ईश्वरकी सत्तामें प्रमाण विषयक प्रश्नोत्तर
ईश्वर, माया, जीव, सृष्टि, कर्म, मोक्ष और परलोक आदिके विषय में कतिपय मित्रेंके प्रश्न हैं। ये प्रश्न बड़े गहन और तात्त्विक हैं। इन प्रश्नोंका वास्तविक उत्तर तो परमेश्वर ही जानते हैं तथा वे महान् पुरुष भी जानते हैं, जो श्रौत्रीय और ब्रह्मनिष्ठ हैं। यद्यपि मेरे जैसे व्यक्तिके लिये तो इन प्रश्नोंका उत्तर देना महान् ही कठिन है, तथापि मित्रजनोंके अनुरोध करनेपर अपनी साधारण बुद्धिके अनुसार अपने भावोंको प्रकट किया जाता है। त्रुटियोंके लिये विज्ञजन क्षमा करेंगे।
प्रश्न– ईश्वर है या नहीं ?
उत्तर– ईश्वर निश्चय ही है।
प्रश्न– उसके होने में क्या प्रमाण है ?
उत्तर– ईश्वर स्वतः प्रमाण है। उसके लिये अन्य प्रमाणोंकी आवश्यकता ही नहीं है। सम्पूर्ण प्रमाणोंकी सिद्धि भी उसीकी सत्ता, स्फूर्तिसे होती है। तुम्हारा प्रश्न भी ईश्वरको सिद्ध करता है, क्योंकि मिथ्या वस्तुके विषयमें तो प्रश्न ही नहीं बनता, जैसे- 'बंध्यापुत्र है या नहीं ?' (अर्थात् बाँझ स्त्रीके पुत्र है या नहीं ?) - यह प्रश्न ही नहीं बनता है।
प्रश्न– संदिग्धतामें भी प्रश्न बन सकता है और मुझे शंका है, इसलिये ईश्वरके विषयमें प्रमाण बतावें ?
उत्तर– यद्यपि ईश्वरकी सिद्धिसे ही हम सबकी सिद्धि है, इसलिये प्रमाणोंद्वारा ईश्वरको सिद्ध करना बालकपन ही है, तथापि संदिग्धोंकी शंका निवृत्तिके लिये श्रुति, स्मृति, इतिहास, पुराणादि शास्त्र ईश्वरकी सत्ताको स्थल-स्थलपर घोषित कर रहे हैं। ईश्वरको जनानेके लिये ही उन सबकी व्युत्पत्ति है, यथा–
'वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो' (श्रीमद्भगवद्गीता १५/१५);
'ईशावास्यमिद सर्वं यत्किञ्च जगत्याञ्जगत्' (यजुर्वेद) ;
'ईश्वरप्रणिधानाद्वा' (योगदर्शन समाधिपाद सूत्र २३ );
'आत्मा द्विविधा, आत्मा परमात्मा च' (वैशेषिक दर्शन)
- आदि । प्रमाणोंका विशेष विस्तार 'कल्याण' मासिक पत्रके 'ईश्वरांक' - में देखना चाहिये।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण...