रुपयोंसे सुविधा हो सकती है, पर सुख नहीं हो सकता।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५४
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ५४··
खर्च न करो तो रुपये और रद्दी कागजमें, सोने और पत्थरमें क्या फर्क है ? पैसा होना बड़ी बात नहीं है, उसका खर्च बड़ी बात है।
||श्रीहरि:||
खर्च न करो तो रुपये और रद्दी कागजमें, सोने और पत्थरमें क्या फर्क है ? पैसा होना बड़ी बात नहीं है, उसका खर्च बड़ी बात है।- ज्ञानके दीप जले १३०
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ज्ञानके दीप जले १३०··
जैसे अपना दुःख दूर करनेके लिये रुपये खर्च करते हैं, ऐसे ही दूसरेका दुःख दूर करने लिये भी खर्च करें, तभी हमें रुपये रखनेका हक है।
||श्रीहरि:||
जैसे अपना दुःख दूर करनेके लिये रुपये खर्च करते हैं, ऐसे ही दूसरेका दुःख दूर करने लिये भी खर्च करें, तभी हमें रुपये रखनेका हक है।- अमृत-बिन्दु २३४
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अमृत-बिन्दु २३४··
लक्ष्मी उसको चाहती है, जो केवल भगवान्को चाहता है अथवा जो कुछ नहीं चाहता। जो अपने लिये कुछ नहीं चाहता, उसका प्रबन्ध लक्ष्मी करती है।
||श्रीहरि:||
लक्ष्मी उसको चाहती है, जो केवल भगवान्को चाहता है अथवा जो कुछ नहीं चाहता। जो अपने लिये कुछ नहीं चाहता, उसका प्रबन्ध लक्ष्मी करती है।- ज्ञानके दीप जले ४७
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ज्ञानके दीप जले ४७··
धनके द्वारा जो उपकार होता है, उससे भी अधिक उपकार दूसरोंको भगवान्की तरफ लगानेसे होता है।
||श्रीहरि:||
धनके द्वारा जो उपकार होता है, उससे भी अधिक उपकार दूसरोंको भगवान्की तरफ लगानेसे होता है।- ज्ञानके दीप जले १३२
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ज्ञानके दीप जले १३२··
लोभी आदमी धनका सदुपयोग नहीं कर सकता।
||श्रीहरि:||
लोभी आदमी धनका सदुपयोग नहीं कर सकता।- ज्ञानके दीप जले १३३
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ज्ञानके दीप जले १३३··
जब बड़ा समुद्री जहाज डूबता है, तब छोटी-छोटी नावोंमें माल पार कर देते हैं। ऐसे ही धनका संग्रह छोटी-छोटी नावोंमें दीन-दुखियोंके यहाँ पहुँचा दो तो वह फिर आगे मिल जायगा, नहीं तो सब का सब डूब जायगा।
||श्रीहरि:||
जब बड़ा समुद्री जहाज डूबता है, तब छोटी-छोटी नावोंमें माल पार कर देते हैं। ऐसे ही धनका संग्रह छोटी-छोटी नावोंमें दीन-दुखियोंके यहाँ पहुँचा दो तो वह फिर आगे मिल जायगा, नहीं तो सब का सब डूब जायगा।- ज्ञानके दीप जले १३४
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ज्ञानके दीप जले १३४··
रुपयोंके कारण कोई सेठ नहीं बनता, प्रत्युत कँगला बनता है । वास्तवमें सेठ वही है, जो श्रेष्ठ है अर्थात् जिसको कभी कुछ नहीं चाहिये।
||श्रीहरि:||
रुपयोंके कारण कोई सेठ नहीं बनता, प्रत्युत कँगला बनता है । वास्तवमें सेठ वही है, जो श्रेष्ठ है अर्थात् जिसको कभी कुछ नहीं चाहिये।- अमृत-बिन्दु २३०
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अमृत-बिन्दु २३०··
न्यायपूर्वक कमाये गये धनसे ही परोपकार होता है। अन्यायपूर्वक कमाये गये धनसे बनाया कुआँ आदि किसीके काम नहीं आता; जैसे बीकानेरमें 'मोदीका कुआँ'।
||श्रीहरि:||
न्यायपूर्वक कमाये गये धनसे ही परोपकार होता है। अन्यायपूर्वक कमाये गये धनसे बनाया कुआँ आदि किसीके काम नहीं आता; जैसे बीकानेरमें 'मोदीका कुआँ'।- ज्ञानके दीप जले १५१ - १५२
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ज्ञानके दीप जले १५१ - १५२··
लोग समझते हैं कि पैसा होनेसे हम स्वतन्त्र हो जायँगे । वास्तवमें पैसा होनेसे स्वतन्त्रता नहीं होती, प्रत्युत पैसोंकी गुलामी होती है।
||श्रीहरि:||
लोग समझते हैं कि पैसा होनेसे हम स्वतन्त्र हो जायँगे । वास्तवमें पैसा होनेसे स्वतन्त्रता नहीं होती, प्रत्युत पैसोंकी गुलामी होती है।- सत्संगके फूल २५
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सत्संगके फूल २५··
कमानेकी धुनसे भी देनेकी धुन ज्यादा होनी चाहिये । देनेसे ही धनकी रक्षा होती है - स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध होते हैं।
||श्रीहरि:||
कमानेकी धुनसे भी देनेकी धुन ज्यादा होनी चाहिये । देनेसे ही धनकी रक्षा होती है - स्वार्थ और परमार्थ दोनों सिद्ध होते हैं।- सत्संगके फूल ११८
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सत्संगके फूल ११८··
लोभ दो काम करता है— अन्यायपूर्वक कमाना और खर्चमें कंजूसी करना, आवश्यक खर्च न करना । लोभ नहीं हो तो रुपया सुख नहीं दे सकता।
||श्रीहरि:||
लोभ दो काम करता है— अन्यायपूर्वक कमाना और खर्चमें कंजूसी करना, आवश्यक खर्च न करना । लोभ नहीं हो तो रुपया सुख नहीं दे सकता।- सत्संगके फूल १५८
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सत्संगके फूल १५८··
जिसको प्राप्त वस्तु आदिमें सन्तोष नहीं है और अप्राप्तकी इच्छा होती है, वह 'दरिद्र' है। उसके पास धन न हो तो भी दरिद्र है, धन हो तो भी दरिद्र है। जिसको प्राप्तमें सन्तोष है और अप्राप्तकी इच्छा नहीं है, वह 'धनी' है। उसके पास धन न हो तो भी धनी है, धन हो तो भी धनी है।
||श्रीहरि:||
जिसको प्राप्त वस्तु आदिमें सन्तोष नहीं है और अप्राप्तकी इच्छा होती है, वह 'दरिद्र' है। उसके पास धन न हो तो भी दरिद्र है, धन हो तो भी दरिद्र है। जिसको प्राप्तमें सन्तोष है और अप्राप्तकी इच्छा नहीं है, वह 'धनी' है। उसके पास धन न हो तो भी धनी है, धन हो तो भी धनी है।- प्रश्नोत्तरमणिमाला ४२५
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प्रश्नोत्तरमणिमाला ४२५··
धर्मके लिये भी धन लेना तो दूर रहा, धन कमाना भी ठीक नहीं है।....... धर्म धनके अधीन नहीं है। धर्मके लिये भी धन लेनेपर धनका महत्त्व ही बढ़ता है।
||श्रीहरि:||
धर्मके लिये भी धन लेना तो दूर रहा, धन कमाना भी ठीक नहीं है।....... धर्म धनके अधीन नहीं है। धर्मके लिये भी धन लेनेपर धनका महत्त्व ही बढ़ता है।- सागरके मोती १४१
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सागरके मोती १४१··
धर्मके लिये, दान-पुण्य करनेके लिये, दूसरोंका हित करनेके लिये भी पैसेकी जरूरत नहीं है। जो धर्मके लिये पैसा चाहता है, वह धर्मके तत्त्वको नहीं जानता।
||श्रीहरि:||
धर्मके लिये, दान-पुण्य करनेके लिये, दूसरोंका हित करनेके लिये भी पैसेकी जरूरत नहीं है। जो धर्मके लिये पैसा चाहता है, वह धर्मके तत्त्वको नहीं जानता।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ११
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ११··
आपकी शक्ति हो तो गायोंका पालन करो, गरीबोंकी सेवा करो, पर किसीसे पैसा मत माँगो । पैसोंकी गुलामी मत करो। आपके भाग्यसे जो पैसा आनेवाला है, वह तो आयेगा ही । ब्रह्माजीकी भी ताकत नहीं कि उसे रोक दें।
||श्रीहरि:||
आपकी शक्ति हो तो गायोंका पालन करो, गरीबोंकी सेवा करो, पर किसीसे पैसा मत माँगो । पैसोंकी गुलामी मत करो। आपके भाग्यसे जो पैसा आनेवाला है, वह तो आयेगा ही । ब्रह्माजीकी भी ताकत नहीं कि उसे रोक दें।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२··
वास्तवमें धन उतना बाधक नहीं है, जितनी बाधक उसकी कामना है। धनकी कामना चाहे धनीमें हो या निर्धनमें दोनोंको वह परमात्मप्राप्तिसे वंचित रखती है।
||श्रीहरि:||
वास्तवमें धन उतना बाधक नहीं है, जितनी बाधक उसकी कामना है। धनकी कामना चाहे धनीमें हो या निर्धनमें दोनोंको वह परमात्मप्राप्तिसे वंचित रखती है।- साधक संजीवनी ३।३९
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साधक संजीवनी ३।३९··
वहम तो यह होता है कि लाभ बढ़ गया, पर वास्तवमें घाटा ही बढ़ा है। जितना धन मिलता है, उतनी ही दरिद्रता (धनकी भूख बढ़ती है। वास्तवमें दरिद्रता उसकी मिटती है, जिसे धनकी भूख नहीं है।
||श्रीहरि:||
वहम तो यह होता है कि लाभ बढ़ गया, पर वास्तवमें घाटा ही बढ़ा है। जितना धन मिलता है, उतनी ही दरिद्रता (धनकी भूख बढ़ती है। वास्तवमें दरिद्रता उसकी मिटती है, जिसे धनकी भूख नहीं है।- साधक संजीवनी ३ | ३९
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साधक संजीवनी ३ | ३९··
निर्वाहमात्रके रुपयोंकी अपेक्षा उनका संग्रह अधिक पतन करनेवाला है और संग्रहकी अपेक्षा भी रुपयोंकी गिनती महान् पतन करनेवाली है।
||श्रीहरि:||
निर्वाहमात्रके रुपयोंकी अपेक्षा उनका संग्रह अधिक पतन करनेवाला है और संग्रहकी अपेक्षा भी रुपयोंकी गिनती महान् पतन करनेवाली है।- साधक संजीवनी ३ | ४१
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साधक संजीवनी ३ | ४१··
किसीको वैरी बनाना हो तो उसको उधार रुपये दे दो। देते समय तो बड़े प्रेमसे लेगा, और माँगोगे तो वैर हो जायगा।
||श्रीहरि:||
किसीको वैरी बनाना हो तो उसको उधार रुपये दे दो। देते समय तो बड़े प्रेमसे लेगा, और माँगोगे तो वैर हो जायगा।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ११२-११३
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ११२-११३··
जो रुपयोंको ही श्रेष्ठ मानते हैं, उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। रुपयोंसे जड़ वस्तु मिल सकती है, पर भगवान् और सन्त महात्मा रुपयोंसे नहीं मिलते।
||श्रीहरि:||
जो रुपयोंको ही श्रेष्ठ मानते हैं, उनकी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। रुपयोंसे जड़ वस्तु मिल सकती है, पर भगवान् और सन्त महात्मा रुपयोंसे नहीं मिलते।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२६
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १२६··
रुपया मिले चाहे न मिले, पर भीतरमें उसका जो महत्त्व है, वह पतन कर रहा है।
||श्रीहरि:||
रुपया मिले चाहे न मिले, पर भीतरमें उसका जो महत्त्व है, वह पतन कर रहा है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७४
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७४··
रुपये उतने ही मिलेंगे, जितने मिलनेवाले हैं। झूठ - कपटसे तत्काल रुपये मिलते दीखते हैं, पर बारह महीनोंके बाद देखो तो हिसाब बराबर निकलेगा । झूठ - कपटसे आये पैसे ज्यादा देर ठहरेंगे नहीं, चोरी, बीमारी आदिमें चले जायँगे।
||श्रीहरि:||
रुपये उतने ही मिलेंगे, जितने मिलनेवाले हैं। झूठ - कपटसे तत्काल रुपये मिलते दीखते हैं, पर बारह महीनोंके बाद देखो तो हिसाब बराबर निकलेगा । झूठ - कपटसे आये पैसे ज्यादा देर ठहरेंगे नहीं, चोरी, बीमारी आदिमें चले जायँगे।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७७
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ७७··
अन्यायपूर्वक इकट्ठे किये गये सब-के-सब रुपयोंको आप उम्रभरमें काममें नहीं ले सकते; और उनके लिये जो पाप किये हैं, उनको भोगे बिना आप पिण्ड छुड़ा नहीं सकते। रुपये आपके काम नहीं आयेंगे, पर पाप पूरा आपके काम आयेगा।
||श्रीहरि:||
अन्यायपूर्वक इकट्ठे किये गये सब-के-सब रुपयोंको आप उम्रभरमें काममें नहीं ले सकते; और उनके लिये जो पाप किये हैं, उनको भोगे बिना आप पिण्ड छुड़ा नहीं सकते। रुपये आपके काम नहीं आयेंगे, पर पाप पूरा आपके काम आयेगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०३
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०३··
जिस घरमें आपसमें प्रेम होता है, उस घरमें लक्ष्मी बढ़ती है। जहाँ आपसमें खटपट होती है, वहाँसे लक्ष्मी विदा हो जाती हैं।
||श्रीहरि:||
जिस घरमें आपसमें प्रेम होता है, उस घरमें लक्ष्मी बढ़ती है। जहाँ आपसमें खटपट होती है, वहाँसे लक्ष्मी विदा हो जाती हैं।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०८
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १०८··
अन्नके बिना भूखे मर जानेसे आप नरकोंमें नहीं जाओगे, पर झूठ, कपट, बेईमानी करके रुपये कमानेसे आप नरकोंमें जाओगे। आप स्वयं नीचा बनते हो, तब नीचे जाते हो।
||श्रीहरि:||
अन्नके बिना भूखे मर जानेसे आप नरकोंमें नहीं जाओगे, पर झूठ, कपट, बेईमानी करके रुपये कमानेसे आप नरकोंमें जाओगे। आप स्वयं नीचा बनते हो, तब नीचे जाते हो।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६१
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १६१··
आप रुपयोंके लिये काम करते हैं तो आपकी इज्जत रुपयोंसे कम होती है। जिसकी आप इच्छा करते हैं, वह वस्तु बड़ी हो जाती है और आप छोटे हो जाते हैं।
||श्रीहरि:||
आप रुपयोंके लिये काम करते हैं तो आपकी इज्जत रुपयोंसे कम होती है। जिसकी आप इच्छा करते हैं, वह वस्तु बड़ी हो जाती है और आप छोटे हो जाते हैं।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८··
देखनेमें विरक्त और दरिद्र - दोनोंकी एक दशा है, दोनोंके पास रुपये नहीं हैं; परन्तु दरिद्र रोता है और विरक्त आनन्दमें रहता है। वैराग्यमें जो आनन्द है, मस्ती है, वह रुपयोंमें नहीं है। रुपयोंवालेमें ऐसी मस्ती कभी आ नहीं सकती।
||श्रीहरि:||
देखनेमें विरक्त और दरिद्र - दोनोंकी एक दशा है, दोनोंके पास रुपये नहीं हैं; परन्तु दरिद्र रोता है और विरक्त आनन्दमें रहता है। वैराग्यमें जो आनन्द है, मस्ती है, वह रुपयोंमें नहीं है। रुपयोंवालेमें ऐसी मस्ती कभी आ नहीं सकती।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८··
ज्यों-ज्यों रुपयोंका महत्त्व बढ़ेगा, त्यों-त्यों आपकी दरिद्रता बढ़ेगी। ज्यों-ज्यों रुपये बढ़ेंगे, त्यों- त्यों घाटा बढ़ेगा और भगवान्के भजनमें लग जाओ तो घाटा दूर हो जायगा; आपका ही नहीं, आपके दर्शन करनेवालेका घाटा दूर हो जायगा।
||श्रीहरि:||
ज्यों-ज्यों रुपयोंका महत्त्व बढ़ेगा, त्यों-त्यों आपकी दरिद्रता बढ़ेगी। ज्यों-ज्यों रुपये बढ़ेंगे, त्यों- त्यों घाटा बढ़ेगा और भगवान्के भजनमें लग जाओ तो घाटा दूर हो जायगा; आपका ही नहीं, आपके दर्शन करनेवालेका घाटा दूर हो जायगा।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९८··
आप मानते हैं कि रुपये मिलनेसे ठीक हो जायगा, पर रुपये मिलनेसे और आग लग जायगी । ज्यों रुपये मिलेंगे, त्यों दरिद्रता बढ़ेगी। मनुष्य समझता है कि रुपये मिल जायँ तो एक घड़ी खरीद लें, पर रुपये मिलनेपर बड़ी-बड़ी मोटरें खरीदनेकी मनमें रहती है, पर मिलती नहीं हैं । आपकी दरिद्रतामें और धनियोंकी दरिद्रतामें कुछ भी फर्क नहीं है। आपलोगोंको यह वहम है कि रुपये होनेसे दरिद्रता मिटती है, पर वास्तवमें रुपये होनेसे दरिद्रता बढ़ती है..... बढ़ती है......बढ़ती है। रुपयोंसे दरिद्रता नहीं मिटती।
||श्रीहरि:||
आप मानते हैं कि रुपये मिलनेसे ठीक हो जायगा, पर रुपये मिलनेसे और आग लग जायगी । ज्यों रुपये मिलेंगे, त्यों दरिद्रता बढ़ेगी। मनुष्य समझता है कि रुपये मिल जायँ तो एक घड़ी खरीद लें, पर रुपये मिलनेपर बड़ी-बड़ी मोटरें खरीदनेकी मनमें रहती है, पर मिलती नहीं हैं । आपकी दरिद्रतामें और धनियोंकी दरिद्रतामें कुछ भी फर्क नहीं है। आपलोगोंको यह वहम है कि रुपये होनेसे दरिद्रता मिटती है, पर वास्तवमें रुपये होनेसे दरिद्रता बढ़ती है..... बढ़ती है......बढ़ती है। रुपयोंसे दरिद्रता नहीं मिटती।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ २८
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ २८··
लिया हुआ कर्जा भी खराब होता है, फिर चोरी, डाका, ठगाई आदिसे लिया हुआ पैसा बहुत ज्यादा खराब होता है। उसका भयंकर दण्ड होगा। आपके पैसोंमें तो सब साथी हो जायँगे, पर पापमें कोई साथी नहीं होगा।
||श्रीहरि:||
लिया हुआ कर्जा भी खराब होता है, फिर चोरी, डाका, ठगाई आदिसे लिया हुआ पैसा बहुत ज्यादा खराब होता है। उसका भयंकर दण्ड होगा। आपके पैसोंमें तो सब साथी हो जायँगे, पर पापमें कोई साथी नहीं होगा।- अनन्तकी ओर ४६
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अनन्तकी ओर ४६··
गृहस्थ-आश्रममें पैसा रखनेका निषेध नहीं है, पर पैसेका महत्त्व नहीं होना चाहिये। आपके पास लाखों-करोड़ों रुपये हों तो कोई हर्ज नहीं है, पर रुपयोंकी दासता नहीं होनी चाहिये।
||श्रीहरि:||
गृहस्थ-आश्रममें पैसा रखनेका निषेध नहीं है, पर पैसेका महत्त्व नहीं होना चाहिये। आपके पास लाखों-करोड़ों रुपये हों तो कोई हर्ज नहीं है, पर रुपयोंकी दासता नहीं होनी चाहिये।- अनन्तकी ओर ६५
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अनन्तकी ओर ६५··
धनी आदमीको जितना दुःख है, उतना निर्धनको नहीं है। धनी आदमी राज्य ( सरकार) - से डरता है, पर निर्धन चोरसे भी नहीं डरता।
||श्रीहरि:||
धनी आदमीको जितना दुःख है, उतना निर्धनको नहीं है। धनी आदमी राज्य ( सरकार) - से डरता है, पर निर्धन चोरसे भी नहीं डरता।- स्वातिकी बूँदें २८
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें २८··
अधर्मसे कमाया हुआ धन धर्ममें कैसे लगेगा? वास्तवमें अधर्मसे कमाए हुए धनसे बनी चीज दूसरोंके काम आती ही नहीं।
||श्रीहरि:||
अधर्मसे कमाया हुआ धन धर्ममें कैसे लगेगा? वास्तवमें अधर्मसे कमाए हुए धनसे बनी चीज दूसरोंके काम आती ही नहीं।- स्वातिकी बूँदें ९२
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें ९२··
अपनी कमाईमें किसीके हकका एक कण भी न आ जाय - इस बातकी पूरी सावधानी रखनी चाहिये।
||श्रीहरि:||
अपनी कमाईमें किसीके हकका एक कण भी न आ जाय - इस बातकी पूरी सावधानी रखनी चाहिये।- अमृत-बिन्दु ९०३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु ९०३··
धनके कारण जो श्रेष्ठ माने जाते हैं, वे पुरुष जिन-जिन उपायोंसे धन कमाते और जमा करते हैं, उन उन उपायोंका लोगोंमें स्वतः प्रचार हो जाता है, चाहे वे उपाय कितने ही गुप्त क्यों न हों। यही कारण है कि वर्तमानमें झूठ, कपट, बेईमानी, धोखा, चोरी आदि बुराइयोंका समाजमें, किसी पाठशालामें पढ़ाये बिना ही स्वतः प्रचार होता चला जा रहा है।
||श्रीहरि:||
धनके कारण जो श्रेष्ठ माने जाते हैं, वे पुरुष जिन-जिन उपायोंसे धन कमाते और जमा करते हैं, उन उन उपायोंका लोगोंमें स्वतः प्रचार हो जाता है, चाहे वे उपाय कितने ही गुप्त क्यों न हों। यही कारण है कि वर्तमानमें झूठ, कपट, बेईमानी, धोखा, चोरी आदि बुराइयोंका समाजमें, किसी पाठशालामें पढ़ाये बिना ही स्वतः प्रचार होता चला जा रहा है।- साधक संजीवनी ३ । २१ वि०
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साधक संजीवनी ३ । २१ वि०··
धनकी कामना होते ही धन मनके द्वारा पकड़ा जाता है। जब बाहरसे धन प्राप्त हो जाता है, तब मनसे पकड़े हुए धनका त्याग हो जाता है और सुखकी प्रतीति होती है। अतः वास्तवमें सुखकी प्रतीति बाहरसे धन मिलनेपर नहीं हुई, प्रत्युत मनसे पकड़े हुए धनके त्यागसे ही हुई है । यदि धनके मिलनेसे ही सुख होता तो उस धनके रहते हुए कभी दुःख नहीं आता; परन्तु उस धनके रहते हुए भी दुःख आ जाता है।
||श्रीहरि:||
धनकी कामना होते ही धन मनके द्वारा पकड़ा जाता है। जब बाहरसे धन प्राप्त हो जाता है, तब मनसे पकड़े हुए धनका त्याग हो जाता है और सुखकी प्रतीति होती है। अतः वास्तवमें सुखकी प्रतीति बाहरसे धन मिलनेपर नहीं हुई, प्रत्युत मनसे पकड़े हुए धनके त्यागसे ही हुई है । यदि धनके मिलनेसे ही सुख होता तो उस धनके रहते हुए कभी दुःख नहीं आता; परन्तु उस धनके रहते हुए भी दुःख आ जाता है।- साधक संजीवनी ३ । ३९
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साधक संजीवनी ३ । ३९··
लोग रुपयोंको इसलिये बहुत महत्त्व देते हैं कि उनसे सब वस्तुएँ मिल सकती हैं। रुपयोंसे तो वस्तुएँ मिलती हैं, पैदा नहीं होतीं, पर भगवान् से सम्पूर्ण वस्तुएँ पैदा भी होती हैं और मिलती भी हैं । इस प्रकार जो भगवान्के महत्त्वको जान लेते हैं, वे तुच्छ रुपयोंके लोभमें न फँसकर भगवान् के ही भजनमें लग जाते हैं।
||श्रीहरि:||
लोग रुपयोंको इसलिये बहुत महत्त्व देते हैं कि उनसे सब वस्तुएँ मिल सकती हैं। रुपयोंसे तो वस्तुएँ मिलती हैं, पैदा नहीं होतीं, पर भगवान् से सम्पूर्ण वस्तुएँ पैदा भी होती हैं और मिलती भी हैं । इस प्रकार जो भगवान्के महत्त्वको जान लेते हैं, वे तुच्छ रुपयोंके लोभमें न फँसकर भगवान् के ही भजनमें लग जाते हैं।- साधक संजीवनी १० । ८ परि०
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साधक संजीवनी १० । ८ परि०··
किसी विरक्त और त्यागी मनुष्यको देखकर भोग सामग्रीवाले मनुष्यको उसपर दया आती है कि बेचारेके पास धन-सम्पत्ति आदि सामग्री नहीं है, बेचारा बड़ा दुःखी है । परन्तु वास्तवमें विरक्तके मनमें बड़ी शान्ति और बड़ी प्रसन्नता रहती है। वह शान्ति और प्रसन्नता धनके कारण किसी धनीमें नहीं रह सकती। इसलिये धनका होनामात्र सुख नहीं है और धनका अभावमात्र दुःख नहीं है। सुख नाम हृदयकी शान्ति और प्रसन्नताका है और दुःख नाम हृदयकी जलन और सन्तापका है।
||श्रीहरि:||
किसी विरक्त और त्यागी मनुष्यको देखकर भोग सामग्रीवाले मनुष्यको उसपर दया आती है कि बेचारेके पास धन-सम्पत्ति आदि सामग्री नहीं है, बेचारा बड़ा दुःखी है । परन्तु वास्तवमें विरक्तके मनमें बड़ी शान्ति और बड़ी प्रसन्नता रहती है। वह शान्ति और प्रसन्नता धनके कारण किसी धनीमें नहीं रह सकती। इसलिये धनका होनामात्र सुख नहीं है और धनका अभावमात्र दुःख नहीं है। सुख नाम हृदयकी शान्ति और प्रसन्नताका है और दुःख नाम हृदयकी जलन और सन्तापका है।- साधक संजीवनी १८ । १२ वि०
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साधक संजीवनी १८ । १२ वि०··
अभी जो धन मिल रहा है, वह वर्तमान कर्मका फल नहीं है, प्रत्युत प्रारब्धका फल है। वर्तमानमें धन प्राप्तिके लिये जो झूठ, कपट, बेईमानी, चोरी आदि करते हैं, उसका फल ( दण्ड) तो आगे मिलेगा।
||श्रीहरि:||
अभी जो धन मिल रहा है, वह वर्तमान कर्मका फल नहीं है, प्रत्युत प्रारब्धका फल है। वर्तमानमें धन प्राप्तिके लिये जो झूठ, कपट, बेईमानी, चोरी आदि करते हैं, उसका फल ( दण्ड) तो आगे मिलेगा।- अमृत-बिन्दु २३१
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अमृत-बिन्दु २३१··
अन्यायपूर्वक कमाया हुआ धन हमारे काम आ जाय - यह नियम नहीं है; परन्तु उसका दण्ड भोगना पड़ेगा - यह नियम है।
||श्रीहरि:||
अन्यायपूर्वक कमाया हुआ धन हमारे काम आ जाय - यह नियम नहीं है; परन्तु उसका दण्ड भोगना पड़ेगा - यह नियम है।- अमृत-बिन्दु २३२
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अमृत-बिन्दु २३२··
कम-से-कम, कम-से-कम रोटी कपड़ा सच्ची कमाईका लो। सच्ची कमाईका पता कैसे लगे ? यदि आप कहीं नौकरी करते तो जितनी तनखा मिलती, उससे कुछ कम पैसे निकालो और काममें लो।
||श्रीहरि:||
कम-से-कम, कम-से-कम रोटी कपड़ा सच्ची कमाईका लो। सच्ची कमाईका पता कैसे लगे ? यदि आप कहीं नौकरी करते तो जितनी तनखा मिलती, उससे कुछ कम पैसे निकालो और काममें लो।- ज्ञानके दीप जले २१७
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ज्ञानके दीप जले २१७··
धनसे वस्तु श्रेष्ठ है, वस्तुसे मनुष्य श्रेष्ठ है, मनुष्यसे विवेक श्रेष्ठ है और विवेकसे भी सत्- तत्त्व (परमात्मा) श्रेष्ठ है। मनुष्यजन्म उस सत्-तत्त्वको प्राप्त करनेके लिये ही है।
||श्रीहरि:||
धनसे वस्तु श्रेष्ठ है, वस्तुसे मनुष्य श्रेष्ठ है, मनुष्यसे विवेक श्रेष्ठ है और विवेकसे भी सत्- तत्त्व (परमात्मा) श्रेष्ठ है। मनुष्यजन्म उस सत्-तत्त्वको प्राप्त करनेके लिये ही है।- अमृत-बिन्दु २४१
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु २४१··
जो रात - दिन भगवान् के भजनमें लगा हुआ है, उसे किसी वस्तुकी कमी नहीं रहती। ऐसे साधु मैंने देखे हैं, जो पासमें पैसे नहीं रखते, फिर भी उनका जीवन निर्वाह होता है। पैसोंका त्याग करनेसे कोई साधु मर गया हो ऐसी एक भी बात सुननेमें नहीं आयी। पर पैसे रखनेवाले बिना अन्नके मर गये- ऐसी बात सुननेमें आयी है। कोई हृदयसे पैसोंका त्याग कर दे तो उसको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी। धनियोंको जो चीज नहीं मिलती, वह चीज भी मिल जायगी।
||श्रीहरि:||
जो रात - दिन भगवान् के भजनमें लगा हुआ है, उसे किसी वस्तुकी कमी नहीं रहती। ऐसे साधु मैंने देखे हैं, जो पासमें पैसे नहीं रखते, फिर भी उनका जीवन निर्वाह होता है। पैसोंका त्याग करनेसे कोई साधु मर गया हो ऐसी एक भी बात सुननेमें नहीं आयी। पर पैसे रखनेवाले बिना अन्नके मर गये- ऐसी बात सुननेमें आयी है। कोई हृदयसे पैसोंका त्याग कर दे तो उसको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी। धनियोंको जो चीज नहीं मिलती, वह चीज भी मिल जायगी।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६०
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ६०··
कुछ भी पासमें न हो तो बड़ी शान्ति रहती है, यह मेरी देखी हुई बात है। आपके मनमें है कि स्वामीजी समझते नहीं, पर आपसे दूना समझता हूँ। आपने तो केवल रुपयोंको रखकर देखा है, पर मैंने रुपयोंको रखकर भी देखा है और छोड़कर भी देखा है। रुपयोंके बिना तकलीफ उठानी पड़ती है, यह भी मैंने देखा है। पर रुपये नहीं रखनेसे जो शान्ति मिलती है, वह रुपयोंसे नहीं मिलती।
||श्रीहरि:||
कुछ भी पासमें न हो तो बड़ी शान्ति रहती है, यह मेरी देखी हुई बात है। आपके मनमें है कि स्वामीजी समझते नहीं, पर आपसे दूना समझता हूँ। आपने तो केवल रुपयोंको रखकर देखा है, पर मैंने रुपयोंको रखकर भी देखा है और छोड़कर भी देखा है। रुपयोंके बिना तकलीफ उठानी पड़ती है, यह भी मैंने देखा है। पर रुपये नहीं रखनेसे जो शान्ति मिलती है, वह रुपयोंसे नहीं मिलती।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ २८
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ २८··
मैं धनका निषेध नहीं करता हूँ, प्रत्युत लोभका निषेध करता हूँ । दुःख देनेवाला लोभ है, धन नहीं।
||श्रीहरि:||
मैं धनका निषेध नहीं करता हूँ, प्रत्युत लोभका निषेध करता हूँ । दुःख देनेवाला लोभ है, धन नहीं।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ३०
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ३०··
मेरा कहनेका तात्पर्य यह नहीं है कि आप सब छोड़कर साधु बन जाओ, मेरा तात्पर्य है कि आप रुपयोंमें मन न लगाकर भगवान्में मन लगाओ।
||श्रीहरि:||
मेरा कहनेका तात्पर्य यह नहीं है कि आप सब छोड़कर साधु बन जाओ, मेरा तात्पर्य है कि आप रुपयोंमें मन न लगाकर भगवान्में मन लगाओ।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ८३-८४