Seeker of Truth

ईश्वरका स्मरण

हमने सोचा कि सुगमतासे सब भाइयोंका कल्याण कैसे हो ? सब बहनोंका कल्याण कैसे हो ? सबका उद्धार कैसे हो? तो सुगम मार्ग यह है कि हरदम भगवान्‌को याद रखो कि यह सब भगवान् हैं। यह सबका कल्याण करनेवाली बात है।

मैं नहीं, मेरा नहीं ९९··

जिस समय आप भगवान्‌को याद करते हैं, उस समय आपका सम्बन्ध भगवान्‌के साथ होता है, आपकी स्थिति भगवान्‌में होती है।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ३०··

कोई काम करो, कहीं जाओ, भगवान्‌को अवश्य याद कर लो। भगवान्‌को याद करनेमात्रसे मनुष्य संसार-बन्धनसे छूट जाता है- 'यस्य स्मरणमात्रेण जन्मसंसारबन्धनात् । विमुच्यते ......॥' ( महाभारत, अनुशासन० १४९ ) । भगवान्‌को याद करनेसे उनकी कृपासे सब काम सिद्ध होते हैं .......भगवान्‌को याद रखनेसे विजय और भूल जानेसे पराजय होती है। इसलिये हरेक काम भगवान्‌को याद करके करो।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ३५··

जैसे वृक्षके मूलमें पानी देनेसे पूरे वृक्षको पुष्टि मिलती है और अन्न-जल देनेसे पूरे शरीरको शक्ति मिलती है, ऐसे ही भगवान्‌को याद करनेसे दुनियामात्रको ताकत मिलती है। यह गुप्त बात है, हर कोई बताता नहीं।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ३५··

भगवान्‌को याद रखना तीन तरहसे होता है-काम करते हुए भगवान्‌को याद रखना, भगवान्‌को याद रखते हुए काम करना, और भगवान्का ही समझकर काम करना। काम करते हुए भगवान्‌को याद रखनेसे बढ़िया है- भगवान्‌को याद रखते हुए काम करना, और इससे भी बढ़िया है— भगवान्का ही काम करना।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६७-१६८··

भगवान्‌को याद रखनेमात्रसे सब ऋद्धियाँ - सिद्धियाँ पासमें आ जाती हैं।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ४५··

असली सत्संग अर्थात् सत्का संग है- भगवान् याद रहें। परमात्मा 'सत्' हैं और उनको याद रखना 'सत्संग' है।...... हरदम जप करनेसे इतनी सिद्धि नहीं होती, जितनी भगवान्‌को याद करनेसे होती है।

मैं नहीं, मेरा नहीं ९९··

सन्त श्रेष्ठ पुरुष, हमारे हितैषी, माता, पिता, सुहृद्, मित्र वही हैं, जो हमें भगवान्‌की याद करा दें।

मैं नहीं, मेरा नहीं ९८··

भगवान्का स्मरण मुख्य है, अन्य काम गौण हैं। साधु, वृद्ध, रोगी और विधवाके लिये तो भगवत्स्मरणके सिवाय अन्य कोई जरूरी काम है ही नहीं। पर यह बात उनके लिये है, जो अपना कल्याण, भगवत्प्राप्ति चाहते हैं।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९७··

जिसने परमात्माको हर समय याद रखा, वह सन्त महात्मा हो गया।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४··

हरदम भगवान्‌को याद करो और 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारते रहो तो आपकी विलक्षण स्थिति हो जायगी। लोग आपको महात्मा कहेंगे।

सत्यकी खोज ७९··

भगवत्स्मरण समस्त साधनोंका सार है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश २१··

कोई भी काम करें, पहले भगवान्‌को याद करें - यह हमारी संस्कृतिकी खास बात है।......अगर आप आध्यात्मिक उन्नति चाहते हैं तो हरेक कामसे पहले भगवान्‌को याद करें।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ९८··

भगवान्‌का चिन्तन करनेवाले किसी भी मार्गमें जायँ, उनको सफलता मिलती है। कारण कि भगवान्‌को याद करनेसे सद्बुद्धि पैदा होती है, सद्बुद्धि होनेसे बुद्धि विकसित होती है और बुद्धि विकसित होनेसे वे फेल नहीं होते।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०२··

आपको अबतक भगवान्‌का जैसा स्वरूप समझमें आया है, उसको हर समय याद करो। भगवान् उसीको अपना स्वरूप मान लेते हैं, यह उनका कायदा है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२२··

भगवान्‌को याद करनेसे सब काम ठीक होता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि सब मिट जाते हैं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १२३··

एक नंबरका काम भगवान्‌को याद करना है, दो नंबरका काम पुण्यकर्म करना है।

सत्संगके फूल १०४··

भगवान्‌को याद करनेवालेकी बुद्धि भ्रष्ट नहीं होती। उसकी बुद्धि तेज होती है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १८७··

भगवान्‌को याद करनेसे, उनकी चर्चा करनेसे सद्गुण- सदाचार स्वाभाविक आते हैं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९४··

भगवान्‌की प्रसन्नता इस बातमें है कि हम उनको याद रखें - 'अच्युतः स्मृतिमात्रेण'। उनको याद रखनेमात्रसे एक विलक्षणता आती है, बुद्धिका विकास होता है, आगेका साधन स्वतः पैदा होता है। आगे कैसे चलना चाहिये, क्या करना चाहिये, कैसे करना चाहिये, इसका अपने-आप प्रकाश मिलता है। मनुष्यको आश्चर्य आता है कि हम तो कुछ जानते नहीं थे, फिर इतनी विलक्षणता हमारेमें कैसे आयी । ऐसी विलक्षणता अपने-आप आयेगी और आप आगे बढ़ते चले जायँगे । केवल भगवान्‌का आश्रय ले और उनको भूले नहीं तो अपने-आप सब काम ठीक होता है। हम भगवान्के हैं - इसको याद करनेमात्रसे रास्ता अपने-आप साफ होता है।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ १००- १०१··

आप हरेक काममें भगवान्‌को याद करनेकी आदत डाल लें। आपका सत्संग सफल हो जायगा । कहीं भी जायँ तो चार बार 'नारायण' नामका उच्चारण करके जायँ सब काम ठीक हो जायगा और खराब कामसे बच जाओगे। खराब कामसे बचना और अच्छे काममें लगना- दोनों बातें 'नारायण-नारायण' कहनेसे हो जायँगी। भगवान्‌का जो भी नाम आपको प्रिय हो, वह लें। अगर आप हरेक काममें भगवान्‌को याद करनेकी बात स्वीकार कर लें और बाल-बच्चोंको भी सिखा दें तो हमारा बहुत बड़ा काम हो जायगा । मैं आपकी अपने ऊपर बड़ी कृपा मानूँगा ।

अनन्तकी ओर ४३··

भगवान् से एक ही चीज माँगो कि 'हे नाथ। हे कृपासिन्धो । मैं आपको भूलूँ नहीं'। इसके सिवाय और कोई आवश्यकता नहीं जितना भगवान्‌को याद रखोगे, उतना आपका स्वभाव सुधर जायगा, आचरण सुधर जायगा। आपका सब सुधर जायगा । भगवान्‌को याद रखनेसे कपूताई मिट जाती है और सपूताई आ जाती है।

अनन्तकी ओर ४६-४७··

भगवान्‌में लग जाओ तो सब ठीक हो जायगा । दोषोंपर ज्यादा विचार मत करो। ज्यादा विचार यह करो कि भगवान्‌को भूल न जायँ । दोष अपने-आप छूट जायँगे।

पायो परम बिश्रामु ३५··

सब भाई-बहनोंके लिये एक ही बात है कि हर समय भगवान्‌की याद बनी रहे। भगवान् याद करने मात्रसे प्रसन्न हो जाते हैं। इतना सस्ता कोई नहीं है । इतने तरहके दुःख हैं कि जिनका वर्णन नहीं हो सकता, वे सब-के-सब दुःख केवल भगवान्‌को याद करनेमात्र से मिट जायँगे ।

अनन्तकी ओर १३५··

हर समय भगवान्‌को 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो। चलते-फिरते, उठते-बैठते भगवान्‌को याद करो । 'हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्' (श्रीमद्भा० ८। १० । ५५ ) - भगवान्‌को याद करनेसे सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश होता है, सब पाप नष्ट होते हैं, सब विलक्षण दैवी शक्तियाँ पैदा होती हैं । भगवान्‌की विस्मृति महान् पतन करनेवाली है।

अनन्तकी ओर ७४··

अगर कोई खराब चिन्तन आ जाय तो सावधान हो जायँ कि यदि इस समय मृत्यु हो जाय तो क्या गति होगी? अगर सब समय प्रभुका स्मरण होता रहे तो मृत्यु कभी भी आ जाय, कोई चिन्ता नहीं है।

अमृत-बिन्दु ९६६··

भगवान्‌को यादमात्र करनेसे भगवान्‌की शक्ति आ जायगी। विश्वासपूर्वक भगवान्‌का स्मरण करनेसे असम्भव भी सम्भव हो जाता है, कठिन भी सुगम हो जाता है। संसार बदल जाता है।

अनन्तकी ओर १६६··

एक भगवान्‌को याद रखनेमात्रसे आप बड़े भारी भक्त हो जाओगे ।

अनन्तकी ओर १६६··

प्रत्येक कार्यमें समयका विभाग होता है, जैसे- यह समय सोनेका और यह समय जगनेका है, यह समय नित्यकर्मका है, यह समय जीविकाके लिये काम-धंधा करनेका है, यह समय भोजनका है, आदि-आदि। परन्तु भगवान्‌के स्मरणमें समयका विभाग नहीं होना चाहिये। भगवान्‌को तो सब समयमें ही याद रखना चाहिये।

साधक संजीवनी ८ । ७··

अगर क्रियाके आरम्भ और अंतमें साधकको भगवत्स्मृति है, तो क्रिया करते समय भी उसकी निरन्तर सम्बन्धात्मक भगवत्स्मृति रहती है-ऐसा मानना चाहिये।

साधक संजीवनी १२ ।१··

भगवान्‌के स्मरणमें खास हेतु उनमें अपनापन हैं। भगवान् ही मेरे हैं और मेरे लिये हैं- इस प्रकार भगवान्में अपनापन होनेसे स्वतः भगवान्‌में प्रेम होता है और जिसमें प्रेम होता है, उसका स्मरण अपने-आप और नित्य निरन्तर होता है।

साधक संजीवनी ८ । १४ परि०··

सब समय भगवान्‌को याद करनेका उपाय है-उसीका हो जाय। जैसे विवाह होनेपर कन्या पतिकी हो जाती है, उसकी अहंता बदल जाती है कि मैं ससुरालकी हूँ, ऐसे आप अपनी अहंताको बदल दें कि मैं तो भगवान्का हूँ।

अनन्तकी ओर १६० - १६१··

हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - यह प्रार्थना हरेक भाई-बहनके लिये बड़े कामकी है । आप हरदम यह प्रार्थना करके देखो तो सही, विचित्रता आ जायगी । बीचमें अपनी बुद्धि मत लगाओ। भगवान्‌को भूलें नहीं, फिर सब काम ठीक हो जायगा ।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २४··

भगवान्‌को हर समय याद करो। भगवान्‌को याद रखनेके समान कोई कीमती बात नहीं है। रात- दिन, सुबह-शाम हर समय भगवान् से प्रार्थना करो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। भगवान्की स्मृति सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश करनेवाली है - 'हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्' (श्रीमद्भा० ८ । १० । ५५) ।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २८··

भगवान्‌को याद करनेमात्रसे वे प्रसन्न हो जाते हैं - 'अच्युतः स्मृतिमात्रेण' । भगवान्से एक ही चीज माँगो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। यह एक मन्त्र है, जिससे भगवान्की स्मृति होगी। स्मृति होनेसे आपमें शान्ति, आनन्द, दया, क्षमा, उदारता आदिका ठिकाना नहीं रहेगा। सम्पूर्ण दुःखोंका अत्यन्त अभाव हो जायगा ।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ४५··

भीतरसे बार-बार पुकारो – 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। यह इतनी बढ़िया चीज है, जो आपका उद्धार कर देगी।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५४··

भगवान्‌की याद एक प्रकाश है। अपने पास हरदम प्रकाश रखो, अँधेरा मत होने दो। हरदम प्रार्थना करते रहो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। भगवान्‌को याद रखनेसे आपमें अपने- आप सद्बुद्धि पैदा होगी। सद्गुण- सदाचार आपके पासमें आ जायँगे।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ९५··

आप रात-दिन नामजप करो और भगवान्से बार-बार कहो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। पाँच मिनटमें सात मिनटमें दस मिनटमें आधे घण्टेमें, एक घण्टेमें कहते रहो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। एक घण्टेसे अधिक समय न निकले। निहाल हो जाओगे । इसमें लाभ- ही लाभ है, हानि है ही नहीं। यह सभीके लिये बहुत बढ़िया चीज है। आपका लोक और परलोक सब सुधर जायगा।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ६९··

हमारे द्वारा प्रार्थना किये बिना, माँगे बिना जब भगवान्ने अपने-आप इतना दिया है, तो फिर 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' ऐसी प्रार्थना करनेपर क्या वे हमें छोड़ेंगे? अपने-आप कृपा करेंगे। जरूर कृपा करेंगे।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ६९··

भगवान्‌का जो नाम प्यारा लगता हो, उसका जप करो और प्रार्थना करो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। आपका कल्याण जरूर होगा, इसमें सन्देह नहीं ।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १०७··

हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - यह बहुत बढ़िया मन्त्र है। भगवान्‌को याद करनेसे आपका सब काम ठीक हो जायगा। आजतक आपके मनमें भगवान्‌का जैसा स्वरूप जँचा है कि भगवान् ऐसे हैं, उसी स्वरूपको याद करें। फिर भगवान्‌का स्वरूप वास्तवमें जैसा है, वह स्वयं भगवान् जना देंगे – 'योगक्षेमं वहाम्यहम्' ( गीता ९ । २२) ।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २१४··

सुबह नींद खुलनेसे लेकर रात्रि नींद आनेतक चार चार, पाँच, पाँच मिनटके बाद कहते रहो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। भगवान् सुलभतासे प्राप्त हो जायँगे । आप करके देखो।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०५··

भगवान्के चरणोंकी शरण होकर केवल 'हे नाथ। हे मेरे नाथ।।' कह दो पाँच मिनटसे ज्यादा देरी न हो। अगर यह भी न कर सको तो दस मिनटमें कह दो। दस मिनटसे ज्यादा हो जायँ तो एक समय उपवास करो। नींद आ जाय तो जब जागो, तब कह दो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। मन लगे चाहे न लगे, कहना मत छोड़ो। करके देखो कि लाभ होता है कि नहीं होता। भगवान् के सामने की हुई प्रार्थना निरर्थक नहीं जाती।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १४१ - १४२··

हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - इस प्रार्थनामें बड़ा भारी बल है । निरन्तर नामजप करो और थोड़ी-थोड़ी देर में यह प्रार्थना करते रहो। निहाल हो जाओगे । भगवान्‌को भूलूँ नहीं - यह काम हमारा है और सब काम भगवान्‌का है। आपको कुछ काम करना नहीं पड़ेगा।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १५२··

सुबह नींद खुलनेसे लेकर रात्रि नींद आनेतक हरदम 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' यह कहना शुरू कर दो। आपके मनमें भगवान्का जैसा स्वरूप जँचा है, उसको याद करो और यह लगन लगा दो कि 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। इसीमें अपने-आपको खो दो। फिर सब काम ठीक हो जायगा, इसमें सन्देह नहीं।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६८··

तरह-तरहके उपाय हैं, पर सीधा-सरल उपाय है– 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। केवल याद करनेसे सदाके लिये दुःख मिट जाय, यह कितना सुगम साधन है । इतना सुगम साधन भी नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे आप ?

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६९··

एक ही बातमें आपका सब काम पूरा हो जायगा, कोई काम बाकी नहीं रहेगा। अभीसे कहना शुरू कर दो कि 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। अगर हृदयमें भाव कम हो तो भी कहना शुरू कर दो। कहते-कहते नकल भी असल हो जाती है। काम-धंधा करते हुए, रसोई बनाते हुए, झाडू देते हुए, जल भरते हुए, हर समय कहते रहो कि 'हे नाथ। ऐसी कृपा करो कि मैं आपको भूलूँ नहीं', 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ६९-७०··

सब जगह भगवान्‌को देखो और उनको याद करो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। आप पापी या पुण्यात्मा कैसे ही क्यों न हों, केवल भगवान्‌को यादमात्र करनेसे शान्ति मिल जायगी ।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७०··

हरदम 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' कहते ही रहो। आपको बहुत लाभ होगा, इसमें सन्देह नहीं है। आपकी भावना न हो तो भी कहते रहो। आपकी भावना भी बन जायगी, चित्त भी लग जायगा, साधन भी बन जायगा, सब कुछ हो जायगा । मन न लगे तो भी कहना शुरू कर दो। इसमें आपकी क्या हानि होती है? क्या परिश्रम होता है? क्या तकलीफ होती है ? इसमें बड़ा भारी फायदा है, आप करके देखो। एक-दो दिन भी तत्परतासे करके देखो तो वे दो दिन आपकी उम्रमेंसे विलक्षण दीखेंगे। 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' कहते जाओ, आपका जीवन सफल होगा।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ८६··

आपलोगोंसे प्रार्थना है कि आप भगवान्‌को याद करो और हरदम 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' – ऐसा कहते रहो तो आपका वह विवेक जाग्रत् हो जायगा, जिससे आप मायासे तर जाओगे।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११९··

भगवान्से रात-दिन एक ही प्रार्थना करो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। मनसे हरदम कहते रहो । भगवान्से यही माँगो कि आपको भूलूँ नहीं। भगवान्‌की कृपासे सब काम ठीक होगा। आपको पता ही नहीं लगेगा, अनजानपनेमें भी आप सन्त हो जाओगे।

नये रास्ते, नयी दिशाएँ १४५··

हे नाथ। हे नाथ।' कहकर भगवान्‌को पुकारो और प्रार्थना करो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। यह बात मैंने बहुत बार कही है, पर आप ध्यान नहीं देते। रोजाना दो-दो, तीन-तीन मिनटमें कहते रहो तो देखो, आपका जीवन बदलता है कि नहीं। इसमें क्या कठिनता है ? मन न लगे तो भी केवल कहनेमात्रसे लाभ होगा। लगनसे कहो तो बहुत लाभ होगा। आजसे ही मन-ही-मन 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' कहना शुरू कर दो। आपका जीवन विचित्र हो जायगा । आप सन्त हो जाओगे ।

अनन्तकी ओर १३··

हरदम भगवान्‌को याद रखो । खास एक ही बात भगवान्से कहो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। दो-दो, चार-चार मिनटमें कहते रहो। ऐसे दिन और रात, जबतक नींद न आये, तबतक कहते ही रहो। भगवान्‌के पीछे ही पड़ जाओ। जैसे वृक्षमें लगा हुआ फल अपने-आप बड़ा हो जाता है, अपने-आप मीठा हो जाता है । उसको बड़ा करना नहीं पड़ता, मीठा करना नहीं पड़ता। ऐसे ही आप भगवान्से लगे रहो तो आप अपने आप सन्त बन जाओगे।

अनन्तकी ओर ४३··

जैसे बच्चा माँके पीछे पड़ जाता है कि मेरेको लड्डू दे दे, ऐसे ही आप भगवान् के पीछे पड़ जाओ कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। रात और दिन पीछे ही पड़ जाओ, छोड़ो ही नहीं। हरदम लगन लग जाय कि 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं; हे मेरे स्वामी। मैं आपको भूलूँ नहीं' तो आपकी स्थिति बदल जायगी। काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष, पाखण्ड, दिखावटीपना आदि सब नष्ट हो जायँगे। राम, कृष्ण, शिव, शक्ति, गणेश सूर्य आदि जो आपका इष्ट हो, उसमें सच्चे हृदयसे लग जाओ कि 'हे नाथ। हे मेरे स्वामी। मैं आपको भूलूँ नहीं । मेरेको और कुछ नहीं चाहिये'। इसको छोड़ो मत। फिर देखो, पन्द्रह-बीस दिनोंमें, महीनेभरमें आपमें विलक्षणता आ जायगी। भगवान्‌को याद करनेसे आपका अन्तःकरण शुद्ध, निर्मल हो जायगा, एकदम ठीक हो जायगा।

अनन्तकी ओर ५४-५५··

शुद्ध - अशुद्ध, पवित्र अपवित्र सब अवस्थाओंमें हरदम भगवान्से कहते रहो कि 'हे प्रभो। ऐसी कृपा करो कि आपको भूलूँ नहीं'। यह वहम नहीं रखना कि अशुद्ध अवस्थामें भगवान्‌को याद नहीं करना है। भगवान्‌के पीछे ही पड़ जाओ । न खुद चैनसे रहो, न भगवान्‌को चैन लेने दो। भगवान् खुश हो जायँगे।

अनन्तकी ओर ५५··

थोड़ी-थोड़ी देरमें भगवान्‌से प्रार्थना करो कि 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। अगर भूल जायँ तो दुःख होना चाहिये। अगर दस-पन्द्रह मिनट बीत गये और भगवान्‌को याद नहीं किया तो एक समय भोजन मत करो। घण्टा बीत जाय और भगवान्‌को याद नहीं किया तो दिनभरका उपवास करो। इसमें पक्के रहो तो लाभ हुए बिना रहेगा नहीं। जरूर उन्नति होगी, इसमें सन्देह नहीं है।

अनन्तकी ओर ५७··

कम-से-कम 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' – इसकी भीतरसे रटन लगा दो । स्वरूपका बोध, परमात्मतत्त्वका ज्ञान, जीवन्मुक्ति आदि सब हो जायँगे। आप करके देखो, बहुत लाभ होगा। जब नींद खुले, तबसे लेकर जब गाढ़ नींद आ जाय, तबतक 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - यह कहते ही रहो।

अनन्तकी ओर ७७-७८··

सच्चे हृदयसे रात-दिन भगवान्‌को 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो। भगवान्‌के पीछे ही पड़ जाओ । आपकी अशान्ति मिटेगी, सच्ची बात है। आप भले ही जबर्दस्ती करके देखो, नकली करके देखो, पर 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - यह आठ पहर करके देखो तो सही । जरूर शान्ति मिलेगी।

अनन्तकी ओर १२१··

इतने तरहके दुःख हैं कि जिनका वर्णन नहीं हो सकता, वे सब-के-सब दुःख केवल भगवान्‌को याद करनेमात्रसे मिट जायँगे । एक ही बात पकड़ लो कि 'हे मेरे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। उनकी कृपासे आपका छोटा-बड़ा सब काम ठीक हो जायगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है।

अनन्तकी ओर १३५··

कोई भी आफत आये तो 'हे नाथ। हे नाथ।' पुकारो। 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - यह एक मन्त्र है, जिसे सब भाई-बहन याद कर लो और बार-बार कहते रहो। सुबह उठकर स्नान करके, नित्य-नियम करके, दिनमें, शाममें, रात्रि सोते समय - इस प्रकार दिनमें पाँच-सात बार नियमसे ' हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं' - ऐसा कहते रहो तो आप देखो कि आपके जीवन में फर्क पड़ता है कि नहीं पड़ता ।

अनन्तकी ओर १५९··

भगवान्‌को पुकारो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। यह सबके लिये बढ़िया चीज है। 'हे नाथ। हे मेरे प्रभो। हे मेरे स्वामिन्। मैं आपको भूलूँ नहीं' पुकारो तो सब काम ठीक हो जायगा । सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ, फिर नफा ही नफा है, नुकसान है ही नहीं। चलते-फिरते, उठते-बैठते, हरदम कहते रहो कि 'हे नाथ। मैं आपको भूलूँ नहीं'। यह बहुत बढ़िया मन्त्र है। कोई भाई हो, बहन हो, छोटा हो, बड़ा हो, बालक हो, बूढ़ा हो, सबके लिये यह बढ़िया उपाय है। जरूर काम सिद्ध होता है।

मैं नहीं, मेरा नहीं १७१··