हिन्दूधर्म एक वैज्ञानिक संस्कृति है । भगवान्ने भी इसको उत्पन्न नहीं किया है। वे इसके रक्षक हैं। ऋषि भी मन्त्रोंके द्रष्टा थे, रचयिता नहीं। वर्णाश्रमकी व्यवस्था वैज्ञानिक है। हिन्दू संस्कृतिके मूलमें कोई व्यक्ति नहीं है। यह स्वाभाविक धर्म है, सनातन धर्म है, अनदि धर्म है।
||श्रीहरि:||
हिन्दूधर्म एक वैज्ञानिक संस्कृति है । भगवान्ने भी इसको उत्पन्न नहीं किया है। वे इसके रक्षक हैं। ऋषि भी मन्त्रोंके द्रष्टा थे, रचयिता नहीं। वर्णाश्रमकी व्यवस्था वैज्ञानिक है। हिन्दू संस्कृतिके मूलमें कोई व्यक्ति नहीं है। यह स्वाभाविक धर्म है, सनातन धर्म है, अनदि धर्म है।- सागरके मोती ९७
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सागरके मोती ९७··
हिन्दूधर्म किसी मनुष्यके द्वारा चलाया हुआ नहीं है अर्थात् यह किसी मानवीय बुद्धिकी उपज नहीं है। यह तो विभिन्न ऋषियोंद्वारा किया गया अन्वेषण है, खोज है। खोज उसीकी होती है, जो पहलेसे ही मौजूद हो। हिन्दूधर्म अनादि, अनन्त एवं शाश्वत है। जैसे भगवान् शाश्वत (सनातन) हैं, ऐसे ही हिन्दूधर्म भी शाश्वत है।...... भगवान् भी इसकी संस्थापना, रक्षा करने के लिये ही अवतार लेते हैं, इसको बनानेके लिये, उत्पन्न करनेके लिये नहीं।
||श्रीहरि:||
हिन्दूधर्म किसी मनुष्यके द्वारा चलाया हुआ नहीं है अर्थात् यह किसी मानवीय बुद्धिकी उपज नहीं है। यह तो विभिन्न ऋषियोंद्वारा किया गया अन्वेषण है, खोज है। खोज उसीकी होती है, जो पहलेसे ही मौजूद हो। हिन्दूधर्म अनादि, अनन्त एवं शाश्वत है। जैसे भगवान् शाश्वत (सनातन) हैं, ऐसे ही हिन्दूधर्म भी शाश्वत है।...... भगवान् भी इसकी संस्थापना, रक्षा करने के लिये ही अवतार लेते हैं, इसको बनानेके लिये, उत्पन्न करनेके लिये नहीं।- साधक संजीवनी १४ । २७ टि०
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साधक संजीवनी १४ । २७ टि०··
हिन्दू-संस्कृतिका एकमात्र उद्देश्य मनुष्यका कल्याण करना है।
||श्रीहरि:||
हिन्दू-संस्कृतिका एकमात्र उद्देश्य मनुष्यका कल्याण करना है।- साधक संजीवनी ३ । १२
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साधक संजीवनी ३ । १२··
प्राणिमात्रके कल्याणके लिये जितना गहरा विचार हिन्दूधर्ममें किया गया है, उतना दूसरे धर्मों में नहीं मिलता। हिन्दूधर्मके सभी सिद्धान्त पूर्णतः वैज्ञानिक और कल्याण करनेवाले हैं।
||श्रीहरि:||
प्राणिमात्रके कल्याणके लिये जितना गहरा विचार हिन्दूधर्ममें किया गया है, उतना दूसरे धर्मों में नहीं मिलता। हिन्दूधर्मके सभी सिद्धान्त पूर्णतः वैज्ञानिक और कल्याण करनेवाले हैं।- साधक संजीवनी १४ । २७ टि०
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साधक संजीवनी १४ । २७ टि०··
मुक्तिका मार्ग जितना हिन्दुओंके शास्त्रोंमें बताया गया है, उतना किसी देशकी भाषामें नहीं बताया गया है। मैंने इस विषयमें खोज की है।....... हिन्दूधर्ममें कल्याणकी बहुत सुगम सुगम बातें बतायी गयी हैं। वैसी बातें मैंने किसी धर्ममें सुनी नहीं हैं। जीवका कल्याण कैसे हो – इसपर हिन्दुओंके ऋषियों-मुनियोंने जितना ध्यान दिया है, उतना किसीने नहीं दिया है।
||श्रीहरि:||
मुक्तिका मार्ग जितना हिन्दुओंके शास्त्रोंमें बताया गया है, उतना किसी देशकी भाषामें नहीं बताया गया है। मैंने इस विषयमें खोज की है।....... हिन्दूधर्ममें कल्याणकी बहुत सुगम सुगम बातें बतायी गयी हैं। वैसी बातें मैंने किसी धर्ममें सुनी नहीं हैं। जीवका कल्याण कैसे हो – इसपर हिन्दुओंके ऋषियों-मुनियोंने जितना ध्यान दिया है, उतना किसीने नहीं दिया है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ४९-५०
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ४९-५०··
मनुष्यमात्रको परमात्मप्राप्ति हो सकती है, चाहे वह किसी भी देश, जाति, सम्प्रदाय, धर्म आदिका क्यों न हो। मनुष्यों में भी हिन्दुओंको कल्याणका जितना अधिकार मिला है, उतना औरोंको नहीं मिला है। यह बात मैं बेहोशीमें, अनजानपनेमें नहीं कहता हूँ । हमारे ऋषियोंने हरेक क्षेत्रमें बड़ी विलक्षण खोज की है। ऐसी विलक्षण खोज किसी देशके किसी मनुष्यने नहीं की है।
||श्रीहरि:||
मनुष्यमात्रको परमात्मप्राप्ति हो सकती है, चाहे वह किसी भी देश, जाति, सम्प्रदाय, धर्म आदिका क्यों न हो। मनुष्यों में भी हिन्दुओंको कल्याणका जितना अधिकार मिला है, उतना औरोंको नहीं मिला है। यह बात मैं बेहोशीमें, अनजानपनेमें नहीं कहता हूँ । हमारे ऋषियोंने हरेक क्षेत्रमें बड़ी विलक्षण खोज की है। ऐसी विलक्षण खोज किसी देशके किसी मनुष्यने नहीं की है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७८
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७८··
मुक्ति, कल्याणके लिये हिन्दूधर्ममें जितना प्रयास किया गया है, उतना अन्य किसीने नहीं किया है। इस विषयमें मैंने खूब विचार किया है।
||श्रीहरि:||
मुक्ति, कल्याणके लिये हिन्दूधर्ममें जितना प्रयास किया गया है, उतना अन्य किसीने नहीं किया है। इस विषयमें मैंने खूब विचार किया है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०६
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०६··
हिन्दूधर्ममें मुक्ति जितनी सस्ती है, इतनी सस्ती किसी धर्ममें नहीं है, किसी शास्त्रमें नहीं है।
||श्रीहरि:||
हिन्दूधर्ममें मुक्ति जितनी सस्ती है, इतनी सस्ती किसी धर्ममें नहीं है, किसी शास्त्रमें नहीं है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७३
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७३··
हिन्दूधर्म बहुत विलक्षण है । इसमें छोटी-से-छोटी बातसे लेकर बड़ी-से-बड़ी बातका धर्मसे सम्बन्ध है, और धर्मका सम्बन्ध कल्याणके साथ है। जीव अपना उद्धार कर ले, इसके लिये सन्त- महात्माओंने इस पद्धतिकी खोज की है। हिन्दूधर्ममें छोटे-बड़े जो-जो नियम बताये गये हैं, वे सब कल्याणके साथ सम्बन्ध रखते हैं। कोई परम्परासे सम्बन्ध रखते हैं, कोई साक्षात् सम्बन्ध रखते हैं, पर वास्तवमें सबका सम्बन्ध परमात्माके साथ है। इसमें व्याकरण भी एक दर्शनशास्त्र है, जिससे अन्तमें ब्रह्मकी प्राप्ति बतायी है। अतः इस धर्मका त्याग करना वास्तवमें अपने कल्याणका त्याग करना है, परमात्मप्राप्तिका त्याग करना है।
||श्रीहरि:||
हिन्दूधर्म बहुत विलक्षण है । इसमें छोटी-से-छोटी बातसे लेकर बड़ी-से-बड़ी बातका धर्मसे सम्बन्ध है, और धर्मका सम्बन्ध कल्याणके साथ है। जीव अपना उद्धार कर ले, इसके लिये सन्त- महात्माओंने इस पद्धतिकी खोज की है। हिन्दूधर्ममें छोटे-बड़े जो-जो नियम बताये गये हैं, वे सब कल्याणके साथ सम्बन्ध रखते हैं। कोई परम्परासे सम्बन्ध रखते हैं, कोई साक्षात् सम्बन्ध रखते हैं, पर वास्तवमें सबका सम्बन्ध परमात्माके साथ है। इसमें व्याकरण भी एक दर्शनशास्त्र है, जिससे अन्तमें ब्रह्मकी प्राप्ति बतायी है। अतः इस धर्मका त्याग करना वास्तवमें अपने कल्याणका त्याग करना है, परमात्मप्राप्तिका त्याग करना है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५८-५९
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५८-५९··
वास्तवमें अन्य सभी धर्म तथा मत मतान्तर भी इसी सनातन धर्मसे उत्पन्न हुए हैं। इसलिये उन धर्मोंमें मनुष्योंके कल्याणके लिये जो साधन बताये गये हैं, उनको भी हिन्दूधर्मकी ही देन मानना चाहिये।
||श्रीहरि:||
वास्तवमें अन्य सभी धर्म तथा मत मतान्तर भी इसी सनातन धर्मसे उत्पन्न हुए हैं। इसलिये उन धर्मोंमें मनुष्योंके कल्याणके लिये जो साधन बताये गये हैं, उनको भी हिन्दूधर्मकी ही देन मानना चाहिये।- साधक संजीवनी १४ । २७ टि०
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साधक संजीवनी १४ । २७ टि०··
हमारी संस्कृति सब कार्य धर्मके अनुसार करनेकी है। इसलिये हम हरेक काममें ब्राह्मणसे पूछते हैं।
||श्रीहरि:||
हमारी संस्कृति सब कार्य धर्मके अनुसार करनेकी है। इसलिये हम हरेक काममें ब्राह्मणसे पूछते हैं।- सागरके मोती १००
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सागरके मोती १००··
हमारी सनातन वैदिक संस्कृति ऐसी विलक्षण है कि कोई भी कार्य करना होता है तो वह धर्मको सामने रखकर ही होता है। युद्ध जैसा कार्य भी धर्मभूमि - तीर्थभूमिमें ही करते हैं, जिससे युद्धमें मरनेवालोंका उद्धार हो जाय, कल्याण हो जाय - 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे' (गीता १ । १) ।
||श्रीहरि:||
हमारी सनातन वैदिक संस्कृति ऐसी विलक्षण है कि कोई भी कार्य करना होता है तो वह धर्मको सामने रखकर ही होता है। युद्ध जैसा कार्य भी धर्मभूमि - तीर्थभूमिमें ही करते हैं, जिससे युद्धमें मरनेवालोंका उद्धार हो जाय, कल्याण हो जाय - 'धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे' (गीता १ । १) ।- साधक संजीवनी १1१
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साधक संजीवनी १1१··
सनातनधर्मकी खास रीति है कि कोई उत्सव हो तो भगवान्का भजन करो, भगवान्को याद करो, भगवान्का नाम लो, भगवान्का चिन्तन करो।
||श्रीहरि:||
सनातनधर्मकी खास रीति है कि कोई उत्सव हो तो भगवान्का भजन करो, भगवान्को याद करो, भगवान्का नाम लो, भगवान्का चिन्तन करो।- परम प्रभु अपने ही महुँ पायो १२३
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परम प्रभु अपने ही महुँ पायो १२३··
एकतामें अनेकता और अनेकतामें एकता हिन्दूधर्मकी विशेषता है।
||श्रीहरि:||
एकतामें अनेकता और अनेकतामें एकता हिन्दूधर्मकी विशेषता है।- सागरके मोती १२८
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सागरके मोती १२८··
व्यवहारमें ही परमार्थकी सिद्धि हमारी संस्कृतिकी विलक्षणता है।
आजकलका विज्ञान पत्तेसे चलकर मूलकी तरफ जाता है, पर हमारी संस्कृति मूलसे विचार करती है।
||श्रीहरि:||
आजकलका विज्ञान पत्तेसे चलकर मूलकी तरफ जाता है, पर हमारी संस्कृति मूलसे विचार करती है।- सत्संगके फूल ५५
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सत्संगके फूल ५५··
हिन्दू संस्कृति सेवाके लिये ही है।
||श्रीहरि:||
हिन्दू संस्कृति सेवाके लिये ही है।- स्वातिकी बूँदें ७१
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स्वातिकी बूँदें ७१··
मनुष्यके पास शरीर, योग्यता, पद, अधिकार, विद्या, बल आदि जो कुछ है, वह सब मिला हुआ है और बिछुड़नेवाला है। इसलिये वह अपना और अपने लिये नहीं है, प्रत्युत दूसरोंकी सेवाके लिये है। इस बातमें हमारी भारतीय संस्कृतिका पूरा सिद्धान्त आ जाता है।
||श्रीहरि:||
मनुष्यके पास शरीर, योग्यता, पद, अधिकार, विद्या, बल आदि जो कुछ है, वह सब मिला हुआ है और बिछुड़नेवाला है। इसलिये वह अपना और अपने लिये नहीं है, प्रत्युत दूसरोंकी सेवाके लिये है। इस बातमें हमारी भारतीय संस्कृतिका पूरा सिद्धान्त आ जाता है।- साधक संजीवनी ३ । १३ परि०
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साधक संजीवनी ३ । १३ परि०··
हिन्दू संस्कृति केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही है।
||श्रीहरि:||
हिन्दू संस्कृति केवल परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ११४
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश ११४··
साधारण-से- साधारण आदमी भी परमात्माको प्राप्त कर सकता है - यह विशेषता केवल हिन्दूधर्ममें ही है।
||श्रीहरि:||
साधारण-से- साधारण आदमी भी परमात्माको प्राप्त कर सकता है - यह विशेषता केवल हिन्दूधर्ममें ही है।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ४१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश ४१··
हिन्दू संस्कृति ही यह बात कहती है कि 'तुम परमात्माके हो'; 'तुम परमात्माके बन जाओ - यह नहीं कहती।
||श्रीहरि:||
हिन्दू संस्कृति ही यह बात कहती है कि 'तुम परमात्माके हो'; 'तुम परमात्माके बन जाओ - यह नहीं कहती।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६७··
मूलमें सभी मनुष्य मनुकी सन्तान हैं। इसलिये सभी मनुष्य एक हैं। मुसलमान, ईसाई, यहूदी, पारसी भी दूसरे नहीं हैं। परन्तु पीढ़ियाँ दूर पड़ गयीं, उनके व्यवहार अलग-अलग हो गये, इसलिये पता नहीं लगता। वास्तवमें सभी हमारे भाई-बन्धु, कुटुम्बी हैं। परन्तु यह भाव हिन्दुओं में जितनी जल्दी पनप सकता है, उतना दूसरोंमें नहीं । कारण कि उनमें हिन्दुओंके प्रति द्वेष हो गया । यह नीयतकी खराबी है।
||श्रीहरि:||
मूलमें सभी मनुष्य मनुकी सन्तान हैं। इसलिये सभी मनुष्य एक हैं। मुसलमान, ईसाई, यहूदी, पारसी भी दूसरे नहीं हैं। परन्तु पीढ़ियाँ दूर पड़ गयीं, उनके व्यवहार अलग-अलग हो गये, इसलिये पता नहीं लगता। वास्तवमें सभी हमारे भाई-बन्धु, कुटुम्बी हैं। परन्तु यह भाव हिन्दुओं में जितनी जल्दी पनप सकता है, उतना दूसरोंमें नहीं । कारण कि उनमें हिन्दुओंके प्रति द्वेष हो गया । यह नीयतकी खराबी है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०८
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ १०८··
हिन्दूधर्ममें अनेक देवी-देवता होनेपर भी इष्ट एक ही होता है। जैसे ज्यादा पुर्जेवाली घड़ी बढ़िया होती है, थोड़े पुर्जोंवाली घड़ी बढ़िया नहीं होती, ऐसे ही अनेक उपासनाओंवाला धर्म सबसे श्रेष्ठ होता है; क्योंकि लोग अपनी-अपनी रुचिके अनुसार उपासना करके अपना कल्याण कर सकते हैं। सबको एक लाठीसे हाँकना पशुओं काम है।
||श्रीहरि:||
हिन्दूधर्ममें अनेक देवी-देवता होनेपर भी इष्ट एक ही होता है। जैसे ज्यादा पुर्जेवाली घड़ी बढ़िया होती है, थोड़े पुर्जोंवाली घड़ी बढ़िया नहीं होती, ऐसे ही अनेक उपासनाओंवाला धर्म सबसे श्रेष्ठ होता है; क्योंकि लोग अपनी-अपनी रुचिके अनुसार उपासना करके अपना कल्याण कर सकते हैं। सबको एक लाठीसे हाँकना पशुओं काम है।- अनन्तकी ओर १७१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अनन्तकी ओर १७१··
हिन्दू संस्कृतिके मूलमें भी कोई व्यक्ति, आचार्य नहीं है। यह हिन्दू संस्कृतिकी विलक्षणता है। हिन्दू-संस्कृति 'धर्म' है, सम्प्रदाय नहीं । सम्प्रदाय गुरुसे चली परम्परामें होता है।
||श्रीहरि:||
हिन्दू संस्कृतिके मूलमें भी कोई व्यक्ति, आचार्य नहीं है। यह हिन्दू संस्कृतिकी विलक्षणता है। हिन्दू-संस्कृति 'धर्म' है, सम्प्रदाय नहीं । सम्प्रदाय गुरुसे चली परम्परामें होता है।- स्वातिकी बूँदें ३०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें ३०··
हमारे धर्ममें किसीका अपमान नहीं है। छुआछूतका विचार करके हम किसी मनुष्यका अपमान, तिरस्कार नहीं करते, प्रत्युत अपनी शुद्धि करते हैं। इसमें दूसरेकी क्या हानि है ? स्नान तो हम करते हैं दूसरेसे थोड़े ही स्नान करनेको कहते हैं ?
||श्रीहरि:||
हमारे धर्ममें किसीका अपमान नहीं है। छुआछूतका विचार करके हम किसी मनुष्यका अपमान, तिरस्कार नहीं करते, प्रत्युत अपनी शुद्धि करते हैं। इसमें दूसरेकी क्या हानि है ? स्नान तो हम करते हैं दूसरेसे थोड़े ही स्नान करनेको कहते हैं ?- स्वातिकी बूँदें ३५
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स्वातिकी बूँदें ३५··
पाँच चीजें आपकी संस्कृतिकी रक्षा करनेवाली हैं- विवाह, भोजन, वेशभूषा, भाषा और व्यवसाय । इनका त्याग करनेसे बड़ी भारी हानि होगी; आपका हिन्दूपना नहीं रहेगा।
||श्रीहरि:||
पाँच चीजें आपकी संस्कृतिकी रक्षा करनेवाली हैं- विवाह, भोजन, वेशभूषा, भाषा और व्यवसाय । इनका त्याग करनेसे बड़ी भारी हानि होगी; आपका हिन्दूपना नहीं रहेगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६७
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६७··
देशमें हिन्दुओंकी वृद्धि अत्यन्त आवश्यक है। इसमें केवल हिन्दुओंका ही नहीं, प्रत्युत सभी धर्मोंके लोगोंका हित निहित है; क्योंकि हिन्दूधर्म प्राणिमात्रका हित चाहता है। हिन्दू ही 'विश्व - कल्याण- यज्ञ' के आयोजन करता है। 'विश्वका कल्याण हो' - यह नारा भी हिन्दू ही लगाता है। घर-घरमें 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥' – ऐसी प्रार्थना भी हिन्दू ही करता है । 'वासुदेवः सर्वम्', 'सब जग ईश्वररूप है' ऐसी शिक्षा भी हिन्दू ही देता है।
||श्रीहरि:||
देशमें हिन्दुओंकी वृद्धि अत्यन्त आवश्यक है। इसमें केवल हिन्दुओंका ही नहीं, प्रत्युत सभी धर्मोंके लोगोंका हित निहित है; क्योंकि हिन्दूधर्म प्राणिमात्रका हित चाहता है। हिन्दू ही 'विश्व - कल्याण- यज्ञ' के आयोजन करता है। 'विश्वका कल्याण हो' - यह नारा भी हिन्दू ही लगाता है। घर-घरमें 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥' – ऐसी प्रार्थना भी हिन्दू ही करता है । 'वासुदेवः सर्वम्', 'सब जग ईश्वररूप है' ऐसी शिक्षा भी हिन्दू ही देता है।- साधन-सुधा-सिन्धु ९९२
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साधन-सुधा-सिन्धु ९९२··
यदि हिन्दू समाज एकता रखता तो उसमें आँच नहीं आ सकती थी । हिन्दुओंमें जो शूरवीरता, दैवी सम्पत्ति मिलती है, वह औरोंमें नहीं मिलती, पर वह एकता नहीं रखता, यह उसमें बड़ी भारी कमी है।
||श्रीहरि:||
यदि हिन्दू समाज एकता रखता तो उसमें आँच नहीं आ सकती थी । हिन्दुओंमें जो शूरवीरता, दैवी सम्पत्ति मिलती है, वह औरोंमें नहीं मिलती, पर वह एकता नहीं रखता, यह उसमें बड़ी भारी कमी है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५०