Seeker of Truth

जड़-चेतन

दूसरोंके सुखके लिये कर्म करना अथवा दूसरोंका सुख चाहना 'चेतनता' है और अपने सुखके लिये कर्म करना अथवा अपना सुख चाहना 'जड़ता' है। भजन- ध्यान भी अपने सुखके लिये, शरीरके आराम, मान-आदरके लिये करना जड़ता है।

साधक संजीवनी १६ । ५ परि०··

जो अपनेको भी जानता है और दूसरेको भी जानता है, वह 'चेतन' है। जो न अपनेको जानता है, न दूसरेको जानता है, वह 'जड़' है। क्रिया जड़में होती है, चेतनमें नहीं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२१··

हमारी दृष्टिमें जड़ और चेतन दो हैं, पर वास्तवमें एक चिन्मय तत्त्व ही है, जड़ है ही नहीं।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ २३··

सब-का-सब जड़-विभाग केवल सेवाके लिये है, अपने सुखभोगके लिये है ही नहीं।

अनन्तकी ओर ११०··

जबतक जड़का असर पड़ता है, तबतक हमारी स्थिति जड़में है।

सत्संगके फूल ५१··

क्रिया और पदार्थ आपके कामके हैं ही नहीं। ये दुनियाके कामके हैं। इनके द्वारा दूसरोंकी सेवा करो। सेवाके सिवाय ये कोई काम नहीं हैं। ये जड़, नाशवान् हैं और आप परमात्माके चेतन अंश हो । नाशवान् वस्तु अविनाशीके क्या काम आयेगी ? उसमें आसक्ति करोगे तो पतन होगा । जड़ता के द्वारा तत्त्वज्ञान अथवा भक्ति प्राप्त नहीं होगी - यह एकदम पक्का सिद्धान्त है। क्रिया और पदार्थके साथ सम्बन्ध ही बन्धन है।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ८९··