Seeker of Truth

स्वास्थ्यके लिये

१-जो गुरुजनों (बड़ों) का आदर करता है, उनको नित्य प्रणाम करता है, उसके आयु, बल, विद्या और यशकी वृद्धि होती है। जो इसके विपरीत बड़ोंका आदर नहीं करता या उनका तिरस्कार करता है, उसके आयु, बल, विद्या और यशका नाश होता है।

२-सोते समय सदा दक्षिण या पूर्व सिर करके सोओ। उत्तर या पश्चिम सिर करके सोनेसे आयु क्षीण होती है। इसी प्रकार दक्षिण मुख करके भोजन करनेसे भी आयुका ह्रास होता है।

३-भजन, पूजन, भोजनादि उत्तम कर्म पूर्व या उत्तर मुख करके करना हितकारी है। केवल सायंकालीन संध्या पश्चिम मुख करके की जाती है।

४-स्वस्थ रहनेके लिये शरीरकी बाहरी और भीतरी स्वच्छता तथा नियमित व्यायाम आवश्यक है।

  • दाँतोंको नित्य दतुअन करके स्वच्छ रखो। मौलसिरीका दतुअन बहुत उत्तम है। दतुअन न हो तो मंजन करो। नित्य भली प्रकार स्नान करो। हाथ-पैर धोकर स्वच्छ रखो। नख बड़े न रहें और उनमें मैल न रहे, इसका ध्यान रखो। वस्त्रोंको मैला मत रखो। अपने बर्तन तथा दूसरी उपयोगी वस्तुएँ और रहनेका स्थान स्वच्छ रखो। कूड़ा दूर फेंको और नालियोंको गंदा मत रहने दो। जल छानकर पीओ। प्रातःकाल सूर्य उगनेसे पहले उठो । हाथ-मुँह धोकर एक गिलास जल पी लो ।
  • पेट साफ रहे, इसका ध्यान रखो। जो वस्तुएँ सरलतासे न पच सकें, उन्हें मत खाओ। कब्ज होनेपर हरड़ या त्रिफला सोते समय खाकर गरम दूध या जल पी लो।
  • खुली वायुमें कुछ दूर रोज टहल आया करो। घरकी भूमि नम मत रहने दो। कुछ हलका व्यायाम नियमपूर्वक करो।

५-मांस, मछली, अंडे, प्याज, लहसुन तथा बासी और सड़ा भोजन बुद्धिको निश्चय ही मलिन बनाता है और स्वास्थ्यका नाश करता है।

६-लाल मिर्च, खटाई, तेलके बने पदार्थ, बाजारकी पूड़ी-मिठाई और चाट स्वास्थ्यके लिये बहुत हानिकारक है।

७-तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, चाय, काफी आदि सब प्रकारकी नशीली वस्तुएँ स्वास्थ्यको नष्ट करती हैं।

८- भोजन सात्त्विक, सुपाच्य तथा ऋतुके अनुकूल, स्वास्थ्यकारक होना चाहिये।

९-बहुत गरम भोजन, चाय तथा बहुत गरम दूध पीना अथवा बहुत ठंडा भोजन, बरफ या बरफ पड़े पदार्थ खाना पेटको तो खराब करता ही है, इससे दाँत शीघ्र गिर जाते हैं। सोडा वाटर, लेमन हर कहीं मत पीओ। वह जूठा तो होता ही है, स्वास्थ्य- नाशक भी होता है।

१०-यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारे दाँत सुदृढ़ रहें और पेट ठीक काम करे तो पान- तम्बाकू मत खाओ । भोजन जल्दी-जल्दी मत करो, भली प्रकार चबाकर खाओ । चाय, बरफ, चाट, बाजारू मिठाई और सब प्रकारके नशोंसे दूर रहो।

११-खड़े-खड़े भोजन करना, चलते-फिरते भोजन करना, भोजन करते समय बातें करना-ये हानिकर हैं। बैठकर मौन होकर प्रसन्नतासे भोजन करो।

१२- भोजन पवित्रता और शुद्धतासे बनाया जाय, शुद्ध और पवित्र होकर शुद्ध स्थानपर किया जाय। भोजन एकान्तमें करना चाहिये। उसपर चाहे जिसकी दृष्टि पड़ना हानि करता है।

१३-कुल्ला करके हाथ-पैर धोकर गीले पैरों भोजन करनेसे भोजन ठीक पचता है। भोजनके लिये या तो पालथी मारकर स्थिर बैठो या दाहिने हाथको दोनों घुटनोंके बीचमें रखकर भोजन करो।

१४-भोजनके बीच-बीचमें आवश्यक हो तो थोड़ा जल पी सकते हो, पर भोजन समाप्त करके तुरंत जल मत पीओ। आध घंटे बाद जल पीना उत्तम है।

१५-ग्रास इस प्रकार उठाओ कि पात्रसे भूमिपर या वस्त्रोंपर जूठन न गिरे।

१६-एक थाली या पत्तलमें कई लोगोंका साथ खाना स्वास्थ्यके लिये हानिकर है। छोटे बच्चोंको भी परस्पर जूठा नहीं खाना चाहिये। किसीका जूठा मत खाओ और किसीको अपना जूठा मत दो ।

१७-भोजन सदा दाहिने हाथसे करो। जलका बर्तन अपनी दाहिनी ओर रखो। बायीं ओर मत रखो।

१८-भोजनके पश्चात् भली प्रकार कुल्ला करके शुद्ध जलसे हाथ, मुख और पैर भी धो डालो। जिस जलको पिया है, उसी जलसे हाथ मत धोओ।

१९-एक बारका जूठा भोजन दुबारा कामका नहीं रहता। जूठा बच ही जाय तो उसे पशुओंको दे देना चाहिये।

२०- भोजनके पश्चात् हाथ धोकर गीले हाथ दोनों नेत्रोंपर फेर लेनेसे नेत्रोंकी ज्योति बढ़ती है।

२१- भोजनके समय शरीरपर कुर्ता-कमीज आदि नहीं होना चाहिये। शरीर खुला रहना चाहिये, किंतु केवल धोती पहनकर ही भोजन करना भी उत्तम नहीं। कंधेपर एक चद्दर या गमछा रखना चाहिये।

२२-कभी भी गीले हाथ छिड़को मत या धोतीमें मत पोंछो । हाथ-मुख स्वच्छ रूमाल या गमछेसे पोंछना चाहिये।

२३-जल सदा बैठकर और धीरे-धीरे पीओ। खड़े-खड़े जल मत पीओ।

२४-बिना देखे जल मत पीओ। पहले देख लो कि उसमें कुछ पड़ा तो नहीं है। इसी प्रकार बिना देखे इलायची, पान आदि मुखमें मत डालो और बिना देखे तथा बिना धोये फल मत खाओ।

२५-कहींसे चलकर आते ही तुरंत जल मत पीओ, हाथ-पैर मत धोओ और न स्नान करो। इससे बड़ी हानिका भय रहता है। पसीना सूख जाने दो। कम-से-कम पंद्रह मिनट विश्राम कर लो, तब पहले हाथ- पैर धोकर कुल्ला करके तब जल पीओ। प्राचीन प्रथा ऐसे समय आधा या पाव तोला गुड़-मिश्री या ऐसा ही कुछ खाकर जल पीनेकी है और यह स्वास्थ्यके लिये बहुत उत्तम है।

२६-व्यायाम करके, मार्ग चलकर आनेपर तुरंत भोजन मत करो और न तो भोजन करके तुरंत परिश्रमका कोई काम करो। दौड़ना या कोई श्रमका काम करना हो तो भोजन करने और भोजनके पीछे उसमें आधे घंटेका अन्तर पड़ना चाहिये।

२७-दूध विश्राम करनेसे पचता है। दूध पीकर मार्गमें चलना या परिश्रम करना हानिकारक है।

२८-स्नानके समय पहले सिर धो डालो और तब जलमें प्रवेश करो या शरीरपर जल डालो, इससे सिरके रोग नहीं होंगे।

२९-सप्ताहमें बाल बनवानेका बुधवार ही उत्तम दिन है। सोमवार, बुधवार और शनिवार शरीरमें तेल लगानेके लिये उत्तम दिन हैं। यदि तुम्हें ग्रहोंके अनिष्टकर प्रभावसे बचे रहना है तो इन्हीं दिनोंमें तेल लगाना चाहिये।

३०-यदि चाहते हो कि तुम्हारे नेत्रोंकी शक्ति क्षीण न हो तो इन नियमोंका पालन करना मत भूलो -

  • प्रातः-सायं भगवान् सूर्यको अर्घ्य अवश्य देना चाहिये। उगते तथा अस्त होते सूर्यको खुले नेत्रोंसे देखना हानिकारक है; किंतु नेत्र बंद करके उनकी ओर मुख किये रहना नेत्र-ज्योतिको बढ़ाता है।
  • तेल लगाते समय पहले नाभिको और हाथ-पैरकी अँगुलियोंके नखोंको भली प्रकार तेल लगा दिया करो।
  • मुखमें जल भरकर नित्य प्रातः- काल स्वच्छ, शीतल जलके छींटे मारकर नेत्र धो लिया करो।
  • पैरोंको यथासम्भव खुला रखो। गर्मियोंमें मोजे आदिसे मत ढको और कुछ समय प्रातःकाल हरी घासपर नंगे पैर टहलो ।

३१-बहुत कसे हुए कपड़े पहनना स्वास्थ्यके लिये अच्छा नहीं है। आवश्यकता न होनेपर केवल 'फैशन'के लिये शरीरपर कपड़े लादे रहना हानिकारक है।

३२-मुख ढककर कभी मत सोओ। कमरेको चारों ओरसे बंद करके या कमरेमें अँगीठी जलाकर भी मत सोओ। मुख खुला रखो और कमरेमें वायुके आने-जानेका मार्ग रहने दो। पुरानी प्रथा है, सोते समय कमरेमें एक घड़ा जल खुले मुख रखनेकी। यह जल सबेरे फेंक देना चाहिये। यह प्रथा बहुत उत्तम है।

३३-श्वास सदा नाकसे ही लो। मुख खुला मत रखो। मुख खुला रखना दुर्बल चरित्रका चिह्न तो है ही, इससे फेफड़े खराब होते हैं।

३४-नाकमें बार-बार अँगुली मत डालो। नाक साफ करके हाथ तथा नाक धोती या कुर्तेके छोरसे मत पोंछो। हाथ रूमालसे पोंछो।

३५-शौच जाकर हाथ सदा मिट्टीसे मलकर, धोकर शुद्ध करो। गंदी मिट्टी काममें मत लो। अच्छी शुद्ध मिट्टी लो।

३६-शौच या लघुशंका जाकर हाथके साथ पैर भी अवश्य धोना चाहिये।

३७-शौच या लघुशंका बैठते समय पहले बैठनेके स्थलको देख लो। वहाँ चींटियाँ या दीमक आदि कीड़े न हों। वह स्थान ऐसा न हो कि लघुशंकाका प्रवाह तुम्हारे जूतोंको गंदा कर दे। वस्त्र भली प्रकार समेट लो। शौचके समय जलका पात्र ठीक सामने मत रखो। एक बगल कुछ दूर रखो, जिसमें उसपर लघुशंकाके छींटे या उसका प्रवाह न पहुँचे। लघुशंका बैठकर करो, खड़े रहकर नहीं।

३८-संध्या करनेसे बचा, पैर धोनेसे बचा, स्नान करनेसे बचा, एक बार पीनेसे बचा और शौचसे बचा जल अपवित्र होता है। इसे फेंक देना चाहिये। किसी काममें नहीं लेना चाहिये।

३९-किसीके पहने कपड़े या जूते मत पहनो और न नीलामके कपड़े आदि लो। इससे अनेक प्रकारके रोग होनेकी सम्भावना रहती है। दूसरेके गमछेसे शरीर मत पोंछो ।

४०-सोनेसे पहले पैर धोकर भली प्रकार पोंछकर सोनेसे नींद अच्छी आती है; परंतु गीले पैर सोना हानि करता है।

४१-सूर्योदयके पश्चात्तक सोते रहने-वालोंका तेज, बल, आयु एवं लक्ष्मी नष्ट हो जाती है। ब्राह्ममुहूर्तमें ही निद्रा त्यागनेवाले उत्तम स्वास्थ्य एवं सुखी जीवन प्राप्त करते हैं।

४२-रात्रिमें देरतक मत जागो । जल्दी सो जाओ और ब्राह्ममुहूर्तमें जग जाओ।

४३-सदा करवट सोवो। पेट या पीठके बल सोनेका स्वभाव हानिकारक है।

४४-बिस्तर समान और कड़ा होगा तो पाचनक्रिया ठीक होगी। कोमल बिस्तर स्वास्थ्यके लिये प्रतिकूल है।

४५-सिनेमा देखना नेत्रज्योतिको नष्ट करता है तथा उसमें और भी बहुत-से भयानक दोष हैं। नेत्रोंकी रक्षाके लिये तेज प्रकाशमें नहीं पढ़ना चाहिये। इस प्रकार नहीं पढ़ना चाहिये कि प्रकाश सीधे पुस्तकके पृष्ठोंपर पड़े। लेटे-लेटे भी नहीं पढ़ना चाहिये और न झुककर या पुस्तकको नेत्रोंके बहुत पास करके पढ़ना चाहिये। बहुत कम प्रकाशमें पढ़ना भी हानिकारक है।

४६-यदि तुम तन-मनसे स्वस्थ रहना चाहते हो तो तुम्हें सिनेमा कभी नहीं देखना चाहिये, स्त्रियोंसे हँसी-दिल्लगी नहीं करनी चाहिये। उनके नंगे चित्र कभी नहीं देखना चाहिये और न गंदे पत्र-पत्रिका तथा पुस्तकें पढ़नी चाहिये। इन उत्तेजना देनेवाले साधनोंसे ऐसे अनेक रोग हो जाते हैं, जो पीछे बहुत चिकित्सा करनेसे भी दूर नहीं होते।

४७-साइकिलकी सवारी स्वास्थ्यके लिये बहुत लाभदायक नहीं है।

४८-ऊँची एड़ीके या तंग पंजोंके जूते स्वास्थ्यको हानि पहुँचाते हैं।

४९-पाउडर, स्नो आदि त्वचाके स्वाभाविक सौन्दर्यको नष्ट करके उसे रूक्ष एवं कुरूप कर देते हैं।

५०-जितना सादा भोजन, सादा रहन- सहन रखोगे, उतने ही स्वस्थ रहोगे। फैशनकी वस्तुओंका जितना उपयोग करोगे या जिह्वाके स्वादमें जितना फँसोगे, स्वास्थ्य उतना ही दुर्बल होता जायगा।

- स्रोत : स्वास्थ्य, सम्मान और सुख (गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित)