आजतक जितने भी महात्मा हुए हैं, वे भगवत्कृपासे ही जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ और भगवत्प्रेमी हुए हैं, अपने उद्योगसे नहीं। इसलिये साधकको उद्योगका आश्रय न लेकर भगवत्कृपाका ही आश्रय लेना चाहिये।
||श्रीहरि:||
आजतक जितने भी महात्मा हुए हैं, वे भगवत्कृपासे ही जीवन्मुक्त, तत्त्वज्ञ और भगवत्प्रेमी हुए हैं, अपने उद्योगसे नहीं। इसलिये साधकको उद्योगका आश्रय न लेकर भगवत्कृपाका ही आश्रय लेना चाहिये।- अमरताकी ओर ७८
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अमरताकी ओर ७८··
भगवान् कृपाकी मूर्ति हैं। उनके प्रत्येक विधानमें कृपा भरी रहती है। परन्तु केवल प्रारब्धकी तरफ दृष्टि रहनेसे और कृपाकी तरफ दृष्टि न रहनेसे मनुष्य उस कृपासे लाभ नहीं उठा सकता। जैसे बछड़ा माँके दूधसे जैसा पुष्ट होता है, वैसा दूसरे दूधसे पुष्ट नहीं होता, ऐसे ही कृपाकी तरफ दृष्टि रहनेसे जैसा लाभ होता है, वैसा प्रारब्धकी तरफ दृष्टि रहनेसे लाभ नहीं होता।
||श्रीहरि:||
भगवान् कृपाकी मूर्ति हैं। उनके प्रत्येक विधानमें कृपा भरी रहती है। परन्तु केवल प्रारब्धकी तरफ दृष्टि रहनेसे और कृपाकी तरफ दृष्टि न रहनेसे मनुष्य उस कृपासे लाभ नहीं उठा सकता। जैसे बछड़ा माँके दूधसे जैसा पुष्ट होता है, वैसा दूसरे दूधसे पुष्ट नहीं होता, ऐसे ही कृपाकी तरफ दृष्टि रहनेसे जैसा लाभ होता है, वैसा प्रारब्धकी तरफ दृष्टि रहनेसे लाभ नहीं होता।- प्रश्नोत्तरमणिमाला २२०
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प्रश्नोत्तरमणिमाला २२०··
मनुष्य प्राप्त परिस्थितिका सदुपयोग करके अपना कल्याण कर सकता है - यह भगवत्कृपा है। अगर मनुष्य रोकर, आर्तभावसे प्रार्थना करे तो भगवान् अशुभ कर्मका फल ( प्रतिकूलता) माफ भी कर देते हैं और अचानक विवेक भी दे देते हैं - यह उनकी कृपा है।
||श्रीहरि:||
मनुष्य प्राप्त परिस्थितिका सदुपयोग करके अपना कल्याण कर सकता है - यह भगवत्कृपा है। अगर मनुष्य रोकर, आर्तभावसे प्रार्थना करे तो भगवान् अशुभ कर्मका फल ( प्रतिकूलता) माफ भी कर देते हैं और अचानक विवेक भी दे देते हैं - यह उनकी कृपा है।- प्रश्नोत्तरमणिमाला २२०
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प्रश्नोत्तरमणिमाला २२०··
नाशवान् वस्तुओंकी प्राप्तिमें कृपाको लगाना गलती है। कृपा तो चिन्मयताकी प्राप्तिमें ही है। जड़ताकी प्राप्तिमें तो पतन है। अनुकूलताकी प्राप्ति होना और प्रतिकूलताका नाश होना कृपा नहीं है, प्रत्युत कर्मफल (प्रारब्ध) है। भगवान्की कृपा है - जड़तासे वृत्ति हटकर चिन्मयतामें हो जाय, साधनमें लग जाय, सत्संगमें लग जाय।
||श्रीहरि:||
नाशवान् वस्तुओंकी प्राप्तिमें कृपाको लगाना गलती है। कृपा तो चिन्मयताकी प्राप्तिमें ही है। जड़ताकी प्राप्तिमें तो पतन है। अनुकूलताकी प्राप्ति होना और प्रतिकूलताका नाश होना कृपा नहीं है, प्रत्युत कर्मफल (प्रारब्ध) है। भगवान्की कृपा है - जड़तासे वृत्ति हटकर चिन्मयतामें हो जाय, साधनमें लग जाय, सत्संगमें लग जाय।- प्रश्नोत्तरमणिमाला २२२
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प्रश्नोत्तरमणिमाला २२२··
भोजन सबको बराबर मिलनेपर भी व्यक्ति अपनी भूखके अनुसार ही भोजन करता है। भूख सबकी समान नहीं होती। इसी तरह भगवान्की कृपा सबपर समान होनेपर भी भगवान्पर जितनी ज्यादा निर्भरता होती है, उतनी ही ज्यादा कृपा पकड़में आती है।
||श्रीहरि:||
भोजन सबको बराबर मिलनेपर भी व्यक्ति अपनी भूखके अनुसार ही भोजन करता है। भूख सबकी समान नहीं होती। इसी तरह भगवान्की कृपा सबपर समान होनेपर भी भगवान्पर जितनी ज्यादा निर्भरता होती है, उतनी ही ज्यादा कृपा पकड़में आती है।- प्रश्नोत्तरमणिमाला २२८
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प्रश्नोत्तरमणिमाला २२८··
अपने पुरुषार्थसे कुछ नहीं होता । पुरुषार्थ छोड़ते ही प्रभु कृपासे काम होता है । उसको प्रभु-कृपा न मानकर पुरुषार्थ मानना भूल है।
||श्रीहरि:||
अपने पुरुषार्थसे कुछ नहीं होता । पुरुषार्थ छोड़ते ही प्रभु कृपासे काम होता है । उसको प्रभु-कृपा न मानकर पुरुषार्थ मानना भूल है।- सन्त समागम ५
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सन्त समागम ५··
भगवान् की कृपा बिना हेतु होती है। जो हेतुसे होती है, वह कृपा नहीं होती, प्रत्युत उसमें पुण्य कारण होता है। हमारे किसी पुण्यसे कृपा नहीं होती।
||श्रीहरि:||
भगवान् की कृपा बिना हेतु होती है। जो हेतुसे होती है, वह कृपा नहीं होती, प्रत्युत उसमें पुण्य कारण होता है। हमारे किसी पुण्यसे कृपा नहीं होती।- परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ७५
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परम प्रभु अपने ही महुँ पायो ७५··
हरेक परिस्थितिमें भगवान्की कृपाको देखो, कृपाको ढूँढो, खोज करो। कृपा न दीखे तो भी मान लो । विश्वास करनेसे कृपाका अनुभव हो जायगा।
||श्रीहरि:||
हरेक परिस्थितिमें भगवान्की कृपाको देखो, कृपाको ढूँढो, खोज करो। कृपा न दीखे तो भी मान लो । विश्वास करनेसे कृपाका अनुभव हो जायगा।- ज्ञानके दीप जले १२३
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ज्ञानके दीप जले १२३··
भगवान्के बनाये हुए नियमों (न्याय) - में भी कृपा भरी हुई है।
||श्रीहरि:||
भगवान्के बनाये हुए नियमों (न्याय) - में भी कृपा भरी हुई है।- सत्संगके फूल १५५
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सत्संगके फूल १५५··
भगवान्की कृपामें हित और प्यार दोनों होते हैं।
||श्रीहरि:||
भगवान्की कृपामें हित और प्यार दोनों होते हैं।- सत्संगके फूल १५५
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सत्संगके फूल १५५··
जब कोई अच्छा संग मिल जाय, अच्छी बात मिल जाय, अच्छा भाव पैदा हो जाय, अचानक भगवान्की याद आ जाय, तब समझना चाहिये कि यह भगवान्की विशेष कृपा हुई है, भगवान्ने मेरेको विशेषतासे याद किया है। इस प्रकार भगवान्की कृपाकी तरफ देखे, उसका ही भरोसा रखे तो उनकी कृपा बहुत विशेषतासे प्रकट होगी।
||श्रीहरि:||
जब कोई अच्छा संग मिल जाय, अच्छी बात मिल जाय, अच्छा भाव पैदा हो जाय, अचानक भगवान्की याद आ जाय, तब समझना चाहिये कि यह भगवान्की विशेष कृपा हुई है, भगवान्ने मेरेको विशेषतासे याद किया है। इस प्रकार भगवान्की कृपाकी तरफ देखे, उसका ही भरोसा रखे तो उनकी कृपा बहुत विशेषतासे प्रकट होगी।- साधन-सुधा-सिन्धु ४२५
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साधन-सुधा-सिन्धु ४२५··
वर्षा होती है तो जंगलपर भी पानी बरसता है और समुद्रपर भी । समुद्रमें पानीकी कमी है क्या ? पर फिर भी बरसता है। ऐसे ही जो संत-महात्मा होते हैं वे भी कृपा करके बरस पड़ते हैं, कोई ग्रहण करे, चाहे न करे। इसी तरह भगवान् भी कृपा करते हैं, तो पात्र - कुपात्र नहीं देखते।
||श्रीहरि:||
वर्षा होती है तो जंगलपर भी पानी बरसता है और समुद्रपर भी । समुद्रमें पानीकी कमी है क्या ? पर फिर भी बरसता है। ऐसे ही जो संत-महात्मा होते हैं वे भी कृपा करके बरस पड़ते हैं, कोई ग्रहण करे, चाहे न करे। इसी तरह भगवान् भी कृपा करते हैं, तो पात्र - कुपात्र नहीं देखते।- साधन-सुधा-सिन्धु ६६१
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साधन-सुधा-सिन्धु ६६१··
भगवान्का आस्तिक से आस्तिक व्यक्तिके प्रति जो स्नेह है, कृपा है, वैसा ही स्नेह, कृपा नास्तिक- से नास्तिक व्यक्तिके प्रति भी है।
||श्रीहरि:||
भगवान्का आस्तिक से आस्तिक व्यक्तिके प्रति जो स्नेह है, कृपा है, वैसा ही स्नेह, कृपा नास्तिक- से नास्तिक व्यक्तिके प्रति भी है।- साधक संजीवनी ४। ११ परि०
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साधक संजीवनी ४। ११ परि०··
जब उसके (भक्तके) सामने अनुकूल परिस्थिति आती है, तब वह उसमें भगवान्की 'दया' को मानता है और जब प्रतिकूल परिस्थिति आती है, तब वह उसमें भगवान्की 'कृपा' को मानता है। दया और कृपामें भेद यह है कि कभी भगवान् प्यार, स्नेह करके जीवकी कर्मबन्धनसे मुक्त करते हैं - यह 'दया' है और कभी शासन करके, ताड़ना करके उसके पापोंका नाश करते हैं- यह 'कृपा' है।
||श्रीहरि:||
जब उसके (भक्तके) सामने अनुकूल परिस्थिति आती है, तब वह उसमें भगवान्की 'दया' को मानता है और जब प्रतिकूल परिस्थिति आती है, तब वह उसमें भगवान्की 'कृपा' को मानता है। दया और कृपामें भेद यह है कि कभी भगवान् प्यार, स्नेह करके जीवकी कर्मबन्धनसे मुक्त करते हैं - यह 'दया' है और कभी शासन करके, ताड़ना करके उसके पापोंका नाश करते हैं- यह 'कृपा' है।- साधक संजीवनी ९ । २८ वि०
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साधक संजीवनी ९ । २८ वि०··
साधक अपनेपर भगवान्की जितनी कृपा मानता है, उससे कई गुना अधिक भगवान्की कृपा होती है । भगवान्की जितनी कृपा होती है, उसको माननेकी सामर्थ्य साधकमें नहीं है। कारण कि भगवान्की कृपा अपार असीम है; और उसको माननेको सामर्थ्य सीमित है।
||श्रीहरि:||
साधक अपनेपर भगवान्की जितनी कृपा मानता है, उससे कई गुना अधिक भगवान्की कृपा होती है । भगवान्की जितनी कृपा होती है, उसको माननेकी सामर्थ्य साधकमें नहीं है। कारण कि भगवान्की कृपा अपार असीम है; और उसको माननेको सामर्थ्य सीमित है।- साधक संजीवनी ११ । ४७ वि०
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साधक संजीवनी ११ । ४७ वि०··
केवल अनुकूलतामें ही कृपा मानना कृपाको सीमामें बाँधना है, जिससे असीम कृपाका अनुभव नहीं होता। उस कृपामें ही राजी होना कृपाका भोग है। साधकको चाहिये कि वह न तो कृपाको सीमामें बाँधे और न कृपाका भोग ही करे।
||श्रीहरि:||
केवल अनुकूलतामें ही कृपा मानना कृपाको सीमामें बाँधना है, जिससे असीम कृपाका अनुभव नहीं होता। उस कृपामें ही राजी होना कृपाका भोग है। साधकको चाहिये कि वह न तो कृपाको सीमामें बाँधे और न कृपाका भोग ही करे।- साधक संजीवनी ११ ४७ वि०
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साधक संजीवनी ११ ४७ वि०··
भगवान् और उनके भक्तों, सन्तोंकी कृपासे जो काम होता है, वह काम साधनोंसे नहीं होता । इनकी कृपा भी अहैतुकी होती है।
||श्रीहरि:||
भगवान् और उनके भक्तों, सन्तोंकी कृपासे जो काम होता है, वह काम साधनोंसे नहीं होता । इनकी कृपा भी अहैतुकी होती है।- साधक संजीवनी ११ । ४८
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साधक संजीवनी ११ । ४८··
भगवान्का जीवमात्रपर अत्यधिक स्नेह है। अपना ही अंश होनेसे कोई भी जीव भगवान्को अप्रिय नहीं है। भगवान् जीवोंको चाहे चौरासी लाख योनियोंमें भेजें, चाहे नरकोंमें भेजें, उनका उद्देश्य जीवोंको पवित्र करनेका ही होता है। जीवोंके प्रति भगवान्का जो यह कृपापूर्ण विधान है, यह भगवान के प्यारका ही द्योतक है।
||श्रीहरि:||
भगवान्का जीवमात्रपर अत्यधिक स्नेह है। अपना ही अंश होनेसे कोई भी जीव भगवान्को अप्रिय नहीं है। भगवान् जीवोंको चाहे चौरासी लाख योनियोंमें भेजें, चाहे नरकोंमें भेजें, उनका उद्देश्य जीवोंको पवित्र करनेका ही होता है। जीवोंके प्रति भगवान्का जो यह कृपापूर्ण विधान है, यह भगवान के प्यारका ही द्योतक है।- साधक संजीवनी १८ । ६५
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साधक संजीवनी १८ । ६५··
आपका भला वास्तवमें भगवान्की कृपासे होगा, आपकी चतुराईसे नहीं। अपनी चतुराईसे भला होता हो तो सब अपना भला कर लें। भगवान्की कृपा तब होगी, जब आप अपना स्वार्थ और अभिमान छोड़ दोगे, भगवान् के शरण हो जाओगे । भगवान्की कृपाका भरोसा रखोगे तो जहाँ जाओगे, वहीं आपकी विजय होगी।
||श्रीहरि:||
आपका भला वास्तवमें भगवान्की कृपासे होगा, आपकी चतुराईसे नहीं। अपनी चतुराईसे भला होता हो तो सब अपना भला कर लें। भगवान्की कृपा तब होगी, जब आप अपना स्वार्थ और अभिमान छोड़ दोगे, भगवान् के शरण हो जाओगे । भगवान्की कृपाका भरोसा रखोगे तो जहाँ जाओगे, वहीं आपकी विजय होगी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२··
ऐसे कलियुगके समयमें भगवान्की तरफ वृत्ति हो जाय, उनका चिन्तन हो जाय, उनको प्राप्त करनेकी मनमें आ जाय तो समझो कि भगवान्की कृपामें भी विशेष कृपा हो गयी।
||श्रीहरि:||
ऐसे कलियुगके समयमें भगवान्की तरफ वृत्ति हो जाय, उनका चिन्तन हो जाय, उनको प्राप्त करनेकी मनमें आ जाय तो समझो कि भगवान्की कृपामें भी विशेष कृपा हो गयी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ७९-८०
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ७९-८०··
सम्पूर्ण पापोंका फल भोगकर कल्याण होगा- ऐसी बात नहीं है। बड़े-बड़े सन्त-महात्मा हुए हैं, वे भगवान्की कृपासे पाप माफ होनेसे ही हुए हैं। इसलिये 'हम भगवान्के हैं' - ऐसा मान लो । जब कभी उद्धार होगा, भगवान्की कृपासे ही होगा, पापोंकी माफी होनेसे ही होगा।
||श्रीहरि:||
सम्पूर्ण पापोंका फल भोगकर कल्याण होगा- ऐसी बात नहीं है। बड़े-बड़े सन्त-महात्मा हुए हैं, वे भगवान्की कृपासे पाप माफ होनेसे ही हुए हैं। इसलिये 'हम भगवान्के हैं' - ऐसा मान लो । जब कभी उद्धार होगा, भगवान्की कृपासे ही होगा, पापोंकी माफी होनेसे ही होगा।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४१
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४१··
अपना उद्धार होगा, कल्याण होगा, परमात्माकी प्राप्ति होगी, जीवन्मुक्ति होगी - यह सब वास्तवमें कृपासे होगा। यह एकदम सच्ची बात है।
||श्रीहरि:||
अपना उद्धार होगा, कल्याण होगा, परमात्माकी प्राप्ति होगी, जीवन्मुक्ति होगी - यह सब वास्तवमें कृपासे होगा। यह एकदम सच्ची बात है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७७
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७७··
सिवाय भगवान्की कृपाके कोई बल लगाकर अपना कल्याण कर ले, यह हाथकी बात नहीं है। कृपा कैसे होती है— इसका कुछ पता नहीं। उत्कण्ठा ज्यादा दीखती है, काम नहीं होता । उत्कण्ठा कम दीखती है, काम हो जाता है। इस विषयमें हमारी अक्ल काम नहीं करती।
||श्रीहरि:||
सिवाय भगवान्की कृपाके कोई बल लगाकर अपना कल्याण कर ले, यह हाथकी बात नहीं है। कृपा कैसे होती है— इसका कुछ पता नहीं। उत्कण्ठा ज्यादा दीखती है, काम नहीं होता । उत्कण्ठा कम दीखती है, काम हो जाता है। इस विषयमें हमारी अक्ल काम नहीं करती।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७७
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७७··
भगवान्की प्राप्ति हमारी योग्यतासे नहीं होती। वे अपनी कृपासे ही मिलते हैं। इसलिये अपनी योग्यताका भरोसा नहीं रखें। हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं- यह बात आप दृढ़तासे मान लें और उनकी कृपासे तरफ देखते रहें। जितने भी सन्त भगवान्को प्राप्त हुए हैं, वे सब भगवान्की कृपासे ही हुए हैं, चाहे वे मानें या न मानें।
||श्रीहरि:||
भगवान्की प्राप्ति हमारी योग्यतासे नहीं होती। वे अपनी कृपासे ही मिलते हैं। इसलिये अपनी योग्यताका भरोसा नहीं रखें। हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं- यह बात आप दृढ़तासे मान लें और उनकी कृपासे तरफ देखते रहें। जितने भी सन्त भगवान्को प्राप्त हुए हैं, वे सब भगवान्की कृपासे ही हुए हैं, चाहे वे मानें या न मानें।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १८२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १८२··
भगवान्की कृपा सबपर समान है। उनकी भक्तपर विशेष कृपा होती है तो वास्तवमें भगवान्ने विशेष कृपा की नहीं, प्रत्युत भक्तने (आतशी शीशे की तरह) विशेष कृपा खींच ली। यह विशेषता भक्तकी है।
||श्रीहरि:||
भगवान्की कृपा सबपर समान है। उनकी भक्तपर विशेष कृपा होती है तो वास्तवमें भगवान्ने विशेष कृपा की नहीं, प्रत्युत भक्तने (आतशी शीशे की तरह) विशेष कृपा खींच ली। यह विशेषता भक्तकी है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ८२
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ८२··
भगवान्ने हमारेपर जितनी कृपा की है, उतनी हमारे माननेमें नहीं आ सकती।
||श्रीहरि:||
भगवान्ने हमारेपर जितनी कृपा की है, उतनी हमारे माननेमें नहीं आ सकती।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०१
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०१··
भगवान्की कृपा होती है तो वह अधिकारी नहीं देखती। अगर वह अधिकारी - अनधिकारी, पात्र - कुपात्र देखे तो हमारा कल्याण नहीं हो सकता।
||श्रीहरि:||
भगवान्की कृपा होती है तो वह अधिकारी नहीं देखती। अगर वह अधिकारी - अनधिकारी, पात्र - कुपात्र देखे तो हमारा कल्याण नहीं हो सकता।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०१
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०१··
अपनी मनचाही बात हो जाय तो उसमें कृपा दो नम्बरकी होती है; परन्तु अपनी मनचाही न हो तो एक नम्बरकी कृपा होती है।
||श्रीहरि:||
अपनी मनचाही बात हो जाय तो उसमें कृपा दो नम्बरकी होती है; परन्तु अपनी मनचाही न हो तो एक नम्बरकी कृपा होती है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ११३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश ११३··
‘मैं भगवान्का हूँ’- यह बात सच्ची होते हुए भी ऐसा अनुभव नहीं होता । अनुभव होता है भगवान्की कृपासे।
||श्रीहरि:||
‘मैं भगवान्का हूँ’- यह बात सच्ची होते हुए भी ऐसा अनुभव नहीं होता । अनुभव होता है भगवान्की कृपासे।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १३१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १३१··
अगर माँ बालकके दोषोंकी तरफ देखे तो क्या बालकका पालन हो सकता है? बालक रोता है तो अपनी मूर्खतासे रोता है। भगवान् कृपा करते हैं तो नीयत देखते हैं, गलती नहीं देखते। . भगवान् बिना कारण कृपा करनेवाले हैं- यह बात हरदम याद रहे। अपनेमें कमीको देखकर हमें दुःख तब होता है, जब यह भूल जाते हैं कि भगवान् 'कारणरहित कृपालु' हैं।
||श्रीहरि:||
अगर माँ बालकके दोषोंकी तरफ देखे तो क्या बालकका पालन हो सकता है? बालक रोता है तो अपनी मूर्खतासे रोता है। भगवान् कृपा करते हैं तो नीयत देखते हैं, गलती नहीं देखते। . भगवान् बिना कारण कृपा करनेवाले हैं- यह बात हरदम याद रहे। अपनेमें कमीको देखकर हमें दुःख तब होता है, जब यह भूल जाते हैं कि भगवान् 'कारणरहित कृपालु' हैं।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६०
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६०··
केवल भगवान्की कृपा माननेसे अपनेमें बहुत जल्दी विलक्षणता आ जाती है। इसलिये सदा कृपापर दृष्टि रखो - 'तऽत्तेनुकम्पां सुसमीक्षमाणः' (श्रीमद्भा० १० । १४ । ८ ) । आप सबको यह मान लेना चाहिये कि जो कुछ अच्छा हुआ है, भगवान्की कृपासे हुआ है; जो कुछ अच्छा हो रहा है, भगवान्की कृपासे हो रहा है; और जो कुछ अच्छा होगा, भगवान्की कृपासे होगा ।...... हरदम भगवान् की कृपाको मानते रहनेसे अपना जीवन महान् सफल हो जायगा, महान् पवित्र हो जायगा।
||श्रीहरि:||
केवल भगवान्की कृपा माननेसे अपनेमें बहुत जल्दी विलक्षणता आ जाती है। इसलिये सदा कृपापर दृष्टि रखो - 'तऽत्तेनुकम्पां सुसमीक्षमाणः' (श्रीमद्भा० १० । १४ । ८ ) । आप सबको यह मान लेना चाहिये कि जो कुछ अच्छा हुआ है, भगवान्की कृपासे हुआ है; जो कुछ अच्छा हो रहा है, भगवान्की कृपासे हो रहा है; और जो कुछ अच्छा होगा, भगवान्की कृपासे होगा ।...... हरदम भगवान् की कृपाको मानते रहनेसे अपना जीवन महान् सफल हो जायगा, महान् पवित्र हो जायगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९१ - १९२
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९१ - १९२··
हमारे अवगुणोंको कोई जान लेता है तो हमारे प्रति उसके भावमें फर्क पड़ जाता है, उसकी हमारेसे वृत्ति हट जाती है। हमारी गलती मालूम होनेपर सन्तोंके भी हृदयमें फर्क पड़ जाता है । परन्तु भगवान् हमारे सब अवगुण, दुर्भाव जानते ही हैं, पर जानते हुए भी वे उसकी परवाह नहीं करते, प्रत्युत हमारेमें जो सद्गुण हैं, उसकी तरफ देखते हैं। अगर वे हमारे अवगुणोंको देखें तो अनेक जन्मोंतक हमारा कल्याण होना मुश्किल हो जाय। भगवत्प्राप्त सन्त-महात्माओंकी कृपा तो भगवान्से भी विलक्षण होती है; क्योंकि वे दुःख पा चुके हैं; वे भुक्तभोगी हैं।
||श्रीहरि:||
हमारे अवगुणोंको कोई जान लेता है तो हमारे प्रति उसके भावमें फर्क पड़ जाता है, उसकी हमारेसे वृत्ति हट जाती है। हमारी गलती मालूम होनेपर सन्तोंके भी हृदयमें फर्क पड़ जाता है । परन्तु भगवान् हमारे सब अवगुण, दुर्भाव जानते ही हैं, पर जानते हुए भी वे उसकी परवाह नहीं करते, प्रत्युत हमारेमें जो सद्गुण हैं, उसकी तरफ देखते हैं। अगर वे हमारे अवगुणोंको देखें तो अनेक जन्मोंतक हमारा कल्याण होना मुश्किल हो जाय। भगवत्प्राप्त सन्त-महात्माओंकी कृपा तो भगवान्से भी विलक्षण होती है; क्योंकि वे दुःख पा चुके हैं; वे भुक्तभोगी हैं।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश २१८
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश २१८··
अगर भगवान् हमारे कर्मोंको देखने लग जायँ कि इसने ऐसा ऐसा किया तो एकका भी कल्याण होना मुश्किल है । भगवान् हमारे अवगुणोंको देखते नहीं - इस कारणसे हमारा कल्याण होगा, नहीं तो कल्याण नहीं हो सकता।
||श्रीहरि:||
अगर भगवान् हमारे कर्मोंको देखने लग जायँ कि इसने ऐसा ऐसा किया तो एकका भी कल्याण होना मुश्किल है । भगवान् हमारे अवगुणोंको देखते नहीं - इस कारणसे हमारा कल्याण होगा, नहीं तो कल्याण नहीं हो सकता।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६२
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६२··
मैंने सोचा है, समझा है, विचार किया है कि साधकोंकी उन्नति कैसे हो, तो मेरेको भगवान्की कृपाके समान कोई देखने-सुननेमें आया नहीं। भगवान्की कृपासे ही होगा, हमारे बलसे नहीं होगा।
||श्रीहरि:||
मैंने सोचा है, समझा है, विचार किया है कि साधकोंकी उन्नति कैसे हो, तो मेरेको भगवान्की कृपाके समान कोई देखने-सुननेमें आया नहीं। भगवान्की कृपासे ही होगा, हमारे बलसे नहीं होगा।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७७
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७७··
भक्त जितना अधिक निश्चिन्त और निर्भय होता है, भगवत्कृपा उसको अपने-आप उतना ही अधिक अपने अनुकूल बना लेती है और जितनी वह चिन्ता करता है, अपना बल मानता है, उतना ही वह आती हुई भगवत्कृपामें बाधा लगाता है।
||श्रीहरि:||
भक्त जितना अधिक निश्चिन्त और निर्भय होता है, भगवत्कृपा उसको अपने-आप उतना ही अधिक अपने अनुकूल बना लेती है और जितनी वह चिन्ता करता है, अपना बल मानता है, उतना ही वह आती हुई भगवत्कृपामें बाधा लगाता है।- साधक संजीवनी १८ । ६६ वि०
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साधक संजीवनी १८ । ६६ वि०··
