आस्तिकता - नास्तिकता
जो बिना देखे सुने भी परमात्माकी सत्ता मानते हैं, वे 'आस्तिक' हैं। जो परमात्माकी सत्ता न मानकर जगत् और जीव (आत्मा) की सत्ता मानते हैं, वे 'नास्तिक' हैं।
जो परमात्मामें संसारको देखते हैं अर्थात् संसारको परमात्मरूपसे न देखकर संसाररूपसे (जड़) देखते हैं, वे नास्तिक होते हैं। परन्तु जो संसारमें परमात्माको देखते हैं अर्थात् संसारको संसाररूपसे न देखकर परमात्मरूपसे (चिन्मय) देखते हैं, वे आस्तिक होते हैं।
परमात्मामें संसारको देखना अथवा संसारमें परमात्माको देखना अधूरी आस्तिकता है । परन्तु केवल परमात्माको ही देखना पूरी आस्तिकता है।
ईश्वर, धर्म और परलोकको न माननेवाले नास्तिकका संग सबसे अधिक पतनकारक है।
नास्तिक-से-नास्तिक भी आफत पड़नेपर पुकार उठता है कि कोई ईश्वर है तो रक्षा करे ।
आप कहीं भी चले जाओ, कितने ही नास्तिक बन जाओ तो भी भगवान् आपके हृदयमें रहेंगे ही, आपको छोड़ेंगे नहीं।