सत्संगकी कीमती बातें
संसारकी परमसेवा करने वालेके उद्धारमें तो संशय है ही नहीं, केवल ऐसा भाव रखने वालेका भी उद्धार हो सकता है।
अपने धर्मके पालनसे कल्याण होता है।
गीताका प्रचार सब जातियोंमें करना चाहिये- मुसलमान भाइयों और अंग्रेजोंमें भी।
विद्वत्ता और त्याग जिस समाजमें होगा, उस समाजका पतन नहीं हो सकता है। विद्वत्ता और त्याग - ये दो पंख हैं। असली पंख तो त्याग है।
इस समय ये विद्वत्ता और त्याग ५०० आदमियोंमें होनेसे सत्युगके समान हो सकता है।
कोई व्यक्ति गीता पढ़े, उस समय उसको श्रीकृष्ण और अर्जुनको मनसे अपने सामने देखना चाहिये।
भगवत्प्रेमीसे मिलने पर रोमांच होना चाहिये।
भक्तके संगसे प्रेम होना चाहिये।
मैं जिसको ज्यादा प्यारा लगता हूँ, वह मेरेको भी वैसा ही प्यारा लगता है। मेरेसे जो प्रेम करता है, वह मुझे प्यारा लगता है- ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् (गीता ४/११) (अर्थात्- हे अर्जुन ! जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ।)
स्त्रियोंमें दोष-
१. वाणीका असंयम।
२. मूढ़ता।
३. मर्म समझनेकी शक्ति नहीं।
४. सकाम भाव और
५. जो बात सुनती हैं, उसका उलटा अर्थ निकाल लेती हैं। जिस प्रेममें ईर्ष्या नहीं होती है, वही प्रेम ऊँचे दर्जेका है।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण…