेसे निर्जीव (निष्प्राण ) जप होता है और भगवान्की तरफ वृत्ति रहनेसे सजीव (सप्राण) जप होता है। अतः नामीमें प्रेम होना चाहिये और 'हमारे प्यारेका नाम है ' – इसको लेकर नाम-जप करना चाहिये।
||श्रीहरि:||
संख्या (क्रिया) की तरफ वृत्ति रहनेसे निर्जीव (निष्प्राण ) जप होता है और भगवान्की तरफ वृत्ति रहनेसे सजीव (सप्राण) जप होता है। अतः नामीमें प्रेम होना चाहिये और 'हमारे प्यारेका नाम है ' – इसको लेकर नाम-जप करना चाहिये।- प्रश्नोत्तरमणिमाला १२२
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प्रश्नोत्तरमणिमाला १२२··
तत्परतापूर्वक, लगनसे नामजप करो तो कुछ वर्षोंमें, दस-बारह - पन्द्रह वर्षोंमें भगवत्प्राप्ति हो सकती है । पर कोरी माला फेरते रहोगे तो उम्रभर फेरते रहो, लाभ नहीं दीखेगा। जबतक जड़ पदार्थोंमें रस लेते रहोगे, तबतक नामकी सिद्धि नहीं होगी।
||श्रीहरि:||
तत्परतापूर्वक, लगनसे नामजप करो तो कुछ वर्षोंमें, दस-बारह - पन्द्रह वर्षोंमें भगवत्प्राप्ति हो सकती है । पर कोरी माला फेरते रहोगे तो उम्रभर फेरते रहो, लाभ नहीं दीखेगा। जबतक जड़ पदार्थोंमें रस लेते रहोगे, तबतक नामकी सिद्धि नहीं होगी।- ज्ञानके दीप जले १०१
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ज्ञानके दीप जले १०१··
भगवान्के अमुक नामका जप करनेसे कल्याण होगा - यह बात है ही नहीं। नाम कोई भी जपो, मन भगवान् में तल्लीन होना चाहिये।
||श्रीहरि:||
भगवान्के अमुक नामका जप करनेसे कल्याण होगा - यह बात है ही नहीं। नाम कोई भी जपो, मन भगवान् में तल्लीन होना चाहिये।- ज्ञानके दीप जले १४०
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ज्ञानके दीप जले १४०··
जिसमें श्रद्धा - विश्वास हैं, उसी साधनसे कल्याण होगा। जबर्दस्ती करनेसे कल्याण नहीं होता । भगवान् के अनन्त नाम हैं, पर जिस नाममें श्रद्धा विश्वास है, वही नाम हमारे लिये श्रेष्ठ है। नाम छोटा-बड़ा नहीं होता।
||श्रीहरि:||
जिसमें श्रद्धा - विश्वास हैं, उसी साधनसे कल्याण होगा। जबर्दस्ती करनेसे कल्याण नहीं होता । भगवान् के अनन्त नाम हैं, पर जिस नाममें श्रद्धा विश्वास है, वही नाम हमारे लिये श्रेष्ठ है। नाम छोटा-बड़ा नहीं होता।- स्वातिकी बूँदें १८६
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स्वातिकी बूँदें १८६··
भगवान्का कौन-सा नाम और रूप बढ़िया है - यह परीक्षा न करके साधकको अपनी परीक्षा करनी चाहिये कि मुझे कौन सा नाम और रूप अधिक प्रिय है।
||श्रीहरि:||
भगवान्का कौन-सा नाम और रूप बढ़िया है - यह परीक्षा न करके साधकको अपनी परीक्षा करनी चाहिये कि मुझे कौन सा नाम और रूप अधिक प्रिय है।- अमृत-बिन्दु ३६
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अमृत-बिन्दु ३६··
गीता, रामायण - जैसे ग्रन्थ रहते हुए भगवान्का नाम रहते हुए हम दुःख पायें - यह आश्चर्यकी बात है।
||श्रीहरि:||
गीता, रामायण - जैसे ग्रन्थ रहते हुए भगवान्का नाम रहते हुए हम दुःख पायें - यह आश्चर्यकी बात है।- सत्संगके फूल ११६
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सत्संगके फूल ११६··
भगवन्नाम अशुद्ध अवस्थामें भी लेना चाहिये, नहीं तो मनुष्य बीमारीकी अवस्थामें अशुद्ध रहनेसे भगवन्नाम नहीं लेगा तो सद्गति कैसे होगी ? अन्तकालमें भगवान्का चिन्तन कैसे होगा ?
||श्रीहरि:||
भगवन्नाम अशुद्ध अवस्थामें भी लेना चाहिये, नहीं तो मनुष्य बीमारीकी अवस्थामें अशुद्ध रहनेसे भगवन्नाम नहीं लेगा तो सद्गति कैसे होगी ? अन्तकालमें भगवान्का चिन्तन कैसे होगा ?- सत्संगके फूल १२१
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सत्संगके फूल १२१··
भगवन्नामके पीछे भगवान्को आना पड़ता है- यह नियम है । परन्तु भगवान् के पीछे नाम आ जाय - यह नियम नहीं है। भगवन्नाम सबके लिये खुला है और जीभ अपने मुखमें है, फिर बाधा किस बातकी ?
||श्रीहरि:||
भगवन्नामके पीछे भगवान्को आना पड़ता है- यह नियम है । परन्तु भगवान् के पीछे नाम आ जाय - यह नियम नहीं है। भगवन्नाम सबके लिये खुला है और जीभ अपने मुखमें है, फिर बाधा किस बातकी ?- सागरके मोती ७२
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सागरके मोती ७२··
नामजपसे प्रारब्ध बदल जाता है, अच्छे सन्त- महापुरुष मिल जाते हैं, भगवान् मिल जाते हैं। 'राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट'। रामनामकी लूट अपने ही धनकी लूट है, पराये धनकी नहीं। उसपर हमारा पूरा अधिकार है। लूटका अर्थ है - मुफ्तमें चाहे जितना ले लो। यह किसी गुरुके अधीन नहीं है।
||श्रीहरि:||
नामजपसे प्रारब्ध बदल जाता है, अच्छे सन्त- महापुरुष मिल जाते हैं, भगवान् मिल जाते हैं। 'राम नाम की लूट है, लूट सके तो लूट'। रामनामकी लूट अपने ही धनकी लूट है, पराये धनकी नहीं। उसपर हमारा पूरा अधिकार है। लूटका अर्थ है - मुफ्तमें चाहे जितना ले लो। यह किसी गुरुके अधीन नहीं है।- सागरके मोती १०४
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सागरके मोती १०४··
यह दुःख और आश्चर्यकी बात है कि वर्तमानमें लोग लखपतिको तो श्रेष्ठ मान लेते हैं, पर प्रतिदिन भगवन्नामका लाख जप करनेवालेको श्रेष्ठ नहीं मानते। वे यह विचार ही नहीं करते कि लखपतिके मरनेपर एक कौड़ी भी साथ नहीं जायगी, जबकि भगवन्नामका जप करनेवालेके मरनेपर पूरा का पूरा भगवन्नामरूप धन उसके साथ जायगा, एक भी भगवन्नाम पीछे नहीं रहेगा।
||श्रीहरि:||
यह दुःख और आश्चर्यकी बात है कि वर्तमानमें लोग लखपतिको तो श्रेष्ठ मान लेते हैं, पर प्रतिदिन भगवन्नामका लाख जप करनेवालेको श्रेष्ठ नहीं मानते। वे यह विचार ही नहीं करते कि लखपतिके मरनेपर एक कौड़ी भी साथ नहीं जायगी, जबकि भगवन्नामका जप करनेवालेके मरनेपर पूरा का पूरा भगवन्नामरूप धन उसके साथ जायगा, एक भी भगवन्नाम पीछे नहीं रहेगा।- साधक संजीवनी ३ । २१ वि०
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साधक संजीवनी ३ । २१ वि०··
प्रायः लोग कह दिया करते हैं कि नाम जप करते समय भगवान्में मन नहीं लगा तो नाम- जप करना व्यर्थ है।........नाम जप कभी व्यर्थ हो ही नहीं सकता; क्योंकि भगवान् के प्रति कुछ- न-कुछ भाव रहनेसे ही नाम-जप होता है। भावके बिना नाम-जपमें प्रवृत्ति ही नहीं होती । अतः नाम-जपका किसी भी अवस्थामें त्याग नहीं करना चाहिये।
||श्रीहरि:||
