कलियुगके प्रभावसे सत्संगकी बातें, कथाएँ कम होती चली जायँगी। हमारे देखते-देखते कम हो गयीं। सत्संग, कथा आदिमें लोगोंकी रुचि कम हो रही है। आगे चलकर ये बातें मिलेंगी नहीं। अभी कलियुगका बड़ा भयंकर समय आ रहा है, सावधान हो जाओ। भजन - ध्यानमें विशेषतासे लगो और दूसरोंको भी लगाओ।
||श्रीहरि:||
कलियुगके प्रभावसे सत्संगकी बातें, कथाएँ कम होती चली जायँगी। हमारे देखते-देखते कम हो गयीं। सत्संग, कथा आदिमें लोगोंकी रुचि कम हो रही है। आगे चलकर ये बातें मिलेंगी नहीं। अभी कलियुगका बड़ा भयंकर समय आ रहा है, सावधान हो जाओ। भजन - ध्यानमें विशेषतासे लगो और दूसरोंको भी लगाओ।- ज्ञानके दीप जले १४०
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ज्ञानके दीप जले १४०··
अब झूठ, कपट, पापका समय आ रहा है। इससे बचना चाहिये। जैसे शीतकाल आनेपर उससे बचनेका प्रयत्न करते हैं, ऐसे ही वर्तमान समयसे बचो । समयके अनुसार मत चलो, प्रत्युत समय से अपना बचाव करो।
||श्रीहरि:||
अब झूठ, कपट, पापका समय आ रहा है। इससे बचना चाहिये। जैसे शीतकाल आनेपर उससे बचनेका प्रयत्न करते हैं, ऐसे ही वर्तमान समयसे बचो । समयके अनुसार मत चलो, प्रत्युत समय से अपना बचाव करो।- सागरके मोती ११६
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सागरके मोती ११६··
कुछ वर्षोंसे, लगभग दस वर्षोंसे कलियुगका प्रभाव जोरोंसे बढ़ रहा है। लोगोंकी बुद्धि भ्रष्ट हो रही है। किसीने चोटी न रखनेकी आज्ञा भी नहीं दी, केवल कलियुगके प्रभावमें आकर लोगोंने चोटी रखनी छोड़ दी।
||श्रीहरि:||
कुछ वर्षोंसे, लगभग दस वर्षोंसे कलियुगका प्रभाव जोरोंसे बढ़ रहा है। लोगोंकी बुद्धि भ्रष्ट हो रही है। किसीने चोटी न रखनेकी आज्ञा भी नहीं दी, केवल कलियुगके प्रभावमें आकर लोगोंने चोटी रखनी छोड़ दी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२··
पहले मनुष्यों में पशुता नहीं थी, अब पशुता आ गयी - यह नयी रोशनी आयी है।
||श्रीहरि:||
पहले मनुष्यों में पशुता नहीं थी, अब पशुता आ गयी - यह नयी रोशनी आयी है।- ज्ञानके दीप जले १९१
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ज्ञानके दीप जले १९१··
वर्ण मत मानो, सबके साथ खान-पान करो, सबके साथ शादी-ब्याह करो। यह क्या है ? यह कलियुगकी महिमा है, पहचान है।
||श्रीहरि:||
वर्ण मत मानो, सबके साथ खान-पान करो, सबके साथ शादी-ब्याह करो। यह क्या है ? यह कलियुगकी महिमा है, पहचान है।- यह कलियुग है २
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यह कलियुग है २··
जहाँ प्रेम है, वहाँ सत्ययुग है। जहाँ कलह है, वहाँ कलियुग है।
||श्रीहरि:||
जहाँ प्रेम है, वहाँ सत्ययुग है। जहाँ कलह है, वहाँ कलियुग है।- ज्ञानके दीप जले १७५
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ज्ञानके दीप जले १७५··
जिस घरमें कलह, लड़ाई-झगड़ा होता है, वह घर कलियुगका स्थान बन जाता है। उस घरमें सभी आदमी दुःख पाते हैं। आपसमें स्नेह रखनेसे, घरमें मिलकर रहनेसे सब तरहका लाभ होता है। घरमें शान्ति, आनन्द रहता है। आपसमें प्रेम रखनेसे घरमें लक्ष्मी बढ़ती है और घरमें कलह होनेसे लक्ष्मी नष्ट हो जाती है।
||श्रीहरि:||
जिस घरमें कलह, लड़ाई-झगड़ा होता है, वह घर कलियुगका स्थान बन जाता है। उस घरमें सभी आदमी दुःख पाते हैं। आपसमें स्नेह रखनेसे, घरमें मिलकर रहनेसे सब तरहका लाभ होता है। घरमें शान्ति, आनन्द रहता है। आपसमें प्रेम रखनेसे घरमें लक्ष्मी बढ़ती है और घरमें कलह होनेसे लक्ष्मी नष्ट हो जाती है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३८
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३८··
स्त्री-पुरुषमें भी आपसमें लड़ाई हो जाय तो समझे कि कलियुग महाराज पधारे हैं। यह कलियुगकी पहचान है। उनमें अगर स्त्री नहीं माने, पतिसे लड़ाई करे तो समझे कि कलियुग महाराज पहले स्त्री आकर बैठे हैं । अगर पुरुष नहीं माने, स्त्रीसे लड़ाई करे तो समझे कि कलियुग महाराज पुरुषमें आकर बैठे हैं। दोनोंमें आकर बैठें तो लड़ाई होगी ही । यह कोई नयी बात नहीं है, प्रत्युत कलियुगकी पहचान है। इसलिये आपसमें खटपट होते ही सावधान हो जायँ कि यह कलियुगका प्रवेश हो गया।
||श्रीहरि:||
स्त्री-पुरुषमें भी आपसमें लड़ाई हो जाय तो समझे कि कलियुग महाराज पधारे हैं। यह कलियुगकी पहचान है। उनमें अगर स्त्री नहीं माने, पतिसे लड़ाई करे तो समझे कि कलियुग महाराज पहले स्त्री आकर बैठे हैं । अगर पुरुष नहीं माने, स्त्रीसे लड़ाई करे तो समझे कि कलियुग महाराज पुरुषमें आकर बैठे हैं। दोनोंमें आकर बैठें तो लड़ाई होगी ही । यह कोई नयी बात नहीं है, प्रत्युत कलियुगकी पहचान है। इसलिये आपसमें खटपट होते ही सावधान हो जायँ कि यह कलियुगका प्रवेश हो गया।- यह कलियुग है ३
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यह कलियुग है ३··
कलियुग अच्छाईके चोलेमें बुराईका प्रचार करता है। अच्छाईके चोलेमें बुराई बहुत भयंकर होती है। उससे बचना बड़ा कठिन होता है।
||श्रीहरि:||
कलियुग अच्छाईके चोलेमें बुराईका प्रचार करता है। अच्छाईके चोलेमें बुराई बहुत भयंकर होती है। उससे बचना बड़ा कठिन होता है।- सागरके मोती १७
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सागरके मोती १७··
यद्यपि गुरुकी महिमा शास्त्रोंमें बहुत है, पर जो खुद गुरु बनकर लोगोंको अपनेमें लगाता है, भगवान्को छुड़ा देता है - वह कलियुग महाराजकी मूर्ति है।
||श्रीहरि:||
यद्यपि गुरुकी महिमा शास्त्रोंमें बहुत है, पर जो खुद गुरु बनकर लोगोंको अपनेमें लगाता है, भगवान्को छुड़ा देता है - वह कलियुग महाराजकी मूर्ति है।- यह कलियुग है ५
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यह कलियुग है ५··
यह कलियुगकी महिमा है कि कोई अच्छा काम नहीं हो। अधर्म ही अधर्म हो, धर्म हो ही नहीं; क्योंकि कलियुग अधर्मका मित्र है – 'कलिनाधर्ममित्रेण' ( श्रीमद्भा० १ । १५ । ४५)।
||श्रीहरि:||
यह कलियुगकी महिमा है कि कोई अच्छा काम नहीं हो। अधर्म ही अधर्म हो, धर्म हो ही नहीं; क्योंकि कलियुग अधर्मका मित्र है – 'कलिनाधर्ममित्रेण' ( श्रीमद्भा० १ । १५ । ४५)।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ९९
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ९९··
मनुष्य अपने भले-बुरे आचरणोंके द्वारा दुनियाका भला-बुरा करता है । भगवान्को याद करनेसे दुनियाको बहुत लाभ होगा, सबको शान्ति मिलेगी। कलियुगमें वर्षा कम होती है, सब लोग दुःख पाते हैं, अन्न-जल मिलना भी कठिन हो जाता है तो इसका कारण दुर्गुणों- दुराचारोंका फैलना है।
||श्रीहरि:||
मनुष्य अपने भले-बुरे आचरणोंके द्वारा दुनियाका भला-बुरा करता है । भगवान्को याद करनेसे दुनियाको बहुत लाभ होगा, सबको शान्ति मिलेगी। कलियुगमें वर्षा कम होती है, सब लोग दुःख पाते हैं, अन्न-जल मिलना भी कठिन हो जाता है तो इसका कारण दुर्गुणों- दुराचारोंका फैलना है।- पायो परम बिश्रामु ७८
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पायो परम बिश्रामु ७८··
शास्त्रमें आया है कि कलियुगमें दान ही एकमात्र धर्म है; अतः जिस - किसी प्रकारसे भी दान दिया जाय, वह कल्याण ही करता है। इसका तात्पर्य है कि कलियुगमें यज्ञ, दान, तप, व्रत आदि शुभकर्म विधिपूर्वक करने कठिन हैं; अतः किसी तरहसे देनेकी, त्याग करनेकी आदत पड़ जाय । इसलिये जिस किसी प्रकारसे भी दान देते रहना चाहिये।
||श्रीहरि:||
शास्त्रमें आया है कि कलियुगमें दान ही एकमात्र धर्म है; अतः जिस - किसी प्रकारसे भी दान दिया जाय, वह कल्याण ही करता है। इसका तात्पर्य है कि कलियुगमें यज्ञ, दान, तप, व्रत आदि शुभकर्म विधिपूर्वक करने कठिन हैं; अतः किसी तरहसे देनेकी, त्याग करनेकी आदत पड़ जाय । इसलिये जिस किसी प्रकारसे भी दान देते रहना चाहिये।- साधक संजीवनी १७ । २२ परि०
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साधक संजीवनी १७ । २२ परि०··
कलियुगमें ठीक विधि-विधान से ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमका पालन करके संन्यास- आश्रममें जाना तथा संन्यास आश्रमके नियमोंका पालन करना बहुत कठिन है। इसलिये शास्त्रमें संन्यासको कलिवर्ज्य (कलियुगमें वर्जित) माना गया है।
||श्रीहरि:||
कलियुगमें ठीक विधि-विधान से ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ आश्रमका पालन करके संन्यास- आश्रममें जाना तथा संन्यास आश्रमके नियमोंका पालन करना बहुत कठिन है। इसलिये शास्त्रमें संन्यासको कलिवर्ज्य (कलियुगमें वर्जित) माना गया है।- साधन-सुधा-सिन्धु ८५४
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साधन-सुधा-सिन्धु ८५४··
अभी कलियुगका राज्य होनेसे आगन्तुक शक्ति तो कलियुगकी है, पर स्थायी शक्ति हमारे पास है । अनादिकालसे जो वास्तविक शक्ति है, वह भगवान्की है। कलियुगको शक्ति भी भगवान्की दी हुई है। कलियुगका स्वतन्त्र अधिकार नहीं है । स्वतन्त्र अधिकार हमारा है। हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं। अतः हम भगवान्के अनुकूल हैं। हम कलियुगके अनुकूल हैं नहीं, पर हो जाते हैं।
||श्रीहरि:||
अभी कलियुगका राज्य होनेसे आगन्तुक शक्ति तो कलियुगकी है, पर स्थायी शक्ति हमारे पास है । अनादिकालसे जो वास्तविक शक्ति है, वह भगवान्की है। कलियुगको शक्ति भी भगवान्की दी हुई है। कलियुगका स्वतन्त्र अधिकार नहीं है । स्वतन्त्र अधिकार हमारा है। हम भगवान्के हैं, भगवान् हमारे हैं। अतः हम भगवान्के अनुकूल हैं। हम कलियुगके अनुकूल हैं नहीं, पर हो जाते हैं।- परम प्रभु अपने ही महुँ पायो २८
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परम प्रभु अपने ही महुँ पायो २८··
कलियुगके कारण लोगोंमें फर्क पड़ा है, भगवान्में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
||श्रीहरि:||
कलियुगके कारण लोगोंमें फर्क पड़ा है, भगवान्में कोई फर्क नहीं पड़ा है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२··
सत्ययुग आदिमें बड़े-बड़े ऋषियोंको जो भगवान् प्राप्त हुए थे, वे ही आज कलियुगमें भी सबको प्राप्त हो सकते हैं।
||श्रीहरि:||
सत्ययुग आदिमें बड़े-बड़े ऋषियोंको जो भगवान् प्राप्त हुए थे, वे ही आज कलियुगमें भी सबको प्राप्त हो सकते हैं।- अमृत-बिन्दु ४२४
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु ४२४··
कलियुग आनेपर भगवान् कमजोर नहीं हुए हैं। ज्यों-ज्यों समय गिरता है, त्यों-त्यों भगवान् सुगम होते हैं, सरलता से मिलते हैं। पर कोई सच्चे हृदयसे उनको पुकारनेवाला तो हो।
||श्रीहरि:||
कलियुग आनेपर भगवान् कमजोर नहीं हुए हैं। ज्यों-ज्यों समय गिरता है, त्यों-त्यों भगवान् सुगम होते हैं, सरलता से मिलते हैं। पर कोई सच्चे हृदयसे उनको पुकारनेवाला तो हो।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७९
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७९··
कलियुग उनके लिये खराब है, जो भगवान्का भजन - स्मरण नहीं करते। भगवान्का भजन - स्मरण करनेवालोंके लिये तो कलियुग बहुत बढ़िया है।
||श्रीहरि:||
कलियुग उनके लिये खराब है, जो भगवान्का भजन - स्मरण नहीं करते। भगवान्का भजन - स्मरण करनेवालोंके लिये तो कलियुग बहुत बढ़िया है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ४६
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ४६··
कलियुगमें भगवान्की विशेष कृपा होती है। अन्य युगोंकी अपेक्षा कलियुगमें भगवान् जल्दी मिलते हैं। अन्य युगोंमें वर्षोंतक भजन- ध्यान करनेपर जो प्राप्ति होती है, वह कलियुगमें दिनोंमें हो जाती है। कारण कि इस समय भगवान्को कोई पूछता नहीं । जिसको कोई नहीं पूछता, वह वस्तु सस्ती हो जाती है। जिस वस्तुके ग्राहक ज्यादा होते हैं, वह वस्तु मँहगी होती है। आज भगवान् निकम्मे बैठे हैं; क्योंकि लोग राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह आदिमें लगे हुए हैं।
||श्रीहरि:||
कलियुगमें भगवान्की विशेष कृपा होती है। अन्य युगोंकी अपेक्षा कलियुगमें भगवान् जल्दी मिलते हैं। अन्य युगोंमें वर्षोंतक भजन- ध्यान करनेपर जो प्राप्ति होती है, वह कलियुगमें दिनोंमें हो जाती है। कारण कि इस समय भगवान्को कोई पूछता नहीं । जिसको कोई नहीं पूछता, वह वस्तु सस्ती हो जाती है। जिस वस्तुके ग्राहक ज्यादा होते हैं, वह वस्तु मँहगी होती है। आज भगवान् निकम्मे बैठे हैं; क्योंकि लोग राग-द्वेष, काम-क्रोध, लोभ-मोह आदिमें लगे हुए हैं।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ३७
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ३७··
कलियुगमें प्रभुकी प्राप्ति, प्रभु प्रेमकी प्राप्ति अन्य युगोंसे भी जल्दी होती है । जिस चीजके ग्राहक कम होते हैं, वह चीज सस्ती हो जाती है। कलियुगमें भगवत्प्रेम, तत्त्वज्ञानके ग्राहक कम हैं, इसलिये ये चीजें सस्ती हैं । जिस परीक्षामें विद्यार्थी बहुत ज्यादा बैठते हैं, उसमें अच्छे नम्बर पानेवाले थोड़े होते हैं। परन्तु जिसमें कम विद्यार्थी होते हैं, उसमें अच्छे नम्बरवाले ज्यादा होते हैं और पास भी ज्यादा होते हैं, नहीं तो संस्था खुद फेल हो जाय।
||श्रीहरि:||
कलियुगमें प्रभुकी प्राप्ति, प्रभु प्रेमकी प्राप्ति अन्य युगोंसे भी जल्दी होती है । जिस चीजके ग्राहक कम होते हैं, वह चीज सस्ती हो जाती है। कलियुगमें भगवत्प्रेम, तत्त्वज्ञानके ग्राहक कम हैं, इसलिये ये चीजें सस्ती हैं । जिस परीक्षामें विद्यार्थी बहुत ज्यादा बैठते हैं, उसमें अच्छे नम्बर पानेवाले थोड़े होते हैं। परन्तु जिसमें कम विद्यार्थी होते हैं, उसमें अच्छे नम्बरवाले ज्यादा होते हैं और पास भी ज्यादा होते हैं, नहीं तो संस्था खुद फेल हो जाय।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १०८
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १०८··
भयंकर कलियुगसे बचनेका उपाय है- नामजप 'राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल' (मानस, बाल० २७) । कलियुगसे अपनी रक्षा करें रात-दिन नामजपमें लग जाओ। भगवन्नामके सिवाय कलियुगमें कोई रक्षा करनेवाला नहीं है।
||श्रीहरि:||
भयंकर कलियुगसे बचनेका उपाय है- नामजप 'राम नाम नरकेसरी कनककसिपु कलिकाल' (मानस, बाल० २७) । कलियुगसे अपनी रक्षा करें रात-दिन नामजपमें लग जाओ। भगवन्नामके सिवाय कलियुगमें कोई रक्षा करनेवाला नहीं है।- सत्संगके फूल ९०-९१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सत्संगके फूल ९०-९१··
अभी कलियुगका बड़ा क्रूर, आफत - ही- आफतका समय है। यह आफत भगवान्के भजनसे ही मिटेगी, और कोई उपाय नहीं है। भगवान्को याद करनेके समान दूसरा कोई उपाय नहीं है।
||श्रीहरि:||
अभी कलियुगका बड़ा क्रूर, आफत - ही- आफतका समय है। यह आफत भगवान्के भजनसे ही मिटेगी, और कोई उपाय नहीं है। भगवान्को याद करनेके समान दूसरा कोई उपाय नहीं है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १३३··
कलियुगमें कीर्तन करनेका माहात्म्य सबसे अधिक बताया गया है। कलियुगमें केवल भगवान्के कीर्तनसे उद्धार हो जाता है— कलौ तद्धरिकीर्तनात् ' ( श्रीमद्भा० १२ । ३ । ५२ ) । कीर्तन करनेमात्रसे मनुष्य परमात्माको प्राप्त हो जाता है- 'कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्' (श्रीमद्भा० १२ । ३ । ५१) |
||श्रीहरि:||
कलियुगमें कीर्तन करनेका माहात्म्य सबसे अधिक बताया गया है। कलियुगमें केवल भगवान्के कीर्तनसे उद्धार हो जाता है— कलौ तद्धरिकीर्तनात् ' ( श्रीमद्भा० १२ । ३ । ५२ ) । कीर्तन करनेमात्रसे मनुष्य परमात्माको प्राप्त हो जाता है- 'कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसङ्गः परं व्रजेत्' (श्रीमद्भा० १२ । ३ । ५१) |- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०५
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०५··
कलियुगसे बचनेके लिये 'हम भगवान्के हैं' - इस प्रकार भगवान्के शरण हो जाओ। जो भगवान्के चरणोंके शरण हो गया, उसका कलियुग कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
||श्रीहरि:||
कलियुगसे बचनेके लिये 'हम भगवान्के हैं' - इस प्रकार भगवान्के शरण हो जाओ। जो भगवान्के चरणोंके शरण हो गया, उसका कलियुग कुछ नहीं बिगाड़ सकता।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२··
भगवन्नामका जप और कीर्तन- दोनों कलियुगसे रक्षा करके उद्धार करनेवाले हैं।
||श्रीहरि:||
भगवन्नामका जप और कीर्तन- दोनों कलियुगसे रक्षा करके उद्धार करनेवाले हैं।- अमृत-बिन्दु २४३
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अमृत-बिन्दु २४३··
नल-दमयन्तीकी कथा कलियुगका प्रभाव दूर करनेवाली है। इसलिये हरेक भाई- बहनको नल- दमयन्तीकी कथा पढ़नी चाहिये। इससे बुद्धि शुद्ध होगी तथा कलियुगका असर नहीं होगा।
||श्रीहरि:||
नल-दमयन्तीकी कथा कलियुगका प्रभाव दूर करनेवाली है। इसलिये हरेक भाई- बहनको नल- दमयन्तीकी कथा पढ़नी चाहिये। इससे बुद्धि शुद्ध होगी तथा कलियुगका असर नहीं होगा।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९२··
इस भयंकर कलियुगसे बचना चाहते हो तो हरदम 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।' पुकारते रहो।
||श्रीहरि:||
इस भयंकर कलियुगसे बचना चाहते हो तो हरदम 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।' पुकारते रहो।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२७