एक सिद्धान्तकी बात है कि जो सब जगह मौजूद परमात्मा हैं, वे क्रियासे प्राप्त नहीं होते । वे बिना क्रियाके प्राप्त होते हैं । परमात्मा सब जगह है तो फिर उनको ढूँढ़ोगे कहाँ ? जाओगे कहाँ ? कोई भी चेष्टा न करे, कुछ भी चिन्तन न करे; जहाँ है, वहीं स्थिर हो जाय तो उसकी प्राप्ति होती है। क्रियारहित होनेपर परमात्मामें ही स्थिति होती है। अतः जहाँ हैं, वहीं चुप, शान्त हो जायँ — न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ' ( गीता ६ । २५ ) । परमात्माको ढूँढ़ोगे तो दूर हो जाओगे; क्योंकि ढूँढ़नेसे वृत्ति दूसरी जगह जायगी।
||श्रीहरि:||
एक सिद्धान्तकी बात है कि जो सब जगह मौजूद परमात्मा हैं, वे क्रियासे प्राप्त नहीं होते । वे बिना क्रियाके प्राप्त होते हैं । परमात्मा सब जगह है तो फिर उनको ढूँढ़ोगे कहाँ ? जाओगे कहाँ ? कोई भी चेष्टा न करे, कुछ भी चिन्तन न करे; जहाँ है, वहीं स्थिर हो जाय तो उसकी प्राप्ति होती है। क्रियारहित होनेपर परमात्मामें ही स्थिति होती है। अतः जहाँ हैं, वहीं चुप, शान्त हो जायँ — न किञ्चिदपि चिन्तयेत् ' ( गीता ६ । २५ ) । परमात्माको ढूँढ़ोगे तो दूर हो जाओगे; क्योंकि ढूँढ़नेसे वृत्ति दूसरी जगह जायगी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४४-१४५
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४४-१४५··
इसको 'चुप साधन', 'मूक सत्संग' और अचिन्त्यका ध्यान' भी कहते हैं। इसमें न तो स्थूलशरीरकी क्रिया है, न सूक्ष्मशरीरका चिन्तन है और न कारण शरीरकी स्थिरता है। इसमें इन्द्रियाँ भी चुप हैं, मन भी चुप हैं, बुद्धि भी चुप है अर्थात् शरीर - इन्द्रियाँ - मन-बुद्धिकी कोई क्रिया नहीं है। सभी चुप हैं, कोई बोलता नहीं । जो देखना था वह देख लिया, सुनना था वह सुन लिया, बोलना था वह बोल लिया, करना था वह कर लिया, अब कुछ भी देखने, सुनने, बोलने, करने आदिकी रुचि नहीं रही — ऐसा होनेपर ही 'चुप साधन' होता है।
||श्रीहरि:||
इसको 'चुप साधन', 'मूक सत्संग' और अचिन्त्यका ध्यान' भी कहते हैं। इसमें न तो स्थूलशरीरकी क्रिया है, न सूक्ष्मशरीरका चिन्तन है और न कारण शरीरकी स्थिरता है। इसमें इन्द्रियाँ भी चुप हैं, मन भी चुप हैं, बुद्धि भी चुप है अर्थात् शरीर - इन्द्रियाँ - मन-बुद्धिकी कोई क्रिया नहीं है। सभी चुप हैं, कोई बोलता नहीं । जो देखना था वह देख लिया, सुनना था वह सुन लिया, बोलना था वह बोल लिया, करना था वह कर लिया, अब कुछ भी देखने, सुनने, बोलने, करने आदिकी रुचि नहीं रही — ऐसा होनेपर ही 'चुप साधन' होता है।- साधक संजीवनी ६ । २५ परि०
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साधक संजीवनी ६ । २५ परि०··
न शरीरकी क्रिया हो, न वाणीकी क्रिया हो, न मनकी क्रिया हो, सब मूक (चुप ) हो जायँ । कोई भी क्रिया न करके एक भगवान्के चरणोंके शरण हो जाय। शरण होना है - यह भाव भी न रहे। यह 'चुप साधन' है।
||श्रीहरि:||
न शरीरकी क्रिया हो, न वाणीकी क्रिया हो, न मनकी क्रिया हो, सब मूक (चुप ) हो जायँ । कोई भी क्रिया न करके एक भगवान्के चरणोंके शरण हो जाय। शरण होना है - यह भाव भी न रहे। यह 'चुप साधन' है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २३
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ २३··
कुछ भी चिन्तन न करनेसे हमारी स्थिति स्वतः परमात्मामें ही होती है। इसलिये परमात्मप्राप्तिका खास साधन है – कुछ भी चिन्तन न करना; न परमात्माका, न संसारका, न और किसीका । साधक जहाँ है, वहीं स्थिर हो जाय; क्योंकि वहीं परमात्मा है।
||श्रीहरि:||
कुछ भी चिन्तन न करनेसे हमारी स्थिति स्वतः परमात्मामें ही होती है। इसलिये परमात्मप्राप्तिका खास साधन है – कुछ भी चिन्तन न करना; न परमात्माका, न संसारका, न और किसीका । साधक जहाँ है, वहीं स्थिर हो जाय; क्योंकि वहीं परमात्मा है।- मानवमात्रके कल्याणके लिये ११३
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मानवमात्रके कल्याणके लिये ११३··
भगवान्का भी चिन्तन करेंगे तो आप चिन्तन करनेवाले हो जायँगे और भगवान् चिन्तनका विषय हो जायँगे। अतः आप भगवान्से दूर हो जायँगे। अगर कुछ भी चिन्तन न करें तो आप भगवान्में ही रहेंगे।
||श्रीहरि:||
भगवान्का भी चिन्तन करेंगे तो आप चिन्तन करनेवाले हो जायँगे और भगवान् चिन्तनका विषय हो जायँगे। अतः आप भगवान्से दूर हो जायँगे। अगर कुछ भी चिन्तन न करें तो आप भगवान्में ही रहेंगे।- पायो परम बिश्रामु १२५
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पायो परम बिश्रामु १२५··
चिन्तन करनेसे संसारमें और चिन्तन न करनेसे परमात्मामें स्थिति होती है। अगर चिन्तन करना ही हो तो केवल भगवान्का चिन्तन करना चाहिये।
||श्रीहरि:||
चिन्तन करनेसे संसारमें और चिन्तन न करनेसे परमात्मामें स्थिति होती है। अगर चिन्तन करना ही हो तो केवल भगवान्का चिन्तन करना चाहिये।- स्वातिकी बूँदें ९०
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स्वातिकी बूँदें ९०··
आप दिनमें कई बार काम-धंधा करना छोड़कर थोड़ी-थोड़ी देर (आधा मिनट, एक मिनट या दो मिनट ) - के लिये भगवान्के शरण होकर चुप, शान्त हो जाओ। किसीका भी चिन्तन मत करो, भगवान्का भी नहीं। फिर काममें लग जाओ। इससे आपका भजन बहुत बढ़िया होगा । आपका संसारका काम (व्यापार, खेती, रसोई बनाना आदि) भी बढ़िया होगा। अगर सत्संग सुननेसे पहले चुप, शान्त हो जाओ तो सत्संगकी बातें ठीक समझमें आयेंगी, और सत्संग के बाद शान्त हो जाओ तो सत्संगकी बातोंका पालन करनेकी शक्ति आ जायगी।
||श्रीहरि:||
आप दिनमें कई बार काम-धंधा करना छोड़कर थोड़ी-थोड़ी देर (आधा मिनट, एक मिनट या दो मिनट ) - के लिये भगवान्के शरण होकर चुप, शान्त हो जाओ। किसीका भी चिन्तन मत करो, भगवान्का भी नहीं। फिर काममें लग जाओ। इससे आपका भजन बहुत बढ़िया होगा । आपका संसारका काम (व्यापार, खेती, रसोई बनाना आदि) भी बढ़िया होगा। अगर सत्संग सुननेसे पहले चुप, शान्त हो जाओ तो सत्संगकी बातें ठीक समझमें आयेंगी, और सत्संग के बाद शान्त हो जाओ तो सत्संगकी बातोंका पालन करनेकी शक्ति आ जायगी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९१ - ९२
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९१ - ९२··
जैसे चिन्तन करना दोष है, ऐसे ही चिन्तन न करना भी दोष है। अतः चिन्तन करने और न करनेको छोड़कर 'चुप' होना है।
||श्रीहरि:||
जैसे चिन्तन करना दोष है, ऐसे ही चिन्तन न करना भी दोष है। अतः चिन्तन करने और न करनेको छोड़कर 'चुप' होना है।- सत्संगके फूल ६४
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सत्संगके फूल ६४··
आप कोई भी काम करें तो काम करनेसे पहले आप क्रियारहित होते हैं और कामकी समाप्तिपर भी आप क्रियारहित होते हैं। तात्पर्य है कि काम करनेसे पहले भी कुछ नहीं करते और काम समाप्त होने बाद भी (दूसरा काम आरम्भ करनेसे पहले) कुछ नहीं करते। वह क्रियारहित अर्थात् शान्त होना यदि थोड़ी देर ज्यादा हो जाय तो उससे काम बहुत बढ़िया होगा । चुप, शान्त रहनेसे एक विलक्षण शक्ति पैदा होती है।
||श्रीहरि:||
आप कोई भी काम करें तो काम करनेसे पहले आप क्रियारहित होते हैं और कामकी समाप्तिपर भी आप क्रियारहित होते हैं। तात्पर्य है कि काम करनेसे पहले भी कुछ नहीं करते और काम समाप्त होने बाद भी (दूसरा काम आरम्भ करनेसे पहले) कुछ नहीं करते। वह क्रियारहित अर्थात् शान्त होना यदि थोड़ी देर ज्यादा हो जाय तो उससे काम बहुत बढ़िया होगा । चुप, शान्त रहनेसे एक विलक्षण शक्ति पैदा होती है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९७-९८
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ९७-९८··
शान्त रहना स्वाभाविक ही सत्संग है, साधन है । परन्तु इस साधनकी तरफ लोगोंका लक्ष्य नहीं है । शान्त, चुप रहनेसे अपनी शक्ति बढ़ती है, साधन बढ़ता है और तत्त्वका अनुभव होता है। एक बात ध्यान देनेकी है कि जो तत्त्व सब जगह परिपूर्ण है, वह क्रियासे नहीं मिलता । क्रियासे तो वह उल्टे दूर होता है। क्रियारहित होकर शान्त हो जायँ तो उसमें स्थिति स्वाभाविक होती है । इसलिये शान्त होनेका स्वभाव बन जाय तो तत्त्वका अनुभव स्वतः हो जायगा । शान्त होनेसे शक्तिका स्वाभाविक पूर्ण विकास होता है । विलक्षणता स्वतः - स्वाभाविक पैदा होती है। अनुभव करनेकी शक्ति बढ़ती है। शान्त रहनेका स्वभाव बन जाय तो आयु भी बढ़ती है। सब तरहका विकास होता है।
||श्रीहरि:||
शान्त रहना स्वाभाविक ही सत्संग है, साधन है । परन्तु इस साधनकी तरफ लोगोंका लक्ष्य नहीं है । शान्त, चुप रहनेसे अपनी शक्ति बढ़ती है, साधन बढ़ता है और तत्त्वका अनुभव होता है। एक बात ध्यान देनेकी है कि जो तत्त्व सब जगह परिपूर्ण है, वह क्रियासे नहीं मिलता । क्रियासे तो वह उल्टे दूर होता है। क्रियारहित होकर शान्त हो जायँ तो उसमें स्थिति स्वाभाविक होती है । इसलिये शान्त होनेका स्वभाव बन जाय तो तत्त्वका अनुभव स्वतः हो जायगा । शान्त होनेसे शक्तिका स्वाभाविक पूर्ण विकास होता है । विलक्षणता स्वतः - स्वाभाविक पैदा होती है। अनुभव करनेकी शक्ति बढ़ती है। शान्त रहनेका स्वभाव बन जाय तो आयु भी बढ़ती है। सब तरहका विकास होता है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४९ - १५०
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४९ - १५०··
सत्संग सुननेसे पहले चुप हो जाओ, फिर सुनो तो सत्संग बहुत अच्छा समझमें आयेगा। बोलनेसे पहले चुप हो जाओ, फिर बोलो तो बहुत बढ़िया बातें आयेंगी। उस 'चुप' में साक्षात् सच्चिदानन्दघन परमात्मा हैं। जिस मुक्तिको, ज्ञानको आप प्राप्त करना चाहते हैं, वह उस 'चुप' में है। चुप होनेमें एक विलक्षण शक्ति है। वह शक्ति साक्षात् परमात्मा स्वयं हैं।
||श्रीहरि:||
सत्संग सुननेसे पहले चुप हो जाओ, फिर सुनो तो सत्संग बहुत अच्छा समझमें आयेगा। बोलनेसे पहले चुप हो जाओ, फिर बोलो तो बहुत बढ़िया बातें आयेंगी। उस 'चुप' में साक्षात् सच्चिदानन्दघन परमात्मा हैं। जिस मुक्तिको, ज्ञानको आप प्राप्त करना चाहते हैं, वह उस 'चुप' में है। चुप होनेमें एक विलक्षण शक्ति है। वह शक्ति साक्षात् परमात्मा स्वयं हैं।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११७
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ११७··
आप हरदम शान्त रहनेका स्वभाव बना लो। काम-धन्धा किया, फिर शान्त । संकल्प उठा, फिर शान्त । सुननेसे पहले शान्त और सुननेके बाद फिर शान्त । सुननेसे पहले शान्त होनेसे आपको सुनने की शक्ति मिलेगी और सुननेके बाद शान्त होनेसे सुनी हुई बात तत्त्वसे समझमें आयेगी । शान्त रहनेका स्वभाव बना लोगे तो आपकी स्थिति परमात्मामें हो जायगी। गलती यह होती है कि जल्दी-जल्दी एकके बाद दूसरा काम करनेसे बीचमें शान्तिका अनुभव नहीं होता।
||श्रीहरि:||
आप हरदम शान्त रहनेका स्वभाव बना लो। काम-धन्धा किया, फिर शान्त । संकल्प उठा, फिर शान्त । सुननेसे पहले शान्त और सुननेके बाद फिर शान्त । सुननेसे पहले शान्त होनेसे आपको सुनने की शक्ति मिलेगी और सुननेके बाद शान्त होनेसे सुनी हुई बात तत्त्वसे समझमें आयेगी । शान्त रहनेका स्वभाव बना लोगे तो आपकी स्थिति परमात्मामें हो जायगी। गलती यह होती है कि जल्दी-जल्दी एकके बाद दूसरा काम करनेसे बीचमें शान्तिका अनुभव नहीं होता।- अनन्तकी ओर ९५
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अनन्तकी ओर ९५··
चुप- साधनमें शान्ति मिले तो उसकी भी उपेक्षा करो। उपेक्षा नहीं करोगे तो भोग होगा।
||श्रीहरि:||
चुप- साधनमें शान्ति मिले तो उसकी भी उपेक्षा करो। उपेक्षा नहीं करोगे तो भोग होगा।- सत्संगके फूल २९-३०
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सत्संगके फूल २९-३०··
चुप-साधन करते हुए नींद आती हो तो आप चुप- साधनके अधिकारी नहीं हो। उस समय नामजप आदि करो।
||श्रीहरि:||
चुप-साधन करते हुए नींद आती हो तो आप चुप- साधनके अधिकारी नहीं हो। उस समय नामजप आदि करो।- सत्संगके फूल ३०
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सत्संगके फूल ३०··
चुप- साधनमें ध्यान बाधक है। किसी भी वस्तुका ध्यान न हो।
||श्रीहरि:||
चुप- साधनमें ध्यान बाधक है। किसी भी वस्तुका ध्यान न हो।- सत्संगके फूल ३२
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सत्संगके फूल ३२··
चुप साधन करनेका एक स्थूल उपाय है कि अपनी नासिकासे तीन-चार बार जोर-जोरसे फुंकार (श्वास) बाहर छोड़कर फिर बाहर ही श्वास रोककर चुप हो जायँ।.......दूसरा उपाय है- अपनी पलकोंको बार-बार तेजीसे खोले - मीचें। इससे मनमें होनेवाले संकल्प - विकल्प थोड़ी देरके लिये कट जायँगे। जो कुछ नहीं करनेकी स्थितिका अनुभव करना चाहता है, उसके लिये ये दो स्थूल उपाय हैं।
||श्रीहरि:||
चुप साधन करनेका एक स्थूल उपाय है कि अपनी नासिकासे तीन-चार बार जोर-जोरसे फुंकार (श्वास) बाहर छोड़कर फिर बाहर ही श्वास रोककर चुप हो जायँ।.......दूसरा उपाय है- अपनी पलकोंको बार-बार तेजीसे खोले - मीचें। इससे मनमें होनेवाले संकल्प - विकल्प थोड़ी देरके लिये कट जायँगे। जो कुछ नहीं करनेकी स्थितिका अनुभव करना चाहता है, उसके लिये ये दो स्थूल उपाय हैं।- ईसवर अंस जीव अबिनासी ६५-६६
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ईसवर अंस जीव अबिनासी ६५-६६··
सत्का भाव और असत्का अभाव स्वीकार करके मन-बुद्धिसे चुप हो जायँ । चुप होनेसे असत्की स्वतः निवृत्ति हो जायगी । असत्को मिटानेका उद्योग करना उसको सत्ता देना है।
||श्रीहरि:||
सत्का भाव और असत्का अभाव स्वीकार करके मन-बुद्धिसे चुप हो जायँ । चुप होनेसे असत्की स्वतः निवृत्ति हो जायगी । असत्को मिटानेका उद्योग करना उसको सत्ता देना है।- सत्संगके फूल १८५
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सत्संगके फूल १८५··
शान्त होना, कुछ भी चिन्तन न करना एक बहुत बड़ा साधन है। जो पैदा होता है, स्थिरतासे ही पैदा होता है और स्थिरतामें ही उसकी समाप्ति होती है। स्थिरता स्वतः सिद्ध है और क्रिया कृत्रिम है। स्थिरता हरदम रहती है, पर क्रिया हरदम नहीं रहती । इसलिये कुछ भी चिन्तन न करनेसे साधककी परमात्मामें ही स्थिति होती है। चिन्तन करनेसे वह परमात्मासे अलग होता है। कुछ भी चिन्तन न करना परमात्माकी प्राप्तिका बहुत बढ़िया, सर्वोपरि साधन है।
||श्रीहरि:||
शान्त होना, कुछ भी चिन्तन न करना एक बहुत बड़ा साधन है। जो पैदा होता है, स्थिरतासे ही पैदा होता है और स्थिरतामें ही उसकी समाप्ति होती है। स्थिरता स्वतः सिद्ध है और क्रिया कृत्रिम है। स्थिरता हरदम रहती है, पर क्रिया हरदम नहीं रहती । इसलिये कुछ भी चिन्तन न करनेसे साधककी परमात्मामें ही स्थिति होती है। चिन्तन करनेसे वह परमात्मासे अलग होता है। कुछ भी चिन्तन न करना परमात्माकी प्राप्तिका बहुत बढ़िया, सर्वोपरि साधन है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४५
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १४५··
शास्त्रमें लिखा है कि गहरी नींद ( सुषुप्ति) में सब प्राणियों की स्थिति परमात्मामें होती है। अतः कुछ भी चिन्तन न करें, न संसारका, न परमात्माका, तो परमात्मामें स्वाभाविक स्थिति होती है। बिना पढ़े सब विद्याएँ अपने-आप आती हैं। परमात्मामें स्थित होनेसे संसारमात्रकी सेवा होती है । ऐसी सेवा आप अन्य उपायसे कर नहीं सकते। इसका बहुत बड़ा माहात्म्य है।
||श्रीहरि:||
शास्त्रमें लिखा है कि गहरी नींद ( सुषुप्ति) में सब प्राणियों की स्थिति परमात्मामें होती है। अतः कुछ भी चिन्तन न करें, न संसारका, न परमात्माका, तो परमात्मामें स्वाभाविक स्थिति होती है। बिना पढ़े सब विद्याएँ अपने-आप आती हैं। परमात्मामें स्थित होनेसे संसारमात्रकी सेवा होती है । ऐसी सेवा आप अन्य उपायसे कर नहीं सकते। इसका बहुत बड़ा माहात्म्य है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ २
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ २··
कोई चिन्तन भी नहीं हो और नींद भी नहीं आये- यह बहुत बड़ा साधन है। नींद आये तो कीर्तन, नामजप आदि करो; भगवान्के रूप, लीला, गुण, तत्त्व आदिका चिन्तन करो । भगवान्के चरणोंमें गिरकर गहरे उतर जाओ। फिर भगवान्का भी चिन्तन मत करो।
||श्रीहरि:||
कोई चिन्तन भी नहीं हो और नींद भी नहीं आये- यह बहुत बड़ा साधन है। नींद आये तो कीर्तन, नामजप आदि करो; भगवान्के रूप, लीला, गुण, तत्त्व आदिका चिन्तन करो । भगवान्के चरणोंमें गिरकर गहरे उतर जाओ। फिर भगवान्का भी चिन्तन मत करो।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ८
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ ८··
परमात्माकी प्राप्तिमें खास मार्मिक हेतु है – कुछ न करना । आप जहाँ हो, वहाँ ही चुप हो जाओ; क्योंकि वहाँ ही परमात्मा है। इसलिये परमात्मप्राप्तिके लिये जगह-जगह भटकनेकी जरूरत नहीं है। परमात्मा सम्पूर्ण देश, काल, वस्तु, घटना, परिस्थिति, अवस्था आदिमें समान रूपसे परिपूर्ण है । उसकी प्राप्ति चुप होनेसे, कुछ भी चिन्तन न करनेसे होती है।
||श्रीहरि:||
परमात्माकी प्राप्तिमें खास मार्मिक हेतु है – कुछ न करना । आप जहाँ हो, वहाँ ही चुप हो जाओ; क्योंकि वहाँ ही परमात्मा है। इसलिये परमात्मप्राप्तिके लिये जगह-जगह भटकनेकी जरूरत नहीं है। परमात्मा सम्पूर्ण देश, काल, वस्तु, घटना, परिस्थिति, अवस्था आदिमें समान रूपसे परिपूर्ण है । उसकी प्राप्ति चुप होनेसे, कुछ भी चिन्तन न करनेसे होती है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ३३
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ ३३··
चुप होनेसे शान्तिका अनुभव होता है। उस शान्तिका कोई कर्ता भोक्ता नहीं है। उस शान्तिमें अहंकार न लगायें। मैं शान्त हूँ, बड़ी शान्ति है - ऐसा करनेसे अहंकार लग जाता है। अहंकार लगनेसे उस शान्तिका उपभोग होता है। उपभोग होनेसे शान्ति नहीं रहती, या तो नींद आ जाती है या चंचलता आ जाती है।
||श्रीहरि:||
चुप होनेसे शान्तिका अनुभव होता है। उस शान्तिका कोई कर्ता भोक्ता नहीं है। उस शान्तिमें अहंकार न लगायें। मैं शान्त हूँ, बड़ी शान्ति है - ऐसा करनेसे अहंकार लग जाता है। अहंकार लगनेसे उस शान्तिका उपभोग होता है। उपभोग होनेसे शान्ति नहीं रहती, या तो नींद आ जाती है या चंचलता आ जाती है।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७९
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
नये रास्ते, नयी दिशाएँ ७९··
संसारकी प्राप्तिमें तो क्रिया और पदार्थ मुख्य हैं, पर भगवान्की प्राप्तिमें भगवान्का आश्रय और चुप रहना ( कुछ न करना) मुख्य हैं। भगवान्का आश्रय लेकर उनके चरणोंमें पड़कर कुछ भी चिन्तन न करे। अगर नींद अथवा आलस्य आये तो चुप साधन न करें, प्रत्युत कीर्तन करें, भगवान्का नाम लें।
||श्रीहरि:||
संसारकी प्राप्तिमें तो क्रिया और पदार्थ मुख्य हैं, पर भगवान्की प्राप्तिमें भगवान्का आश्रय और चुप रहना ( कुछ न करना) मुख्य हैं। भगवान्का आश्रय लेकर उनके चरणोंमें पड़कर कुछ भी चिन्तन न करे। अगर नींद अथवा आलस्य आये तो चुप साधन न करें, प्रत्युत कीर्तन करें, भगवान्का नाम लें।- अनन्तकी ओर ७०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अनन्तकी ओर ७०··
यह 'चुप साधन' समाधिसे भी ऊँचा है; क्योंकि इसमें बुद्धि और अहम् से सम्बन्ध विच्छेद है। समाधिमें तो लय, विक्षेप, कषाय और रसास्वाद – ये चार दोष (विघ्न) रहते हैं, पर चुप साधनमें ये दोष नहीं रहते। चुप साधन वृत्तिरहित है।
||श्रीहरि:||
यह 'चुप साधन' समाधिसे भी ऊँचा है; क्योंकि इसमें बुद्धि और अहम् से सम्बन्ध विच्छेद है। समाधिमें तो लय, विक्षेप, कषाय और रसास्वाद – ये चार दोष (विघ्न) रहते हैं, पर चुप साधनमें ये दोष नहीं रहते। चुप साधन वृत्तिरहित है।- साधक संजीवनी ६ २५ परि०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
साधक संजीवनी ६ २५ परि०··
जैसे दीपक वस्तुको भी प्रकाशित करता है और अपनेको भी ऐसे आप अहम्को भी प्रकाशित करते हैं और अपनेको भी। 'चुप' होनेसे अहम् गल जायगा और जीवन्मुक्ति हो जायगी।
||श्रीहरि:||
जैसे दीपक वस्तुको भी प्रकाशित करता है और अपनेको भी ऐसे आप अहम्को भी प्रकाशित करते हैं और अपनेको भी। 'चुप' होनेसे अहम् गल जायगा और जीवन्मुक्ति हो जायगी।- स्वातिकी बूँदें ३५
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
स्वातिकी बूँदें ३५··
चुप होने, शान्त होने, कुछ न करनेके लिये ही जप, ध्यान, कीर्तन, प्रार्थना, स्वाध्याय, सत्संग आदि सब करना है। इससे कुछ न करना समझमें आ जायगा।
||श्रीहरि:||
चुप होने, शान्त होने, कुछ न करनेके लिये ही जप, ध्यान, कीर्तन, प्रार्थना, स्वाध्याय, सत्संग आदि सब करना है। इससे कुछ न करना समझमें आ जायगा।- परम प्रभु अपने ही महुँ पायो १४०
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
परम प्रभु अपने ही महुँ पायो १४०··
जैसे जलके स्थिर (शान्त) होनेपर उसमें मिली हुई मिट्टी शनैः-शनैः अपने-आप नीचे बैठ जाती है, ऐसे ही चुप होनेपर सब विकार शनैः-शनैः अपने-आप शान्त हो जाते हैं, अहम् गल जाता है और वास्तविक तत्त्व ( अहंरहित सत्ता ) का अनुभव हो जाता है।
||श्रीहरि:||
जैसे जलके स्थिर (शान्त) होनेपर उसमें मिली हुई मिट्टी शनैः-शनैः अपने-आप नीचे बैठ जाती है, ऐसे ही चुप होनेपर सब विकार शनैः-शनैः अपने-आप शान्त हो जाते हैं, अहम् गल जाता है और वास्तविक तत्त्व ( अहंरहित सत्ता ) का अनुभव हो जाता है।- साधक संजीवनी ६ । २५ परि०