आज्ञा-पालनसे पूज्यकी सारी शक्ति आज्ञा-पालकमें उतर आती है।
||श्रीहरि:||
आज्ञा-पालनसे पूज्यकी सारी शक्ति आज्ञा-पालकमें उतर आती है।- साधन-सुधा-सिन्धु २३५
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साधन-सुधा-सिन्धु २३५··
आज्ञा-पालन करनेके तीन भेद हैं। एक नंबरकी बात यह है कि आज्ञा मिले कि अमुक काम करना है तो चट उठकर वह काम कर दे। कहनेवालेके वचनोंको नीचे नहीं गिरने दे। थोड़ी देर बाद उठकर आज्ञा-पालन करनेसे आज्ञा-पालनका वह फायदा नहीं होता; क्योंकि वचन नीचे गिर गया। इसलिये आज्ञा पालनमें देर करना दो नंबरकी बात है। आज्ञाके अनुसार काम न करना, जवाब दे देना तीन नंबरकी बात है।
||श्रीहरि:||
आज्ञा-पालन करनेके तीन भेद हैं। एक नंबरकी बात यह है कि आज्ञा मिले कि अमुक काम करना है तो चट उठकर वह काम कर दे। कहनेवालेके वचनोंको नीचे नहीं गिरने दे। थोड़ी देर बाद उठकर आज्ञा-पालन करनेसे आज्ञा-पालनका वह फायदा नहीं होता; क्योंकि वचन नीचे गिर गया। इसलिये आज्ञा पालनमें देर करना दो नंबरकी बात है। आज्ञाके अनुसार काम न करना, जवाब दे देना तीन नंबरकी बात है।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७६
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७६··
अगर कोई निषिद्ध (नहीं करनेलायक) काम करनेकी आज्ञा दे, तो हाथ जोड़कर खड़ा रह जाय और पूछनेपर कहे कि इस कामको करनेमें आपकी हानि है, इसलिये मैं करना नहीं चाहता । इसका आशय यह है कि आपकी आज्ञाका पालन करूँगा तो आप नरकोंमें जायँगे और आज्ञाका पालन नहीं करूँगा तो मैं नरकोंमें जाऊँगा। दोनों नरकोंमें जायँ इसकी अपेक्षा मेरा नरकोंमें जाना अच्छा है। इस भावसे निषिद्ध आज्ञाका पालन नहीं करे।
||श्रीहरि:||
अगर कोई निषिद्ध (नहीं करनेलायक) काम करनेकी आज्ञा दे, तो हाथ जोड़कर खड़ा रह जाय और पूछनेपर कहे कि इस कामको करनेमें आपकी हानि है, इसलिये मैं करना नहीं चाहता । इसका आशय यह है कि आपकी आज्ञाका पालन करूँगा तो आप नरकोंमें जायँगे और आज्ञाका पालन नहीं करूँगा तो मैं नरकोंमें जाऊँगा। दोनों नरकोंमें जायँ इसकी अपेक्षा मेरा नरकोंमें जाना अच्छा है। इस भावसे निषिद्ध आज्ञाका पालन नहीं करे।- बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७६
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बिन्दुमें सिन्धु तीर्थ १७६··
जो माता-पिताकी आज्ञाका पालन करता है, उससे भगवान् बड़े प्रसन्न होते हैं और विश्वास करते हैं कि यह मेरी भी आज्ञाका पालन करेगा। परन्तु जो माता-पिताको नहीं मानता, उसपर भगवान् विश्वास नहीं करते कि जो अपने माता-पिताको नहीं मानता, वह मेरेको मानेगा, इसका क्या भरोसा ?
||श्रीहरि:||
जो माता-पिताकी आज्ञाका पालन करता है, उससे भगवान् बड़े प्रसन्न होते हैं और विश्वास करते हैं कि यह मेरी भी आज्ञाका पालन करेगा। परन्तु जो माता-पिताको नहीं मानता, उसपर भगवान् विश्वास नहीं करते कि जो अपने माता-पिताको नहीं मानता, वह मेरेको मानेगा, इसका क्या भरोसा ?- सीमाके भीतर असीम प्रकाश ३७
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश ३७··
बड़े-बूढ़ोंकी आज्ञाका पालन करनेसे, उनकी सेवा करनेसे विद्या आती है ।
||श्रीहरि:||
बड़े-बूढ़ोंकी आज्ञाका पालन करनेसे, उनकी सेवा करनेसे विद्या आती है ।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९२
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सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९२··
जिनकी आप आज्ञा मानेंगे, उन (माता-पिता, गुरु आदि) से भी विलक्षण शक्ति आपमें आ जायगी।
||श्रीहरि:||
जिनकी आप आज्ञा मानेंगे, उन (माता-पिता, गुरु आदि) से भी विलक्षण शक्ति आपमें आ जायगी।- सीमाके भीतर असीम प्रकाश १९५
माता, पिता, पति, गुरु, मालिक, राजाकी आज्ञाका पालन करनेवाला वास्तवमें ऋषियोंकी एवं शास्त्रोंकी आज्ञाका पालन करता है।
||श्रीहरि:||
माता, पिता, पति, गुरु, मालिक, राजाकी आज्ञाका पालन करनेवाला वास्तवमें ऋषियोंकी एवं शास्त्रोंकी आज्ञाका पालन करता है।- स्वातिकी बूँदें १८०
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स्वातिकी बूँदें १८०··
यदि शिष्य गुरुकी आज्ञाका पालन करे तो गुरुकी सामर्थ्य न होनेपर भी शिष्यका कल्याण हो जायगा, क्योंकि गुरुकी आज्ञाका पालन करनेसे शास्त्रकी आज्ञाका पालन होता है।
||श्रीहरि:||
यदि शिष्य गुरुकी आज्ञाका पालन करे तो गुरुकी सामर्थ्य न होनेपर भी शिष्यका कल्याण हो जायगा, क्योंकि गुरुकी आज्ञाका पालन करनेसे शास्त्रकी आज्ञाका पालन होता है।- स्वातिकी बूँदें १८१
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स्वातिकी बूँदें १८१··
जैसे धनी आदमीकी आज्ञाका पालन करनेसे धन मिलता है, ऐसे ही तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषोंकी आज्ञाका पालन करनेसे तत्त्वज्ञान मिलता है।
||श्रीहरि:||
जैसे धनी आदमीकी आज्ञाका पालन करनेसे धन मिलता है, ऐसे ही तत्त्वज्ञ जीवन्मुक्त महापुरुषोंकी आज्ञाका पालन करनेसे तत्त्वज्ञान मिलता है।- साधक संजीवनी १३ । २५
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साधक संजीवनी १३ । २५··
जिन मनुष्योंमें शास्त्रोंको समझनेकी योग्यता नहीं है, जिनका विवेक कमजोर है, पर जिनके भीतर मृत्युसे तरनेकी उत्कट अभिलाषा है, ऐसे मनुष्य भी जीवन्मुक्त सन्त-महात्माओंकी आज्ञाका पालन करके मृत्युको तर जाते हैं।
||श्रीहरि:||
जिन मनुष्योंमें शास्त्रोंको समझनेकी योग्यता नहीं है, जिनका विवेक कमजोर है, पर जिनके भीतर मृत्युसे तरनेकी उत्कट अभिलाषा है, ऐसे मनुष्य भी जीवन्मुक्त सन्त-महात्माओंकी आज्ञाका पालन करके मृत्युको तर जाते हैं।- साधक संजीवनी १३ । २५ परि०