निष्कामभावसे भगवान् से प्रेम करने हेतु प्रेरणा
संसारके संगसे प्लेगकी बिमारीकी माफिक संसारसे डरते हुए काम करना चाहिये।
मान, बड़ाई तथा मुलाहिजाके लिये भजन-ध्यानकी एक पलककी टाइम भी खराब नहीं करनी चाहिये।
मुलाहिजा कुछ काम आवेगा नहीं, अन्तमें एक भगवान् ही काम आया करते हैं। अतः भगवान् के मुलाहिजे तथा प्रेममें कुछ भी त्रुटि हो तो संसारका मुलाहिजा छोड़ने ही योग्य है।
संसारी बातोंके आरामके लिये नारायणके प्रेममें बाधा हो, ऐसा मुलाहिजा रखनेकी कोई जरूरत नहीं है।
मुलाहिजा तो एक नारायणका ही रखना चाहिये। उनके भजनके काममें बाधा पड़े, ऐसा मुलाहिजा भगवान् को अच्छा नहीं लगता है– ऐसा जानकर सबका मुलाहिजा तोड़कर एक नारायणका ही मुलाहिजा अच्छी तरह सधे, वही करना चाहिये।
आप लोगोंको नारायणके मुलाहिजेमें बाधा नहीं डालनी चाहिये। समय बीता जा रहा है, गया हुआ समय वापस आता नहीं है। शरीरका भी आरामरूपी मुलाहिजा छोड़ा जाये तो भगवान् के प्रेममें बहुत जल्दी फायदा पहुँच सकता है। मनमें कोई भी कामना नहीं रखनी चाहिये। बार-बार मनसे यह बात पूछता रहे कि– ‘रे मन ! तुम्हारी अब क्या इच्छा है ? तुम्हारी इच्छा पूर्ति हुई या नहीं ? हे मूर्ख ! नारायणको छोड़कर मिथ्या इच्छा किसलिये करता है ? तुमको किस बात की जरूरत है ? नारायण सभी जगह हाजिर हैं। जिनके विश्वास हो जाता है, उनको प्रत्यक्ष हो जाते हैं। ऐसे भगवान् के रहते हुए दूसरी इच्छा रखो तो तुम्हारी मूर्खता है। इच्छा तो एक ही रखनी चाहिये।’
जप की इतनी टान रखे, चाहे सभी कुछ छूट जाओ, एक जपका छूटना सहन न हो। अपने प्राणोंसे भी जपको उत्तम समझे। प्राण भी भले ही छूट जायें, पर जप नहीं छूटना चाहिये। जपको अपना जीवन ही समझ ले। ऐसा प्रेमसहित जप हो तो फिर देरीका काम नहीं है।
अपने प्रेमीको मनसे कभी नहीं बिसारना चाहिये। प्रेमीका चिन्तन, उसके गुणोंका चिन्तन, उनके लक्षणोंका स्मरण तथा उनके प्रभावका स्मरण करना ही प्रेम बढ़ानेवाला है।
शरीर भी मिट्टीमें मिलने वाला है– ऐसा जानकर इस शरीरसे पूर्ण लाभ उठाना चाहिये। भगवान् के भजन-ध्यानके बिना एक पलक भी किसलिये व्यर्थ जाता है ? एक पलक भी भजन-ध्यानके बिना नहीं जाने देना चाहिये। अपना अमोलक समय हाथसे नहीं गँवाना चाहिये।
भगवान् के नामका जप मनसे, निष्कामभावसे, निरन्तर, अर्थ सहित, प्रसन्नचित्तसे होवे– ऐसा साधन बहुत अच्छा समझा जाता है। जपमें पाँच बातें साथमें रखे तो बहुत ही श्रेष्ठ समझा जाता है। ये बातें हैं–
(1) नामका जप मानसिक यानी मनसे करे।
(2) अर्थका चिन्तन यानी स्वरूपका चिन्तन।
(3) निष्कामभाव।
(4) गुप्तभाव।
(5) निरन्तर।
जिसमें प्रेम बढ़ाना हो, उसका हर वक्त चिन्तन करनेसे तथा उसके अच्छे गुणों और प्रभावका स्मरण करनेसे मनमें हर्ष होवे, रोमा×च होवे, अश्रुपात होवे। और अपने प्रेमीकी महिमा किसीसे सुने, तब भी ऊपर लिखे अनुसार हाल हो।
प्रेमीसे विछोह भले ही हो, पर प्रेमीका प्रेम बना रहना चाहिये।
प्रेम ही असली वस्तु है।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण...