Seeker of Truth

खण्डन - मण्डन

किसी ग्रन्थके खण्डन अंशको मत मानो, मण्डन- अंशको मानो।

सत्संगके फूल ४५··

दूसरेकी निन्दा, खण्डन करना कल्याणका उपाय नहीं है। जिस सज्जनने पुराणोंकी, शास्त्रोंकी, सनातनधर्मकी, मुसलमानोंकी, ईसाइयोंकी, सबकी बहुत निन्दा की है, उसने भी यह नहीं बताया कि निन्दा, खण्डन करनेसे मुक्ति होती है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १३८··

हमें तो सगुण ही प्रिय लगता है अथवा हमें तो निर्गुण ही ठीक लगता है या हमें तो द्वैत सिद्धान्त ही ठीक जँचता है अथवा हम तो अद्वैत सिद्धान्तको ही ठीक समझते हैं- ऐसा कहना तो साधकके लिये ठीक है, पर दूसरेके इष्ट, सिद्धान्त, मत आदिकी निन्दा या खण्डन करना साधकके लिये महान् बाधक है।

साधन-सुधा-सिन्धु ८३७··

साधक तो स्वार्थके लिये अपने मतका मण्डन और दूसरेके मतका खण्डन करते हैं, पर आचार्य ऐसा करते हैं- अपने मतका प्रचार करनेके लिये। साधकके लिये तो अपने मतका पालन करना ही ठीक है।

सत्संगके फूल १७०··

संसारको नाशवान् समझते हुए भी उसका आदर करते हैं, उसको महत्त्व देते हैं - यह गलती है, अपने ही सिद्धान्तका खण्डन है।

सत्संगके फूल २२··