Seeker of Truth

एकान्त

जब मनुष्य भगवान्‌में लगता है, तब उसके मनमें आती है कि एकान्त मिल जाय, समयपर अन्न-जल ठीक मिल जाय तो भजन अच्छा होगा। पर इसमें धोखा होता है; भजन नहीं होता, प्रत्युत अनुकूलताका भोग होता है। एकान्तमें बैठने सोनेमें आराम ज्यादा मिलेगा, नींद बढ़िया आयगी । अगर भगवान्‌में मन लग जाय, लगन बढ़ जाय, संसारका चिन्तन कम हो जाय, नींद कम हो जाय तो एकान्त हो या समुदाय, वही परिस्थिति बढ़िया है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२४··

एकान्तमें रहकर साधन करनेकी अपेक्षा समुदायमें रहकर साधन करना श्रेष्ठ है। समुदायमें रहकर साधन करनेवाला एकान्तमें भी साधन कर सकता है, पर एकान्तमें साधन करनेवाला समुदायमें रहकर साधन नहीं कर सकता - यह उसमें एक कमजोरी रहती है।

सत्संग-मुक्ताहार ४०··

एकान्तमें भजन करनेकी अपेक्षा सत्संगसे, वास्तविक तत्त्वका विवेचन करनेवाली पुस्तकोंसे बहुत लाभ होता है।

सागरके मोती ७··

जो संसारका काम करते हुए भजन करता है, उसका भजन जैसा बढ़िया होता है, वैसा एकान्तमें रहनेवालेका नहीं होता। यदि उसे एकान्त न मिले तो उसका भजन छूट जाता है, पर संसारका काम करते हुए भजन करनेवालेका भजन छूटता नहीं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२२··

यदि एकान्तमें संसारका चिन्तन ज्यादा होता है और नींद ज्यादा आती है तो वह एकान्तका पात्र नहीं है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश २२३··

एकान्तवास ऐसी चीज है जो सात्त्विक पुरुषके सत्त्वगुणको बढ़ाता है, राजस पुरुषके रजोगुणको बढ़ाता है और तामस पुरुषके तमोगुणको बढ़ाता है।

स्वातिकी बूँदें १७७··

एकान्त-सेवन सत्त्व, रज और तम तीनों गुणोंको बढ़ाता है। यदि आपमें तमोगुण है तो एकान्त में नींद बढ़िया आयेगी। यदि आपमें रजोगुण है तो संसारका चिन्तन बढ़िया होगा; क्योंकि काम करते समय चिन्तनका मौका नहीं मिलता।

स्वातिकी बूँदें १५··

जिसकी इच्छा होगी, उसकी पराधीनता, गुलामी होगी ही । एकान्तकी भी इच्छा होगी तो एकान्तकी पराधीनता होगी।

स्वातिकी बूँदें ११९··

एकान्तकी इच्छा करनेवाला परिस्थितिके अधीन होता है। जो परिस्थितिके अधीन होता है, वह भोगी होता है, योगी नहीं।

अमृत-बिन्दु ५२··

निर्जन स्थानमें चले जानेको अथवा अकेले पड़े रहनेको एकान्त मान लेना भूल है; क्योंकि सम्पूर्ण संसारका बीज यह शरीर तो साथमें है ही। जबतक शरीरके साथ सम्बन्ध है, तबतक सम्पूर्ण संसारके साथ सम्बन्ध बना हुआ है।

अमृत-बिन्दु ५४··

शरीरसे सम्बन्ध-विच्छेद होना अर्थात् उसमें अहंता - ममता न रहना ही वास्तविक एकान्त है।

साधक संजीवनी ३ । ४··