बालक जन्मता है तो वह बड़ा होगा कि नहीं, पढ़ेगा कि नहीं, उसका विवाह होगा कि नहीं, उसके बाल-बच्चे होंगे कि नहीं, उसके पास धन होगा कि नहीं आदि सब बातोंमें सन्देह है, पर वह मरेगा कि नहीं इसमें कोई सन्देह नहीं है।
||श्रीहरि:||
बालक जन्मता है तो वह बड़ा होगा कि नहीं, पढ़ेगा कि नहीं, उसका विवाह होगा कि नहीं, उसके बाल-बच्चे होंगे कि नहीं, उसके पास धन होगा कि नहीं आदि सब बातोंमें सन्देह है, पर वह मरेगा कि नहीं इसमें कोई सन्देह नहीं है।- अमृत-बिन्दु १७८
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु १७८··
शरीर - निर्वाहके लिये तो चिन्ता (विचार) करनेकी जरूरत ही नहीं है, पर शरीर छूटनेके बाद क्या होगा - इसके लिये चिन्ता करनेकी बहुत जरूरत है।
||श्रीहरि:||
शरीर - निर्वाहके लिये तो चिन्ता (विचार) करनेकी जरूरत ही नहीं है, पर शरीर छूटनेके बाद क्या होगा - इसके लिये चिन्ता करनेकी बहुत जरूरत है।- अमृत-बिन्दु १५७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु १५७··
मनुष्य भविष्यके लिये अन्न, धन आदिकी चिन्ता करता है। वास्तवमें मृत्युके बादकी चिन्ता करनी चाहिये। इस लोक में तो अपने निर्वाहके लिये कर्जा भी ले लेंगे, पर परलोकमें क्या करेंगे ?
||श्रीहरि:||
मनुष्य भविष्यके लिये अन्न, धन आदिकी चिन्ता करता है। वास्तवमें मृत्युके बादकी चिन्ता करनी चाहिये। इस लोक में तो अपने निर्वाहके लिये कर्जा भी ले लेंगे, पर परलोकमें क्या करेंगे ?- ज्ञानके दीप जले ६१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
ज्ञानके दीप जले ६१··
मृत्युकालकी सब सामग्री तैयार है। कफन भी तैयार है, नया नहीं बनाना पड़ेगा। उठानेवाले आदमी भी तैयार हैं, नये नहीं जन्मेंगे। जलानेकी जगह भी तैयार है, नयी नहीं लेनी पड़ेगी । जलाने के लिये लकड़ी भी तैयार है, नये वृक्ष नहीं लगाने पड़ेंगे। केवल श्वास बन्द होनेकी देर है। श्वास बन्द होते ही यह सब सामग्री जुट जायगी । फिर निश्चिन्त कैसे बैठे हो ?
||श्रीहरि:||
मृत्युकालकी सब सामग्री तैयार है। कफन भी तैयार है, नया नहीं बनाना पड़ेगा। उठानेवाले आदमी भी तैयार हैं, नये नहीं जन्मेंगे। जलानेकी जगह भी तैयार है, नयी नहीं लेनी पड़ेगी । जलाने के लिये लकड़ी भी तैयार है, नये वृक्ष नहीं लगाने पड़ेंगे। केवल श्वास बन्द होनेकी देर है। श्वास बन्द होते ही यह सब सामग्री जुट जायगी । फिर निश्चिन्त कैसे बैठे हो ?- अमृत-बिन्दु १६७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु १६७··
करेंगे' – यह निश्चित नहीं है, पर 'मरेंगे' - यह निश्चित है।
||श्रीहरि:||
करेंगे' – यह निश्चित नहीं है, पर 'मरेंगे' - यह निश्चित है।- अमृत-बिन्दु १७२
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु १७२··
मकान यहाँ बना रहे हो, सजावट यहाँ कर रहे हो, संग्रह यहाँ कर रहे हो, पर खुद मौतकी तरफ भागे चले जा रहे हो। जहाँ जाना है, पहले उसको ठीक करो।
||श्रीहरि:||
मकान यहाँ बना रहे हो, सजावट यहाँ कर रहे हो, संग्रह यहाँ कर रहे हो, पर खुद मौतकी तरफ भागे चले जा रहे हो। जहाँ जाना है, पहले उसको ठीक करो।- अमृत-बिन्दु १७०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु १७०··
जन्मदिन आनेपर बड़ा आनन्द मनाते हैं कि हम इतने वर्षके हो गये। वास्तवमें इतने वर्षके हो नहीं गये, प्रत्युत इतने वर्ष मर गये अर्थात् हमारी उम्रमेंसे इतने वर्ष कम हो गये और मौत नजदीक आ गयी।
||श्रीहरि:||
जन्मदिन आनेपर बड़ा आनन्द मनाते हैं कि हम इतने वर्षके हो गये। वास्तवमें इतने वर्षके हो नहीं गये, प्रत्युत इतने वर्ष मर गये अर्थात् हमारी उम्रमेंसे इतने वर्ष कम हो गये और मौत नजदीक आ गयी।- अमृत-बिन्दु १७७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु १७७··
जैसे बालकसे जवान और जवानसे बूढ़ा होनेमें कोई कष्ट नहीं होता, ऐसे ही मृत्युके समय भी वास्तवमें कोई कष्ट नहीं होता। कष्ट उसीको होता है, जिसमें यह इच्छा है कि मैं जीता रहूँ । तात्पर्य है कि जिसका शरीरमें मोह है, उसीको मृत्युके समय हजारों बिच्छू एक साथ काटने के समान कष्ट होता है। शरीरमें जितना मोह आसक्ति, ममता होगी तथा जीनेकी इच्छा जितनी अधिक होगी, उतना ही शरीर छूटनेपर अधिक दुःख होगा।
||श्रीहरि:||
जैसे बालकसे जवान और जवानसे बूढ़ा होनेमें कोई कष्ट नहीं होता, ऐसे ही मृत्युके समय भी वास्तवमें कोई कष्ट नहीं होता। कष्ट उसीको होता है, जिसमें यह इच्छा है कि मैं जीता रहूँ । तात्पर्य है कि जिसका शरीरमें मोह है, उसीको मृत्युके समय हजारों बिच्छू एक साथ काटने के समान कष्ट होता है। शरीरमें जितना मोह आसक्ति, ममता होगी तथा जीनेकी इच्छा जितनी अधिक होगी, उतना ही शरीर छूटनेपर अधिक दुःख होगा।- प्रश्नोत्तरमणिमाला २७५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
प्रश्नोत्तरमणिमाला २७५··
अस्पतालमें मरनेवालेकी प्राय: सद्गति नहीं होती । अतः मरणासन्न व्यक्ति यदि अस्पतालमें भरती हो तो उसे घरपर ले आना चाहिये । अस्पतालमें उसके प्राण न जायँ ऐसी चेष्टा घरवालोंको जरूर करनी चाहिये।
||श्रीहरि:||
अस्पतालमें मरनेवालेकी प्राय: सद्गति नहीं होती । अतः मरणासन्न व्यक्ति यदि अस्पतालमें भरती हो तो उसे घरपर ले आना चाहिये । अस्पतालमें उसके प्राण न जायँ ऐसी चेष्टा घरवालोंको जरूर करनी चाहिये।- ज्ञानकी पगडण्डियाँ ५३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
ज्ञानकी पगडण्डियाँ ५३··
मृत्युके समय एक पीड़ा होती है और एक दुःख होता है। पीड़ा शरीरमें और दुःख मनमें होता है। जिस मनुष्यमें वैराग्य होता है, उसको पीड़ाका अनुभव तो होता है, पर दुःख नहीं होता । हाँ, देहमें आसक्त मनुष्यको जैसी भयंकर पीड़ाका अनुभव होता है, वैसा अनुभव वैराग्यवान् मनुष्यको नहीं होता। परन्तु जिसको बोध और प्रेमकी प्राप्ति हो गयी है, उस तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त तथा भगवत्प्रेमी महापुरुषको पीड़ाका भी अनुभव नहीं होता।
||श्रीहरि:||
मृत्युके समय एक पीड़ा होती है और एक दुःख होता है। पीड़ा शरीरमें और दुःख मनमें होता है। जिस मनुष्यमें वैराग्य होता है, उसको पीड़ाका अनुभव तो होता है, पर दुःख नहीं होता । हाँ, देहमें आसक्त मनुष्यको जैसी भयंकर पीड़ाका अनुभव होता है, वैसा अनुभव वैराग्यवान् मनुष्यको नहीं होता। परन्तु जिसको बोध और प्रेमकी प्राप्ति हो गयी है, उस तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त तथा भगवत्प्रेमी महापुरुषको पीड़ाका भी अनुभव नहीं होता।- साधन-सुधा-सिन्धु ७८६ - ७८७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधन-सुधा-सिन्धु ७८६ - ७८७··
स्वरूपसे अमर होते हुए भी जब मनुष्य अपने विवेकका तिरस्कार करके मरणधर्मा शरीरके साथ तादात्म्य मान लेता है अर्थात् 'मैं शरीर हूँ' ऐसा मान लेता है, तब उसमें मृत्युका भय और अमरताकी इच्छा पैदा हो जाती है। जब वह अपने विवेकको महत्त्व देता है कि 'मैं शरीर नहीं हूँ; शरीर तो निरन्तर मृत्युमें रहता है और मैं स्वयं निरन्तर अमरतामें रहता हूँ, तब उसको अपनी स्वतःसिद्ध अमरताका अनुभव हो जाता है।
||श्रीहरि:||
स्वरूपसे अमर होते हुए भी जब मनुष्य अपने विवेकका तिरस्कार करके मरणधर्मा शरीरके साथ तादात्म्य मान लेता है अर्थात् 'मैं शरीर हूँ' ऐसा मान लेता है, तब उसमें मृत्युका भय और अमरताकी इच्छा पैदा हो जाती है। जब वह अपने विवेकको महत्त्व देता है कि 'मैं शरीर नहीं हूँ; शरीर तो निरन्तर मृत्युमें रहता है और मैं स्वयं निरन्तर अमरतामें रहता हूँ, तब उसको अपनी स्वतःसिद्ध अमरताका अनुभव हो जाता है।- साधक संजीवनी १४ । २० परि०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधक संजीवनी १४ । २० परि०··
बोध और प्रेमकी प्राप्ति होनेपर मृत्युमें भी आनन्दका अनुभव होता है। कारण कि मृत्युके समय तत्त्वज्ञ पुरुष एक शरीरमें आबद्ध न रहकर सर्वव्यापी हो जाता है और भगवत्प्रेमी पुरुष भगवान्के लोकमें, भगवान्की सेवामें पहुँच जाता है।
||श्रीहरि:||
बोध और प्रेमकी प्राप्ति होनेपर मृत्युमें भी आनन्दका अनुभव होता है। कारण कि मृत्युके समय तत्त्वज्ञ पुरुष एक शरीरमें आबद्ध न रहकर सर्वव्यापी हो जाता है और भगवत्प्रेमी पुरुष भगवान्के लोकमें, भगवान्की सेवामें पहुँच जाता है।- साधन-सुधा-सिन्धु ७८७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधन-सुधा-सिन्धु ७८७··
मृत्युसे डरे नहीं, प्रत्युत मृत्युको साक्षात् भगवान्का स्वरूप समझे कि मृत्युरूपसे साक्षात् स्वयं भगवान् आयेंगे। ‘वासुदेवः सर्वम्' – सब कुछ भगवान् ही हैं क्या मृत्यु भगवान् नहीं है?
||श्रीहरि:||
मृत्युसे डरे नहीं, प्रत्युत मृत्युको साक्षात् भगवान्का स्वरूप समझे कि मृत्युरूपसे साक्षात् स्वयं भगवान् आयेंगे। ‘वासुदेवः सर्वम्' – सब कुछ भगवान् ही हैं क्या मृत्यु भगवान् नहीं है?- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २३··
मृत्युकालमें हम जैसा चाहें, वैसा चिन्तन नहीं कर सकते, प्रत्युत हमारे भीतर जैसी वासना होगी, वैसा ही चिन्तन स्वतः होगा और उसके अनुसार ही गति होगी।
||श्रीहरि:||
मृत्युकालमें हम जैसा चाहें, वैसा चिन्तन नहीं कर सकते, प्रत्युत हमारे भीतर जैसी वासना होगी, वैसा ही चिन्तन स्वतः होगा और उसके अनुसार ही गति होगी।- साधक संजीवनी ८।६ परि
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधक संजीवनी ८।६ परि··
अभी स्मरण करते हैं, उसमें भी मन ठीक तरहसे भगवान्में नहीं लगता है, फिर अन्तकालमें जब अनेक तरहकी पीड़ा होगी, तब भगवान् में मन कैसे लगेगा ? इसलिये अभीसे सावधान रहें और भगवान्का स्मरण करें तो अन्तकालमें भी स्मरण हो सकता है।
||श्रीहरि:||
अभी स्मरण करते हैं, उसमें भी मन ठीक तरहसे भगवान्में नहीं लगता है, फिर अन्तकालमें जब अनेक तरहकी पीड़ा होगी, तब भगवान् में मन कैसे लगेगा ? इसलिये अभीसे सावधान रहें और भगवान्का स्मरण करें तो अन्तकालमें भी स्मरण हो सकता है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९६
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९६··
यदि जीवनभर भजन किया हो तो अन्तसमय में भगवान्की याद आती ही है। यदि न आये तो एक जन्म और हो सकता है, फिर मुक्ति हो जायगी। वास्तवमें अन्तसमयमें भगवान्की याद भगवान्की कृपासे आती है, अपने हाथकी बात नहीं है।
||श्रीहरि:||
यदि जीवनभर भजन किया हो तो अन्तसमय में भगवान्की याद आती ही है। यदि न आये तो एक जन्म और हो सकता है, फिर मुक्ति हो जायगी। वास्तवमें अन्तसमयमें भगवान्की याद भगवान्की कृपासे आती है, अपने हाथकी बात नहीं है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १३९
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १३९··
किसी भी मनुष्यका शरीर जाता हो तो उसको भगवान्का नाम सुनाओ। एक बातका ख्याल रखना, अगर मरनेवाला मनुष्य भगवान्का विरोधी हो, भगवन्नामसे चिढ़ता हो, सुनना नहीं चाहता हो तो उसको मत सुनाना । कारण कि उसको सुनानेसे भगवन्नामका तिरस्कार होता है। अगर मरनेवाला भगवन्नाम सुनना चाहता हो तो भले ही घरवाले सब विरोध करें, तो भी उसको भगवन्नाम सुनाओ। वे आपको तकलीफ दें तो भी उसको सह लो, पर मरनेवालेको भगवन्नाम जरूर सुनाओ।
||श्रीहरि:||
किसी भी मनुष्यका शरीर जाता हो तो उसको भगवान्का नाम सुनाओ। एक बातका ख्याल रखना, अगर मरनेवाला मनुष्य भगवान्का विरोधी हो, भगवन्नामसे चिढ़ता हो, सुनना नहीं चाहता हो तो उसको मत सुनाना । कारण कि उसको सुनानेसे भगवन्नामका तिरस्कार होता है। अगर मरनेवाला भगवन्नाम सुनना चाहता हो तो भले ही घरवाले सब विरोध करें, तो भी उसको भगवन्नाम सुनाओ। वे आपको तकलीफ दें तो भी उसको सह लो, पर मरनेवालेको भगवन्नाम जरूर सुनाओ।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३५ - १३६
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३५ - १३६··
कोई भी प्राणी मरता हो, चाहे वह बालक हो, चाहे जवान हो, चाहे बूढ़ा हो, किसी अवस्थामें हो, उसको भगवान्की याद दिलाओ। जबतक चेत हो, तबतक गीता सुनाओ, और चेत नहीं हो तो भगवन्नाम सुनाओ। चेत हो अथवा नहीं हो, दोनों अवस्थाओंमें भगवन्नाम सुना सकते हैं।
||श्रीहरि:||
कोई भी प्राणी मरता हो, चाहे वह बालक हो, चाहे जवान हो, चाहे बूढ़ा हो, किसी अवस्थामें हो, उसको भगवान्की याद दिलाओ। जबतक चेत हो, तबतक गीता सुनाओ, और चेत नहीं हो तो भगवन्नाम सुनाओ। चेत हो अथवा नहीं हो, दोनों अवस्थाओंमें भगवन्नाम सुना सकते हैं।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३६
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३६··
यदि मरणासन्न व्यक्ति बेहोश हो जाय तो भी उसको भगवन्नाम सुनाना चाहिये । प्राण होशमें जाते हैं, बेहोशी में नहीं। जिस चिन्तनमें वह बेहोश होगा, उसी चिन्तनमें होश आयेगा।
||श्रीहरि:||
यदि मरणासन्न व्यक्ति बेहोश हो जाय तो भी उसको भगवन्नाम सुनाना चाहिये । प्राण होशमें जाते हैं, बेहोशी में नहीं। जिस चिन्तनमें वह बेहोश होगा, उसी चिन्तनमें होश आयेगा।- ज्ञानके दीप जले २३५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
