Seeker of Truth

बुराई

जब हम संसारसे कुछ चाहते हैं, तब बुराई पैदा होती है। कामनाके रहते मनुष्य सर्वथा बुराई - रहित नहीं हो सकता।

ज्ञानकी पगडण्डियाँ ६··

बुरा बने बिना बुराई होती ही नहीं। चोर बने बिना चोरी होती ही नहीं । हत्यारा बने बिना हत्या होती ही नहीं। मनुष्य पहले बुरा बनता है, फिर बुराई करता है, और बुराई करनेसे बुराई दृढ़ हो जाती है।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ८१··

मनुष्य किसीका भी बुरा चाहता है तो उसका बुरा तो होता नहीं, पर अपना बुरा अवश्य हो जाता है। दूसरेका बुरा चाहनेवालेकी हानि ज्यादा होती है; क्योंकि बुरा चाहनेसे उसके भावमें बुराई आ जाती है। कर्मकी अपेक्षा भाव सूक्ष्म और व्यापक होता है। अतः दूसरेका बुरा चाहनेमें अपना ही बुरा निहित है। यह नियम है कि हम दूसरेके प्रति जो करेंगे, वही परिणाममें अपने प्रति हो जायगा।

मानवमात्रके कल्याणके लिये ४२··

जितनी बुराई है, सब आपने सुखभोगसे पैदा की है। इसलिये आपपर जिम्मेवारी है। अगर भगवान्‌की की हुई बुराई होती तो जिम्मेवारी भगवान्पर होती । आप सुखकी इच्छाका त्याग कर दो तो बुराई मिट जायगी।

मैं नहीं, मेरा नहीं ४७··

जो किसीको अपनेसे अलग नहीं मानता और किसीसे कुछ नहीं चाहता, उसके जीवनमें कोई भी बुराई नहीं आती। जिसके जीवनमें कोई भी बुराई नहीं आती, वह 'महामानव' अर्थात् सबसे बड़ा (श्रेष्ठ) आदमी होता है।

ज्ञानकी पगडण्डियाँ ६··

भलाई करनेमें बहादुरी नहीं है, प्रत्युत बुराई छोड़नेमें बहादुरी है।

सत्संगके फूल १८८··

किसीको बुरा समझनेसे वह भी बुरा बन जायगा और हमारेमें भी बुराई आ जायगी। किसीको बुरा समझना अपनेमें बुराईको निमन्त्रण देना है।

सागरके मोती ५··

भलाई करना विध्यात्मक साधन है और बुराईका त्याग करना निषेधात्मक साधन है। भलाई करने से कहीं-न-कहीं बुराई रह सकती है, पर बुराई न करनेसे भलाई सर्वथा आ जाती है। कारण कि भलाई असीम है। कितनी ही भलाई करें, पर वह बाकी रहेगी ही । भलाई करनेसे भलाईका अन्त नहीं आता, पर बुराई न करनेसे बुराईका अन्त आ जाता है। तात्पर्य है कि भलाई करनेसे भलाई बाकी रहती है, पर बुराई न करनेसे भलाई बाकी नहीं रहती।

साधन-सुधा-सिन्धु १०७··

जो बुराई बुराईके रूपमें आती है, उसको मिटाना बड़ा सुगम होता है । परन्तु जो बुराई अच्छाईके रूपमें आती है, उसको मिटाना बड़ा कठिन होता है; जैसे- सीताजीके सामने रावण और हनुमानजी के सामने कालनेमि राक्षस आये तो उनको सीताजी और हनुमान्जी पहचान नहीं सके; क्योंकि उन दोनोंका वेश साधुओंका था।

साधक संजीवनी २। ५··

हम दूसरेका भला करेंगे तो दूसरा हमारा बुरा कर सकेगा ही नहीं । उसमें हमारा बुरा करनेकी सामर्थ्य ही नहीं रहेगी। अगर वह बुरा करेगा भी तो पीछे पछतायेगा, रोयेगा। अगर वह हमारा बुरा करेगा तो हमारा भला करनेवाले, हमारे साथ सहानुभूति रखनेवाले कई पैदा हो जायँगे।

साधक संजीवनी ३ । ११ परि०··

वास्तवमें बुराईका त्याग होनेपर विश्वमात्रकी भलाई अपने-आप होती है, करनी नहीं पड़ती। इसलिये बुराईरहित महापुरुष अगर हिमालयकी एकान्त गुफामें भी बैठा हो, तो भी उसके द्वारा विश्वका बहुत हित होता है।

साधक संजीवनी ५। ३ मा०··

बुराईका सर्वथा त्याग किये बिना आंशिक अच्छाई बुराईको बल देती रहती है। कारण कि आंशिक अच्छाईसे अच्छाईका अभिमान होता है और जितनी बुराई है, वह सब की सब अच्छाईके अभिमानपर ही अवलम्बित है।

साधक संजीवनी ६ ९ वि०··

किसीने हमारा बुरा किया है, वह हमारा बुरा नहीं हुआ है, प्रत्युत उससे हमारे पाप कटे हैं, हम शुद्ध हुए हैं। इसलिये हमारा बुरा कोई कर नहीं सकता।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ३९··

वास्तवमें हमारा बुरा कोई कर ही नहीं सकता। दुनिया सब मिलकर भी हमारा कल्याण नहीं कर सकती और अकल्याण भी नहीं कर सकती।

बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ८१··

आपके पाप न हों और दूसरा आपका बुरा कर दे - ऐसा सम्भव ही नहीं है।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश ९१··

यह नियम ले लो कि किसीको बुरा नहीं समझेंगे, किसीका बुरा नहीं चाहेंगे और किसीका बुरा नहीं करेंगे। इन तीन बातोंसे आपका अन्तःकरण शुद्ध हो जायगा, आप सन्त महात्मा बन जाओगे।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १७४··

बुरा करनेवालेको देखकर आपको गुस्सा आयेगा तो उसको भी गुस्सा आ जायगा । वह कहेगा कि मैं कुछ भी करूँ, तू कहनेवाला कौन है? परन्तु आपके मनमें उसके हितका भाव होकर दुःख होगा तो आप उसको थप्पड़ भी मार दोगे तो वह चुप रहेगा। उसके भीतर यह असर पड़ेगा कि ये मेरे भलेके लिये थप्पड़ मारते हैं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९०··

भावका बड़ा असर पड़ता है। आप एकान्तमें बैठकर भी अगर हृदयमें यह भाव रखें कि किसीका बुरा न हो तो आप सन्त बन जाओगे।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९०··

भलाईकी जड़ हैं भगवान् और बुराईकी जड़ हैं आप । आप बुराई छोड़ दें तो बुराई रहेगी ही नहीं।

सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९०··

भला बननेके लिये कोई प्रयत्न करनेकी जरूरत नहीं । बुराई छोड़ दो तो भले हो जाओगे।

स्वातिकी बूँदें ३४··

किसीको भी बुरा न समझना, बुरा न चाहना और बुरा न करना 'अभयदान' है। अभयदान सब दानोंसे बढ़कर है।

स्वातिकी बूँदें ६६··

कोई बुरा करे तो बदलेमें उसका बुरा न चाहकर यह समझो कि अपने ही दाँतोंसे अपनी जीभ कट गयी।

अमृत-बिन्दु ३४९··

दूसरोंके प्रति हमारी बुरी भावना होनेसे उनका बुरा होगा कि नहीं होगा - यह तो निश्चित नहीं है, पर हमारा अन्त:करण तो मैला हो ही जायगा।

अमृत-बिन्दु ३५४··

याद रखो, किसीका भी बुरा करोगे तो उसका बुरा होनेवाला ही होगा, पर आपका नया पाप हो ही जायगा।

अमृत-बिन्दु ३५५··

बुराईरहित होनेका उपाय है- १. किसीको बुरा न मानें, २. किसीका बुरा न करें, ३. किसीका बुरा न सोचें, ४. किसीमें बुराई न देखें, ५. किसीकी बुराई न सुनें, ६. किसीकी बुराई न कहें। इन छः बातोंका दृढ़तासे पालन करें तो हम बुराईरहित हो जायँगे।

साधक संजीवनी ६ । ९ वि०··