प्रायः लोग कह दिया करते हैं कि नाम जप करते समय भगवान्में मन नहीं लगा तो नाम- जप करना व्यर्थ है।........नाम जप कभी व्यर्थ हो ही नहीं सकता; क्योंकि भगवान् के प्रति कुछ- न-कुछ भाव रहनेसे ही नाम-जप होता है। भावके बिना नाम-जपमें प्रवृत्ति ही नहीं होती । अतः नाम-जपका किसी भी अवस्थामें त्याग नहीं करना चाहिये।- साधक संजीवनी ३ । २६
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साधक संजीवनी ३ । २६··
जो यह कहा गया है कि 'मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं' इसका भी यही अर्थ है कि मन न लगनेसे यह 'सुमिरन' ( स्मरण) नहीं है, 'जप' तो है ही। हाँ, मन लगाकर ध्यानपूर्वक नाम-जप करनेसे बहुत जल्दी लाभ होता है।
||श्रीहरि:||
जो यह कहा गया है कि 'मनुवाँ तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं' इसका भी यही अर्थ है कि मन न लगनेसे यह 'सुमिरन' ( स्मरण) नहीं है, 'जप' तो है ही। हाँ, मन लगाकर ध्यानपूर्वक नाम-जप करनेसे बहुत जल्दी लाभ होता है।- साधक संजीवनी ३।२६
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साधक संजीवनी ३।२६··
होहि राम को नाम जपु नाम जपनेसे लाभ होगा, पर भगवान्का होकर नाम जपना और तरहका होता है। कोई बालक रोता है तो हरेकको दया आती है, पर माँ-माँ कहकर रोता है तो माँकी ताकत नहीं कि बैठी रहे। उसको उठकर जाना ही पड़ता है। बालक रोता है तो सब माँ नहीं दौड़तीं वही दौड़ती है, जिसको वह कहता है। इसी तरह रामजीका होकर रामजीका भजन करनेसे रामजीको दौड़ना ही पड़ता है।
||श्रीहरि:||
होहि राम को नाम जपु नाम जपनेसे लाभ होगा, पर भगवान्का होकर नाम जपना और तरहका होता है। कोई बालक रोता है तो हरेकको दया आती है, पर माँ-माँ कहकर रोता है तो माँकी ताकत नहीं कि बैठी रहे। उसको उठकर जाना ही पड़ता है। बालक रोता है तो सब माँ नहीं दौड़तीं वही दौड़ती है, जिसको वह कहता है। इसी तरह रामजीका होकर रामजीका भजन करनेसे रामजीको दौड़ना ही पड़ता है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १९३
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १९३··
नामजप करना और प्राणायाम करना- दोनोंमें बड़ा भारी फर्क है। नामजप तो कल्याण करनेवाला है, पर प्राणायाम कल्याण करनेवाला नहीं है। नामजपमें तो भगवान् के साथ सम्बन्ध है, पर प्राणायाममें केवल जड़ताका सम्बन्ध है। नामजप उपासना है, पर प्राणायाममें केवल जड़ताका सहारा है। जड़ता के सहारेसे कल्याण कैसे होगा ? नहीं होगा। यद्यपि जीभसे नामजप करना भी जड़ता है, पर उसमें सम्बन्ध भगवान्का है। भगवान्का सम्बन्ध तो दृढ़ होना चाहिये, पर जड़ताका सम्बन्ध छूटना चाहिये। भगवत्प्राप्तिमें भगवान्का सम्बन्ध कारण होगा, जड़ता कारण नहीं होगी।
||श्रीहरि:||
नामजप करना और प्राणायाम करना- दोनोंमें बड़ा भारी फर्क है। नामजप तो कल्याण करनेवाला है, पर प्राणायाम कल्याण करनेवाला नहीं है। नामजपमें तो भगवान् के साथ सम्बन्ध है, पर प्राणायाममें केवल जड़ताका सम्बन्ध है। नामजप उपासना है, पर प्राणायाममें केवल जड़ताका सहारा है। जड़ता के सहारेसे कल्याण कैसे होगा ? नहीं होगा। यद्यपि जीभसे नामजप करना भी जड़ता है, पर उसमें सम्बन्ध भगवान्का है। भगवान्का सम्बन्ध तो दृढ़ होना चाहिये, पर जड़ताका सम्बन्ध छूटना चाहिये। भगवत्प्राप्तिमें भगवान्का सम्बन्ध कारण होगा, जड़ता कारण नहीं होगी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०३ - २०४
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०३ - २०४··
नामजपमें नामी (जिनका नाम है, उन भगवान्) की मुख्यता है, नामकी मुख्यता नहीं है। नामजप पुकार है। पुकारके साथ-साथ हृदयमें भगवत्प्राप्तिकी लगन भी हो तो बहुत लाभ होगा।
||श्रीहरि:||
नामजपमें नामी (जिनका नाम है, उन भगवान्) की मुख्यता है, नामकी मुख्यता नहीं है। नामजप पुकार है। पुकारके साथ-साथ हृदयमें भगवत्प्राप्तिकी लगन भी हो तो बहुत लाभ होगा।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०४
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २०४··
नामजपमें संख्या देखना उचित नहीं है। जिन भगवान् ने हमें अनगिनत चीजें दी हैं, उनका नाम हम गिनकर लें। गिनती इसलिये रखो कि हमारा नामजप कम न हो जाय। भगवान् गिनतीसे नहीं मिलते, प्रेमसे मिलते हैं।
||श्रीहरि:||
नामजपमें संख्या देखना उचित नहीं है। जिन भगवान् ने हमें अनगिनत चीजें दी हैं, उनका नाम हम गिनकर लें। गिनती इसलिये रखो कि हमारा नामजप कम न हो जाय। भगवान् गिनतीसे नहीं मिलते, प्रेमसे मिलते हैं।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २११
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २११··
नामजपकी बड़ी महिमा है, पर वह महिमा नामजप करनेसे ही समझमें आती है।
||श्रीहरि:||
नामजपकी बड़ी महिमा है, पर वह महिमा नामजप करनेसे ही समझमें आती है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १३··
नामजपकी लगन लगेगी नामजप करनेसे बीड़ी-सिगरेट पीनेसे उसका व्यसन लग जाता है। पहले वह बुरी लगती है, पर पीना शुरू कर दे तो फिर उसके बिना रहा नहीं जाता। ऐसे ही आप रात-दिन नामजपमें लग जाओ तो फिर नामजपके बिना रहा नहीं जायगा।
||श्रीहरि:||
नामजपकी लगन लगेगी नामजप करनेसे बीड़ी-सिगरेट पीनेसे उसका व्यसन लग जाता है। पहले वह बुरी लगती है, पर पीना शुरू कर दे तो फिर उसके बिना रहा नहीं जाता। ऐसे ही आप रात-दिन नामजपमें लग जाओ तो फिर नामजपके बिना रहा नहीं जायगा।- ईसवर अंस जीव अबिनासी १११
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
ईसवर अंस जीव अबिनासी १११··
राम-नाम लेनेमें है सस्ता और बिकता है महँगा। राम नाम लेनेमें जितना समय सत्ययुगमें लगता था, उतना ही समय अब भी लगता है, पर बिकता है कलियुगकी कीमतपर। अन्य युगों की अपेक्षा कलियुगमें नामकी कीमत अधिक है।
||श्रीहरि:||
राम-नाम लेनेमें है सस्ता और बिकता है महँगा। राम नाम लेनेमें जितना समय सत्ययुगमें लगता था, उतना ही समय अब भी लगता है, पर बिकता है कलियुगकी कीमतपर। अन्य युगों की अपेक्षा कलियुगमें नामकी कीमत अधिक है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६९