ज्ञानके दीप जले २३५··
परिवारमें किसीकी मृत्यु हो जाय तो तीन काम करने चाहिये - १. उसके नामसे नामजप, कीर्तन, रामायण पाठ, भागवत पाठ आदि करो, २. छोटे-छोटे गरीब बालकोंको मिठायी दो और ३. उसे भगवान् के पास देखो। ऐसा करनेसे आपको भी लाभ होगा और मृतकको भी।
||श्रीहरि:||
परिवारमें किसीकी मृत्यु हो जाय तो तीन काम करने चाहिये - १. उसके नामसे नामजप, कीर्तन, रामायण पाठ, भागवत पाठ आदि करो, २. छोटे-छोटे गरीब बालकोंको मिठायी दो और ३. उसे भगवान् के पास देखो। ऐसा करनेसे आपको भी लाभ होगा और मृतकको भी।- स्वातिकी बूँदें ७१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें ७१··
निष्कामभावसे किये गये शास्त्रविहित नारायणबलि, गयाश्राद्ध आदि प्रेतकर्मोंको तामस नहीं मानना चाहिये; क्योंकि ये तो मृत प्राणीकी सद्गतिके लिये किये जानेवाले आवश्यक कर्म हैं, जिन्हें मरे हुए प्राणीके लिये शास्त्रके आज्ञानुसार हरेकको करना चाहिये।
||श्रीहरि:||
निष्कामभावसे किये गये शास्त्रविहित नारायणबलि, गयाश्राद्ध आदि प्रेतकर्मोंको तामस नहीं मानना चाहिये; क्योंकि ये तो मृत प्राणीकी सद्गतिके लिये किये जानेवाले आवश्यक कर्म हैं, जिन्हें मरे हुए प्राणीके लिये शास्त्रके आज्ञानुसार हरेकको करना चाहिये।- साधक संजीवनी १७ । ४
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधक संजीवनी १७ । ४··
आत्महत्याको ‘अकालमृत्यु' कहते हैं। दुर्घटना आदिसे होनेवाली अन्य मृत्युको 'आकस्मिक मृत्यु' कह सकते हैं।
||श्रीहरि:||
आत्महत्याको ‘अकालमृत्यु' कहते हैं। दुर्घटना आदिसे होनेवाली अन्य मृत्युको 'आकस्मिक मृत्यु' कह सकते हैं।- स्वातिकी बूँदें १०३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें १०३··
अकाल मृत्यु अर्थात् आत्महत्या एक नया घोर पाप कर्म है, प्रारब्ध नहीं । जो आत्महत्या करता है, उसको एक मनुष्यकी हत्याका पाप लगता है, जिसका परलोकमें भयंकर दण्ड भोगना पड़ता है।
||श्रीहरि:||
अकाल मृत्यु अर्थात् आत्महत्या एक नया घोर पाप कर्म है, प्रारब्ध नहीं । जो आत्महत्या करता है, उसको एक मनुष्यकी हत्याका पाप लगता है, जिसका परलोकमें भयंकर दण्ड भोगना पड़ता है।- सत्संग-मुक्ताहार ६१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सत्संग-मुक्ताहार ६१··
आत्महत्याकी नीयत होनेमात्रसे पाप लगता है।...... आत्महत्याकी इच्छा करना भी घोर पाप है।
||श्रीहरि:||
आत्महत्याकी नीयत होनेमात्रसे पाप लगता है।...... आत्महत्याकी इच्छा करना भी घोर पाप है।- सत्संग-मुक्ताहार ६२-६३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सत्संग-मुक्ताहार ६२-६३··
भोग भोगनेकी वृत्ति अधिक होनेसे ही आत्महत्या होती है।
||श्रीहरि:||
भोग भोगनेकी वृत्ति अधिक होनेसे ही आत्महत्या होती है।- सत्संगके फूल १६९
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सत्संगके फूल १६९··
अन्तमें अकेला ही जाना पड़ेगा, इसलिये पहलेसे ही अकेला हो जाय अर्थात् वस्तु, व्यक्ति और क्रियासे असंग हो जाय इनका आश्रय न ले।
||श्रीहरि:||
अन्तमें अकेला ही जाना पड़ेगा, इसलिये पहलेसे ही अकेला हो जाय अर्थात् वस्तु, व्यक्ति और क्रियासे असंग हो जाय इनका आश्रय न ले।- अमृत-बिन्दु ९५६