सुख-शान्तिके लिये
१-प्रातःकाल निद्रा खुलते ही भगवान्का अवश्य-अवश्य स्मरण करो और रातको सोते समय भी भगवान्का स्मरण करके भगवन्नाम लेते हुए सो जाओ। इससे तुम्हें बुरे सपने कभी नहीं आयेंगे और चित्त प्रसन्न रहेगा।
२-नियमितरूपसे नित्य भगवान्की प्रार्थना करो। प्रार्थनाके समान मनोबल और किसी उपायसे प्राप्त नहीं होता।
३-किसी भगवन्नामके जपकी एक संख्या निश्चित कर लो। उतना जप नित्य अवश्य करो। जपके समान बुद्धिको शुद्ध और तीव्र करनेवाली दूसरी कोई ओषधि संसारमें नहीं है। यज्ञोपवीतधारी द्विज हो तो संध्या तथा गायत्री-जप अवश्य करो।
४-देवताओंमें श्रद्धा रखो और जब किसी देवस्थानके सामनेसे निकलो, देवताको अवश्य मस्तक झुकाकर प्रणाम करो। देवताओंकी कृपासे मन प्रसन्न रहता है।
५-सदा संतुष्ट रहो। जो कुछ भोजन, वस्त्र या दूसरी वस्तुएँ तुम्हें मिलती हैं, उनको पाकर संतुष्ट और प्रसन्न रहो। दूसरोंकी वस्तुओंको देखकर ललचाओ मत ।
६- तुम्हारी कोई वस्तु नष्ट भी हो जाय तो दुःख या क्रोध मत करो। वह वस्तु कभी- न-कभी नष्ट तो होती ही। बुद्धिमान् बालक सदा संतुष्ट रहते हैं।
७-सदा प्रसन्न बने रहो। कष्टमें, रोगमें भी अपनेको प्रसन्न रखो। कष्ट तो जो हो रहा है, वह होगा ही; किंतु मनको दुःखी करनेसे मनकी व्यथा और बढ़ जायगी। यदि तुम चित्तको प्रसन्न रखोगे तो कष्टकी पीड़ा तुम्हें तुच्छ जान पड़ेगी।
८-किसीके अपराध करनेपर भी क्रोध मत करो। उसे क्षमा कर दो।
९-बड़ोंकी आज्ञाका पालन करो। सदाचारपूर्वक रहो और भगवान्की असीम कृपा तुमपर है, इस बातपर पूरा विश्वास रखो।