Seeker of Truth
॥ श्रीहरिः ॥

हर वक्त भगवान्‌का ध्यान बनाये रखें

प्रवचन सं. १८
आश्विन शुक्ल १५ विक्रम सम्वत् १९९५ (सन् 1938)बाँकुड़ा

समय बहुत थोड़ा-सा बच गया है, इसलिये बहुत दामी बात कहते हैं। २ मिनट भगवान्‌के नामका उच्चारण कर लो- जय सीताराम सीताराम, सीताराम जय सीताराम...

आप लोगोंको बहुत दामी बात बतायी जाती है। यदि यह बात काममें लायी जावे तो प्रत्यक्ष फल होवे, जो कि शास्त्रमें बतायी गई है। सबसे बढ़कर बात क्या है ? - भगवान्‌का हर वक्त ध्यान रखे - गुण, प्रभाव, निराकारसहित साकारका ध्यान।

उस मोहिनी मूर्तिको हमेशा, हरदम अपने साथ देखता रहे। सारी दुनियामें जैसे प्रकाश है, वैसे ही सब जगह भगवान् हैं- ज्ञानमय हैं, आनन्दमय हैं। समता, शान्ति, प्रसन्नता है, इसी प्रकार परमात्मा है। वह प्रभु हमारे सामने खड़े हैं, साकार हैं, सामने हँस रहे हैं, एकान्तमें बात कर रहे हैं।

भगवान्‌का प्रभाव बहुत पड़ता है। भगवान्‌के पासमें होने पर अपने मनके विपरीत काम आने पर भी क्रोध नहीं आ सकता है। अपनेमें प्रसन्नता देख रहे हैं, चेतनता देख रहे हैं, ज्ञानका प्रकाश देख रहे हैं, शान्ति देख रहे हैं- ये सब भगवान्‌के प्रभाव हैं। जितने भी गुणोंका विकास है, यह सब प्रभुका प्रभाव है, क्योंकि सब गुणोंके समुद्र भगवान् हमारे पास खड़े हैं। यह सब प्रभुकी लीला देख रहे हैं। भगवान्‌में कितनी दया, शान्ति, समता, प्रेम है ! वे प्रेममें तो बिक जाते हैं ! उनका इतना द्रवीभूत हृदय है कि पिघल जाता है। प्रभुका व्यवहार कैसा अद्भुत है ! - रावणका भाई विभीषण मिलनेके लिये आ रहा है, उस समय भगवान् सुग्रीवसे पूछते हैं।

सुग्रीव कहते हैं- क्या पता, इसके मनमें क्या बात है ? इसको बाँधकर कैद कर लेवें ?

कुछ लोगोंने उनकी बातका समर्थन किया।

भगवान् सुग्रीवसे कहते हैं- जो आपने सुझाव दिया, वह राजनीतिके हिसाबसे अच्छा है, परन्तु हमारा यह स्वभाव है कि- 'जो कोई मेरी शरणमें आ जाता है, उसका मैं त्याग नहीं करता।'

फिर हनुमान्जीसे बोले कि विभीषणको बुलाना चाहिये।

उन्हें बुलाया जाता है, वे आते हैं। उनके आते ही उनका राजतिलक कर देते हैं। यह देकर भी प्रभु सकुचाते हैं कि मैं इनको क्या तुच्छ चीज दे रहा हूँ !

इसी प्रकारसे श्रीकृष्ण जब पूतना विष देनेको आती है तो उसको मुक्ति दे देते हैं। यह भगवान्‌की बहुत उदारताकी बात है।

भगवान्‌की अर्जुनके साथ कितनी मित्रता है !

भगवान्‌की लीलाका स्मरण करें। उनकी लीलामें समता, नीति, कौशलता, व्यवहार आदि का स्मरण करें।

भगवान्‌का भक्त उनके गुण, प्रभाव और उनकी लीलाको याद करके कभी हँसता है, कभी शरण होकर रोता है, कहता है कि- 'मैं आपका दास हूँ, आपकी शरण हूँ।' कभी ध्यान करता है, कभी उनसे ध्यानमें बातचीत करता है।

नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण…