भगवन्नाम महिमा
मनके दोष, मनकी चंचलता, विषयोंमें आसक्ति आदि दोष न मिटें तो निराश नहीं हों, भजनके बल से सब दोष अपने-आप दूर हो जायँगे। जीवन बहुत थोड़ा है, विचारोंमें ही बिता दोगे तो भजनसे वंचित रह जाओगे।
भजन मन, वचन और तन– तीनोंसे ही करना चाहिये। भगवान् का चिन्तन करना यह मनसे भजन है, नामका गुणगान करना यह वचन (वाणी)-का भजन है और भगवद्भावसे की हुई जीव सेवा तनका भजन है। तन, मनसे भजन न बन पड़े तो केवल वचनसे ही भजन करना चाहिये। भजनमें स्वयं ऐसी शक्ति है कि जिसके प्रतापसे आगे चलकर अपने आप ही सब कुछ भजनमय हो जाता है।
आज-कलके दुर्बल प्रकृतिके (सांसारिक) नर-नारियोंके लिये सबसे अधिक उपयोगी और लाभदायक है– भगवान् के नामका जप और कीर्तन। बस, जप और कीर्तनपर विश्वास करके नामकी शरण ले लो, यानी भगवान् के नाम जपमें लग जाओ। नाम अपनी शक्तिसे अपने-आप ही तुम्हें अपना लेगा।
साधन पथके विघ्न– जहाँ तक बने, कम बोलो। जिस बातके बोले बिना काम न चलता हो, वही बोलो। किसीको सलाह देने मत दौड़ो। दो आदमी बात करते हों तो उसे सुननेकी चेष्टा न करो, न उनके बीचमें बोलो। वाणीका अपव्यय मत करो। जो बोलो, सो सत्य, सरल, हितकर, मधुर, सीमित बोलो। वाणीसे किसीको भुलानेकी, धोखा देनेकी, किसीका अहित करनेकी या जी दुःखानेकी चेष्टा मत करो। किसीकी निन्दा, चुगली मत करो। कम-से-कम बोलनेके बाद जितना समय बचे, सब-का-सब श्रीभगवान् के नाम-जपमें, भगवान् के गुणगानमें लगा दो।
साधकको समझदार बनना चाहिये। अनावश्यक संग्रह, अनावश्यक त्याग और लोगोंकी झूठी प्रशंसाके लोभसे तड़क, भड़क, फैशन आदि उसे नहीं करना चाहिये।
भजन, ध्यानमें मन लगाना चाहिये, उससे मिलनेवाले सुख, शान्तिमें मन नहीं लगाना चाहिये। जो सुख, शान्तिके लिए भजन करते हैं, उनका भजन कमजोर है, वे तो सुख, शान्तिके दास हैं। भजन, ध्यान तो भजन, ध्यानके लिए ही करो, भगवान् के लिए भी नहीं। भगवान् मिलनेपर भजन जाता हो तो इच्छा करनी चाहिये कि भगवान् चाहे न मिलें, हमारा भजन, ध्यान चालू रहे; भजन-ध्यान चालू रहे।
नारायण नारायण नारायण श्रीमन्नारायण नारायण नारायण...