अज्ञान
परमात्मतत्त्वके सिवाय अन्यकी जितनी भी स्वीकृति है, उतना ही अज्ञान है।
||श्रीहरि:||
परमात्मतत्त्वके सिवाय अन्यकी जितनी भी स्वीकृति है, उतना ही अज्ञान है।- अमृत-बिन्दु ३९४
स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराजseekertruth.org
अमृत-बिन्दु ३९४··
अज्ञानका अर्थ ज्ञानका अभाव नहीं है। अधूरे ज्ञानको पूरा ज्ञान मान लेना ही अज्ञान है। कारण कि परमात्माका ही अंश होनेसे जीवमें ज्ञानका सर्वथा अभाव हो ही नहीं सकता, केवल नाशवान् असत् की सत्ता मानकर उसे महत्त्व दे देता है, असत्को असत् मानकर भी असत्से विमुख नहीं होता - यही अज्ञान है। इसलिये मनुष्यमें जितना ज्ञान है, यदि उस ज्ञानके अनुसार वह अपना जीवन बना ले, तो अज्ञान सर्वथा मिट जायगा और ज्ञान प्रकट हो जायगा। कारण कि अज्ञानकी स्वतन्त्र सत्ता है ही नहीं।
||श्रीहरि:||
अज्ञानका अर्थ ज्ञानका अभाव नहीं है। अधूरे ज्ञानको पूरा ज्ञान मान लेना ही अज्ञान है। कारण कि परमात्माका ही अंश होनेसे जीवमें ज्ञानका सर्वथा अभाव हो ही नहीं सकता, केवल नाशवान् असत् की सत्ता मानकर उसे महत्त्व दे देता है, असत्को असत् मानकर भी असत्से विमुख नहीं होता - यही अज्ञान है। इसलिये मनुष्यमें जितना ज्ञान है, यदि उस ज्ञानके अनुसार वह अपना जीवन बना ले, तो अज्ञान सर्वथा मिट जायगा और ज्ञान प्रकट हो जायगा। कारण कि अज्ञानकी स्वतन्त्र सत्ता है ही नहीं।- साधक संजीवनी ४ । ४० टि०
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साधक संजीवनी ४ । ४० टि०··