कृपाका अथवा प्रारब्धका यह अर्थ है ही नहीं कि अपनी तरफसे कुछ न करे । इसका अर्थ है कि चिन्ताको छोड़ दो। अपना कर्तव्य छोड़नेमें इसका अर्थ कभी है ही नहीं। अपनी तरफसे खूब उत्साहसे, तत्परतासे उद्योग करो, पर होगा भगवान्की कृपासे । चिन्ता मत करो।
||श्रीहरि:||
कृपाका अथवा प्रारब्धका यह अर्थ है ही नहीं कि अपनी तरफसे कुछ न करे । इसका अर्थ है कि चिन्ताको छोड़ दो। अपना कर्तव्य छोड़नेमें इसका अर्थ कभी है ही नहीं। अपनी तरफसे खूब उत्साहसे, तत्परतासे उद्योग करो, पर होगा भगवान्की कृपासे । चिन्ता मत करो।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ९८
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ९८··
अपनेपर भगवान्की कृपा कम नहीं माननी चाहिये । भगवान्की कृपासे ही सब सन्त-महात्मा हुए हैं। भगवान्की कृपासे जो काम होता है, वह अपने उद्योगसे नहीं होता । सत्संग भी अपने उद्योगसे नहीं मिलता, प्रत्युत कृपासे ही मिलता है। इसलिये सदा भगवान्की कृपाका आश्रय लेकर ही साधन करना चाहिये।
||श्रीहरि:||
अपनेपर भगवान्की कृपा कम नहीं माननी चाहिये । भगवान्की कृपासे ही सब सन्त-महात्मा हुए हैं। भगवान्की कृपासे जो काम होता है, वह अपने उद्योगसे नहीं होता । सत्संग भी अपने उद्योगसे नहीं मिलता, प्रत्युत कृपासे ही मिलता है। इसलिये सदा भगवान्की कृपाका आश्रय लेकर ही साधन करना चाहिये।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११५··
प्रेम पुण्यका फल नहीं है, प्रत्युत कृपाका फल है। स्त्री, पुत्र, धन, सम्पत्ति, वैभव आदि पुण्यका फल है। भगवान्में लगना भगवान्की कृपासे, सन्तोंके संगसे होता है।
||श्रीहरि:||
प्रेम पुण्यका फल नहीं है, प्रत्युत कृपाका फल है। स्त्री, पुत्र, धन, सम्पत्ति, वैभव आदि पुण्यका फल है। भगवान्में लगना भगवान्की कृपासे, सन्तोंके संगसे होता है।- अनन्तकी ओर ८५
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अनन्तकी ओर ८५··
जिस कृपासे मानवशरीर मिला है, वह कृपा समाप्त नहीं हो गयी है।
||श्रीहरि:||
जिस कृपासे मानवशरीर मिला है, वह कृपा समाप्त नहीं हो गयी है।- स्वातिकी बूँदें १८५
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अगर भगवान्की दया चाहते हो तो अपनेसे छोटोंपर दया करो, तब भगवान् दया करेंगे। दया चाहते हो पर करते नहीं - यह अन्याय है, अपने ज्ञानका तिरस्कार है।
||श्रीहरि:||
अगर भगवान्की दया चाहते हो तो अपनेसे छोटोंपर दया करो, तब भगवान् दया करेंगे। दया चाहते हो पर करते नहीं - यह अन्याय है, अपने ज्ञानका तिरस्कार है।- अमृत-बिन्दु ४०१
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अमृत-बिन्दु ४०१··
सूर्य तो स्वतः और स्वाभाविक प्रकाश करता है, उस प्रकाशको चाहे कोई काममें ले ले। ऐसे ही गुरुकी, सन्त महात्माकी कृपा स्वतः - स्वाभाविक होती है। जो उनके सम्मुख हो जाता है, वह लाभ ले लेता है। जो सम्मुख नहीं होता, वह लाभ नहीं लेता।
||श्रीहरि:||
सूर्य तो स्वतः और स्वाभाविक प्रकाश करता है, उस प्रकाशको चाहे कोई काममें ले ले। ऐसे ही गुरुकी, सन्त महात्माकी कृपा स्वतः - स्वाभाविक होती है। जो उनके सम्मुख हो जाता है, वह लाभ ले लेता है। जो सम्मुख नहीं होता, वह लाभ नहीं लेता।- क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं ? १२