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६९··
वर्तमानमें नामजपकी ऋतु आयी हुई है । वर्षाऋतुमें खेती बढ़िया होती है। नामजप सस्ता मिलता है, मँहगा बिकता है। नामजपमें समय तो सत्ययुगके अनुसार लगता है, पर फल मिलता है कलियुगके अनुसार। आप नामजपका स्वभाव बना लें।
||श्रीहरि:||
वर्तमानमें नामजपकी ऋतु आयी हुई है । वर्षाऋतुमें खेती बढ़िया होती है। नामजप सस्ता मिलता है, मँहगा बिकता है। नामजपमें समय तो सत्ययुगके अनुसार लगता है, पर फल मिलता है कलियुगके अनुसार। आप नामजपका स्वभाव बना लें।- स्वातिकी बूँदें १४५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें १४५··
छोटा बालक माँ-माँ करता है तो उसका लक्ष्य, ध्यान, विश्वास 'माँ' शब्दपर नहीं होता, प्रत्युत माँके सम्बन्धपर होता है। ताकत 'माँ' शब्दमें नहीं है, प्रत्युत माँके सम्बन्धमें है । इसी तरह जो ताकत भगवान् के सम्बन्धमें है, वह नाममें नहीं है। बालक माँ-माँ करके रोता है तो यह नहीं देखता कि कितनी बार माँ-माँ कहना है, कितने मिनटतक रोना है।
||श्रीहरि:||
छोटा बालक माँ-माँ करता है तो उसका लक्ष्य, ध्यान, विश्वास 'माँ' शब्दपर नहीं होता, प्रत्युत माँके सम्बन्धपर होता है। ताकत 'माँ' शब्दमें नहीं है, प्रत्युत माँके सम्बन्धमें है । इसी तरह जो ताकत भगवान् के सम्बन्धमें है, वह नाममें नहीं है। बालक माँ-माँ करके रोता है तो यह नहीं देखता कि कितनी बार माँ-माँ कहना है, कितने मिनटतक रोना है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०··
नामजपमें सार चीज नामी (भगवान्) का सम्बन्ध है । भगवान् के साथ जितना सम्बन्ध होगा, उतनी जल्दी सिद्धि होगी। भगवान्का सम्बन्ध सच्चा है, क्रियाका सम्बन्ध कच्चा है। ताकत सम्बन्ध (मेरापन ) - में है।
||श्रीहरि:||
नामजपमें सार चीज नामी (भगवान्) का सम्बन्ध है । भगवान् के साथ जितना सम्बन्ध होगा, उतनी जल्दी सिद्धि होगी। भगवान्का सम्बन्ध सच्चा है, क्रियाका सम्बन्ध कच्चा है। ताकत सम्बन्ध (मेरापन ) - में है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४०··
लोग इधर-उधर रोटी माँगते फिरते हैं, फिर भी पेट नहीं भरता और दुःख पाते हैं। वे यदि बैठकर राम-राम करने लग जायँ तो उन्हें रोटी, कपड़े आदिकी कमी नहीं रहेगी। आरम्भमें कुछ दिन तकलीफ भोगनी पड़ेगी, फिर अन्न आदिका ढेर लग जायगा, कइयोंका पेट भरने लगेगा।
||श्रीहरि:||
लोग इधर-उधर रोटी माँगते फिरते हैं, फिर भी पेट नहीं भरता और दुःख पाते हैं। वे यदि बैठकर राम-राम करने लग जायँ तो उन्हें रोटी, कपड़े आदिकी कमी नहीं रहेगी। आरम्भमें कुछ दिन तकलीफ भोगनी पड़ेगी, फिर अन्न आदिका ढेर लग जायगा, कइयोंका पेट भरने लगेगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १७५ - १७६
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १७५ - १७६··
भगवान्के नाममें प्रियता होनी चाहिये। नाममें मिठास आनेसे जो लाभ होता है, पापोंका नाश होता है, वह केवल गिनतीसे नहीं होता।
||श्रीहरि:||
भगवान्के नाममें प्रियता होनी चाहिये। नाममें मिठास आनेसे जो लाभ होता है, पापोंका नाश होता है, वह केवल गिनतीसे नहीं होता।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०२ - १०३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०२ - १०३··
भगवान्के नामका जप करनेसे ध्यान करनेसे, चिन्तन करनेसे दुनियाका बड़ा भारी भला होता है।
||श्रीहरि:||
भगवान्के नामका जप करनेसे ध्यान करनेसे, चिन्तन करनेसे दुनियाका बड़ा भारी भला होता है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६··
प्रत्यक्ष बात है कि आम नींबू आदिके आचारका नाम लेनेका इतना असर पड़ता है कि मुँह में पानी आ जाता है। ऐसे ही भगवन्नाम लेनेका बहुत विलक्षण असर पड़ता है।
||श्रीहरि:||
प्रत्यक्ष बात है कि आम नींबू आदिके आचारका नाम लेनेका इतना असर पड़ता है कि मुँह में पानी आ जाता है। ऐसे ही भगवन्नाम लेनेका बहुत विलक्षण असर पड़ता है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६ - १०७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०६ - १०७··
भीतरके भावसे परमात्माकी प्राप्ति होती है। क्या टेपरिकार्डर लगानेसे परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ? नामजपमें ऊपरसे तो क्रिया है, पर भीतरमें भाव है। साधक जप करता है तो भावसे करता है। वह भाव कल्याण करता है।
||श्रीहरि:||
भीतरके भावसे परमात्माकी प्राप्ति होती है। क्या टेपरिकार्डर लगानेसे परमात्माकी प्राप्ति हो जायगी ? नामजपमें ऊपरसे तो क्रिया है, पर भीतरमें भाव है। साधक जप करता है तो भावसे करता है। वह भाव कल्याण करता है।- अनन्तकी ओर १७९
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अनन्तकी ओर १७९··
नाम-जप करनेकी अपेक्षा नाम लिखना ज्यादा बढ़िया है। कारण कि लिखनेमें मन ज्यादा लगता है । जितना ज्यादा मन लगता है, उतनी ही उपासना तेज होती है।
||श्रीहरि:||
नाम-जप करनेकी अपेक्षा नाम लिखना ज्यादा बढ़िया है। कारण कि लिखनेमें मन ज्यादा लगता है । जितना ज्यादा मन लगता है, उतनी ही उपासना तेज होती है।- स्वातिकी बूँदें ६३-६४
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स्वातिकी बूँदें ६३-६४··
आपलोगोंसे प्रार्थना है कि आप कोई भी काम करो तो भगवान्को याद करके करो । कुछ भी लिखो तो पहले ऊपर भगवान्का नाम लिखो। जिस पत्रके ऊपर भगवान्का नाम नहीं लिखा हो, वह मुझे बिना सिरवाले पिशाचकी तरह दीखता है। ऊपर भगवान्का नाम नहीं है तो मानो सिर नहीं है।
||श्रीहरि:||
आपलोगोंसे प्रार्थना है कि आप कोई भी काम करो तो भगवान्को याद करके करो । कुछ भी लिखो तो पहले ऊपर भगवान्का नाम लिखो। जिस पत्रके ऊपर भगवान्का नाम नहीं लिखा हो, वह मुझे बिना सिरवाले पिशाचकी तरह दीखता है। ऊपर भगवान्का नाम नहीं है तो मानो सिर नहीं है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १०३
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १०३··
प्रह्लादजीकी तरह एक नामजपमें लग जायँ तो कोई मन्त्र, तन्त्र, मूठ काम नहीं करता।
||श्रीहरि:||
प्रह्लादजीकी तरह एक नामजपमें लग जायँ तो कोई मन्त्र, तन्त्र, मूठ काम नहीं करता।- स्वातिकी बूँदें ७३
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स्वातिकी बूँदें ७३··
मन्त्र-जपमें विधि होती है, नामजपमें नहीं। नामजप तो पुकार है। बच्चा माँ-माँ पुकारता है, 'मात्र्यै नमः' नहीं कहता। डाकू लूटते हों तो पुकारते हैं कि जप करते हैं? पुकारमें विधि नहीं होती, भाव होता है।
||श्रीहरि:||
मन्त्र-जपमें विधि होती है, नामजपमें नहीं। नामजप तो पुकार है। बच्चा माँ-माँ पुकारता है, 'मात्र्यै नमः' नहीं कहता। डाकू लूटते हों तो पुकारते हैं कि जप करते हैं? पुकारमें विधि नहीं होती, भाव होता है।- स्वातिकी बूँदें १६३
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स्वातिकी बूँदें १६३··
हम सब कल्पवृक्षके नीचे हैं। कोई कहे कि राम-राम करनेसे कुछ नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा। सब कुछ होगा तो सब कुछ हो जायगा।
||श्रीहरि:||
हम सब कल्पवृक्षके नीचे हैं। कोई कहे कि राम-राम करनेसे कुछ नहीं होगा तो कुछ नहीं होगा। सब कुछ होगा तो सब कुछ हो जायगा।- सत्संगके फूल ९८
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सत्संगके फूल ९८··
अपना एक ही इष्ट और एक ही मन्त्र रखना चाहिये। दूसरे मन्त्रकी महिमा सुनकर अपने मन्त्रको मत बदलो। कोई कुछ भी कहे, लोभमें मत पड़ो। भगवान्के जिस नाममें आपकी श्रद्धा हो, जो नाम आपको प्यारा लगे, उसीको जपनेसे आपको लाभ होगा। भगवान्के किसी भी नाममें कम शक्ति नहीं है। सब नाम कल्याण करनेवाले हैं।
||श्रीहरि:||
अपना एक ही इष्ट और एक ही मन्त्र रखना चाहिये। दूसरे मन्त्रकी महिमा सुनकर अपने मन्त्रको मत बदलो। कोई कुछ भी कहे, लोभमें मत पड़ो। भगवान्के जिस नाममें आपकी श्रद्धा हो, जो नाम आपको प्यारा लगे, उसीको जपनेसे आपको लाभ होगा। भगवान्के किसी भी नाममें कम शक्ति नहीं है। सब नाम कल्याण करनेवाले हैं।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ६७
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ६७··
नामजप अभ्यास नहीं है, प्रत्युत पुकार है। अभ्यासमें शरीर - इन्द्रियाँ - मनकी और पुकारमें स्वयंकी प्रधानता रहती है।
||श्रीहरि:||
नामजप अभ्यास नहीं है, प्रत्युत पुकार है। अभ्यासमें शरीर - इन्द्रियाँ - मनकी और पुकारमें स्वयंकी प्रधानता रहती है।- अमृत-बिन्दु २४६
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अमृत-बिन्दु २४६··
ज्ञानमार्गमें 'ॐ' का जप होता है। योगमार्गमें 'सोऽहम्' का जप होता है। भक्तिमार्गमें 'राम- राम' आदि भगवन्नामका जप होता है। गुरुके नामका जप नहीं होता, प्रत्युत आज्ञा-पालन होता है।
||श्रीहरि:||
ज्ञानमार्गमें 'ॐ' का जप होता है। योगमार्गमें 'सोऽहम्' का जप होता है। भक्तिमार्गमें 'राम- राम' आदि भगवन्नामका जप होता है। गुरुके नामका जप नहीं होता, प्रत्युत आज्ञा-पालन होता है।- स्वातिकी बूँदें ३६