नाशवान् पदार्थोंके कारण माना गया बड़प्पन कभी टिकता नहीं और परमात्माके कारण होनेवाला बड़प्पन कभी मिटता नहीं। इसलिये जीव जिसका अंश है, उस सर्वोपरि परमात्माको प्राप्त करनेसे ही वह बड़ा होता है। इतना बड़ा होता है कि देवतालोग भी उसका आदर करते हैं और कामना करते हैं कि वह हमारे लोकमें आये। इतना ही नहीं, स्वयं भगवान् भी उसके अधीन हो जाते हैं।
||श्रीहरि:||
नाशवान् पदार्थोंके कारण माना गया बड़प्पन कभी टिकता नहीं और परमात्माके कारण होनेवाला बड़प्पन कभी मिटता नहीं। इसलिये जीव जिसका अंश है, उस सर्वोपरि परमात्माको प्राप्त करनेसे ही वह बड़ा होता है। इतना बड़ा होता है कि देवतालोग भी उसका आदर करते हैं और कामना करते हैं कि वह हमारे लोकमें आये। इतना ही नहीं, स्वयं भगवान् भी उसके अधीन हो जाते हैं।- साधक संजीवनी १५ । ७
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साधक संजीवनी १५ । ७··
स्वयं परमात्माका अंश एवं चेतन है, सबसे महान् है । परन्तु जब वह जड़ (दृश्य) पदार्थोंसे अपनी महत्ता मानने लगता है (जैसे, 'मैं धनी हूँ', 'मैं विद्वान् हूँ' आदि), तब वास्तवमें वह अपनी महत्ता घटाता ही है। इतना ही नहीं, अपनी महान् बेइज्जती करता है; क्योंकि अगर धन, विद्या आदिसे वह अपनेको बड़ा मानता है, तो धन, विद्या आदि ही बड़े हुए। उसका अपना महत्त्व तो कुछ रहा ही नहीं।
||श्रीहरि:||
स्वयं परमात्माका अंश एवं चेतन है, सबसे महान् है । परन्तु जब वह जड़ (दृश्य) पदार्थोंसे अपनी महत्ता मानने लगता है (जैसे, 'मैं धनी हूँ', 'मैं विद्वान् हूँ' आदि), तब वास्तवमें वह अपनी महत्ता घटाता ही है। इतना ही नहीं, अपनी महान् बेइज्जती करता है; क्योंकि अगर धन, विद्या आदिसे वह अपनेको बड़ा मानता है, तो धन, विद्या आदि ही बड़े हुए। उसका अपना महत्त्व तो कुछ रहा ही नहीं।- साधक संजीवनी १३ | १
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साधक संजीवनी १३ | १··
जो स्वयं छोटा होता हैं, वही ऊँचे स्थानपर नियुक्त होनेसे बड़ा माना जाता है। अतः जो ऊँचे स्थानके कारण अपनेको बड़ा मानता है, वह स्वयं वास्तवमें छोटा ही होता है । परन्तु जो स्वयं बड़ा होता है, वह जहाँ भी रहता है, उसके कारण वह स्थान भी बड़ा माना जाता है।
||श्रीहरि:||
जो स्वयं छोटा होता हैं, वही ऊँचे स्थानपर नियुक्त होनेसे बड़ा माना जाता है। अतः जो ऊँचे स्थानके कारण अपनेको बड़ा मानता है, वह स्वयं वास्तवमें छोटा ही होता है । परन्तु जो स्वयं बड़ा होता है, वह जहाँ भी रहता है, उसके कारण वह स्थान भी बड़ा माना जाता है।- साधक संजीवनी १ । १४
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साधक संजीवनी १ । १४··
हमें पता लगे या न लगे, हम जिन पदार्थोंकी आवश्यकता समझते हैं, जिनमें कोई विशेषता या महत्त्व देखते हैं या जिनकी हम गरज रखते हैं, वे (धन, विद्या आदि) पदार्थ हमसे बड़े और हम उनसे तुच्छ हो ही गये । पदार्थोंके मिलनेमें जो अपना महत्त्व समझता है, वह वास्तवमें तुच्छ ही है, चाहे उसे पदार्थ मिले या न मिले।
||श्रीहरि:||
हमें पता लगे या न लगे, हम जिन पदार्थोंकी आवश्यकता समझते हैं, जिनमें कोई विशेषता या महत्त्व देखते हैं या जिनकी हम गरज रखते हैं, वे (धन, विद्या आदि) पदार्थ हमसे बड़े और हम उनसे तुच्छ हो ही गये । पदार्थोंके मिलनेमें जो अपना महत्त्व समझता है, वह वास्तवमें तुच्छ ही है, चाहे उसे पदार्थ मिले या न मिले।- साधक संजीवनी १५ । ७ वि०
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साधक संजीवनी १५ । ७ वि०··
नाशवान् सांसारिक पदार्थोंको प्राप्त करके मनुष्य कभी भी बड़ा नहीं हो सकता। केवल बड़े होनेका वहम या धोखा हो जाता है और वास्तवमें असली बड़प्पन ( परमात्मप्राप्ति ) - से वंचित हो जाता है।
||श्रीहरि:||
नाशवान् सांसारिक पदार्थोंको प्राप्त करके मनुष्य कभी भी बड़ा नहीं हो सकता। केवल बड़े होनेका वहम या धोखा हो जाता है और वास्तवमें असली बड़प्पन ( परमात्मप्राप्ति ) - से वंचित हो जाता है।- साधक संजीवनी १५ । ७
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साधक संजीवनी १५ । ७··
आप खुद बड़े मत बनो। बड़े बनोगे तो अपनेसे बड़ा (परमात्मा ) दीखेगा नहीं।
||श्रीहरि:||
आप खुद बड़े मत बनो। बड़े बनोगे तो अपनेसे बड़ा (परमात्मा ) दीखेगा नहीं।- सागरके मोती २९
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सागरके मोती २९··
अपनेको छोटा और दूसरेको बड़ा मानना असली बड़प्पन है । अपनेको बड़ा और दूसरेको छोटा मानना असली नीचपना है।
||श्रीहरि:||
अपनेको छोटा और दूसरेको बड़ा मानना असली बड़प्पन है । अपनेको बड़ा और दूसरेको छोटा मानना असली नीचपना है।- अमृत-बिन्दु ३१७
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अमृत-बिन्दु ३१७··
बड़ा वास्तवमें वही है, जो दूसरोंको बड़ा बनाता है। जो दूसरोंको छोटा बनाता है, वह खुद छोटा है, गुलाम है।
||श्रीहरि:||
बड़ा वास्तवमें वही है, जो दूसरोंको बड़ा बनाता है। जो दूसरोंको छोटा बनाता है, वह खुद छोटा है, गुलाम है।- अमृत-बिन्दु ३१८
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अमृत-बिन्दु ३१८··
सांसारिक पदार्थोंको लेकर जो अपनेको बड़ा मानता है, उसको ये सांसारिक पदार्थ तुच्छ बना देते हैं।
||श्रीहरि:||
सांसारिक पदार्थोंको लेकर जो अपनेको बड़ा मानता है, उसको ये सांसारिक पदार्थ तुच्छ बना देते हैं।- अमृत-बिन्दु ३२०
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अमृत-बिन्दु ३२०··
बड़प्पनका अभिमान उनमें होता है, जो छोटे होते हैं। जो वास्तवमें बड़े होते हैं, उनमें बड़प्पनका अभिमान नहीं होता।
||श्रीहरि:||
बड़प्पनका अभिमान उनमें होता है, जो छोटे होते हैं। जो वास्तवमें बड़े होते हैं, उनमें बड़प्पनका अभिमान नहीं होता।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश २०३
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश २०३··
बल, विद्या, मान, आदर, प्रशंसा आदि जिस चीजसे मनुष्य अपनेको बड़ा मानता है, वह चीज तो बड़ी हो जाती है और मनुष्य छोटा हो जाता है।
||श्रीहरि:||
बल, विद्या, मान, आदर, प्रशंसा आदि जिस चीजसे मनुष्य अपनेको बड़ा मानता है, वह चीज तो बड़ी हो जाती है और मनुष्य छोटा हो जाता है।- सत्संग-मुक्ताहार ४७
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सत्संग-मुक्ताहार ४७··
सांसारिक वस्तुओंसे अपनेको बड़ा मानना वास्तवमें हमारी फजीती है, पतन है, परतन्त्रता है, निन्दा है, तुच्छता है।
||श्रीहरि:||
सांसारिक वस्तुओंसे अपनेको बड़ा मानना वास्तवमें हमारी फजीती है, पतन है, परतन्त्रता है, निन्दा है, तुच्छता है।- सत्संग-मुक्ताहार ४७
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सत्संग-मुक्ताहार ४७··
आपका मूल्य संसारसे अधिक है। संसार छोटा है, आप बड़े हैं। आपका स्वरूप अनन्त ब्रह्माण्डों बड़ा है। अनन्त ब्रह्माण्ड आपके एक देशमें हैं।
||श्रीहरि:||
आपका मूल्य संसारसे अधिक है। संसार छोटा है, आप बड़े हैं। आपका स्वरूप अनन्त ब्रह्माण्डों बड़ा है। अनन्त ब्रह्माण्ड आपके एक देशमें हैं।- नये रास्ते, नयी दिशाएँ ५०
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नये रास्ते, नयी दिशाएँ ५०··
एक विलक्षण बात है कि अनन्त ब्रह्माण्ड मिलकर भी आपको कुछ दे नहीं सकते, आपकी आवश्यकता पूरी नहीं कर सकते पर आप मात्र ब्रह्माण्डका कल्याण कर सकते हैं। आप इतने बड़े हैं। पर यह बात समझमें नहीं आयेगी । संसार हमारा नहीं है और हमारे लिये नहीं है- ऐसा अनुभव होनेके बाद समझमें आयेगी।
||श्रीहरि:||
एक विलक्षण बात है कि अनन्त ब्रह्माण्ड मिलकर भी आपको कुछ दे नहीं सकते, आपकी आवश्यकता पूरी नहीं कर सकते पर आप मात्र ब्रह्माण्डका कल्याण कर सकते हैं। आप इतने बड़े हैं। पर यह बात समझमें नहीं आयेगी । संसार हमारा नहीं है और हमारे लिये नहीं है- ऐसा अनुभव होनेके बाद समझमें आयेगी।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ ८९